ललित कला अकादमी

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ललित कला अकादमी
ललित कला अकादमी, दिल्ली की कला दीर्घा
ललित कला अकादमी, दिल्ली की कला दीर्घा
अन्य नाम नेशनल अकादमी ऑफ़ आर्टस
उद्देश्य भारतीय कला के प्रति देश-विदेश में समझ बढ़ाने और प्रचार-प्रसार के लिए।
स्थापना 5 अगस्त 1954
संस्थापक भारत सरकार
मुख्यालय रविन्द्र भवन, नई दिल्ली
संबंधित लेख राज्य ललित कला अकादमी, उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी
क्षेत्रीय केंद्र भुवनेश्वर, चेन्नई, गढ़ी (दिल्ली), कोलकाता, लखनऊ
अन्य जानकारी प्रदर्शनी कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का आयोजन और विदेशों में भारतीय कला की प्रदर्शनी का आयोजन, दोनों की व्यवस्था संस्था करती है जो सामयिक और प्रासंगिक दोनों ही प्रकार के विषयों पर आधारित होती है।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट

ललित कला अकादमी (अंग्रेज़ी: Lalit Kala Akademi) स्वतंत्र भारत में गठित एक स्वायत्त संस्था है जो 5 अगस्त 1954 को भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई। यह एक केंद्रीय संगठन है जो भारत सरकार द्वारा ललित कलाओं के क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था, यथा मूर्तिकला, चित्रकला, ग्राफकला, गृहनिर्माणकला आदि।

उद्देश्य

भारतीय कला के प्रति देश-विदेश में समझ बढ़ाने और प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार ने नई दिल्ली में 1954 में 'राष्ट्रीय ललित कला अकादमी' (नेशनल अकादमी ऑफ़ आर्टस) की स्थापना की थी। इसके लिए यह अकादमी प्रकाशनों, कार्यशालाओं तथा शिविरों का आयोजन करती है। यह प्रतिवर्ष एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी तथा प्रत्येक तीसरे वर्ष 'त्रैवार्षिक भारत' नामक एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी भी आयोजित करती है। अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष डॉ. आनन्द कुमार स्वामी (1877-1947) की स्मृति में एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है।

ललित कला अकादमी का प्रतीक चिह्न

संगठन और व्यवस्था

ललित कला अकादमी की एक समान्य कौंसिल है जिसमें कई सभासद, एक कार्यकारी बोर्ड, एक वित्त समिति (फ़ाइनैन्स कमेटी) आदि हैं। इस कौंसिल में प्रमुख कलाकार, केंद्रीय सरकार और विभिन्न-राज्यों के प्रतिनिधि और कला क्षेत्र के प्रमुख व्यक्ति हैं। अकादमी के प्रति दिन का कार्यक्रम कार्यकारिणी समिति के मंत्री और सामान्य कौंसिल के अन्य उत्तरदायी लोगों द्वारा संचालित होता है। ललित कला अकादमी के 30 परिपूरक स्वीकृत कला संगठन संपूर्ण देश में हैं जो कि अकादमी के क्रियाकलापों और प्रदर्शनी कार्यक्रमों से संबंधित है। इसके अतिरिक्त 12 राज्य अकादमियाँ हैं जो केंद्रीय अकादमी की सहायक और सहकारी हैं। अकादमी के बजट में देशी और प्रांतीय अकादमी के कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान की भी व्यवस्था है। कलाकारों को पेण्टिंग, मृत्तिका शिल्प, रेखाचित्र और मूर्तिकला में प्रशिक्षण देने के लिए तथा उनके अभ्यास की सुविधाएं प्रदान करने के लिए नई दिल्ली तथा कलकत्ता में अकादमी ने स्थायी स्टूडियो परिसरों की स्थापना की है। इसके क्षेत्रीय केन्द्र चेन्नई तथा लखनऊ में है, जहां पर व्यावहारिक प्रशिक्षण तथा कार्य की सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी है।

प्रदर्शनी और पुरस्कार समारोह

अकादमी अपनी स्थापना से ही हर वर्ष समसामयिक भारतीय कलाओं की प्रदर्शनियां आयोजित करती रही है। 50-50 हज़ार रुपये के 15 अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष पर अकादमी समकालीन कला पर नई-दिल्ली में त्रैवार्षिक अंतराष्ट्रीय प्रदर्शनी (त्रिनाले इंडिया) आयोजित करती है। अकादमी हर वर्ष जाने-माने कलाकारों और कला क्षेत्र के इतिहासकारों को अपनी मानद उपाधि देकर सम्मानित करती है। विदेशों में भारतीय कला के प्रसार के लिए अकादमी अंतराष्ट्रीय द्विवार्षिक और त्रिवार्षिक सभाओं में नियमित रूप से भाग लेती है और अन्य देशों की कलाकृतियों की प्रदर्शनियां भी आयोजित करती है। देश के कलाकारों का अन्य देशों के कलाकारों के साथ मेलमिलाप और समझौतों के अंतर्गत कलाकारों को एक-दूसरे के यहाँ भेजने की व्यवस्था करती है। अकादमी द्वारा कलाकारों के शिविर, गोष्ठियों तथा व्याख्यानों के आयोजन, देश के मान्यता प्राप्त कला संगठनों को अनुदान देने, सुप्रसिद्ध कलाकारों को सम्मानित करके उन्हें फेलोशिप प्रदान करने की कार्य किया जाता है। राष्ट्रीय प्रदर्शनी के अवसर पर 10 कलाकारों को दस - दस हज़ार रुपये का पुरस्कार भी अकादमी द्वारा प्रदान किया जाता है।

प्रांतीय अकादमी

उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी

दिल्ली स्थित 'राष्ट्रीय ललित कला अकादमी' के अतिरिक्त भारत के 12 राज्यों में भी 'राज्य ललित कला अकादमी' हैं, जो 'राष्ट्रीय ललित कला अकादमी' के क्षेत्रीय कार्यालयों से प्रथक अपना स्वतंत्र अस्थित्व रखती हैं, परन्तु ये केंद्रीय अकादमी की सहायक और सहकारी भी हैं। 'राष्ट्रीय ललित कला अकादमी' के बजट में देशी और 'प्रांतीय अकादमी' के कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान की व्यवस्था होती है। लखनऊ, कोलकाता, चेन्नई, नई दिल्ली और भुवनेश्वर में क्षेत्रीय केन्द्र हैं, जिन्हें 'राष्ट्रीय कला केन्द्र' के नाम से जाना जाता है। इन केन्द्रों पर पेंटिंग, मूर्तिकला, प्रिन्ट-निर्माण और चीनी मिट्टी की कलाओं के विकास के लिए कार्यशाला-सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

प्रकाशन व्यवस्था

ललित कला अकादमी कला संस्थाओं व संगठनों को मान्यता प्रदान करती है और इन संस्थाओं के साथ-साथ राज्यों की अकादमियों को आर्थिक सहायता देती है। यह क्षेत्रीय केन्द्रों के प्रतिभावान युवा कलाकारों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है। अपने प्रकाशन कार्यक्रम के तहत अकादमी समकालीन भारतीय कलाकारों की रचनाओं पर हिन्दी और अंग्रेज़ी में मोनोग्राफ और समकालीन पारपंरिक तथा जनजातीय और लोक कलाओं पर जाने माने लेखकों और कला आलोचकों द्वारा लिखित पुस्तकें प्रकाशित करती है। अकादमी ने प्राचीन भारतीय कला पर एक निबन्धमाला एवं कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। अकादमी अंग्रेज़ी में ‘ललित कला कंटेंपरेरी’ तथा हिन्दी में 'समकालीन' कला नामक अर्द्धवार्षिक कला पत्रिकाएं भी प्रकाशित करती है। इसके अलावा अकादमी समय-समय पर समकालीन पेंटिग्स और ग्राफिक्स के बहुरंगी विशाल आकार के प्रतिफलक भी निकालती है। अकादमी ने अनुसंधान और अभिलेखन का नियमित कार्यक्रम भी शुरू किया है। भारतीय समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं से संबद्ध समसामयिक लोककला सबंधी परियोजना पर काम करने के लिए अकादमी विद्वानों को आर्थिक सहायता देती है।

कार्य

ललित कला अकादमी में अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं जिन्हें हम मुख्य रूप से निम्नलिखित विभागों में विभक्त कर सकते हैं -

  1. प्रदर्शनी
  2. प्रकाशन
  3. निरीक्षण, विचार गोष्ठी, भित्तिचित्र बनाने की कला
  4. देशी कला संगठनों और प्रांतीय अकादमियों के समन्वित कार्यक्रम को प्रोत्साहित करना
  5. विदेशों से संपर्क और छात्रों एवं कलाकारों का आदान-प्रदान

प्रदर्शनी

प्रदर्शनी कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी का आयोजन और विदेशों में भारतीय कला की प्रदर्शनी आयोजन, दोनों की व्यवस्था संस्था करती है जो सामयिक और प्रासंगिक दोनों ही प्रकार के विषयों पर आधारित होती है।

प्रकाशन

  • राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी और प्रति वर्ष समकालीन भारतीय कला की श्रेष्ठ प्रतिनिधि कृतियों का चयन करती है। विदेशों में होने वाली भारतीय कला प्रदर्शनी के कार्यक्रमों का प्रस्तुतिकरण और व्यवस्थापन करती है। जिसमें चित्रकला, मूर्तिकला और कला के अन्य पक्षों के मुख्य देशी और विदेशी कला केंद्रों के श्रेष्ठ और चुने हुए सामयिक संग्रहों और कलाकारों का प्रस्तुतिकरण भी करती है।
  • विदेशी कला प्रदर्शनी में भाग लेने, कलाकारों और सामान्य कलाकारों को विश्व की श्रेष्ठ कलाओं का ज्ञान और संपर्क स्थापित करने का अवसर प्रदान करती है।
  • अकादमी का प्रकाशन संबंधी कार्य दो प्रकार का है -
  1. प्राचीन भारतीय कला का प्रकाशन
  2. आधुनिक भारतीय कला का प्रकाशन।
  • भारतीय ललित कला ग्रंथमाला के अंतर्गत पुस्तकें और लेख भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला के प्रमुख स्कूलों से प्रकाशित की जाती है।
  • 'ललित कला' नामक पत्रिका, जो भारतीय कला, पुरातन वस्तुओं और पूर्वदेशीय कला से संबंधित है, वर्ष में दो बार प्रकाशित की जाती है।
  • ललित कला ग्रंथमाला के लेखों में समकालीन कला के प्रख्यात कलाकारों का विवरण रहता है।
  • पत्रिका 'समकालीन ललित कला' वर्ष में दो बार प्रकाशित की जाती है। ये सभी प्रकाशन आकर्षक और सचित्र हैं जो सभी को आकर्षित करते हैं।

ललित कला अकादमी के 50 वर्ष

देखते-देखते काल के कैनवास पर स्वर्ण रेखा खिंच गई। ललित कला अकादमी ने 50 साल की यात्रा पूरी की। यात्रा के इस पड़ाव पर पहुंचना निश्चित रूप से अब तक की गई यात्रा पद एक विहंगम दृष्टि डालने का समय है, लेने का वक्त है। ललित कला अकादमी के स्वर्ण जयंती वर्ष की शुरुआत खासी रंग भरी रही। इन्द्रधनुषी आयोजनों ने वर्षभर की झलक प्रस्तुत कर दी। कूची से कैनवास पर उतरे रंगों, कोरे कागजों पर रेखांकनों, पीतल, काष्ठ, टेराकोटा तथा पत्थर पर उकेरी गईं आकृतियों और कैमरे में कैद किए गए कलात्मक क्षणों में जैसे पचास वर्षों का इतिहास जीवंत हो उठा। 9 अगस्त, 2004 को नई दिल्ली के सीरी फोर्ट सभागार में आयोजित भव्य समारोह में राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कला को मूर्त रूप देने वाले देश के 17 वरिष्ठ कला साधकों को ललित कला रत्न से अलंकृत किया। ये वे कलाकार थे, जिन्होंने भारत की समकालीन कला यात्रा को यहां तक पहुंचाने में महती भूमिका निभाई है। अमरनाथ सहगल, जहांगीर सबावाल, के.जी. सुब्राह्मण्यम्, कपिला वात्स्यायन, कृष्ण खन्ना, एम.एफ. हुसैन, मुल्कराज आनंद, पारितोष सेन, शंखो चौधरी, शांति दवे, सतीश गुजराल और तैयब मेहता जैसे कलाकारों को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। भारतीय कला की पूरे विश्व में साख को रेखांकित करते हुए डॉ. कलाम ने कहा कि भारतीय कलाकारों के अच्छे प्रदर्शन के आधार पर ही भारतीय कला-संस्कृति विश्व में अपनी जगह बना रही है।

स्वर्ण-रेखा प्रदर्शनी

स्वर्ण-रेखा प्रदर्शनी में प्रदर्शित अब्बास बाटलीवाला का एक चित्र

स्वर्ण जयंती वर्ष जहां इतिहास में झांकने का वक्त है, वहीं भविष्य की संभावनाएं तलाशने का भी। इस अवसर पर दिल्ली स्थित कला-ग्राम गढ़ी स्टूडियो में "उभरते कलाकार" कार्यशाला में 1 से 8 अगस्त तक नवांकुरों ने पुरोधाओं के मार्गदर्शन में बहुत कुछ नया रचा। अपनी कल्पनाओं को मूर्त रूप दिया। शिलांग से आई एक बच्ची ने बाढ़ का प्रकोप कैनवास पर उतारा तो जम्मू-कश्मीर के बच्चों ने शिकारे और पहाड़ों का दृश्यांकन किया। इस शिविर में पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक देश भर से आए बाल कलाकार शामिल हुए। स्वर्ण-रेखा प्रदर्शनी में पिछले पचास साल में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले 370 कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गईं। 10 से 25 अगस्त तक आयोजित इस प्रदर्शनी में के. के. हेब्बार, स्व. बी.सी. सान्याल, के.जी. सुब्राह्मण्यम्, सतीश गुजराल, परितोष सेन, शंखो चौधरी, बिमल दासगुप्ता, अमरनाथ सहगल, सोमनाथ होरे, धनराज भगत और अद्वैत गणगनायक जैसे कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित की गईं। इस अवसर पर "सिनेमा में कला" कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। पूरे एक दिन चले इस कार्यक्रम का केन्द्र बिन्दु था कला और सिनेमा के संबंधों को दर्शाना। इसमें जहां चित्रकारों द्वारा बनाई गई छोटी-छोटी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया, वहीं उनके जीवन पर अन्य निर्देशकों द्वारा बनायी फिल्में दर्शकों के सामने प्रस्तुत की गई। इन्हें देखकर अहसास हुआ कि कलाकार जब कूची की जगह कैमरा उठा लेता है तो उसमें भी अपनी कल्पना के रंग कितनी खूबी से भरता है।

स्वर्ण जयंती वर्ष

ललित कला अकादमी ने अगस्त 2004 में स्वर्ण जयंती वर्ष की यात्रा पूरी की। इस वर्ष ललित कला रत्न से अलंकृत श्री शांति दवे ने कहा- "अब कला के साथ व्यावसायिकता ज़्यादा जुड़ गई है। कलाकारों का ध्यान पैसे और बाज़ार पर ज़्यादा केन्द्रित हो गया है, मूलभावना कहीं खो गई है। एक वक़्त था जब कला को समाचार पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिलता था। इससे कलाकारों का आकलन होता था, वे प्रोत्साहित होते थे, और लोगों को चयन में आसानी होती थी। अब मीडिया में कला का कोई स्थान रह ही नहीं गया।" इस अवसर पर तत्कालीन अकादमी सचिव डॉ. सुधाकर शर्मा ने कहा, "यह सिर्फ इतिहास में झांकने का ही नहीं अपितु अपने आपको टटोलने का वक्त भी है कि हम जो लक्ष्य लेकर चले थे, वे पूरे हुए कि नहीं।" 1954 में भारत सरकार द्वारा स्वायत्तशासी संस्था के रूप में ललित कला अकादमी शुरू हुई थी। इसका उद्देश्य था ललित कलाओं का संवर्धन, पोषण और संरक्षण तथा कलाकारों तक पहुंचना और उन्हें लाभ पहुंचाना। क्या अपने लक्ष्य में सफल हुए? डॉ. सुधाकर शर्मा कहते हैं, "इस राष्ट्रीय अकादमी के जरिए सैकड़ों कलाकारों को लाभ पहुंचा। यूं तो अनेक पड़ाव आए, कभी अच्छा चला, कभी बुरा चला, लेकिन निश्चित रूप से कलाकारों को हम जोड़ पाए। अखिल भारतीय अध्येता वृत्तियों, छात्रवृत्तियों के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर कश्मीर तक के कलाकारों को जोड़ सके। राज्य अकादमियों को भी ललित कला अकादमी वित्तीय सहयोग देती है, जिसका लाभ कलाकारों को मिलता है। उनकी कृतियों के प्रदर्शन के लिए अकादमी देश और विदेश में प्रदर्शनियां आयोजित करती है। प्रतिवर्ष राष्ट्रीय प्रदर्शनी आयोजित होती है और उसमें 15 कलाकारों को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है। पुरस्कार में 50,000 रुपए दिये जाते हैं। इसी प्रकार हर तीन वर्ष में त्रैवार्षिकी का आयोजन होता है, जिसमें विदेशी कलाकार भी शामिल होते हैं। दस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए जाते हैं।" स्वर्ण जयंती वर्ष में अकादमी द्वारा देशभर में अनेक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां, कार्यशालाएं और गोष्ठियां आयोजित की गईं। इन्हीं में एक विशेष त्रैवार्षिकी प्रदर्शनी का आयोजन दिल्ली में हुआ, जिसमें 40 देशों ने भाग लिया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुप्ता, विनीता। ललित कला अकादमी के 50 वर्ष (हिन्दी) पञ्चजन्य डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 1 फ़रवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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