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'''जावेद अहमद टाक''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Javed Ahmad Tak'') भारतीय समाज सेवक हैं। उन्हें आतंकियों ने गोलियों से भून दिया था, फिर भी हौसला नहीं तोड़ा, व्हीलचेयर के सहारे मानवता की नई मिसाल पेश करने वाले जावेद अहमद टाक को [[भारत सरकार]] ने साल [[2020]] में ‘[[पद्म श्री]]’ से सम्मानित किया है। कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी छोटी लगती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण [[जम्मू-कश्मीर]] के रहने वाले जावेद अहमद टाक हैं। जिन्हें आतंकवादियों ने [[1997]] में गोलियों से छलनी कर दिया था, जिसके कारण वह विकलांग हो गए और उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा। लेकिन इन सबके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और समाज सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते गए।<ref name="pp">{{cite web |url=https://ddeepak.in/social-activist-javed-ahmad-tak-biography-hindi/ |title=सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक की जीवनी|accessmonthday=10 नवंबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ddeepak.in |language=हिंदी}}</ref>
'''जावेद अहमद टाक''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Javed Ahmad Tak'') एक भारतीय समाज सेवक हैं। उन्हें आतंकियों ने गोलियों से भून दिया था, फिर भी हौसला नहीं तोड़ा, व्हीलचेयर के सहारे मानवता की नई मिसाल पेश करने वाले जावेद अहमद टाक को [[भारत सरकार]] ने साल [[2020]] में ‘[[पद्म श्री]]’ से सम्मानित किया है। कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी छोटी लगती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण [[जम्मू-कश्मीर]] के रहने वाले जावेद अहमद टाक हैं, जिन्हें आतंकवादियों ने [[1997]] में गोलियों से छलनी कर दिया था, जिसके कारण वह विकलांग हो गए और उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा लेकिन इन सबके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और समाज सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते गए।<ref name="pp">{{cite web |url=https://ddeepak.in/social-activist-javed-ahmad-tak-biography-hindi/ |title=सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक की जीवनी|accessmonthday=10 नवंबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ddeepak.in |language=हिंदी}}</ref>
==परिचय==
==परिचय==
सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक पिछले दो दशकों से अपने ह्यूमैनिटी वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन कश्मीर और जेबा आपा स्कूल के जरिए [[कश्मीर]] के खास बच्चों को मुख्यधारा में शामिल करने का काम कर रहे हैं। वे ऐसे करीब 100 विशेष बच्चों को मुफ्त शिक्षा और अन्य मदद दे रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने अनंतनाग और पुलवामा के 40 से अधिक गांवों के बच्चों के लिए परियोजनाओं को लागू किया है। उनके कार्यों को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया है। आतंकवादीयों के गोलियों का शिकार होने के बाद भी जावेद अहमद टाक के लिए समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने के लिए यात्रा करना आसान नहीं था।
सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक पिछले दो [[दशक|दशकों]] से अपने '''ह्यूमैनिटी वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन कश्मीर''' और '''जेबा आपा स्कूल''' के जरिए [[कश्मीर]] के विशेष बच्चों को मुख्यधारा में शामिल करने का काम कर रहे हैं। वे ऐसे करीब 100 विशेष बच्चों को मुफ़्त शिक्षा और अन्य मदद दे रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने अनंतनाग और पुलवामा के 40 से अधिक गांवों के बच्चों के लिए परियोजनाओं को लागू किया है। उनके कार्यों को देखते हुए सरकार ने उन्हें [[पद्म श्री]] से सम्मानित किया है। आतंकवादियों की गोलियों का शिकार होने के बाद भी जावेद अहमद टाक के लिए समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने के लिए यात्रा करना आसान नहीं था।
==आतंकी हमला==
==आतंकी हमला==
कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबहाड़ा निवासी जावेद अहमद टाक के जीवन में एक ऐसा दुखद हादसा हुआ जिसने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी। 21-[[22 मार्च]], [[1997]] की मध्यरात्रि को वह अपनी बीमार मौसी के घर गए थे। वह उस समय ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन अचानक रात में वहां बंदूकधारी (आतंकवादी) आ गए और उनके मौसेरे भाई को अगवा करके ले जाने लगे। जावेद अहमद टाक ने उन्हें रोकने की कोशिश करने पर आतंकियों ने उन पर फायरिंग कर दी। जिसमें जावेद बुरी तरह घायल हो गए। आतंकवादियों को लगा कि वे मर चुके हैं। जब जावेद जी को होश आया तो उन्होंने देखा कि वह अस्पताल में है। लेकिन वह चल नहीं पा रहे थे। गोलियों से उनकी रीढ़ की हड्डी, लीवर, किडनी, गॉल ब्लैडर, सब कुछ घायल हो गया था।
कश्मीर के [[अनंतनाग ज़िला|अनंतनाग ज़िले]] के बिजबहाड़ा निवासी जावेद अहमद टाक के जीवन में एक ऐसा दु:खद हादसा हुआ जिसने उनकी पूरी ज़िदगी ही बदल कर रख दी। 21-[[22 मार्च]], [[1997]] की मध्यरात्रि को वह अपनी बीमार मौसी के घर गए थे। वह उस समय स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन अचानक रात में वहां बंदूकधारी (आतंकवादी) आ गए और उनके मौसेरे भाई को अगवा करके ले जाने लगे। जावेद अहमद टाक ने उन्हें रोकने की कोशिश करने पर आतंकियों ने उन पर फायरिंग कर दी। जिसमें जावेद बुरी तरह घायल हो गए। आतंकवादियों को लगा कि वे मर चुके हैं। जब जावेद जी को होश आया तो उन्होंने देखा कि वह अस्पताल में है लेकिन वह चल नहीं पा रहे थे। गोलियों से उनकी रीढ़ की हड्डी, लिवर, किडनी, गॉल ब्लैडर, सब कुछ घायल हो गया था।


तीन साल तक वह बिस्तर पर रहकर तनाव का शिकार हो गए। अपने साथ हुए दर्दनाक हादसे के बाद वह बुरी तरह टूट गए थे। उन्हें लगा कि अब उन्हें अपनी पूरी जिंदगी व्हीलचेयर के सहारे गुजारनी पड़ेगी, और वो कुछ नहीं कर पाएंगे, लेकिन उनकी जिंदगी में एक दिन ऐसा पल आया जिसने उनकी सोच को पूरी तरह से बदल दिया। एक दिन जब वह बिस्तर पर लेटे हुए अपने जीवन के बारे में सोच रहे थे। तभी उन्हें घर के बाहर कुछ बच्चों की आवाज सुनाई दी। जावेद अहमद टाक ने अपनी मां से बच्चों को बुलाकर लाने के लिए कहा। उन्होंने उन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उनका छोटा कमरा एक छोटे से स्कूल में बदल गया। जिससे उनका तनाव कम हो गया, और उन्होंने फैसला किया कि वह अब इसे अपना कॅरियर बनाएंगे। जिसके बाद उन्होंने इग्नू से ह्यूमन राइट्स (मानवाधिकार) एंड कंप्यूटिंग में दो डिस्टेंस एजुकेशन सर्टिफिकेट कोर्स भी किए। खुद एक शिकार होने के नाते, उन्होंने विकलांगों और आतंक पीड़ितों के दर्द को महसूस किया था।<ref name="pp"/>
तीन साल तक वह बिस्तर पर रहकर तनाव का शिकार हो गए। अपने साथ हुए दर्दनाक हादसे के बाद वह बुरी तरह टूट गए थे। उन्हें लगा कि अब उन्हें अपनी पूरी ज़िन्दगी व्हीलचेयर के सहारे गुजारनी पड़ेगी, और वो कुछ नहीं कर पाएंगे, लेकिन उनकी जिंदगी में एक दिन ऐसा पल आया जिसने उनकी सोच को पूरी तरह से बदल दिया। एक दिन जब वह बिस्तर पर लेटे हुए अपने जीवन के बारे में सोच रहे थे। तभी उन्हें घर के बाहर कुछ बच्चों की आवाज सुनाई दी। जावेद अहमद टाक ने अपनी मां से बच्चों को बुलाकर लाने के लिए कहा। उन्होंने उन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उनका छोटा कमरा एक छोटे से स्कूल में बदल गया। जिससे उनका तनाव कम हो गया, और उन्होंने फैसला किया कि वह अब इसे अपना कॅरियर बनाएंगे। जिसके बाद उन्होंने [[इग्नू]] से '''ह्यूमन राइट्स (मानवाधिकार) एंड कंप्यूटिंग''' में दो डिस्टेंस एजुकेशन सर्टिफिकेट कोर्स भी किए। खुद एक शिकार होने के नाते, उन्होंने विकलांगों और आतंक पीड़ितों के दर्द को महसूस किया था।<ref name="pp"/>
=='जेबा आपा संस्थान' की स्थापना==
=='जेबा आपा संस्थान' की स्थापना==
[[चित्र:Javed-Ahmad-Tak-1.jpg|thumb|250px|[[राष्ट्रपति]] [[रामनाथ कोविन्द]] से [[पद्म श्री]] प्राप्त करते हुए जावेद अहमद टाक]]
[[चित्र:Javed-Ahmad-Tak-1.jpg|thumb|250px|[[राष्ट्रपति]] [[रामनाथ कोविन्द]] से [[पद्म श्री]] प्राप्त करते हुए जावेद अहमद टाक]]
अपनी जिंदगी से हार मान चुके कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक ने बच्चों को शिक्षित करने में जीवन की एक नई रोशनी देखी। जिसके बाद उन्होंने दिव्यांग और आतंकी पीड़ितों की मदद को अपना मिशन और मकसद बना लिया। उन्होंने अनंतनाग में ही 'जेबा आपा संस्थान' की स्थापना की। इस स्कूल में आठवीं कक्षा तक के लगभग 100 विकलांग, मूक- बधिर, नेत्रहीन, गरीब और आतंक से पीड़ित बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यालय में नेत्रहीन बच्चों के लिए ‘[[ब्रेल लिपि]]’ में पढ़ने की सुविधा है। वे रोजगार अर्जित करने के लिए बच्चों को व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी प्रदान करते हैं। यहाँ मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए भी सुविधाएं हैं। जावेद अहमद टाक ने अपनी दादी के नाम पर इस स्कूल का नाम रखा। जेबा आपा ये उनकी दादी का नाम था।
अपनी जिंदगी से हार मान चुके कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक ने बच्चों को शिक्षित करने में जीवन की एक नई रोशनी देखी। जिसके बाद उन्होंने दिव्यांग और आतंकी पीड़ितों की मदद को अपना मिशन और मक़सद बना लिया। उन्होंने अनंतनाग में ही 'जेबा आपा संस्थान' की स्थापना की। इस स्कूल में आठवीं कक्षा तक के लगभग 100 विकलांग, मूक- बधिर, नेत्रहीन, ग़रीब और आतंक से पीड़ित बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यालय में नेत्रहीन बच्चों के लिए ‘[[ब्रेल लिपि]]’ में पढ़ने की सुविधा है। वे रोज़गार अर्जित करने के लिए बच्चों को व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी प्रदान करते हैं। यहाँ मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए भी सुविधाएं हैं। जावेद अहमद टाक ने अपनी दादी के नाम पर इस स्कूल का नाम रखा। '''जेबा आपा''' ये उनकी [[दादी]] का नाम था।
==सम्मान==
==सम्मान==
सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक की वीरता और जज्बे को देखते हुए [[भारत सरकार]] ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान [[पद्म श्री]] से सम्मानित किया। जावेद अहमद टाक ने न केवल बच्चों के जीवन को मजबूत किया है, बल्कि वह कई सामाजिक कार्यों में भी आगे आए हैं। जावेद अहमद टाक जी ने हाईकोर्ट में तीन जनहित याचिकाएं दाखिल की हैं, जिसके चलते सरकार को दिव्यांगों के लिए आरक्षण की सुविधा लागू करनी पड़ी है।
सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक की वीरता और जज़्बे को देखते हुए [[भारत सरकार]] ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान [[पद्म श्री]] से सम्मानित किया। जावेद अहमद टाक ने न केवल बच्चों के जीवन को मजबूत किया है, बल्कि वह कई सामाजिक कार्यों में भी आगे आए हैं। जावेद अहमद टाक जी ने हाईकोर्ट में तीन जनहित याचिकाएं दाखिल की हैं, जिसके चलते सरकार को दिव्यांगों के लिए आरक्षण की सुविधा लागू करनी पड़ी है।
==उपलब्धियां==
==उपलब्धियां==
#[[2004]] में जावेद को विकलांग व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
#[[2004]] में जावेद को विकलांग व्यक्तियों के कल्याण के लिए '''राष्ट्रीय पुरस्कार''' मिला।
#[[2005]] में रोटरी क्लब ऑफ इंडिया द्वारा रोटरी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
#[[2005]] में '''रोटरी क्लब ऑफ इंडिया''' द्वारा रोटरी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
#[[2006]] में जिला युवा पुरस्कार प्राप्त किया।
#[[2006]] में '''ज़िला युवा पुरस्कार''' प्राप्त किया।
#[[2008]] में उन्हें CNN-IBN7 नागरिक पत्रकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
#[[2008]] में उन्हें '''CNN-IBN7 नागरिक पत्रकार पुरस्कार''' से सम्मानित किया गया।
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08:04, 13 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण

जावेद अहमद टाक

जावेद अहमद टाक (अंग्रेज़ी: Javed Ahmad Tak) एक भारतीय समाज सेवक हैं। उन्हें आतंकियों ने गोलियों से भून दिया था, फिर भी हौसला नहीं तोड़ा, व्हीलचेयर के सहारे मानवता की नई मिसाल पेश करने वाले जावेद अहमद टाक को भारत सरकार ने साल 2020 में ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया है। कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी छोटी लगती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जम्मू-कश्मीर के रहने वाले जावेद अहमद टाक हैं, जिन्हें आतंकवादियों ने 1997 में गोलियों से छलनी कर दिया था, जिसके कारण वह विकलांग हो गए और उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा लेकिन इन सबके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और समाज सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ते गए।[1]

परिचय

सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक पिछले दो दशकों से अपने ह्यूमैनिटी वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन कश्मीर और जेबा आपा स्कूल के जरिए कश्मीर के विशेष बच्चों को मुख्यधारा में शामिल करने का काम कर रहे हैं। वे ऐसे करीब 100 विशेष बच्चों को मुफ़्त शिक्षा और अन्य मदद दे रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने अनंतनाग और पुलवामा के 40 से अधिक गांवों के बच्चों के लिए परियोजनाओं को लागू किया है। उनके कार्यों को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया है। आतंकवादियों की गोलियों का शिकार होने के बाद भी जावेद अहमद टाक के लिए समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने के लिए यात्रा करना आसान नहीं था।

आतंकी हमला

कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के बिजबहाड़ा निवासी जावेद अहमद टाक के जीवन में एक ऐसा दु:खद हादसा हुआ जिसने उनकी पूरी ज़िदगी ही बदल कर रख दी। 21-22 मार्च, 1997 की मध्यरात्रि को वह अपनी बीमार मौसी के घर गए थे। वह उस समय स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन अचानक रात में वहां बंदूकधारी (आतंकवादी) आ गए और उनके मौसेरे भाई को अगवा करके ले जाने लगे। जावेद अहमद टाक ने उन्हें रोकने की कोशिश करने पर आतंकियों ने उन पर फायरिंग कर दी। जिसमें जावेद बुरी तरह घायल हो गए। आतंकवादियों को लगा कि वे मर चुके हैं। जब जावेद जी को होश आया तो उन्होंने देखा कि वह अस्पताल में है लेकिन वह चल नहीं पा रहे थे। गोलियों से उनकी रीढ़ की हड्डी, लिवर, किडनी, गॉल ब्लैडर, सब कुछ घायल हो गया था।

तीन साल तक वह बिस्तर पर रहकर तनाव का शिकार हो गए। अपने साथ हुए दर्दनाक हादसे के बाद वह बुरी तरह टूट गए थे। उन्हें लगा कि अब उन्हें अपनी पूरी ज़िन्दगी व्हीलचेयर के सहारे गुजारनी पड़ेगी, और वो कुछ नहीं कर पाएंगे, लेकिन उनकी जिंदगी में एक दिन ऐसा पल आया जिसने उनकी सोच को पूरी तरह से बदल दिया। एक दिन जब वह बिस्तर पर लेटे हुए अपने जीवन के बारे में सोच रहे थे। तभी उन्हें घर के बाहर कुछ बच्चों की आवाज सुनाई दी। जावेद अहमद टाक ने अपनी मां से बच्चों को बुलाकर लाने के लिए कहा। उन्होंने उन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उनका छोटा कमरा एक छोटे से स्कूल में बदल गया। जिससे उनका तनाव कम हो गया, और उन्होंने फैसला किया कि वह अब इसे अपना कॅरियर बनाएंगे। जिसके बाद उन्होंने इग्नू से ह्यूमन राइट्स (मानवाधिकार) एंड कंप्यूटिंग में दो डिस्टेंस एजुकेशन सर्टिफिकेट कोर्स भी किए। खुद एक शिकार होने के नाते, उन्होंने विकलांगों और आतंक पीड़ितों के दर्द को महसूस किया था।[1]

'जेबा आपा संस्थान' की स्थापना

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से पद्म श्री प्राप्त करते हुए जावेद अहमद टाक

अपनी जिंदगी से हार मान चुके कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक ने बच्चों को शिक्षित करने में जीवन की एक नई रोशनी देखी। जिसके बाद उन्होंने दिव्यांग और आतंकी पीड़ितों की मदद को अपना मिशन और मक़सद बना लिया। उन्होंने अनंतनाग में ही 'जेबा आपा संस्थान' की स्थापना की। इस स्कूल में आठवीं कक्षा तक के लगभग 100 विकलांग, मूक- बधिर, नेत्रहीन, ग़रीब और आतंक से पीड़ित बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यालय में नेत्रहीन बच्चों के लिए ‘ब्रेल लिपि’ में पढ़ने की सुविधा है। वे रोज़गार अर्जित करने के लिए बच्चों को व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी प्रदान करते हैं। यहाँ मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए भी सुविधाएं हैं। जावेद अहमद टाक ने अपनी दादी के नाम पर इस स्कूल का नाम रखा। जेबा आपा ये उनकी दादी का नाम था।

सम्मान

सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक की वीरता और जज़्बे को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया। जावेद अहमद टाक ने न केवल बच्चों के जीवन को मजबूत किया है, बल्कि वह कई सामाजिक कार्यों में भी आगे आए हैं। जावेद अहमद टाक जी ने हाईकोर्ट में तीन जनहित याचिकाएं दाखिल की हैं, जिसके चलते सरकार को दिव्यांगों के लिए आरक्षण की सुविधा लागू करनी पड़ी है।

उपलब्धियां

  1. 2004 में जावेद को विकलांग व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
  2. 2005 में रोटरी क्लब ऑफ इंडिया द्वारा रोटरी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  3. 2006 में ज़िला युवा पुरस्कार प्राप्त किया।
  4. 2008 में उन्हें CNN-IBN7 नागरिक पत्रकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  5. 2020 में भारत सरकार से प्रतिष्ठित 'पद्म श्री पुरस्कार' प्राप्त किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक की जीवनी (हिंदी) ddeepak.in। अभिगमन तिथि: 10 नवंबर, 2021।

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