"अण्णा हज़ारे": अवतरणों में अंतर

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==जीवन परिचय==
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'''अण्णा हज़ारे / अन्ना हज़ारे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anna Hazare'',  जन्म- [[15 जून]], [[1938]], [[अहमदनगर]]) गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक समाज सेवक हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करते हैं। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हज़ारे का वास्‍तविक नाम '''किसन बापट बाबूराव हज़ारे''' है तथा प्यार से लोग इन्हें '''अन्ना''' कहते हैं। अण्णा हजारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक है जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं।
==जीवन परिचय==
[[15 जून]], [[1938]] को [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर]] ज़िले के भिनगरी क़स्बे में जन्मे अन्ना हज़ारे का बचपन बहुत ग़रीबी और अभावों में गुज़रा। उनके [[पिता]] आयुर्वेद आश्रम में एक साधारण मज़दूर थे, दादा फ़ौज में थे। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। पिता का नाम बाबूराव हजारे और माँ का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है। अन्ना का पुश्‍तैनी गाँव अहमदनगर ज़िले में स्थित रालेगण सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगण आ गया। उनके परिवार की ग़रीबी और तंगी देखकर अन्ना हज़ारे की बुआ उन्हें अपने साथ [[मुंबई]] ले गईं। कुछ समय बाद उनका परिवार भी भिंगर से उनके पुरखों के गाँव रालेगण सिद्धि चला आया था। उनके अलावा उनके परिवार में उनके छह और भाई थे। मुंबई में बुआ के साथ रहते हुए उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। आर्थिक अभाव की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए पर देश की व्यवस्था में व्याप्त गंदगियों का अच्छा अध्ययन कर लिया। परिवार की आर्थिक स्थिति देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार पर काम करना प्रारम्भ किया। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगण से बुला लिया।<ref>{{cite web |url=http://gurugodiyal.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html |title=किसन बाबूराव हज़ारे उर्फ़ अन्ना (अण्णा) हज़ारे ! |accessmonthday=[[9 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अंधड़ ! |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
==सेना में भर्ती==
[[1962]] में इंडो-चाइना युद्ध के बाद जब कई सैनिक शहीद हो गए थे, तब भारत सरकार द्वारा युवाओं से सेना में शामिल होने का आग्रह किया। तो अन्ना भी साठ के दशक 1963 में अपने दादा की तरह फ़ौज में भर्ती हो गये। उनकी पहली पोस्टिंग मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर [[पंजाब]] में हुई। 12 नवंबर [[1965]] के [[भारत]] - [[पाकिस्तान|पाक]] युद्ध भी उन्होंने खेमकरण सेक्टर पर लड़ा था। हमले में उनकी यूनिट के सभी साथी शहीद हो गए और एक गोली हजारे के सिर के पास से भी गुजरी, लेकिन वे बच गए। जिस ट्रक को अन्ना चला रहे थे, उस पर गोलाबारी हुई थी। इस पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बाल-बाल बचे थे। अपने साथियों की मौत से दुखी अन्ना ने अपना जीवन समाज के हित में लगाने का संकल्प ले लिया। यहीं से उनका जीवन परिवर्तन का समय शुरू हुआ। सेना में अपने 15 वर्षो के कार्यकाल के दौरान हजारे ने सिक्किम, भूटान, जम्मू-कश्मीर, असम, मिजोरम, लेह और लद्दाख जैसे कई क्षेत्रों में तैनात रहकर देश की सेवा की।
==परिवर्तित सामाजिक दृष्टिकोण और आदर्श गांव==
इस घटना के 13 साल बाद सेना से रिटायर हुए लेकिन अपने पैतृक गांव महाराष्ट्र के अहमदनगर में भिनगरी गांव नहीं गए। पास के रालेगण सिद्धि में रहने लगे। मानव अस्तित्व के बारे में सोचकर हजारे काफ़ी निराश हो गए और एक समय ऐसा आया जब उनकी हताशा चरम पर पहुंच गई। उनके दिमाग में आत्महत्या तक का विचार आ गया। मगर, भाग्य से जब [[नई दिल्ली]] रेलवे स्टेशन के एक बुक स्टॉल पर उनकी नजर स्वामी [[विवेकानंद]] की लिखी एक पुस्तक पर पड़ी। उन्होंने उस पुस्तक को तत्काल ख़रीद लिया। स्वामी विवेकानंद की तस्वीर ने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया और पुस्तक के अध्ययन के बाद उन्हें अपने सभी सवालों का जवाब मिल गया। पुस्तक ने उन्हें बताया कि मानव जीवन का परम उद्देश्य मानवता की सेवा है और यह परमात्मा की भक्ति से कम नहीं है। उन्होंने [[गांधीजी]] और [[आचार्य विनोबा भावे|विनोबा]] को भी पढ़ा और उनके विचारों को अपने जीवन में ढ़ाल लिया। पारिवारिक दायित्वों को देखते हुए उन्होंने [[1970]] में 26 वर्ष की आयु में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया।
==सेना से रिटायरमेंट==
मुंबई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गाँव रालेगण आते-जाते रहे। [[जम्मू]] पोस्टिंग के दौरान 15 साल फ़ौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने फ़ौज की नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश (V.R.S.) ले लेकर अपने पारिवारिक गांव रालेगण सिद्धी लौटे तो गांव में लोगों की शराबखोरी और गांव की बदहाली से काफ़ी आहत हुए। लोगों को सुधारने के बहुत जतन किए। उसके बाद उन्होंने गाँव की तस्वीर ही बदल डाली और साथ ही अन्ना भ्रष्ट्राचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में कूद पड़े।
==समाज सुधारक कार्य - आदर्श गाँव==
[[चित्र:anna-hazare.jpg|अण्णा हज़ारे|thumb|250px|left]]
अन्ना हज़ारे का विचार है कि [[भारत]] की असली ताकत गाँवों में है और इसीलिए उन्होंने गाँवों में विकास की लहर लाने के लिए मोर्चा खोला। अन्ना हज़ारे ने सेना से रिटायरमेंट के तुरंत बाद 1975 से सूखा प्रभावित रालेगाँव सिद्धि में काम शुरू किया। इस गांव में बिजली और पानी की जबरदस्त कमी थी। इस गांव में ग़रीबी अपने चरम पर थी। गांव में शराब आदि का अवैध व्यापार होता था। इस गांव में मौजूद इकलौता डैम भी टूट चुका था। लोगों का जीवन कठिन था। जहाँ औसतन सालाना वर्षा 400 से 500 मि. मी. ही होती थी, गाँव में जल संचय के लिए कोई तालाब नहीं थे। उनका गाँव पानी के टैंकरों और पड़ोसी गाँवों से मिले खाद्यान्न पर निर्भर रहता था। अन्ना ने लोगों को समझाया। उनका सहयोग लिया और छोटी-छोटी नहरों द्वारा पास की पहाड़ी से पानी लाकर सिचाई की अच्छी व्यवस्था की। अण्णा ने गांव वालों को गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और खुद भी इसमें योगदान दिया। हजारे ने गांव के लोगों से अपील की कि वे सामूहिक रूप से मिलकर डैम का पुन: निर्माण करें। लोगों ने मिलकर डैम को दोबारा बनाया और सात नए कुएं खोदकर गांव के लोगों ने पहली बार इसमें पानी भरा। इसके बाद से वर्तमान में गांव के लोगों के पास सालभर पानी पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है। अब अच्छी फ़सलें उगने लगीं। अण्णा के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। इसके साथ ही आज गांव में अनाज बैंक, मिल्क बैंक और स्कूल है। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। अब गांव से ग़रीबी पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। लोगों के जीवन में खुशियां आने लगीं और रालेगन सिद्धी एक आदर्श गांव बन गया, जो देश के सामने एक मिसाल था। उन्होंने अपने बलबूते वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायोगैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गाँव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गाँव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है। विश्व बैंक ने भी इस गांव के बारे में कहा है कि इस गांव में जबरदस्त परिवर्तन हुआ और कभी ग़रीब रहा यह गांव आज देश के सबसे अमीर गांव में से एक है। पहले इस गांव के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 250 रुपए थी और वर्तमान में लोगों की प्रति व्यक्ति 2500 रुपए है। ये हजारे के ही प्रयास हैं कि गांव के ग़रीब आज नशेबाजी छोड़कर आत्मनिर्भर बन गए हैं। गांव में ग्रामीणों ने शराब पूरी तरह से छोड़ दी है और वहां शराब की बिक्री नहीं होती है। दुकानदार पिछले 13 वर्षो से सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू आदि नहीं बेच रहे हैं। पहले गांव में 300 लीटर दूध रोजाना बेचा जाता था, जो कि अब 4,000 लीटर बेचा जाता है।
[[चित्र:anna 1965 war.jpg|अण्णा हज़ारे, 1965 के युद्ध में|thumb|200px|right]]
हजारे के नेतृत्व में यहां लोगों ने अनगिनत पेड़ लगाए, मिट्टी के कटाव को रोकने के प्रयास किए, बारिश का पानी रोकने के लिए नहरें बनवाईं। हजारे के प्रयासों ने इस गांव को पूरी दुनिया के सामने मिसाल बना दिया है। यहां के लोग आज अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा यहां बायोगैस और पवन चक्की का भी प्रयोग किया जाता है। गांव की असली ताकत यहां गैर-परंपरागत ऊर्जा का इस्तेमाल करना है। उदाहरण के लिए यहां की सड़कों पर लगी सभी लाइटें सौर ऊर्जा से जलती हैं और प्रत्येक लाइट के लिए एक अलग सोलर पैनल है।
==पुश्तैनी ज़मीन का दान==
उन्होंने अपनी पुस्तैनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गाँव के विकास में ख़र्च होता है। संपत्ति के नाम पर उनके पास कपड़ों की कुछ जोड़ियाँ हैं। कोई बैंक बैलेंस नहीं हैं। वह गाँव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गाँव का हर शख़्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गाँवों के लिए भी यहाँ से चारा, [[दूध]] आदि जाता है। गाँव में एक तरह का रामराज है। गाँव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है।
==सम्मान और पुरस्कार==
{| class="bharattable-purple" border="1" style="margin=5px; float:right"
|+ अण्णा हज़ारे को मिले सम्मान और पुरस्कार<ref>{{cite web |url=http://www.annahazare.org/awards.html |title=Awards to Anna Hazare |accessmonthday=[[10 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=annahazare.org |language=[[अंग्रेज़ी]]}}</ref>
|-
! क्रमांक
! सन्
! सम्मान और पुरस्कार
|-
| (1)
| [[6 अप्रैल]] [[1992]]
| [[पद्म भूषण]] - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा।
|-
| (2)
| [[24 मार्च]] [[1990]]
| [[पद्म श्री]] - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा।
|-
| (3)
| [[19 नवंबर]] [[1986]]
| इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार - तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा।
|-
| (4)
| [[1989]]
| महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार
|-
| (5)
| [[1988]]
| मैन ऑफ़ द ईयर अवार्ड
|-
| (6)
| [[2000]]
| पॉल मित्तल नेशनल अवार्ड
|-
| (7)
| [[2003]]
| ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंटेग्रीटी अवार्ड
|-
| (8)
| [[1994]]
| विवेकानंद सेवा पुरस्कार
|-
| (9)
| [[1996]]
| शिरोमणि अवार्ड
|-
| (10)
| [[1997]]
| महावीर पुरस्कार
|-
| (11)
| [[1999]]
| दिवालीबेन मेहता अवार्ड
|-
| (12)
| [[1998]]
| केयर इन्टरनेशनल अवार्ड
|-
| (13)
| [[2000]]
| जाइण्ट्स इन्टरनेशनल अवार्ड
|-
| (14)
| [[2000]]
| वासवश्री प्रशस्ति अवार्ड
|-
| (15)
| [[1999]]
| नेशनल इंटरग्रेसन अवार्ड
|-
| (16)
| [[1998]]
| जनसेवा पुरस्कार
|-
| (17)
| [[1998]]
| रोटरी इन्टरनेशनल मानव सेवा पुरस्कार
|-
| (18)
| [[2008]]
| विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार'
|-
| (18)
|
| यंग इंडिया अवॉर्ड
|}
अन्ना हज़ारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए तथा प्रतिबद्ध और ईमानदार प्रयास के लिए सरकार ने उन्हें समय-समय पर अनेक पुरस्कारों, जिनमे 1990 में [[पद्मश्री]] और 1992 में [[पद्म भूषण]] शामिल है, दिये गये। अमेरिका के केयर इंटरनेशनल, सियोल ने भी उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें 25 लाख रुपए का पुरस्कार भी दिया गया, जिसकी पूरी राशि को उन्होंने स्वामी विवेकानंद कृतादयाता निधि में दान दे दिया। उन्होंने अपने राज्य [[महाराष्ट्र]] में विषम परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनेक लडाईयाँ लड़ीं और सफल भी हुए। इस 72 साल की उम्र में भी उनका एक ही सपना है - भ्रष्टाचार रहित [[भारत]] का निर्माण।


*'''अण्णा हज़ारे/अन्ना हज़ारे (Anna Hazare)''' गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक समाजसेवक हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करते हैं। अन्‍ना हज़ारे का वास्‍तविक नाम '''किसन बापट बाबूराव हज़ारे''' है। 15 जनवरी, 1940 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के भिंगर क़स्बे में जन्मे अन्ना हज़ारे का बचपन बहुत ग़रीबी में और अभावों भरा गुज़रा। [[पिता]] मजदूर थे, दादा फौज में थे। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। अन्ना का पुश्‍तैनी गाँव अहमदनगर ज़िले में स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। उनके परिवार की ग़रीबी और तंगी का आलम देखकर अन्ना हज़ारे की बुआ उन्हें अपने साथ मुंबई ले गईं। कुछ समय बाद उनका परिवार भी भिंगर से उनके पुरखों के गाँव रालेगन सिद्धि चला आया था, उनके अलावा उनके परिवार में उनके छः और भाई थे। मुंबई में ही बुआ के साथ रहते हुए उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर और कुछ पैसे कमाने के लिए वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम किया। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
पद्मश्री अन्ना हज़ारे [[महाराष्ट्र]] के रालेगाँव में ग्राम स्वराज के अपने अनुभव बांटने B. H. U. में आमंत्रित थे। उन्होंने गांधीजी की इस सोच को पूरी मज़बूती से उठाया कि 'बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण रहा, गाँवों को केन्द्र में न रखना। व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया।
*देश भक्ति का जज्बा बचपन से ही उनके सर चढ़कर बोलता था। 1962 में [[चीन]] के आकस्मिक आक्रमण से घबराई सरकार ने जब देश के युवाओं का सेना में भर्ती होने के लिए आह्वाहन किया, तो अन्ना ने भी साठ के दशक के आसपास में अपने दादा की तरह फौज में भर्ती ली और उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर [[पंजाब]] में हुई। 1965 का [[भारत]]-पाक युद्ध भी उन्होंने खेमकरण सेक्टर पर लड़ा था, और उनका मानना है कि यहीं से उनके जीवन परिवर्तन का दौर शुरू हुआ। सीमा पर लड़ते हुए उनके यूनिट के सभी साथी शहीद हो गए और उनके सिर पर गोली लगने से वे भी घायल हो गए थे। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बाल-बाल बचे थे।
==भ्रष्टाचार के विरोधी==
*इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने [[विवेकानंद]] की एक पुस्‍तक ‘कॉल टू द यूथ फॉर नेशन‘ ख़रीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने [[गांधीजी]] और [[आचार्य विनोबा भावे|विनोबा]] को भी पढ़ा और उनके शब्दों को अपने जीवन में ढ़ाल लिया। उन्हें इस बात का अहसास था कि आम लोगो की बेहतरी के लिए किया गया प्रयास भगवान की पूजा-अर्चना के बराबर है। पारिवारिक दायित्वों को देखते हुए उन्होंने 1970 में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुंबई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गाँव रालेगन आते-जाते रहे। [[जम्मू]] पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने फौज की नौकरी से वी.आर.एस. ले लिया और गाँव में आकर बस गए। उसके बाद उन्होंने गाँव की तस्वीर ही बदल डाली और साथ ही अन्ना भ्रष्ट्राचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में कूद पडे।
महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज़्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। भ्रष्ट प्रशासन की खिलाफवर्जी हो या सूचना के अधिकार का इस्तेमाल, हजारे हमेशा आम आदमी की आवाज़ उठाने के लिए आगे आते रहे हैं।   
*अन्ना हज़ारे का मानना है कि देश की असली ताकत गाँवों में है और इसीलिए उन्होंने गाँवों में विकास की लहर लाने के लिए मोर्चा खोल दिया। अन्ना हज़ारे ने सेना से रिटायरमेंट के तुरंत बाद 1975 से सूखा प्रभावित रालेगाँव सिद्धि में काम शुरू किया। जहाँ औसतन सालाना वर्षा 400 से 500 मि. मी. ही होती थी, गाँव में जल संचय के लिए कोई तालाब नहीं थे। उनका गाँव पानी के टैंकरों और पड़ोसी गाँवों से मिले खाद्यान्न पर निर्भर रहता था, उन्होंने अपने बलबूते वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायोगैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गाँव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गाँव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है।
*उन्होंने अपनी पुस्तैनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गाँव के विकास में ख़र्च होता है। संपत्ति के नाम पर बस कपड़ों की कुछ जोड़ियाँ हैं। कोई बैंक बैलेंस नही हैं। वह गाँव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गाँव का हर शख़्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गाँवों के लिए भी यहाँ से चारा, [[दूध]] आदि जाता है। गाँव में एक तरह का रामराज है। गाँव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं।
*1998 में अन्ना हज़ारे उस समय अत्यधिक चर्चा में आ गए थे, जब उन्होंने बीजेपी-शिवसेना वाली सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी। शिवसेना-बीजेपी की सरकार में मंत्री शशिकांत सुतार पर [[कृषि]] मंत्रालय में घोटाले का आरोप लगाया, जिसके चलते उन्हें अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी। वही उस समय के रोज़गार मंत्री महादेव शिवणकर को रोज़गार हमी योजना में घोटाले के चलते सरकार से बाहर होना पड़ा। साथ ही में युती के कार्यकाल में मंत्री रही शोभाताई फडणविस को भी भ्रष्ट्राचार के आरोप के चलते अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। 1998 में सामजिक न्यायमंत्री बबनराव घोलप को ज़मीन घोटाले के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा। वहीं एनसीपी के नबाब मलिक, सुरेश दादा जैन को भी आघाडी सरकार में भ्रष्ट्राचार के आरोपों के चलते ही अपना पद छोडना पड़ा। इतना ही नही शराब बंदी अभियान, कॉऑपरेटिव घोटाला जैसे कई अहम भ्रष्टाचार के मुद्दे सामने लाने का श्रेय अन्ना हज़ारे को जाता है और इसी तरह 2005 में अन्ना हज़ारे ने कांगेस सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए दबाव डाला था। अन्ना की कार्यशैली बिलकुल गांधी जी की तरह है, जो शांत रहकर भी भ्रष्टाचारियों पर ज़ोरदार प्रहार करती है। वहीं सूचना अधिकार अभियान में भी अन्ना ने देशभर में कई मुहिमें चलाईं, जो इन दिनों भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने का एक बड़ा हथियार है।
[[Image:anna young pol.jpg|अन्ना हजारे|thumb|200px]]
*अन्ना हज़ारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें समय-समय पर अनेक पुरुष्कारों, जिनमे 1990 में पद्मश्री और 1992 में पदम् विभूषण शामिल है, से नवाजा गया। उन्होंने अपने राज्य महाराष्ट्र में विषम परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनेक लडाईयाँ लड़ीं और सफल भी हुए। इस 72 साल की उम्र में भी उनका एक ही सपना है - भ्रष्टाचार रहित [[भारत]]। जिसके लिए वे देश में एक ऐसी लोकपाल संस्था नियुक्त करने की मांग कर रहे है, जिसमें जनता के प्रतिनिधियों की भी 50% भागीदारी हो, ताकि देश की ऐसी भ्रष्ट सरकारों पर, जो दिखाने के लिए तो स्वच्छता का मुखौटा पहनते है, मगर कारनामे उनके सब काले है, प्रभावी लगाम लगाईं जा सके।
*पद्मश्री अन्ना हज़ारे [[महाराष्ट्र]] के रालेगाँव में ग्राम स्वराज के अपने अनुभव बांटने B. H. U. में आमंत्रित थे। उन्होंने गांधीजी की इस सोच को पूरी मजबूती से उठाया कि 'बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण रहा, गाँवों को केन्द्र में न रखना। व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया, और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया।
==अन्ना हज़ारे और जन लोकपाल विधेयक==
[[Image:anna h ansan.jpg|अन्ना हज़ारे जन लोकपाल विधेयक को लागू कराने के उद्देश्य के साथ आमरण अनशन पर बैठे हुए|thumb|200px]]
[[Image:annahazareprotest.jpg|अन्ना हज़ारे और जन समर्थन|thumb|200px]]
*आज के गांधी के नाम से मशहूर अन्ना हज़ारे के अनशन से [[दिल्ली]] के हुक्मरान दहशत में हैं। इसकी वजह है अन्ना का ट्रैक रिकॉर्ड। अपने गांधीवादी आंदोलन के ज़रिए अन्ना हज़ारे अब तक महाराष्ट्र के आधा दर्जन मंत्रियों और 420 भ्रष्ट अफ़सरों को कुर्सी से हटवाने में कामयाब हो चुके हैं। अन्‍ना शुरू से जुझारू इंसान रहे हैं। उन्‍होंने जब भी अनशन किया है, सरकार को झुकना पड़ा है। इसीलिए इस बार केंद्र सरकार में भी हड़कंप है।
*छोटी सी कद काठी और हाथ में लाठी लिए आजकल भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ और इससे निपटने के लिए सख्त लोकपाल विधेयक की मांग कर अनशन पर बैठने वाले अन्ना हज़ारे को सभी जानते हैं। लेकिन यह जानकारी सिर्फ इसलिए है क्योंकि वह आज देश की संसद के कुछ दूरी राष्ट्र ध्वज और तख्तियों के साथ 5 अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक ऐसी मांग के लिए अनशन पर बैठे हैं, जिससे हो सकता है देश की तकदीर संवर जाए, भ्रष्टाचार की दीमक का इलाज हो सके। अनशन पर बैठने से पहले हज़ारे ने कहा, यह दूसरा 'सत्याग्रह' है।  मंगलवार को अन्ना का पूरा गाँव भूखा था। अन्ना के गाँव में नारे गूँज रहे हैं ‘अन्ना हज़ारे आंधी है...देश का दूसरा गांधी है....।
*वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे 1968 से लटक रहे जन लोकपाल विधेयक को लागू कराने के उद्देश्य के साथ आमरण अनशन पर बैठे हैं और वह अकेले नहीं हैं, बल्कि उनके साथ समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग जुड़ चुका है। हज़ारे के समर्थन में सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल, स्वामी अग्निवेश, मैगसेसे पुरस्कार विजेता किरन बेदी, संदीप पांडे सहित अन्य लोग शामिल हुए। मीडिया, प्रेस और नेता सबका ध्यान अन्ना हज़ारे पर है। हमेशा लाइम लाइट से दूर रहने वाले अन्ना हज़ारे आमरण अनशन पर क्या बैठे [[कांग्रेस]] सरकार की तो जैसे नींद ही उड़ गई है। जिस बिल को कल तक सरकार अपने फायदे के लिए लाने की सोच रही थी उसकी असलियत दिखा अन्ना ने जता दिया कि आज भी देश में कुछ लोग हैं जो भारत की चिंता करते हैं।
*कभी अपने जीवन से तंग आ चुके अन्ना हजारे ने कई जिंदगियों को आगे बढ़ने का मौका दिया है और अगर आज उनकी यह मुहिम भी सफल रही तो देश में रामराज आने का संकेत जरुर मिल जाएगा।
 
;हजारे के पीएम को लिखे पत्र के अंश --
डॉ. सिंह,<br>
मेरे अनशन को लेकर सरकारी प्रतिक्रिया के बारे में पढ़-सुनकर बेहद दुख हुआ है। मुझे इस बात का दुख है कि सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विचार करने के बजाय षड्यंत्र के आरोप लगा रही है। ऐसे में जबकि घोटालों की बाढ़ आई है, तब देश का अधीर हो उठना स्वाभाविक है। ऐसे में हम आपसे अपूर्व कदम उठाने का साहस दिखाने का आग्रह करते हैं।<br>
जीओएम के कई सदस्यों का दागदार अतीत है। यदि भ्रष्टाचार विरोधी प्रभावी सिस्टम बन गया तो उनमें कई सीखचों के पीछे होंगे। ऐसे में आप हमसे भ्रष्टाचार विरोधी कानून का मसौदा बनाने में समर्थन की उम्मीद कैसे करते हैं। हमने जन लोकपाल बिल की प्रति भी आपको भेजी थी। लेकिन उसका जवाब नहीं मिला। आप बताएं आपने कब हमारे साथ बैठक बुलाई? यह कहकर देश को गुमराह नहीं करें कि हम बातचीत में शामिल नहीं हो रहे।
 
<blockquote><span style="color: blue"><poem>वैसा ही पाया तुम्हे ,
जैसा सुना था,
तुम्हारे बारे,
जज्बा कायम रहे सदा,
यही दुआ है खुदा से,
आपकी मुहीम सफल हो,
भ्रष्ठाचार के सागर में
डूबती देश की नैया के,
तुम बने  रहो  सहारे,
तुम्हे नमन, अन्ना हजारे!</poem></span></blockquote>


<blockquote><span style="color: maroon"><poem>एक और जंग हमको फिर से लडनी होगी,
अन्ना हजारे ने ठीक ही सोचा था कि भ्रष्टाचार देश के विकास को बाधित कर रहा है। इसके लिए उन्होंने 1991 में भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन शुरू किया। उन्होंने पाया कि महाराष्ट्र में 42 वन अधिकारी सरकार को धोखा देकर करोड़ों रुपए की चपत लगा रहे हैं। उन्होंने इसके सबूत सरकार को सौंपे, लेकिन सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि सत्ताधारी दल का एक मंत्री उनके साथ मिला था। इससे व्यथित हजारे ने भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया गया पद्मश्री पुरस्कार और प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा दिया गया वृक्ष मित्र पुरस्कार लौटा दिया। उन्होंने पुणे के आलंदी गांव में इसी मुद्दे को लेकर भूख हड़ताल कर दी। आखिर में सरकार कुंभकर्णी नींद से जागी और दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की। हजारे का यह आंदोलन काफ़ी काम आया और 6 मंत्रियों को त्याग-पत्र देना पड़ा जबकि विभिन्न सरकारी कार्यालयों में तैनात 400 अधिकारियों को वापस उनके घर भेज दिया गया।
लोकतंत्र की उचित परिभाषा गढ़नी होगी!
हर हाल, हमको भ्रष्टों से देश बचाना होगा,
स्वावलंबन पथ पे नव-अंधड़ लाना होगा!
दूषण विरुद्ध हमारा बुलंद बिगुल कैसे हो,
बहुत  लूटा  है देश को इन बत्ती वालों ने,
अब यह सोचो, इनकी बत्ती गुल कैसे हो!!</poem></span></blockquote>


[[Image:JanLokpalBill77.gif|जन लोकपाल विधेयक|thumb|200px]]
हजारे को महसूस हुआ कि सरकार में मौजूद कुछ भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों पर कार्रवाई करने से कुछ नहीं होगा, पूरे सिस्टम को ही बदलना होगा। इसके लिए उन्होंने सूचना का अधिकार क़ानून के लिए अभियान छेड़ दिया। राज्य सरकार ने इस दिशा में अपनी आँखें बंद रखीं। इसके बाद 1997 में उन्होंने मुंबई के ऐतिहासिक आज़ाद मैदान में पहला उग्र आंदोलन किया। युवाओं मे जनजागृति फैलाने के लिए वे राज्यभर में घूमे। सरकार ने उनसे आरटीआई एक्ट बनाने का वादा किया, लेकिन इसे कभी राज्य विधानसभा में नहीं उठाया। हजारे भी नहीं माने और उन्होंने कम से कम 10 बार उग्र प्रदर्शन किए। अंत में वे मुंबई के आज़ाद मैदान में 9 अगस्त 2003 में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनके 12 दिवसीय भूख हड़ताल के बाद राष्ट्रपति ने आरटीआई एक्ट के मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए। साथ ही राज्य सरकार को इसे 2002 से लागू करने के आदेश दिए गए। इसी मसौदे को बाद में देश के आरटीआई एक्ट-2005 को बनाने में आधार दस्तावेज के रूप में प्रयोग किया गया। 12 अक्टूबर 2005 को केंद्र सरकार ने भी इस क़ानून को लागू कर दिया। अगस्त, 2006 में सूचना के अधिकार में संशोधन प्रस्ताव के ख़िलाफ़ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। नतीजतन, सरकार ने संशोधन से हाथ खींच लिए।


==जन लोकपाल विधेयक==
[[चित्र:Anna-Hazare-Delhi.jpg|जन लोकपाल क़ानून के लिए आंदोलन के दोरान अण्णा हज़ारे, [[दिल्ली]]|thumb|250px|left]]  
;देश में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से निपटने का सबसे कारगर उपाय हो सकता है जन लोकपाल बिल --
[[1995]] में अन्ना हज़ारे उस समय चर्चा में आ गए थे, जब उन्होंने तत्कालीन शिवसेना-भाजपा की सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी। सरकार में मंत्री शशिकांत सुतार को अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी। उसी समय के रोज़गार मंत्री महादेव शिवणकर को भी सरकार से बाहर होना पड़ा। अण्णा हजारे ने उन पर आय से ज़्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था।
न्यायाधीश संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों द्वारा वेबसाइट पर दी गई प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इस बिल को शांति भूषण, जे.एम. लिंग्दोह, किरन बेदी, अन्ना हजारे आदि का समर्थन प्राप्त है। इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजा गया था।
[[Image:annahazare j l b.jpg|जन लोकपाल विधेयक|thumb|400px]]
# इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
# यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पाएगा।
# भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
# अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों से सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
# यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा - यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।
# अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
# क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी? ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।
# अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? लोकपाल/लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
# मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा? सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।


;आठ बार लोकसभा में पेश --
युती के कार्यकाल में मंत्री रही शोभाताई फडणविस को भी भ्रष्टाचार के आरोप के चलते अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। [[1998]] में सामजिक न्यायमंत्री बबनराव घोलप को ज़मीन घोटाले के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा।
देश में लोकपाल की स्थापना संबंधी बिल की अवधारणा सबसे पहले 1966 में सामने आई। इसके बाद यह बिल लोकसभा में आठ बार पेश किया जा चुका है। लेकिन आज तक यह पारित नहीं हो पाया। पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के कार्यकाल में एक बार 1996 में और अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दो बार 1998 और 2001 में इसे लोकसभा में लाया गया।
वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वादा किया था कि जल्द ही लोकपाल बिल संसद में पेश किया जाएगा। अब तक सरकार ने इसकी सुध नहीं ली। इस बिल के तहत प्रधानमंत्री को लाया जाए या नहीं इस पर लंबे समय से मशक्कत चल रही है। अब तक कोई नतीजा नहीं। जजों को भी लोकपाल/लोकायुक्त के अधिकार में लाया जाएगा।


[[2003]] में महाराष्ट्र में कांगेस - एनसीपी गठबंधन सरकार के चार मंत्री सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गवित और पद्म सिंह पाटिल को भी आघाडी सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते ही अपना पद छोडना पड़ा।


{{प्रचार}}
शराब बंदी अभियान, कॉऑपरेटिव घोटाला जैसे कई अहम भ्रष्टाचार के मुद्दे सामने लाने का श्रेय अन्ना हज़ारे को जाता है। इसी तरह [[2005]] में अन्ना हज़ारे ने तत्कालीन सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए दबाव डाला था।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/53932/9/76/Who-is-Anna-Hazare.html कौन हैं अन्‍ना हज़ारे?]
*[http://days.jagranjunction.com/2011/04/07/anna-hazare-profile/ आज़ाद भारत के गांधी अन्ना हज़ारे]
*[http://gurugodiyal.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html किसन बाबूराव हज़ारे उर्फ़ अन्ना (अण्णा) हज़ारे !]
*[http://www.p7news.com/HindiNews_desh_17783 भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंग जारी]
*[http://gandhivichar.blogspot.com/2009/01/blog-post_19.html गान्धीविचार के मूर्त रूप: अन्ना हज़ारे]
*[http://mediaclubofindia.ning.com/profiles/blogs/4335940:BlogPost:140051 महात्मा ‘अन्ना’ के अनशन में हम भी साथ हैं!!]
*[http://www.annahazare.org/ अण्णा हज़ारे की आधिकारिक वेबसाइट]
*[http://indiaenvironmentportal.org.in/category/thesaurus/governance-and-institutions/social-activists/anna-hazare  अण्णा हज़ारे]
*[http://www.fao.org/docrep/X5669E/x5669e06.htm  A successful case of participatory watershed management at Ralegan Siddhi Village in district Ahmadnagar, Maharastra, India]
*[http://www.hindustantimes.com/Full-text-of-Anna-Hazare-s-letter-to-PM-Manmohan-Singh/Article1-681961.aspx  Full text of Anna Hazare's letter to PM Manmohan Singh]
*[http://khabar.ibnlive.in.com/news/51021/1  अन्ना हज़ारे आंधी है..देश का दूसरा गांधी है..’ नारे की गूंज]
*[http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-165718.html अन्ना के समर्थन में वर्चुअल जंग में उमड़े सितारे]
*[http://www.aadhiabadi.com/content/%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AB-%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%88 भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अन्‍ना हज़ारे यानी 'छोटे गांधी' की लड़ाई]
==संबंधित लेख==
{{सामाजिक कार्यकर्ता}}
[[Category:पद्म_श्री]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:चरित कोश]][[Category:सामाजिक कार्यकर्ता]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
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[[Category:पद्म_श्री]][[Category:पद्म_विभूषण]]
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09:06, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

अण्णा हज़ारे
पूरा नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे
अन्य नाम अण्णा हज़ारे/अन्ना हज़ारे
जन्म 15 जून, 1937
जन्म भूमि अहमदनगर के भिंगर क़स्बे में, महाराष्ट्र
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि 1998 और 2005 में तत्कालीन सरकार के कुछ नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी।
पद गांधीवादी समाजसेवक
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
शिक्षा मुंबई में सातवीं तक पढ़ाई की।
पुरस्कार-उपाधि 1990 में पद्मश्री से और 1992 में पद्म भूषण से, 1986 में इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार, 1989 में महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार, 1986 में विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार'
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎ 12:06, 9 अप्रॅल 2011 (IST)

अण्णा हज़ारे / अन्ना हज़ारे (अंग्रेज़ी: Anna Hazare, जन्म- 15 जून, 1938, अहमदनगर) गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक समाज सेवक हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करते हैं। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में आम आदमी को जोड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हज़ारे का वास्‍तविक नाम किसन बापट बाबूराव हज़ारे है तथा प्यार से लोग इन्हें अन्ना कहते हैं। अण्णा हजारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक है जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं।

जीवन परिचय

15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के भिनगरी क़स्बे में जन्मे अन्ना हज़ारे का बचपन बहुत ग़रीबी और अभावों में गुज़रा। उनके पिता आयुर्वेद आश्रम में एक साधारण मज़दूर थे, दादा फ़ौज में थे। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। पिता का नाम बाबूराव हजारे और माँ का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है। अन्ना का पुश्‍तैनी गाँव अहमदनगर ज़िले में स्थित रालेगण सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगण आ गया। उनके परिवार की ग़रीबी और तंगी देखकर अन्ना हज़ारे की बुआ उन्हें अपने साथ मुंबई ले गईं। कुछ समय बाद उनका परिवार भी भिंगर से उनके पुरखों के गाँव रालेगण सिद्धि चला आया था। उनके अलावा उनके परिवार में उनके छह और भाई थे। मुंबई में बुआ के साथ रहते हुए उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। आर्थिक अभाव की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए पर देश की व्यवस्था में व्याप्त गंदगियों का अच्छा अध्ययन कर लिया। परिवार की आर्थिक स्थिति देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार पर काम करना प्रारम्भ किया। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगण से बुला लिया।[1]

सेना में भर्ती

1962 में इंडो-चाइना युद्ध के बाद जब कई सैनिक शहीद हो गए थे, तब भारत सरकार द्वारा युवाओं से सेना में शामिल होने का आग्रह किया। तो अन्ना भी साठ के दशक 1963 में अपने दादा की तरह फ़ौज में भर्ती हो गये। उनकी पहली पोस्टिंग मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। 12 नवंबर 1965 के भारत - पाक युद्ध भी उन्होंने खेमकरण सेक्टर पर लड़ा था। हमले में उनकी यूनिट के सभी साथी शहीद हो गए और एक गोली हजारे के सिर के पास से भी गुजरी, लेकिन वे बच गए। जिस ट्रक को अन्ना चला रहे थे, उस पर गोलाबारी हुई थी। इस पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बाल-बाल बचे थे। अपने साथियों की मौत से दुखी अन्ना ने अपना जीवन समाज के हित में लगाने का संकल्प ले लिया। यहीं से उनका जीवन परिवर्तन का समय शुरू हुआ। सेना में अपने 15 वर्षो के कार्यकाल के दौरान हजारे ने सिक्किम, भूटान, जम्मू-कश्मीर, असम, मिजोरम, लेह और लद्दाख जैसे कई क्षेत्रों में तैनात रहकर देश की सेवा की।

परिवर्तित सामाजिक दृष्टिकोण और आदर्श गांव

इस घटना के 13 साल बाद सेना से रिटायर हुए लेकिन अपने पैतृक गांव महाराष्ट्र के अहमदनगर में भिनगरी गांव नहीं गए। पास के रालेगण सिद्धि में रहने लगे। मानव अस्तित्व के बारे में सोचकर हजारे काफ़ी निराश हो गए और एक समय ऐसा आया जब उनकी हताशा चरम पर पहुंच गई। उनके दिमाग में आत्महत्या तक का विचार आ गया। मगर, भाग्य से जब नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के एक बुक स्टॉल पर उनकी नजर स्वामी विवेकानंद की लिखी एक पुस्तक पर पड़ी। उन्होंने उस पुस्तक को तत्काल ख़रीद लिया। स्वामी विवेकानंद की तस्वीर ने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया और पुस्तक के अध्ययन के बाद उन्हें अपने सभी सवालों का जवाब मिल गया। पुस्तक ने उन्हें बताया कि मानव जीवन का परम उद्देश्य मानवता की सेवा है और यह परमात्मा की भक्ति से कम नहीं है। उन्होंने गांधीजी और विनोबा को भी पढ़ा और उनके विचारों को अपने जीवन में ढ़ाल लिया। पारिवारिक दायित्वों को देखते हुए उन्होंने 1970 में 26 वर्ष की आयु में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया।

सेना से रिटायरमेंट

मुंबई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गाँव रालेगण आते-जाते रहे। जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फ़ौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने फ़ौज की नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश (V.R.S.) ले लेकर अपने पारिवारिक गांव रालेगण सिद्धी लौटे तो गांव में लोगों की शराबखोरी और गांव की बदहाली से काफ़ी आहत हुए। लोगों को सुधारने के बहुत जतन किए। उसके बाद उन्होंने गाँव की तस्वीर ही बदल डाली और साथ ही अन्ना भ्रष्ट्राचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में कूद पड़े।

समाज सुधारक कार्य - आदर्श गाँव

अण्णा हज़ारे

अन्ना हज़ारे का विचार है कि भारत की असली ताकत गाँवों में है और इसीलिए उन्होंने गाँवों में विकास की लहर लाने के लिए मोर्चा खोला। अन्ना हज़ारे ने सेना से रिटायरमेंट के तुरंत बाद 1975 से सूखा प्रभावित रालेगाँव सिद्धि में काम शुरू किया। इस गांव में बिजली और पानी की जबरदस्त कमी थी। इस गांव में ग़रीबी अपने चरम पर थी। गांव में शराब आदि का अवैध व्यापार होता था। इस गांव में मौजूद इकलौता डैम भी टूट चुका था। लोगों का जीवन कठिन था। जहाँ औसतन सालाना वर्षा 400 से 500 मि. मी. ही होती थी, गाँव में जल संचय के लिए कोई तालाब नहीं थे। उनका गाँव पानी के टैंकरों और पड़ोसी गाँवों से मिले खाद्यान्न पर निर्भर रहता था। अन्ना ने लोगों को समझाया। उनका सहयोग लिया और छोटी-छोटी नहरों द्वारा पास की पहाड़ी से पानी लाकर सिचाई की अच्छी व्यवस्था की। अण्णा ने गांव वालों को गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और खुद भी इसमें योगदान दिया। हजारे ने गांव के लोगों से अपील की कि वे सामूहिक रूप से मिलकर डैम का पुन: निर्माण करें। लोगों ने मिलकर डैम को दोबारा बनाया और सात नए कुएं खोदकर गांव के लोगों ने पहली बार इसमें पानी भरा। इसके बाद से वर्तमान में गांव के लोगों के पास सालभर पानी पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है। अब अच्छी फ़सलें उगने लगीं। अण्णा के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। इसके साथ ही आज गांव में अनाज बैंक, मिल्क बैंक और स्कूल है। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। अब गांव से ग़रीबी पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। लोगों के जीवन में खुशियां आने लगीं और रालेगन सिद्धी एक आदर्श गांव बन गया, जो देश के सामने एक मिसाल था। उन्होंने अपने बलबूते वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायोगैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गाँव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गाँव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है। विश्व बैंक ने भी इस गांव के बारे में कहा है कि इस गांव में जबरदस्त परिवर्तन हुआ और कभी ग़रीब रहा यह गांव आज देश के सबसे अमीर गांव में से एक है। पहले इस गांव के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 250 रुपए थी और वर्तमान में लोगों की प्रति व्यक्ति 2500 रुपए है। ये हजारे के ही प्रयास हैं कि गांव के ग़रीब आज नशेबाजी छोड़कर आत्मनिर्भर बन गए हैं। गांव में ग्रामीणों ने शराब पूरी तरह से छोड़ दी है और वहां शराब की बिक्री नहीं होती है। दुकानदार पिछले 13 वर्षो से सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू आदि नहीं बेच रहे हैं। पहले गांव में 300 लीटर दूध रोजाना बेचा जाता था, जो कि अब 4,000 लीटर बेचा जाता है।

अण्णा हज़ारे, 1965 के युद्ध में

हजारे के नेतृत्व में यहां लोगों ने अनगिनत पेड़ लगाए, मिट्टी के कटाव को रोकने के प्रयास किए, बारिश का पानी रोकने के लिए नहरें बनवाईं। हजारे के प्रयासों ने इस गांव को पूरी दुनिया के सामने मिसाल बना दिया है। यहां के लोग आज अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा यहां बायोगैस और पवन चक्की का भी प्रयोग किया जाता है। गांव की असली ताकत यहां गैर-परंपरागत ऊर्जा का इस्तेमाल करना है। उदाहरण के लिए यहां की सड़कों पर लगी सभी लाइटें सौर ऊर्जा से जलती हैं और प्रत्येक लाइट के लिए एक अलग सोलर पैनल है।

पुश्तैनी ज़मीन का दान

उन्होंने अपनी पुस्तैनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गाँव के विकास में ख़र्च होता है। संपत्ति के नाम पर उनके पास कपड़ों की कुछ जोड़ियाँ हैं। कोई बैंक बैलेंस नहीं हैं। वह गाँव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गाँव का हर शख़्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गाँवों के लिए भी यहाँ से चारा, दूध आदि जाता है। गाँव में एक तरह का रामराज है। गाँव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है।

सम्मान और पुरस्कार

अण्णा हज़ारे को मिले सम्मान और पुरस्कार[2]
क्रमांक सन् सम्मान और पुरस्कार
(1) 6 अप्रैल 1992 पद्म भूषण - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा।
(2) 24 मार्च 1990 पद्म श्री - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा।
(3) 19 नवंबर 1986 इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार - तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा।
(4) 1989 महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार
(5) 1988 मैन ऑफ़ द ईयर अवार्ड
(6) 2000 पॉल मित्तल नेशनल अवार्ड
(7) 2003 ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंटेग्रीटी अवार्ड
(8) 1994 विवेकानंद सेवा पुरस्कार
(9) 1996 शिरोमणि अवार्ड
(10) 1997 महावीर पुरस्कार
(11) 1999 दिवालीबेन मेहता अवार्ड
(12) 1998 केयर इन्टरनेशनल अवार्ड
(13) 2000 जाइण्ट्स इन्टरनेशनल अवार्ड
(14) 2000 वासवश्री प्रशस्ति अवार्ड
(15) 1999 नेशनल इंटरग्रेसन अवार्ड
(16) 1998 जनसेवा पुरस्कार
(17) 1998 रोटरी इन्टरनेशनल मानव सेवा पुरस्कार
(18) 2008 विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार'
(18) यंग इंडिया अवॉर्ड

अन्ना हज़ारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए तथा प्रतिबद्ध और ईमानदार प्रयास के लिए सरकार ने उन्हें समय-समय पर अनेक पुरस्कारों, जिनमे 1990 में पद्मश्री और 1992 में पद्म भूषण शामिल है, दिये गये। अमेरिका के केयर इंटरनेशनल, सियोल ने भी उन्हें सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें 25 लाख रुपए का पुरस्कार भी दिया गया, जिसकी पूरी राशि को उन्होंने स्वामी विवेकानंद कृतादयाता निधि में दान दे दिया। उन्होंने अपने राज्य महाराष्ट्र में विषम परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनेक लडाईयाँ लड़ीं और सफल भी हुए। इस 72 साल की उम्र में भी उनका एक ही सपना है - भ्रष्टाचार रहित भारत का निर्माण।

पद्मश्री अन्ना हज़ारे महाराष्ट्र के रालेगाँव में ग्राम स्वराज के अपने अनुभव बांटने B. H. U. में आमंत्रित थे। उन्होंने गांधीजी की इस सोच को पूरी मज़बूती से उठाया कि 'बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने का कारण रहा, गाँवों को केन्द्र में न रखना। व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया।

भ्रष्टाचार के विरोधी

महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज़्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। भ्रष्ट प्रशासन की खिलाफवर्जी हो या सूचना के अधिकार का इस्तेमाल, हजारे हमेशा आम आदमी की आवाज़ उठाने के लिए आगे आते रहे हैं।

अन्ना हजारे ने ठीक ही सोचा था कि भ्रष्टाचार देश के विकास को बाधित कर रहा है। इसके लिए उन्होंने 1991 में भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन शुरू किया। उन्होंने पाया कि महाराष्ट्र में 42 वन अधिकारी सरकार को धोखा देकर करोड़ों रुपए की चपत लगा रहे हैं। उन्होंने इसके सबूत सरकार को सौंपे, लेकिन सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि सत्ताधारी दल का एक मंत्री उनके साथ मिला था। इससे व्यथित हजारे ने भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया गया पद्मश्री पुरस्कार और प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा दिया गया वृक्ष मित्र पुरस्कार लौटा दिया। उन्होंने पुणे के आलंदी गांव में इसी मुद्दे को लेकर भूख हड़ताल कर दी। आखिर में सरकार कुंभकर्णी नींद से जागी और दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की। हजारे का यह आंदोलन काफ़ी काम आया और 6 मंत्रियों को त्याग-पत्र देना पड़ा जबकि विभिन्न सरकारी कार्यालयों में तैनात 400 अधिकारियों को वापस उनके घर भेज दिया गया।

हजारे को महसूस हुआ कि सरकार में मौजूद कुछ भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों पर कार्रवाई करने से कुछ नहीं होगा, पूरे सिस्टम को ही बदलना होगा। इसके लिए उन्होंने सूचना का अधिकार क़ानून के लिए अभियान छेड़ दिया। राज्य सरकार ने इस दिशा में अपनी आँखें बंद रखीं। इसके बाद 1997 में उन्होंने मुंबई के ऐतिहासिक आज़ाद मैदान में पहला उग्र आंदोलन किया। युवाओं मे जनजागृति फैलाने के लिए वे राज्यभर में घूमे। सरकार ने उनसे आरटीआई एक्ट बनाने का वादा किया, लेकिन इसे कभी राज्य विधानसभा में नहीं उठाया। हजारे भी नहीं माने और उन्होंने कम से कम 10 बार उग्र प्रदर्शन किए। अंत में वे मुंबई के आज़ाद मैदान में 9 अगस्त 2003 में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनके 12 दिवसीय भूख हड़ताल के बाद राष्ट्रपति ने आरटीआई एक्ट के मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए। साथ ही राज्य सरकार को इसे 2002 से लागू करने के आदेश दिए गए। इसी मसौदे को बाद में देश के आरटीआई एक्ट-2005 को बनाने में आधार दस्तावेज के रूप में प्रयोग किया गया। 12 अक्टूबर 2005 को केंद्र सरकार ने भी इस क़ानून को लागू कर दिया। अगस्त, 2006 में सूचना के अधिकार में संशोधन प्रस्ताव के ख़िलाफ़ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। नतीजतन, सरकार ने संशोधन से हाथ खींच लिए।

जन लोकपाल क़ानून के लिए आंदोलन के दोरान अण्णा हज़ारे, दिल्ली

1995 में अन्ना हज़ारे उस समय चर्चा में आ गए थे, जब उन्होंने तत्कालीन शिवसेना-भाजपा की सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज़ उठाई थी। सरकार में मंत्री शशिकांत सुतार को अपनी कुर्सी छोडनी पड़ी। उसी समय के रोज़गार मंत्री महादेव शिवणकर को भी सरकार से बाहर होना पड़ा। अण्णा हजारे ने उन पर आय से ज़्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था।

युती के कार्यकाल में मंत्री रही शोभाताई फडणविस को भी भ्रष्टाचार के आरोप के चलते अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। 1998 में सामजिक न्यायमंत्री बबनराव घोलप को ज़मीन घोटाले के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा।

2003 में महाराष्ट्र में कांगेस - एनसीपी गठबंधन सरकार के चार मंत्री सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गवित और पद्म सिंह पाटिल को भी आघाडी सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते ही अपना पद छोडना पड़ा।

शराब बंदी अभियान, कॉऑपरेटिव घोटाला जैसे कई अहम भ्रष्टाचार के मुद्दे सामने लाने का श्रेय अन्ना हज़ारे को जाता है। इसी तरह 2005 में अन्ना हज़ारे ने तत्कालीन सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए दबाव डाला था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. किसन बाबूराव हज़ारे उर्फ़ अन्ना (अण्णा) हज़ारे ! (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अंधड़ !। अभिगमन तिथि: 9 अप्रॅल, 2011
  2. Awards to Anna Hazare (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) annahazare.org। अभिगमन तिथि: 10 अप्रॅल, 2011

बाहरी कड़ियाँ

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