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'''अकादमी''' मूल रूप से प्राचीन [[यूनान]] में एथेंस नगर में स्थित एक स्थानीय वीर 'अकादेमस' के व्यक्तिगत उद्यान का नाम था। कालांतर में यह वहाँ के नागरिकों को जनोद्यान के रूप में भेंट कर दिया गया। आगे चलकर यह उद्यान वहाँ के निवासियों के लिए [[खेल]], व्यायाम, शिक्षा और चिकित्सा का केंद्र बन गया। प्रसिद्ध दार्शनिक अफलातून ([[प्लेटो]]) ने इसी जनोद्यान में एथेंस के प्रथम दर्शन विद्यापीठ की स्थापना की। आगे चलकर इस विद्यापीठ को ही 'अकादमी' कहा जाने लगा।
[[चित्र:Lalit-Kala-Akademi-Delhi-Art-Gallery.jpg|thumb|250px|[[ललित कला अकादमी]], [[दिल्ली]] की कला दीर्घा]]
'''अकादमी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Academy'') मूल रूप से प्राचीन [[यूनान]] में एथेंस नगर में स्थित एक स्थानीय वीर 'अकादेमस' के व्यक्तिगत उद्यान का नाम था। कालांतर में यह वहाँ के नागरिकों को जनोद्यान के रूप में भेंट कर दिया गया। आगे चलकर यह उद्यान वहाँ के निवासियों के लिए [[खेल]], व्यायाम, शिक्षा और चिकित्सा का केंद्र बन गया। प्रसिद्ध दार्शनिक अफलातून ([[प्लेटो]]) ने इसी जनोद्यान में एथेंस के प्रथम दर्शन विद्यापीठ की स्थापना की। आगे चलकर इस विद्यापीठ को ही 'अकादमी' कहा जाने लगा।
==परिभाषा==
==परिभाषा==
ऐसी संस्था जो [[विज्ञान]], [[साहित्य]], [[दर्शन]], [[इतिहास]], चिकित्सा अथवा [[ललित कला]] के किसी अंग विशेष की समृद्धि के लिए गठित की गई हो।
ऐसी संस्था जो [[विज्ञान]], [[साहित्य]], [[दर्शन]], [[इतिहास]], चिकित्सा अथवा ललित कला के किसी अंग विशेष की समृद्धि के लिए गठित की गई हो।


कुछ समय पहले तक ये अकादमियां कुछ विशिष्ट व्यक्तियों की पहुंच तक ही सीमित थीं। परंतु अब ये जनजीवन के और जनसाधारण की अभिरुचि के अधिकाधिक निकट आने लगी हैं। हमारे देश की ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी इसी प्रकार की संस्थाएं हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति कोश |लेखक= लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजपाल एण्ड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=12|url=|ISBN=}}</ref>
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==शब्द उत्पत्ति==
==शब्द उत्पत्ति==
‘अकादमी' शब्द की उत्पत्ति बहुत रोचक है। प्राचीन [[यूनान]] के एथेंस नगर के एक व्यक्ति 'अकादिमस' के निजी उद्यान का नाम 'अकादमी' था। आगे चलकर यह निजी उद्यान न रहकर व्यायाम, चिकित्सा आदि का केन्द्र बन गया। अफलातून ([[प्लेटो]]) ने अपना पहला विद्यापीठ यहीं पर स्थापित किया और कालांतर में उस विद्यापीठ का नाम ही 'अकादमी' पड़ गया। वहां जिस प्रकार की गतिविधियों का विकास हुआ, उसके कारण ऐसे उद्देश्यों के लिए बनी संस्था सर्वत्र अकादमी कहलाने लगीं।
‘अकादमी' शब्द की उत्पत्ति बहुत रोचक है। प्राचीन [[यूनान]] के एथेंस नगर के एक व्यक्ति 'अकादिमस' के निजी उद्यान का नाम 'अकादमी' था। आगे चलकर यह निजी उद्यान न रहकर व्यायाम, चिकित्सा आदि का केन्द्र बन गया। अफलातून ([[प्लेटो]]) ने अपना पहला विद्यापीठ यहीं पर स्थापित किया और कालांतर में उस विद्यापीठ का नाम ही 'अकादमी' पड़ गया। वहां जिस प्रकार की गतिविधियों का विकास हुआ, उसके कारण ऐसे उद्देश्यों के लिए बनी संस्था सर्वत्र अकादमी कहलाने लगीं।
==सम्मिलन स्थल==
==सम्मिलन स्थल==
[[चित्र:Sangeet-Natak-Academi.jpg|thumb|250px|[[संगीत नाटक अकादमी]]]]
एथेंस की यह अकादमी एक ही ऐसी संस्था थी, जिसमें नगरवासियों के अतिरिक्त बाहर के लोग भी सम्मिलित हो सकते थे। इसमें विद्या देवियों<ref>म्यूज़ेज़</ref> का एक मंदिर था। प्रति मास यहाँ एक सहभोज हुआ करता था। इसमें संगमरमर की एक अर्धवृताकार शिला थी। कदाचित इसी पर से अफलातून और उनके उत्तराधिकारी अपने सिद्धांतों और विचारों का प्रसार किया करते थे। गंभीर संवाद एवं विचार विनिमय की [[शैली]] में वहाँ [[दर्शन]], नीति, शिक्षा और [[धर्म]] की मूल धारणाओं का विश्लेषण होता था। एक, अनेक, संख्या, असीमता, सीमाबद्धता, प्रत्यक्ष, बुद्धि, ज्ञान, संशय, ज्ञेय, अज्ञेय, शुभ, कल्याण, सुखस आनंद, ईश्वर, अमरत्व, सौर मंडल, निस्सरण, सत्य और संभाव्य, ये उदाहरणत कुछ प्रमुख विषय हैं, जिनकी वहाँ व्याख्या होती थी।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A5%80 |title=अकादमी |accessmonthday=14 फ़रवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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====विस्तार====
====विस्तार====
यह संस्था नौ सौ वर्षों तक जीवित रही और पहले 'धारणावाद' का, फिर 'संशयवाद' का और उसके पश्चात्‌ '[[समन्वयवाद]]' का संदेश देती रही। इसका क्षेत्र भी धीरे-धीरे विस्तृत होता गया और [[इतिहास]], राजनीति आदि सभी विद्याओं और सभी कलाओं का पोषण इसमें होने लगा। परंतु साहस पूर्ण मौलिक रचनात्मक चिंतन का प्रवाह लुप्त सा होता गया। 529 ई. में सम्राट जुस्तिनियन ने अकादमी को बंद कर दिया और इसकी संपत्ति जब्त कर ली।
यह संस्था नौ सौ वर्षों तक जीवित रही और पहले 'धारणावाद' का, फिर 'संशयवाद' का और उसके पश्चात्‌ '[[समन्वयवाद]]' का संदेश देती रही। इसका क्षेत्र भी धीरे-धीरे विस्तृत होता गया और [[इतिहास]], राजनीति आदि सभी विद्याओं और सभी कलाओं का पोषण इसमें होने लगा। परंतु साहस पूर्ण मौलिक रचनात्मक चिंतन का प्रवाह लुप्त सा होता गया। 529 ई. में सम्राट जुस्तिनियन ने अकादमी को बंद कर दिया और इसकी संपत्ति जब्त कर ली।
==अन्य अकादमियों की स्थापना==
==अन्य अकादमियों की स्थापना==
[[चित्र:Sahitya-Akademi-Logo.jpg|thumb|250px|[[साहित्य अकादमी]] का प्रतीक चिन्ह]]
अकादमी के बंद होने के बाद भी कुछ काल पहले से ही [[यूरोप]] में इसी के नमूने पर दूसरी अकादमियाँ बनने लग गई थीं। इनमें कुछ नवीनता थी; ये विद्वानों के संघों अथवा संगठनों के रूप में बनीं। इनका उद्देश्य [[साहित्य]], [[दर्शन]], [[विज्ञान]] अथवा [[कला]] की शुद्ध हेतुरहित अभिवृद्धि था। इनकी सदस्यता थोड़े से चुने हुए विद्वानों तक सीमित होती थी। ये विद्वान् बड़े पैमाने पर ज्ञान अथवा कला के किसी संपूर्ण क्षेत्र पर, अर्थात् संपूर्ण प्राकृतिक विज्ञान, संपूर्ण साहित्य, संपूर्ण दर्शन, संपूर्ण [[इतिहास]], संपूर्ण कला क्षेत्र आदि पर दृष्टि रखते थे। प्राय यह भी समझा जाने लगा कि प्रत्येक अकादमी को [[राज्य]] की ओर से यथासंभव संस्थापन, पूर्ण अथवा आंशिक आर्थिक सहायता, एवं संरक्षण के रूप में मान्यता प्राप्त होनी ही चाहिए।
अकादमी के बंद होने के बाद भी कुछ काल पहले से ही [[यूरोप]] में इसी के नमूने पर दूसरी अकादमियाँ बनने लग गई थीं। इनमें कुछ नवीनता थी; ये विद्वानों के संघों अथवा संगठनों के रूप में बनीं। इनका उद्देश्य [[साहित्य]], [[दर्शन]], [[विज्ञान]] अथवा [[कला]] की शुद्ध हेतुरहित अभिवृद्धि था। इनकी सदस्यता थोड़े से चुने हुए विद्वानों तक सीमित होती थी। ये विद्वान् बड़े पैमाने पर ज्ञान अथवा कला के किसी संपूर्ण क्षेत्र पर, अर्थात् संपूर्ण प्राकृतिक विज्ञान, संपूर्ण साहित्य, संपूर्ण दर्शन, संपूर्ण [[इतिहास]], संपूर्ण कला क्षेत्र आदि पर दृष्टि रखते थे। प्राय यह भी समझा जाने लगा कि प्रत्येक अकादमी को [[राज्य]] की ओर से यथासंभव संस्थापन, पूर्ण अथवा आंशिक आर्थिक सहायता, एवं संरक्षण के रूप में मान्यता प्राप्त होनी ही चाहिए।



12:23, 27 जून 2021 के समय का अवतरण

ललित कला अकादमी, दिल्ली की कला दीर्घा

अकादमी (अंग्रेज़ी: Academy) मूल रूप से प्राचीन यूनान में एथेंस नगर में स्थित एक स्थानीय वीर 'अकादेमस' के व्यक्तिगत उद्यान का नाम था। कालांतर में यह वहाँ के नागरिकों को जनोद्यान के रूप में भेंट कर दिया गया। आगे चलकर यह उद्यान वहाँ के निवासियों के लिए खेल, व्यायाम, शिक्षा और चिकित्सा का केंद्र बन गया। प्रसिद्ध दार्शनिक अफलातून (प्लेटो) ने इसी जनोद्यान में एथेंस के प्रथम दर्शन विद्यापीठ की स्थापना की। आगे चलकर इस विद्यापीठ को ही 'अकादमी' कहा जाने लगा।

परिभाषा

ऐसी संस्था जो विज्ञान, साहित्य, दर्शन, इतिहास, चिकित्सा अथवा ललित कला के किसी अंग विशेष की समृद्धि के लिए गठित की गई हो।

कुछ समय पहले तक ये अकादमियां कुछ विशिष्ट व्यक्तियों की पहुंच तक ही सीमित थीं। परंतु अब ये जनजीवन के और जनसाधारण की अभिरुचि के अधिकाधिक निकट आने लगी हैं। हमारे देश की ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी इसी प्रकार की संस्थाएं हैं।[1]

शब्द उत्पत्ति

‘अकादमी' शब्द की उत्पत्ति बहुत रोचक है। प्राचीन यूनान के एथेंस नगर के एक व्यक्ति 'अकादिमस' के निजी उद्यान का नाम 'अकादमी' था। आगे चलकर यह निजी उद्यान न रहकर व्यायाम, चिकित्सा आदि का केन्द्र बन गया। अफलातून (प्लेटो) ने अपना पहला विद्यापीठ यहीं पर स्थापित किया और कालांतर में उस विद्यापीठ का नाम ही 'अकादमी' पड़ गया। वहां जिस प्रकार की गतिविधियों का विकास हुआ, उसके कारण ऐसे उद्देश्यों के लिए बनी संस्था सर्वत्र अकादमी कहलाने लगीं।

सम्मिलन स्थल

संगीत नाटक अकादमी

एथेंस की यह अकादमी एक ही ऐसी संस्था थी, जिसमें नगरवासियों के अतिरिक्त बाहर के लोग भी सम्मिलित हो सकते थे। इसमें विद्या देवियों[2] का एक मंदिर था। प्रति मास यहाँ एक सहभोज हुआ करता था। इसमें संगमरमर की एक अर्धवृताकार शिला थी। कदाचित इसी पर से अफलातून और उनके उत्तराधिकारी अपने सिद्धांतों और विचारों का प्रसार किया करते थे। गंभीर संवाद एवं विचार विनिमय की शैली में वहाँ दर्शन, नीति, शिक्षा और धर्म की मूल धारणाओं का विश्लेषण होता था। एक, अनेक, संख्या, असीमता, सीमाबद्धता, प्रत्यक्ष, बुद्धि, ज्ञान, संशय, ज्ञेय, अज्ञेय, शुभ, कल्याण, सुखस आनंद, ईश्वर, अमरत्व, सौर मंडल, निस्सरण, सत्य और संभाव्य, ये उदाहरणत कुछ प्रमुख विषय हैं, जिनकी वहाँ व्याख्या होती थी।[3]

विस्तार

यह संस्था नौ सौ वर्षों तक जीवित रही और पहले 'धारणावाद' का, फिर 'संशयवाद' का और उसके पश्चात्‌ 'समन्वयवाद' का संदेश देती रही। इसका क्षेत्र भी धीरे-धीरे विस्तृत होता गया और इतिहास, राजनीति आदि सभी विद्याओं और सभी कलाओं का पोषण इसमें होने लगा। परंतु साहस पूर्ण मौलिक रचनात्मक चिंतन का प्रवाह लुप्त सा होता गया। 529 ई. में सम्राट जुस्तिनियन ने अकादमी को बंद कर दिया और इसकी संपत्ति जब्त कर ली।

अन्य अकादमियों की स्थापना

साहित्य अकादमी का प्रतीक चिन्ह

अकादमी के बंद होने के बाद भी कुछ काल पहले से ही यूरोप में इसी के नमूने पर दूसरी अकादमियाँ बनने लग गई थीं। इनमें कुछ नवीनता थी; ये विद्वानों के संघों अथवा संगठनों के रूप में बनीं। इनका उद्देश्य साहित्य, दर्शन, विज्ञान अथवा कला की शुद्ध हेतुरहित अभिवृद्धि था। इनकी सदस्यता थोड़े से चुने हुए विद्वानों तक सीमित होती थी। ये विद्वान् बड़े पैमाने पर ज्ञान अथवा कला के किसी संपूर्ण क्षेत्र पर, अर्थात् संपूर्ण प्राकृतिक विज्ञान, संपूर्ण साहित्य, संपूर्ण दर्शन, संपूर्ण इतिहास, संपूर्ण कला क्षेत्र आदि पर दृष्टि रखते थे। प्राय यह भी समझा जाने लगा कि प्रत्येक अकादमी को राज्य की ओर से यथासंभव संस्थापन, पूर्ण अथवा आंशिक आर्थिक सहायता, एवं संरक्षण के रूप में मान्यता प्राप्त होनी ही चाहिए।

कुछ यह भी विश्वास रहा है कि विद्या के क्षेत्रों में उच्च स्तर की योग्यता बहुत थोड़े व्यक्तियों में हो सकती है, और इसका समाज के धनी और वैभवशाली अंगों से मेल बना रहना स्वाभाविक तथा आवश्यक भी है। पिछले दो सहस्र वर्षों में बहुत से देशों में इन नवीन विचारों के अनुसार बनी हुई कई-कई अकादमियाँ रही हैं। अधिकांश अकादमियाँ विज्ञान, साहित्य, दर्शन, इतिहास, चिकित्सा अथवा ललित कला में से किसी एक विशेष क्षेत्र में सेवा करती रही हैं। कुछ की सेवाएँ इनमें से कई क्षेत्रों में फैली रही हैं।[3]

नया परिवर्तन

लोकतंत्रवादी विचारों और भावनाओं की प्रगति से अकादमी की इस धारणा में वर्तमान काल में एक नया परिवर्तन आरंभ हुआ। आज की कुछ अकादमियाँ जनजीवन के निकट रहने का प्रयत्न करने लगी हैं, जनता की रुचियों, विचारधाराओं और कलाओं को अपनाने लगी हैं और अन्य प्रकार से जनप्रिय बनने का प्रयास करने लगी हैं। भारत में 'राष्ट्रीय संस्कृति ट्रस्ट' द्वारा स्थापित 'ललित कला अकादमी', 'संगीत नाटक अकादमी 'और 'साहित्य अकादमी' इस परिवर्तन की प्रतीक हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय संस्कृति कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: राजपाल एण्ड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 12 |
  2. म्यूज़ेज़
  3. 3.0 3.1 अकादमी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2014।

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