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'''ख़ैबर दर्रा''' उत्तर-पश्चिमी [[पाकिस्तान]] की सीमा और [[अफ़ग़ानिस्तान]] के काबुलिस्तान मैदान के बीच [[हिन्दुकुश]] के [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] कोह पर्वत श्रृंखला में स्थित एक प्रख्यात दर्रा है। यह दर्रा 33 मील लम्बा है, और इसका सबसे सँकरा भाग केवल 10 फुट चौड़ा है। यह सँकरा मार्ग 600 से 1000 फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है।
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==इतिहास==
==इतिहास==
इस दर्रे के पूर्वी (भारतीय) छोर पर [[पेशावर]] तथा लंदी कोतल स्थित है, जहाँ से अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी [[काबुल]] को मार्ग जाता है। उत्तर-पश्चिम से [[भारत]] पर आक्रमण करने वाले अधिकांश आक्रमणकारी इसी दर्रे से भारत में आये। अब यह दर्रा पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त को अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ता है। प्राचीन काल के [[हिन्दू]] राजा विदेशी आक्रमणकारियों से इस दर्रे की रक्षा नहीं कर सके। यह माना जाता है कि [[मुसलमान|मुसलमानी]] शासनकाल में [[तैमूर]], [[बाबर]], [[हुमायूँ]], [[नादिरशाह]] तथा [[अहमदशाह अब्दाली]] ने इसी दर्रे से होकर भारत पर चढ़ाई की। जब [[पंजाब]] ब्रिटिश शासन में आ गया, तभी ख़ैबर के दर्रे की समुचित रक्षा व्यवस्था की जा सकी और उसके बाद इस मार्ग से भारत पर फिर कोई आक्रमण नहीं हुआ।<ref>{{cite book | last = भट्टाचार्य| first = सच्चिदानन्द | title = भारतीय इतिहास कोश | edition = द्वितीय संस्करण-1989| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location =  भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =  हिन्दी| pages = 233 | chapter =}}</ref>
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==भूगोलीय संरचना==
==भूगोलीय संरचना==
[[पेशावर]] से [[काबुल]] तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बन गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो [[अंग्रेज़]] सेना की छावनी थी, और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, तीन मील आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है, और यहीं से ख़ैबर दर्रा आरंभ होता है। कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है, फिर बाई और शंगाई के पठार की ओर उठती है। इस स्थान से अली मसजिद दुर्ग दिखाई पड़ता है, जो दर्रे के लगभग बीचो-बीच ऊँचाई पर स्थित है। यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है। पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है, और टेढ़े-मेढ़े ढलान से होती हुई अली मसजिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है। यहीं ख़ैबर दर्रे का सँकरा भाग है, जो महज पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊँचाई में 2000 फुट है।
[[पेशावर]] से काबुल तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बनाई गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो [[अंग्रेज़]] सेना की छावनी थी, और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, 3 मील {{मील|मील=3}} आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है, और यहीं से ख़ैबर दर्रा आरंभ होता है। कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है, फिर बाई और शंगाई के [[पठार]] की ओर उठती है। इस स्थान से अली मसजिद दुर्ग दिखाई पड़ता है, जो दर्रे के लगभग बीचो-बीच ऊँचाई पर स्थित है। यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है। पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है, और टेढ़े-मेढ़े ढलान से होती हुई अली मसजिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है। यहीं ख़ैबर दर्रे का सँकरा भाग है, जो महज पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊँचाई में 2000 फुट है।
 
[[चित्र:Khyber-Pass-1.jpg|thumb|250px|left|ख़ैबर दर्रा]]
तीन मील आगे बढ़ने पर घाटी चौड़ी होने लगती है। इस घाटी के दोनों और छोटे-छोटे गाँव और जक्काखेल अफ्रीदियों की लगभग साठ मीनारें है। इसके आगे लोआर्गी का पठार आता है जो सात मील लंबा है और उसकी अधिकतम चौड़ाई तीन मील है। यह लंदी कोतल में जाकर समाप्त होता है। यहाँ अंग्रेज़ों के काल का एक दुर्ग है। यहाँ से अफ़ग़ानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है। लंदी कोतल से आगे सड़क छोटी पहाड़ियों के बीच से होती हुई काबुल नदी को चूमती डक्का पहुँचती है। यह मार्ग अब इतना प्रशस्त हो गया है कि छोटी लारियाँ और मोटरगाड़ियाँ काबुल तक सरलता से जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त लंदी खाना तक, जिसे ख़ैबर का पश्चिम कहा जाता है, रेलमार्ग भी बन गया है। इस रेलमार्ग का बनना 1925 में आरंभ हुआ था।<ref>{{cite web |url=http://theindianguru.com/technical-hindi/Vishvakosh/30781.htm |title= खैबर दर्रा|accessmonthday= |accessyear= |last= गुप्त|first=परमेश्वरीलाल |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher= |language=हिन्दी }}</ref>
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==भारत का प्रवेश-द्वार==
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11:23, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

ख़ैबर दर्रा
ख़ैबर दर्रा
ख़ैबर दर्रा
विवरण 'ख़ैबर दर्रा' सफ़ेद कोह पर्वत श्रृंखला में स्थित एक प्रख्यात दर्रा है। इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आवागमन किया जा सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है।
स्थिति अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान
ऊँचाई 1070 मीटर
पर्वत श्रृंखला सफ़ेद कोह
लम्बाई 33 मील
अन्य जानकारी इस दर्रे के पूर्वी (भारतीय) छोर पर पेशावर तथा लंदी कोतल स्थित है, जहाँ से अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल को मार्ग जाता है। माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम से भारत पर आक्रमण करने वाले अधिकांश आक्रमणकारी इसी दर्रे से भारत में आये।

ख़ैबर दर्रा उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफ़ग़ानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिन्दुकुश के सफ़ेद कोह पर्वत श्रृंखला में स्थित एक प्रख्यात दर्रा है। यह 1070 मीटर (3510 फ़ुट) की ऊँचाई पर सफ़ेद कोह श्रृंखला में एक प्राकृतिक कटाव है। इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आवागमन किया जा सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है। ख़ैबर दर्रा 33 मील (लगभग 52.8 कि.मी.) लम्बा है और इसका सबसे सँकरा भाग केवल 10 फुट चौड़ा है। यह सँकरा मार्ग 600 से 1000 फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है।

इतिहास

इस दर्रे के पूर्वी (भारतीय) छोर पर पेशावर तथा लंदी कोतल स्थित है, जहाँ से अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल को मार्ग जाता है। उत्तर-पश्चिम से भारत पर आक्रमण करने वाले अधिकांश आक्रमणकारी इसी दर्रे से भारत में आये। अब यह दर्रा पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त को अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ता है। प्राचीन काल के हिन्दू राजा विदेशी आक्रमणकारियों से इस दर्रे की रक्षा नहीं कर सके। यह माना जाता है कि मुस्लिम शासन काल में तैमूर, बाबर, हुमायूँ, नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली ने इसी दर्रे से होकर भारत पर चढ़ाई की। जब पंजाब ब्रिटिश शासन में आ गया, तभी ख़ैबर दर्रे की समुचित रक्षा व्यवस्था की जा सकी और उसके बाद इस मार्ग से भारत पर फिर कोई आक्रमण नहीं हुआ।[1]

भूगोलीय संरचना

पेशावर से काबुल तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बनाई गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो अंग्रेज़ सेना की छावनी थी, और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, 3 मील (लगभग 4.8 कि.मी.) आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है, और यहीं से ख़ैबर दर्रा आरंभ होता है। कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है, फिर बाई और शंगाई के पठार की ओर उठती है। इस स्थान से अली मसजिद दुर्ग दिखाई पड़ता है, जो दर्रे के लगभग बीचो-बीच ऊँचाई पर स्थित है। यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है। पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है, और टेढ़े-मेढ़े ढलान से होती हुई अली मसजिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है। यहीं ख़ैबर दर्रे का सँकरा भाग है, जो महज पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊँचाई में 2000 फुट है।

ख़ैबर दर्रा

3 मील आगे बढ़ने पर घाटी चौड़ी होने लगती है। इस घाटी के दोनों और छोटे-छोटे गाँव और जक्काखेल अफ्रीदियों की लगभग साठ मीनारें हैं। इसके आगे लोआर्गी का पठार आता है, जो 7 मील (लगभग 11.2 कि.मी.) लंबा है और उसकी अधिकतम चौड़ाई तीन मील है। यह लंदी कोतल में जाकर समाप्त होता है। यहाँ अंग्रेज़ों के काल का एक दुर्ग है। यहाँ से अफ़ग़ानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है। लंदी कोतल से आगे सड़क छोटी पहाड़ियों के बीच से होती हुई काबुल नदी को चूमती डक्का पहुँचती है। यह मार्ग अब इतना प्रशस्त हो गया है कि छोटी लारियाँ और मोटर गाड़ियाँ काबुल तक सरलता से जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त लंदीखाना तक, जिसे ख़ैबर का पश्चिम कहा जाता है, रेलमार्ग भी बन गया है। इस रेलमार्ग का बनना 1925 में आरंभ हुआ था।[2]

भारत का प्रवेश-द्वार

सामरिक दृष्टि से संसार भर में यह दर्रा सबसे अधिक महत्व का समझा जाता रहा है। भारत के प्रवेश द्वार के रूप में इसके साथ अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। समझा जाता है कि सिकंदर के समय से लेकर बहुत बाद तक जितने भी आक्रामक शक-पल्लव, बाख्त्री यवन, महमूद ग़ज़नवी, चंगेज़ ख़ाँ, तैमूर, बाबर आदि भारत आए, उन्होंने इसी दर्रे के मार्ग से भारत में प्रवेश किया। किंतु यह बात सर्वांश में सत्य नहीं है। दर्रे की दुर्गमता और इस प्रदेश के उद्दंड निवासियों के कारण इस मार्ग से सबके लिए बहुत साल तक प्रवेश सहज नहीं था। भारत आने वाले अधिकांश आक्रमणकारी या तो बलूचिस्तान होकर आए या काबुल से घूमकर जलालाबाद के रास्ते काबुल नदी के उत्तर होकर आए, जहाँ से प्रवेश अधिक सुगम रहा था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 233।
  2. 2.0 2.1 गुप्त, परमेश्वरीलाल। खैबर दर्रा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। ।

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