"ग्वालियर": अवतरणों में अंतर
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|भौगोलिक स्थिति=उत्तर- 26.14°, पूर्व- 78.10° | |भौगोलिक स्थिति=उत्तर- 26.14°, पूर्व- 78.10° | ||
|मार्ग स्थिति=दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से पलवल, | |मार्ग स्थिति=[[दिल्ली]] से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से [[पलवल]], [[कोसीकलाँ]], [[होडल]] और [[मथुरा]] होते हुए [[आगरा]] पहुँचा जा सकता है जहाँ राष्ट्रीय राजमार्ग 3 ग्वालियर से जुड़ा हुआ है। | ||
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|कब जाएँ=[[अक्टूबर]] से [[मार्च]] | |कब जाएँ=[[अक्टूबर]] से [[मार्च]] | ||
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|बस अड्डा=ग्वालियर बस अड्डा | |बस अड्डा=ग्वालियर बस अड्डा | ||
|कैसे पहुँचें=बस, रेल, टैक्सी, | |कैसे पहुँचें=बस, रेल, टैक्सी, | ||
|क्या देखें= | |क्या देखें=ग्वालियर पर्यटन | ||
|कहाँ ठहरें=होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह | |कहाँ ठहरें=होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह | ||
|क्या खायें=पोहा, गजक, नमकीन, दिल्ली वाले का परांठा, शेरे पंजाब भोजनालय का खाना | |क्या खायें=पोहा, गजक, नमकीन, दिल्ली वाले का परांठा, शेरे पंजाब भोजनालय का खाना | ||
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|सावधानी= | |सावधानी= | ||
|मानचित्र लिंक=[http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=Gwalior,+Madhya+Pradesh&aq=0&sll=21.125498,81.914063&sspn=34.855829,79.013672&ie=UTF8&hq=&hnear=Gwalior,+Madhya+Pradesh&ll=26.224447,78.178711&spn=0.132741,0.308647&z=12 गूगल मानचित्र], [http://maps.google.co.in/maps?f=d&source=s_d&saddr=Gwalior+junction&daddr= | |मानचित्र लिंक=[http://maps.google.co.in/maps?f=q&source=s_q&hl=en&geocode=&q=Gwalior,+Madhya+Pradesh&aq=0&sll=21.125498,81.914063&sspn=34.855829,79.013672&ie=UTF8&hq=&hnear=Gwalior,+Madhya+Pradesh&ll=26.224447,78.178711&spn=0.132741,0.308647&z=12 गूगल मानचित्र], [http://maps.google.co.in/maps?f=d&source=s_d&saddr=Gwalior+junction&daddr=NH+92&geocode=FSUHkAEd5vaoBCl5BlwHocZ2OTFD9327st0MWg%3BFcxAkQEdt-6pBA&hl=en&mra=ls&sll=26.260476,78.20961&sspn=179.377295,184.21875&ie=UTF8&z=12 ग्वालियर हवाई अड्डा] | ||
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ग्वालियर [[भारत]] के [[मध्य प्रदेश]] प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। ये शहर और इसका क़िला उत्तर भारत के प्राचीन शहरों का केन्द्र रहे हैं। ग्वालियर अपने पुरातन ऎतिहासिक संबंधों, दर्शनीय स्थलों और एक बड़े सांस्कृतिक, औद्योगिक और राजनीतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। इस शहर को उसका नाम उस | ग्वालियर [[भारत]] के [[मध्य प्रदेश]] प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। ये शहर और इसका क़िला उत्तर भारत के प्राचीन शहरों का केन्द्र रहे हैं। ग्वालियर अपने पुरातन ऎतिहासिक संबंधों, दर्शनीय स्थलों और एक बड़े सांस्कृतिक, औद्योगिक और राजनीतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। इस शहर को उसका नाम उस ऐतिहासिक पत्थरों से बने क़िले के कारण दिया जाता है, जो एक अलग-थलग, सपाट शिखर वाली 3 किलोमीटर लंबी तथा 90 मीटर ऊँची पहाड़ी पर बना है। इस नगर का उल्लेख गोप पर्वत, गोपाचल दुर्ग, गोपगिरी, गोपदिरी के रूप में हुआ है। इन सभी नामों का मतलब 'ग्वालों की पहाड़ी' होता है। [[चित्र:Gwalior-City.jpg|thumb|250px|left|ग्वालियर का एक दृश्य]] प्राचीन नाम गोपाद्रि या गोपगिरि है। जनश्रुति है कि राजपूत नरेश सूरजसेन ने ग्वालियर नाम के साधु के कहने से यह नगर बसाया था। ग्वालियर शहर के इस नाम के पीछे भी एक इतिहास छिपा है; आठवीं शताब्दी में एक राजा हुए सूरजसेन, एक बार वे एक अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो मृत्युशैया पर थे, तब 'ग्वालिपा' नामक संत ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया। उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पडी और इसे नाम दिया ग्वालियर। आने वाली शताब्दियों के साथ यह शहर बड़े-बड़े राजवंशो की राजस्थली बना। | ||
*[[महाभारत]]<ref>महाभारत सभापर्व 30,3</ref> में गोपालकक्ष नामक स्थान पर [[भीम (पांडव)|भीम]] की विजय का उल्लेख है। संभवतः यह गोपाद्रि ही है। | *[[महाभारत]]<ref>महाभारत सभापर्व 30,3</ref> में गोपालकक्ष नामक स्थान पर [[भीम (पांडव)|भीम]] की विजय का उल्लेख है। संभवतः यह गोपाद्रि ही है। | ||
==इतिहास और भूगोल== | ==इतिहास और भूगोल== | ||
यह शहर सदियों से राजपूतों की प्राचीन राजधानी रहा है, चाहे वे प्रतिहार रहे हों या कछवाहा या | यह शहर सदियों से राजपूतों की प्राचीन राजधानी रहा है, चाहे वे प्रतिहार रहे हों या [[कछवाहा वंश|कछवाहा]] या [[तोमर]]। इस शहर में इनके द्वारा छोडे ग़ये प्राचीन चिह्न स्मारकों, क़िलों, महलों के रूप में मिल जाएंगे। सहेज कर रखे गए अतीत के भव्य स्मृति चिह्नों ने इस शहर को पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बनाता है। यह नगर सामंती रियासत ग्वालियर का केंद्र था। जिस पर 18वीं [[सदी]] के उत्तरार्ध में मराठों के सिंधिया वंश का शासन था। रणोजी सिंधिया द्वारा 1745 में इस वंश की बुनियाद रखी गई और महादजी (1761-94) के शासनकाल में यह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। | ||
उनके अधीन क्षेत्र में सामान्य हिंदुस्तान के मुख्य हिस्से तथा मध्य [[भारत]] के कई हिस्से शामिल थे और उनके अधिकारी [[जोधपुर]] तथा [[जयपुर]] सहित अनेक स्वतंत्र राजपूत शासकों से भी नज़राना वसूल करते थे। दौलतराव के शासनकाल में अंग्रेज़ों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और 1840 के दशक में इस क्षेत्र में पूरा प्रभाव क़ायम किया। 1857 के विद्रोह के दौरान ग्वालियर के सिंधिया शासक अंग्रेज़ों के प्रति वफ़ादार बने रहे, किंतु उनकी सेना ने विद्रोहियों का साथ दिया। | |||
हर सदी के साथ इस शहर के इतिहास को नये आयाम मिले। | पठारी इलाके में स्थित यह क्षेत्र सांक (शंख) नदी द्वारा कई जगहों पर प्रतिच्छेद है और घने जंगल से आच्छादित है। नगर तीन भिन्न बस्तियों से बना है। पुराना ग्वालियर, जो पर्वतीय क़िले के उत्तर में है और जहां मध्ययुगीन शौर्य के कई जीवंत स्मारक मौजूद हैं। क़िले के दक्षिण में स्थित लश्कर 1810 में दौलतराव सिंधिया की फ़ौजी छावनी बना था। | ||
[[चित्र:Jai-Vilas-Palace.jpg|जय विलास पेलेस, ग्वालियर|thumb|250px|left]] | |||
हर [[सदी]] के साथ इस शहर के इतिहास को नये आयाम मिले। महान् योद्धाओं, राजाओं, कवियों संगीतकारों तथा सन्तों ने इस राजधानी को देशव्यापी पहचान देने में अपना-अपना योगदान दिया। आज ग्वालियर एक आधुनिक शहर है और एक जाना-माना औद्योगिक केन्द्र है। | |||
==खनिज संपदा== | ==खनिज संपदा== | ||
पूर्व में मुरार, जो अंग्रेज़ों की छावनी था, समूचा इलाका उस ग्वालियर प्रस्तर-प्रणाली से बना है, जिसमें निचले पार से उत्तरमुखी ढलान अभ्रकयुक्त चूना-पत्थर, स्फटिक, बलुआ तथा स्लेटी पत्थर तथा ऊपरी मुरार | पूर्व में मुरार, जो अंग्रेज़ों की छावनी था, समूचा इलाका उस ग्वालियर प्रस्तर-प्रणाली से बना है, जिसमें निचले पार से उत्तरमुखी ढलान अभ्रकयुक्त चूना-पत्थर, स्फटिक, बलुआ तथा स्लेटी पत्थर तथा ऊपरी मुरार श्रृंखला में स्लेट, चूने, चिकने फीतेदार सूर्यकांत (जैस्पर) तथा शोण (हार्नस्टोन) पत्थर की पट्टियों से बनी है। शहर के आसपास मिलने वाले [[खनिज|खनिजों]] में [[मैंगनीज]], [[लौह अयस्क]], कांच रेत (ग्लास सैंड), चिकनी मिट्टी तथा शोरा हैं। | ||
==कृषि== | ==कृषि== | ||
आसपास का क्षेत्र शुष्क पर्णपाती वरस्पतियों से आच्छादित है तथा खेती नदी घाटी में होती है। | आसपास का क्षेत्र शुष्क पर्णपाती वरस्पतियों से आच्छादित है तथा खेती नदी घाटी में होती है। जहाँ मिट्टी गहराई तक पाई जाती है। ग्वालियर के आसपास के जंगलों में विभिन्न किस्मों के जानवर और पक्षी पाए जाते हैं। जिनमें [[चीतल]], हिरन, भूरे तीतर, चाहा तथा काला हिरन शामिल है। ग्वालियर की जलवायु मानसूनी है और वहां कटिबंधीय अतिरेक लिए सूखापन रहता है। वर्षाकाल साल दर साल बदलता रहता है और बारिश केवल वर्षा ऋतु में ही होती है। वर्षा की अनिश्चितता तथा पानी की किल्लत के कारण यहाँ तालाबों और बांधों में पानी संचय करना ज़रूरी हो जाता है। ग्वालियर शहर में कोई 12 तालाब हैं और उनके अलावा अनेक चट्टानों को काटकर बनाए गए जलाशय और कुंए हैं। जिनसे शहर को निरंतर पानी की आपूर्ति होती रहती है। [[भारत]] में पहाड़ी क़िलों का पतन अक्सर पानी की कमी के कारण ही हुआ। इस तथ्य की रोशनी में ग्वालियर के क़िले की यह विशेषता अनोखी है, इसी पक्ष ने इस क़िले को अजेय बना दिया था। | ||
==व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र== | ==व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र== | ||
ग्वालियर एक ऎसा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र है, | [[चित्र:Saas-Bahu-Temple-Gwalior.jpg|thumb|250px|सास बहू का मंदिर, ग्वालियर]] | ||
ग्वालियर एक ऎसा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र है, जहाँ से [[कृषि]] उत्पाद, वस्त्र, इमारती पत्थर तथा लौह अयस्क बाहर भेजे जाते हैं। लगभग एक-चौथाई आबादी कामगार है। जिसमें से 91 प्रतिशत पुरुष तथा 9 प्रतिशत स्त्रियाँ हैं। इनमें से दो-तिहाई लोग नौकरी और प्रशासनिक क्षेत्र में तथा एक-चौथाई गैर घरेलू निर्माण, व्यापार, वाणिज्य, निर्माण, परिवहन तथा संचार में लगे हुए हैं। नगर के प्रमुख उद्योगों में जूट, सिगरेट, कपास तथा रॅयान के वस्त्र, प्लास्टिक, कांच, माचिस, आटा-मैदा, चीनी के अलावा पत्थर तराशना, मिट्टी के बर्तन बनाना, चमड़ा पकाना तथा उसके खिलौने बनाना शामिल है। ग्वालियर इंजीनियरिंग वर्क संयत्र में रेल-इंजनों तथा डिब्बों की मरम्मत के अलावा अस्पताल-उपकरण, बांधों के लिए इस्पात के द्वार सहित कई विविध उपकरण बनाए जाते हैं। ग्वालियर में ग़लीचे, दरी, हॉजरी, बिस्कुट, अनाज और तेल की मिलों, आरा मिलों तथा लोहा ढालने जैसे छोटे पैमाने के भी कई उद्योग हैं। | |||
==आधुनिक ग्वालियर== | ==आधुनिक ग्वालियर== | ||
ग्वालियर विरासत का इलाका | ग्वालियर विरासत का इलाका आज़ादी के बाद [[1948]] में स्वतंत्र [[भारत]] के मध्य [[भारत]] राज्य में शामिल कर लिया गया। यह नगर [[1956]] में नए मध्य प्रदेश राज्य में शामिल होने तक मध्य [[भारत]] की शीतकालीन राजधानी रहा। प्रशासनिक दृष्टि से यह अब भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है। | ||
==परिवहन== | ==परिवहन== | ||
*सड़क तथा रेल मार्गों से भलीभांति जुड़े हुए इस शहर से महत्त्वपूर्ण राज्य तथा राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं। यहाँ सिंधियाकालीन छोटी लाइन (नैरो गेज) रेलमार्ग का मुख्यालय है और यह मध्य रेलवे के दिल्ली-मुंबई प्रमुख मार्ग पर स्थित है। | *सड़क तथा रेल मार्गों से भलीभांति जुड़े हुए इस शहर से महत्त्वपूर्ण राज्य तथा राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं। यहाँ सिंधियाकालीन छोटी लाइन (नैरो गेज) रेलमार्ग का मुख्यालय है और यह मध्य रेलवे के [[दिल्ली]]-[[मुंबई]] प्रमुख मार्ग पर स्थित है। | ||
*मध्य [[भारत]] का महत्त्वपूर्ण नगर ग्वालियर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। ग्वालियर में एक रेलवे जंक्शन है। | *मध्य [[भारत]] का महत्त्वपूर्ण नगर ग्वालियर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। ग्वालियर में एक रेलवे जंक्शन है। | ||
[[चित्र:Sun-Temple-Gwalior.jpg|thumb|250px|left|सूर्य मंदिर, ग्वालियर]] | |||
==विश्वविद्यालय और संगीत== | ==विश्वविद्यालय और संगीत== | ||
*ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय (1964) और इससे संबंद्ध कला, विज्ञान, वाणिज्य, चिकित्सा तथा कृषि महाविद्यालय हैं और नगर में साक्षरता की दर काफ़ी ऊंची है। ग्वालियर में संगीत की यशस्वी परंपरा रही है और उसकी अपनी ख़ास शैली रही है। जो ग्वालियर 'घराना' नाम से प्रसिद्ध है। | *ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय ([[1964]]) और इससे संबंद्ध [[कला]], [[विज्ञान]], वाणिज्य, चिकित्सा तथा कृषि महाविद्यालय हैं और नगर में साक्षरता की दर काफ़ी ऊंची है। ग्वालियर में [[संगीत]] की यशस्वी परंपरा रही है और उसकी अपनी ख़ास शैली रही है। जो ग्वालियर 'घराना' नाम से प्रसिद्ध है। | ||
==दर्शनीय स्थल== | ==दर्शनीय स्थल== | ||
नगर के भीतर और आसपास के दर्शनीय स्थलों में ग्वालियर का क़िला, आठ तालाब, छह महल, छह मंदिर, एक मस्जिद तथा अन्य इमारतें हैं। तेली का मंदिर (11वीं सदी), गुजरी महल (लगभग 1500 ई.), सास-बहू का मंदिर (1093) | नगर के भीतर और आसपास के दर्शनीय स्थलों में ग्वालियर का क़िला, आठ तालाब, छह महल, छह मंदिर, एक मस्जिद तथा अन्य इमारतें हैं। तेली का मंदिर (11वीं सदी), गुजरी महल (लगभग 1500 ई.), सास-बहू का मंदिर (1093) [[हिन्दू]] स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। क़िले की दीवार के नीचे चट्टान से तराशी हुई 18 मीटर ऊंची प्रतिमाएं (15वीं सदी), महल तथा लश्कर के स्मारक, अबुल फजल अल्लामी का मक़बरा, फूल बाग़ तथा जयविलास महल समृद्ध कला एवं [[संस्कृति]] के अन्य ऐतिहासिक उदाहरण हैं। | ||
==ग्वालियर का दुर्ग== | ==ग्वालियर का दुर्ग== | ||
*ग्वालियर का दुर्ग बहुत प्राचीन है और इसका प्रारंभिक इतिहास तिमिराच्छन्न है। हूण महाराजाधिराज तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल के शासनकाल के 15 वें वर्ष (525 ई.) का एक शिलालेख ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त हुआ था जिसमें मातृचेत नामक व्यक्ति द्वारा गोपाद्रि या गोप नाम की पहाड़ी (जिस पर दुर्ग स्थित है) पर एक सूर्य-मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि इस पहाड़ी का प्राचीन नाम गोपाद्रि (रूपांतर गोपाचल, गोपगिरी) है तथा इस पर किसी न किसी प्रकार की बस्ती गुप्तकाल में भी थी। | [[चित्र:Gwalior-Fort.jpg|thumb|250px|ग्वालियर का क़िला]] | ||
*इतिहास से सूचित होता है कि ग्वालियर में 875 ई. में [[कन्नौज]] के गुर्जर प्रतिहारों का राज्य था। मुसलमानों के आक्रमण के समय भी यहाँ कछवाहा, प्रतिहार आदि राजपूत वंश राज्य करते थे। | *ग्वालियर का दुर्ग बहुत प्राचीन है और इसका प्रारंभिक इतिहास तिमिराच्छन्न है। हूण महाराजाधिराज [[तोरमाण]] के पुत्र मिहिरकुल के शासनकाल के 15 वें वर्ष (525 ई.) का एक शिलालेख ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त हुआ था जिसमें मातृचेत नामक व्यक्ति द्वारा गोपाद्रि या गोप नाम की पहाड़ी (जिस पर दुर्ग स्थित है) पर एक सूर्य-मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि इस पहाड़ी का प्राचीन नाम गोपाद्रि (रूपांतर गोपाचल, गोपगिरी) है तथा इस पर किसी न किसी प्रकार की बस्ती गुप्तकाल में भी थी। | ||
*1232 ई. में दिल्ली के | *इतिहास से सूचित होता है कि ग्वालियर में 875 ई. में [[कन्नौज]] के गुर्जर प्रतिहारों का राज्य था। मुसलमानों के आक्रमण के समय भी यहाँ [[कछवाहा वंश|कछवाहा]], प्रतिहार आदि राजपूत वंश राज्य करते थे। | ||
[[चित्र:GWALIOR-MAN-SINGH.jpg|250px|ग्वालियर|right|thumb]] | |||
*1232 ई. में दिल्ली के [[ग़ुलाम वंश]] के सुल्तान [[इल्तुतमिश]] ने ग्वालियर के क़िले को हस्तगत किया और राजपूत रानियों ने जौहर की प्रथा के अनुसार अग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिए। | |||
*1399 से 1516 ई. तक यह क़िला तोमर-नरेशों के अधीन रहा। जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी गूजरी या मृगनैनी के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का गूजरी महल मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। | *1399 से 1516 ई. तक यह क़िला तोमर-नरेशों के अधीन रहा। जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी गूजरी या मृगनैनी के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का गूजरी महल मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है। | ||
*1528 ई. में [[बाबर]] ने यह क़िला जीता। मुग़लों ने इसका उपयोग एक सुदृढ़ कारागार के रूप में किया। इसमें राजनीतिक बंदी रखे जाते थे। | *1528 ई. में [[बाबर]] ने यह क़िला जीता। [[मुग़ल|मुग़लों]] ने इसका उपयोग एक सुदृढ़ कारागार के रूप में किया। इसमें राजनीतिक बंदी रखे जाते थे। | ||
*[[औरंगज़ेब]] ने अपने भाई और गद्दी के हकदार मुराद और | *[[औरंगज़ेब]] ने अपने भाई और गद्दी के हकदार मुराद और तत्पश्चात् दारा के पुत्र सुलेमानशिकोह को कैद करके इसी क़िले में बंद रखा। | ||
[[चित्र:Gwalior-Fort-1.jpg|thumb|250px|left|ग्वालियर का क़िला]] | |||
*मुग़लों के अपकर्ष के समय जब महाराष्ट्र के प्रमुख सरदार सिंधिया का [[दिल्ली]]-[[आगरा]] के प्रदेशों में आधिपत्य स्थापित हुआ तो उसी समय ग्वालियर भी उसके हाथों में आ गया। | *मुग़लों के अपकर्ष के समय जब महाराष्ट्र के प्रमुख सरदार सिंधिया का [[दिल्ली]]-[[आगरा]] के प्रदेशों में आधिपत्य स्थापित हुआ तो उसी समय ग्वालियर भी उसके हाथों में आ गया। | ||
*इस प्रकार वर्तमान काल तक सिंधिया के राज्य की राजधानी ग्वालियर में रही। दुर्ग के स्मारकों में ग्वालियर का लंबा इतिहास प्रतिबिंबित होता है। | *इस प्रकार वर्तमान काल तक सिंधिया के राज्य की राजधानी ग्वालियर में रही। दुर्ग के स्मारकों में ग्वालियर का लंबा इतिहास प्रतिबिंबित होता है। | ||
*यहाँ का सर्व प्राचीन स्मारक मातृचेत का बनवाया हुआ सूर्य मंदिर ही था। जिसका कोई चिह्न अब नहीं है। किंतु जिसकी स्थिति सूरज तालाब के निकट रही होगी। | *यहाँ का सर्व प्राचीन स्मारक मातृचेत का बनवाया हुआ सूर्य मंदिर ही था। जिसका कोई चिह्न अब नहीं है। किंतु जिसकी स्थिति सूरज तालाब के निकट रही होगी। | ||
*दूसरा स्मारक चतुर्भुज विष्णु मंदिर है जो पहाड़ी के पास से काटा गया है। इसमें एक चौकोर देवालय के ऊपर एक शिखर है और मध्यकालीन शैली में बना हुआ सभामंडल। इस मंदिर को 875 ई. में अल्ल नामक व्यक्ति ने गुर्जर प्रतिहार नरेश रामदेव के समय में बनवाया था। | *दूसरा स्मारक चतुर्भुज [[विष्णु]] मंदिर है जो पहाड़ी के पास से काटा गया है। इसमें एक चौकोर देवालय के ऊपर एक शिखर है और मध्यकालीन शैली में बना हुआ सभामंडल। इस मंदिर को 875 ई. में अल्ल नामक व्यक्ति ने गुर्जर प्रतिहार नरेश रामदेव के समय में बनवाया था। | ||
*इसके | *इसके पश्चात् 1093 ई. में बना हुआ सास-बहू का मंदिर ग्वालियर दुर्ग का एक विशेष ऎतिहासिक स्मारक है। इसे [[कछवाहा वंश|कछवाहा]] नरेश महीपाल ने निर्मित किया था। यह भी विष्णु का मंदिर है। कहा जाता है कि पहले इसका शिखर सौ फुट ऊँचा था। इब इसका गर्भगृह तथा शिखर दोनों ही संरचनाएँ विनष्ट हो गई हैं, किंतु इसकी कला का वैभव, सभामंडल की छत की अदभुत नक़्क़ाशी और मंदिर के बाहरी और भीतरी भागों पर निर्मित विशद मूर्तिकारी से प्रकट होता है। इसी प्रकार मंदिर के द्वारों के सिरदलों की सूक्ष्म तथा प्रभावोत्पादक मूर्तिकारी भी परम प्रशंसनीय है। | ||
*द्वार की पत्थर की चौखटों पर [[गंगा नदी|गंगा]]-[[यमुना नदी|यमुना]] की | [[चित्र:Teli-Ka-Mandir-Gwalior.jpg|thumb|तेली का मंदिर, ग्वालियर]] | ||
*कालक्रम में इस मंदिर के | *द्वार की पत्थर की चौखटों पर [[गंगा नदी|गंगा]]-[[यमुना नदी|यमुना]] की मूर्तियाँ और पुष्पालंकरण खचित हैं। जो गुप्तकालीन परंपरा है। सभामंडल की छत पर भी कीर्तिमुखों के सहित पुष्पालंकरणों का अंकन बड़ी विदग्धता और सुंदरता के साथ किया गया है। सास-बहू मंदिर से कुछ दूर पर दुर्ग का सर्वोच्च स्मारक ''तेली का मंदिर'' स्थित है। इसकी ऊंचाई सौ फुट से भी अधिक है। इसके शिखर की विशेषता इसकी द्रविड़ शैली है। इसका निर्माण काल 8वीं शती लेकर 10वीं शती ई. तक माना जाता है। इस मंदिर के ऊपर की नक़्क़ाशी सास-बहू के मंदिर की नक़्क़ाशी की अपेक्षा सादी किंतु अधिक प्रभावशाली है। | ||
*मानमंदिर की ख्याति का कारण इसकी शुद्ध भारतीय या | [[चित्र:Tansen.jpg|thumb|250px|left|[[तानसेन]] का मक़बरा, ग्वालियर]] | ||
*गूजरी-महल दुमंजिला भवन है। जिसका बाहरी भाग सादा प्रकोष्ठों की पंक्ति है। दुर्ग के अन्य भवनों में करन-मंदिर, विक्रम-मंदिर (तोमरीं द्वारा निर्मित) तथा मुग़लों के प्रासाद - जहांगीरी महल, शाहजहांनी - महल आदि हैं। दुर्ग के बाहर औरंगज़ेब के समय की एक मस्जिद और अकबर के गुरु | *कालक्रम में इस मंदिर के पश्चात् दुर्ग की पहाड़ी में चारों ओर उत्कीर्ण [[जैन]] [[तीर्थंकर|तीर्थकारों]] की विशाल नग्न-मूर्तियां आती हैं। जिनमें एक तो 57 फुट ऊँची है। ये सब 15वीं शती में बनी थी। 15वीं शती के [[तोमर]] राजाओं के जमाने के अन्य विख्यात स्मारक भी इस दुर्ग में हैं। जिनमें मान मंदिर और गूजरी-महल मुख्य हैं। | ||
*मानमंदिर की ख्याति का कारण इसकी शुद्ध भारतीय या हिन्दू वास्तुशैली है। यह 300 फुट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है। इस विस्तृत भवन पर छह बर्तुल छतरियां बनी हैं। 1528 ई. में जब [[बाबर]] ने ग्वालियर का क़िला देखा था तब इन छतरियों पर सुनहरी काम था। जिससे ये दूर से सूर्य के प्रकाश में चमकती थी। इस भवन के पूर्वाभिमुख भाग से बीहड़ पहाड़ी प्रदेश की मनोरम झांकी मिलती है। इसके अंदर मानसिंह का प्रासाद है। जिसकी वास्तु शैली सर्वथा भारतीय है। इस शैली का प्रभाव [[अकबर]] के [[फ़तेहपुर सीकरी]] के भवनों में देखा जा सकता है। | |||
[[चित्र:Tansen-Tomb.jpg|thumb|250px|left|मुस्लिम संत [[मोहम्मद गौस]] का मक़बरा, ग्वालियर]] | |||
*गूजरी-महल दुमंजिला भवन है। जिसका बाहरी भाग सादा प्रकोष्ठों की पंक्ति है। दुर्ग के अन्य भवनों में करन-मंदिर, विक्रम-मंदिर (तोमरीं द्वारा निर्मित) तथा मुग़लों के प्रासाद - जहांगीरी महल, शाहजहांनी - महल आदि हैं। दुर्ग के बाहर औरंगज़ेब के समय की एक मस्जिद और अकबर के गुरु मु. गौस का मक़बरा स्थित है। | |||
*पास ही अकबर के नवरत्नों में से एक तथा [[भारत]] के प्रसिद्ध संगीतज्ञ [[तानसेन]] की समाधि है। | *पास ही अकबर के नवरत्नों में से एक तथा [[भारत]] के प्रसिद्ध संगीतज्ञ [[तानसेन]] की समाधि है। | ||
*यहाँ से एक मील की दूरी पर [[झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|रानी लक्ष्मीबाई]] की प्रसिद्ध समाधि है। जो [[भारत]] के [[प्रथम स्वतंत्रता संग्राम]] में अंग्रेज़ों से वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारी गई थी। | *यहाँ से एक मील की दूरी पर [[झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|रानी लक्ष्मीबाई]] की प्रसिद्ध समाधि है। जो [[भारत]] के [[भारत का इतिहास#प्रथम स्वतंत्रता संग्राम|प्रथम स्वतंत्रता संग्राम]] में अंग्रेज़ों से वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारी गई थी। | ||
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11:37, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
ग्वालियर
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विवरण | ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। ये शहर और इसका क़िला उत्तर भारत के प्राचीन शहरों का केन्द्र रहे हैं। |
राज्य | मध्यप्रदेश |
ज़िला | ग्वालियर ज़िला |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 26.14°, पूर्व- 78.10° |
मार्ग स्थिति | दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से पलवल, कोसीकलाँ, होडल और मथुरा होते हुए आगरा पहुँचा जा सकता है जहाँ राष्ट्रीय राजमार्ग 3 ग्वालियर से जुड़ा हुआ है। |
कब जाएँ | अक्टूबर से मार्च |
कैसे पहुँचें | बस, रेल, टैक्सी, |
ग्वालियर हवाई अड्डा | |
ग्वालियर रेलवे स्टेशन | |
ग्वालियर बस अड्डा | |
ताँगा, ऑटो रिक्शा, टैम्पो, बस, मिनी बस | |
क्या देखें | ग्वालियर पर्यटन |
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह |
क्या खायें | पोहा, गजक, नमकीन, दिल्ली वाले का परांठा, शेरे पंजाब भोजनालय का खाना |
क्या ख़रीदें | साबूदाना, साड़ियाँ, कपड़े, प्लास्टिक, ग्रासरी और टेक्सटाइल का सामान, ज्वेलरी, हस्तशिल्प |
एस.टी.डी. कोड | 0751 |
गूगल मानचित्र, ग्वालियर हवाई अड्डा | |
अद्यतन | 15:59, 15 नवंबर 2010 (IST)
|
ग्वालियर भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। ये शहर और इसका क़िला उत्तर भारत के प्राचीन शहरों का केन्द्र रहे हैं। ग्वालियर अपने पुरातन ऎतिहासिक संबंधों, दर्शनीय स्थलों और एक बड़े सांस्कृतिक, औद्योगिक और राजनीतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। इस शहर को उसका नाम उस ऐतिहासिक पत्थरों से बने क़िले के कारण दिया जाता है, जो एक अलग-थलग, सपाट शिखर वाली 3 किलोमीटर लंबी तथा 90 मीटर ऊँची पहाड़ी पर बना है। इस नगर का उल्लेख गोप पर्वत, गोपाचल दुर्ग, गोपगिरी, गोपदिरी के रूप में हुआ है। इन सभी नामों का मतलब 'ग्वालों की पहाड़ी' होता है।
प्राचीन नाम गोपाद्रि या गोपगिरि है। जनश्रुति है कि राजपूत नरेश सूरजसेन ने ग्वालियर नाम के साधु के कहने से यह नगर बसाया था। ग्वालियर शहर के इस नाम के पीछे भी एक इतिहास छिपा है; आठवीं शताब्दी में एक राजा हुए सूरजसेन, एक बार वे एक अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो मृत्युशैया पर थे, तब 'ग्वालिपा' नामक संत ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया। उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पडी और इसे नाम दिया ग्वालियर। आने वाली शताब्दियों के साथ यह शहर बड़े-बड़े राजवंशो की राजस्थली बना।
इतिहास और भूगोल
यह शहर सदियों से राजपूतों की प्राचीन राजधानी रहा है, चाहे वे प्रतिहार रहे हों या कछवाहा या तोमर। इस शहर में इनके द्वारा छोडे ग़ये प्राचीन चिह्न स्मारकों, क़िलों, महलों के रूप में मिल जाएंगे। सहेज कर रखे गए अतीत के भव्य स्मृति चिह्नों ने इस शहर को पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बनाता है। यह नगर सामंती रियासत ग्वालियर का केंद्र था। जिस पर 18वीं सदी के उत्तरार्ध में मराठों के सिंधिया वंश का शासन था। रणोजी सिंधिया द्वारा 1745 में इस वंश की बुनियाद रखी गई और महादजी (1761-94) के शासनकाल में यह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा।
उनके अधीन क्षेत्र में सामान्य हिंदुस्तान के मुख्य हिस्से तथा मध्य भारत के कई हिस्से शामिल थे और उनके अधिकारी जोधपुर तथा जयपुर सहित अनेक स्वतंत्र राजपूत शासकों से भी नज़राना वसूल करते थे। दौलतराव के शासनकाल में अंग्रेज़ों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और 1840 के दशक में इस क्षेत्र में पूरा प्रभाव क़ायम किया। 1857 के विद्रोह के दौरान ग्वालियर के सिंधिया शासक अंग्रेज़ों के प्रति वफ़ादार बने रहे, किंतु उनकी सेना ने विद्रोहियों का साथ दिया।
पठारी इलाके में स्थित यह क्षेत्र सांक (शंख) नदी द्वारा कई जगहों पर प्रतिच्छेद है और घने जंगल से आच्छादित है। नगर तीन भिन्न बस्तियों से बना है। पुराना ग्वालियर, जो पर्वतीय क़िले के उत्तर में है और जहां मध्ययुगीन शौर्य के कई जीवंत स्मारक मौजूद हैं। क़िले के दक्षिण में स्थित लश्कर 1810 में दौलतराव सिंधिया की फ़ौजी छावनी बना था।
हर सदी के साथ इस शहर के इतिहास को नये आयाम मिले। महान् योद्धाओं, राजाओं, कवियों संगीतकारों तथा सन्तों ने इस राजधानी को देशव्यापी पहचान देने में अपना-अपना योगदान दिया। आज ग्वालियर एक आधुनिक शहर है और एक जाना-माना औद्योगिक केन्द्र है।
खनिज संपदा
पूर्व में मुरार, जो अंग्रेज़ों की छावनी था, समूचा इलाका उस ग्वालियर प्रस्तर-प्रणाली से बना है, जिसमें निचले पार से उत्तरमुखी ढलान अभ्रकयुक्त चूना-पत्थर, स्फटिक, बलुआ तथा स्लेटी पत्थर तथा ऊपरी मुरार श्रृंखला में स्लेट, चूने, चिकने फीतेदार सूर्यकांत (जैस्पर) तथा शोण (हार्नस्टोन) पत्थर की पट्टियों से बनी है। शहर के आसपास मिलने वाले खनिजों में मैंगनीज, लौह अयस्क, कांच रेत (ग्लास सैंड), चिकनी मिट्टी तथा शोरा हैं।
कृषि
आसपास का क्षेत्र शुष्क पर्णपाती वरस्पतियों से आच्छादित है तथा खेती नदी घाटी में होती है। जहाँ मिट्टी गहराई तक पाई जाती है। ग्वालियर के आसपास के जंगलों में विभिन्न किस्मों के जानवर और पक्षी पाए जाते हैं। जिनमें चीतल, हिरन, भूरे तीतर, चाहा तथा काला हिरन शामिल है। ग्वालियर की जलवायु मानसूनी है और वहां कटिबंधीय अतिरेक लिए सूखापन रहता है। वर्षाकाल साल दर साल बदलता रहता है और बारिश केवल वर्षा ऋतु में ही होती है। वर्षा की अनिश्चितता तथा पानी की किल्लत के कारण यहाँ तालाबों और बांधों में पानी संचय करना ज़रूरी हो जाता है। ग्वालियर शहर में कोई 12 तालाब हैं और उनके अलावा अनेक चट्टानों को काटकर बनाए गए जलाशय और कुंए हैं। जिनसे शहर को निरंतर पानी की आपूर्ति होती रहती है। भारत में पहाड़ी क़िलों का पतन अक्सर पानी की कमी के कारण ही हुआ। इस तथ्य की रोशनी में ग्वालियर के क़िले की यह विशेषता अनोखी है, इसी पक्ष ने इस क़िले को अजेय बना दिया था।
व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र
ग्वालियर एक ऎसा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र है, जहाँ से कृषि उत्पाद, वस्त्र, इमारती पत्थर तथा लौह अयस्क बाहर भेजे जाते हैं। लगभग एक-चौथाई आबादी कामगार है। जिसमें से 91 प्रतिशत पुरुष तथा 9 प्रतिशत स्त्रियाँ हैं। इनमें से दो-तिहाई लोग नौकरी और प्रशासनिक क्षेत्र में तथा एक-चौथाई गैर घरेलू निर्माण, व्यापार, वाणिज्य, निर्माण, परिवहन तथा संचार में लगे हुए हैं। नगर के प्रमुख उद्योगों में जूट, सिगरेट, कपास तथा रॅयान के वस्त्र, प्लास्टिक, कांच, माचिस, आटा-मैदा, चीनी के अलावा पत्थर तराशना, मिट्टी के बर्तन बनाना, चमड़ा पकाना तथा उसके खिलौने बनाना शामिल है। ग्वालियर इंजीनियरिंग वर्क संयत्र में रेल-इंजनों तथा डिब्बों की मरम्मत के अलावा अस्पताल-उपकरण, बांधों के लिए इस्पात के द्वार सहित कई विविध उपकरण बनाए जाते हैं। ग्वालियर में ग़लीचे, दरी, हॉजरी, बिस्कुट, अनाज और तेल की मिलों, आरा मिलों तथा लोहा ढालने जैसे छोटे पैमाने के भी कई उद्योग हैं।
आधुनिक ग्वालियर
ग्वालियर विरासत का इलाका आज़ादी के बाद 1948 में स्वतंत्र भारत के मध्य भारत राज्य में शामिल कर लिया गया। यह नगर 1956 में नए मध्य प्रदेश राज्य में शामिल होने तक मध्य भारत की शीतकालीन राजधानी रहा। प्रशासनिक दृष्टि से यह अब भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है।
परिवहन
- सड़क तथा रेल मार्गों से भलीभांति जुड़े हुए इस शहर से महत्त्वपूर्ण राज्य तथा राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं। यहाँ सिंधियाकालीन छोटी लाइन (नैरो गेज) रेलमार्ग का मुख्यालय है और यह मध्य रेलवे के दिल्ली-मुंबई प्रमुख मार्ग पर स्थित है।
- मध्य भारत का महत्त्वपूर्ण नगर ग्वालियर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। ग्वालियर में एक रेलवे जंक्शन है।
विश्वविद्यालय और संगीत
- ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय (1964) और इससे संबंद्ध कला, विज्ञान, वाणिज्य, चिकित्सा तथा कृषि महाविद्यालय हैं और नगर में साक्षरता की दर काफ़ी ऊंची है। ग्वालियर में संगीत की यशस्वी परंपरा रही है और उसकी अपनी ख़ास शैली रही है। जो ग्वालियर 'घराना' नाम से प्रसिद्ध है।
दर्शनीय स्थल
नगर के भीतर और आसपास के दर्शनीय स्थलों में ग्वालियर का क़िला, आठ तालाब, छह महल, छह मंदिर, एक मस्जिद तथा अन्य इमारतें हैं। तेली का मंदिर (11वीं सदी), गुजरी महल (लगभग 1500 ई.), सास-बहू का मंदिर (1093) हिन्दू स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। क़िले की दीवार के नीचे चट्टान से तराशी हुई 18 मीटर ऊंची प्रतिमाएं (15वीं सदी), महल तथा लश्कर के स्मारक, अबुल फजल अल्लामी का मक़बरा, फूल बाग़ तथा जयविलास महल समृद्ध कला एवं संस्कृति के अन्य ऐतिहासिक उदाहरण हैं।
ग्वालियर का दुर्ग
- ग्वालियर का दुर्ग बहुत प्राचीन है और इसका प्रारंभिक इतिहास तिमिराच्छन्न है। हूण महाराजाधिराज तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल के शासनकाल के 15 वें वर्ष (525 ई.) का एक शिलालेख ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त हुआ था जिसमें मातृचेत नामक व्यक्ति द्वारा गोपाद्रि या गोप नाम की पहाड़ी (जिस पर दुर्ग स्थित है) पर एक सूर्य-मंदिर बनवाए जाने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि इस पहाड़ी का प्राचीन नाम गोपाद्रि (रूपांतर गोपाचल, गोपगिरी) है तथा इस पर किसी न किसी प्रकार की बस्ती गुप्तकाल में भी थी।
- इतिहास से सूचित होता है कि ग्वालियर में 875 ई. में कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों का राज्य था। मुसलमानों के आक्रमण के समय भी यहाँ कछवाहा, प्रतिहार आदि राजपूत वंश राज्य करते थे।
- 1232 ई. में दिल्ली के ग़ुलाम वंश के सुल्तान इल्तुतमिश ने ग्वालियर के क़िले को हस्तगत किया और राजपूत रानियों ने जौहर की प्रथा के अनुसार अग्नि में कूदकर प्राण त्याग दिए।
- 1399 से 1516 ई. तक यह क़िला तोमर-नरेशों के अधीन रहा। जिनमें प्रमुख मानसिंह था। इसकी रानी गूजरी या मृगनैनी के विषय में अनेक किवदंतियां प्रचलित हैं। क़िले का गूजरी महल मृगनयनी का ही अमिट स्मारक है।
- 1528 ई. में बाबर ने यह क़िला जीता। मुग़लों ने इसका उपयोग एक सुदृढ़ कारागार के रूप में किया। इसमें राजनीतिक बंदी रखे जाते थे।
- औरंगज़ेब ने अपने भाई और गद्दी के हकदार मुराद और तत्पश्चात् दारा के पुत्र सुलेमानशिकोह को कैद करके इसी क़िले में बंद रखा।
- मुग़लों के अपकर्ष के समय जब महाराष्ट्र के प्रमुख सरदार सिंधिया का दिल्ली-आगरा के प्रदेशों में आधिपत्य स्थापित हुआ तो उसी समय ग्वालियर भी उसके हाथों में आ गया।
- इस प्रकार वर्तमान काल तक सिंधिया के राज्य की राजधानी ग्वालियर में रही। दुर्ग के स्मारकों में ग्वालियर का लंबा इतिहास प्रतिबिंबित होता है।
- यहाँ का सर्व प्राचीन स्मारक मातृचेत का बनवाया हुआ सूर्य मंदिर ही था। जिसका कोई चिह्न अब नहीं है। किंतु जिसकी स्थिति सूरज तालाब के निकट रही होगी।
- दूसरा स्मारक चतुर्भुज विष्णु मंदिर है जो पहाड़ी के पास से काटा गया है। इसमें एक चौकोर देवालय के ऊपर एक शिखर है और मध्यकालीन शैली में बना हुआ सभामंडल। इस मंदिर को 875 ई. में अल्ल नामक व्यक्ति ने गुर्जर प्रतिहार नरेश रामदेव के समय में बनवाया था।
- इसके पश्चात् 1093 ई. में बना हुआ सास-बहू का मंदिर ग्वालियर दुर्ग का एक विशेष ऎतिहासिक स्मारक है। इसे कछवाहा नरेश महीपाल ने निर्मित किया था। यह भी विष्णु का मंदिर है। कहा जाता है कि पहले इसका शिखर सौ फुट ऊँचा था। इब इसका गर्भगृह तथा शिखर दोनों ही संरचनाएँ विनष्ट हो गई हैं, किंतु इसकी कला का वैभव, सभामंडल की छत की अदभुत नक़्क़ाशी और मंदिर के बाहरी और भीतरी भागों पर निर्मित विशद मूर्तिकारी से प्रकट होता है। इसी प्रकार मंदिर के द्वारों के सिरदलों की सूक्ष्म तथा प्रभावोत्पादक मूर्तिकारी भी परम प्रशंसनीय है।
- द्वार की पत्थर की चौखटों पर गंगा-यमुना की मूर्तियाँ और पुष्पालंकरण खचित हैं। जो गुप्तकालीन परंपरा है। सभामंडल की छत पर भी कीर्तिमुखों के सहित पुष्पालंकरणों का अंकन बड़ी विदग्धता और सुंदरता के साथ किया गया है। सास-बहू मंदिर से कुछ दूर पर दुर्ग का सर्वोच्च स्मारक तेली का मंदिर स्थित है। इसकी ऊंचाई सौ फुट से भी अधिक है। इसके शिखर की विशेषता इसकी द्रविड़ शैली है। इसका निर्माण काल 8वीं शती लेकर 10वीं शती ई. तक माना जाता है। इस मंदिर के ऊपर की नक़्क़ाशी सास-बहू के मंदिर की नक़्क़ाशी की अपेक्षा सादी किंतु अधिक प्रभावशाली है।
- कालक्रम में इस मंदिर के पश्चात् दुर्ग की पहाड़ी में चारों ओर उत्कीर्ण जैन तीर्थकारों की विशाल नग्न-मूर्तियां आती हैं। जिनमें एक तो 57 फुट ऊँची है। ये सब 15वीं शती में बनी थी। 15वीं शती के तोमर राजाओं के जमाने के अन्य विख्यात स्मारक भी इस दुर्ग में हैं। जिनमें मान मंदिर और गूजरी-महल मुख्य हैं।
- मानमंदिर की ख्याति का कारण इसकी शुद्ध भारतीय या हिन्दू वास्तुशैली है। यह 300 फुट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है। इस विस्तृत भवन पर छह बर्तुल छतरियां बनी हैं। 1528 ई. में जब बाबर ने ग्वालियर का क़िला देखा था तब इन छतरियों पर सुनहरी काम था। जिससे ये दूर से सूर्य के प्रकाश में चमकती थी। इस भवन के पूर्वाभिमुख भाग से बीहड़ पहाड़ी प्रदेश की मनोरम झांकी मिलती है। इसके अंदर मानसिंह का प्रासाद है। जिसकी वास्तु शैली सर्वथा भारतीय है। इस शैली का प्रभाव अकबर के फ़तेहपुर सीकरी के भवनों में देखा जा सकता है।
- गूजरी-महल दुमंजिला भवन है। जिसका बाहरी भाग सादा प्रकोष्ठों की पंक्ति है। दुर्ग के अन्य भवनों में करन-मंदिर, विक्रम-मंदिर (तोमरीं द्वारा निर्मित) तथा मुग़लों के प्रासाद - जहांगीरी महल, शाहजहांनी - महल आदि हैं। दुर्ग के बाहर औरंगज़ेब के समय की एक मस्जिद और अकबर के गुरु मु. गौस का मक़बरा स्थित है।
- पास ही अकबर के नवरत्नों में से एक तथा भारत के प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन की समाधि है।
- यहाँ से एक मील की दूरी पर रानी लक्ष्मीबाई की प्रसिद्ध समाधि है। जो भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज़ों से वीरतापूर्वक लड़ते हुए मारी गई थी।
जनसंख्या
ग्वालियर की जनसंख्या (2001) की जनगणना के अनुसार नगर निगम क्षेत्र की 8,26,919 और ज़िले की कुल 16,29,821 है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत सभापर्व 30,3
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