"जलियाँवाला बाग़": अवतरणों में अंतर

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'''जलियांवाला बाग़ / Jallianwala Bagh'''<br />
{{सूचना बक्सा पर्यटन
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|चित्र=Jallianwalah-Bagh-Amritsar-2.jpg
जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी ब्रिटिश शासन के [[जनरल डायर]] की कहानी कहता नजर आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। 13 अप्रैल 1919 की वह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है। 
|चित्र का नाम=जलियाँवाला बाग़ स्मारक, अमृतसर
==जलियांवाला बाग़ में सभा==  
|विवरण=जलियाँवाला बाग़ [[अमृतसर]] में स्थित एक ऐतिहासिक बाग़ है।
[[पंजाब]] के [[अमृतसर]] नगर में जलियांवाला बाग़ नामक स्थान पर अंग्रेजों की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को हुई । इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने 1920-22 के [[असहयोग आंदोलन]] की शुरुआत की। उस दिन [[वैशाखी]] का त्यौहार था । 1919 में भारत की ब्रिटिश सरकार ने [[रॉलेट एक्ट]] का शांतिपूर्वक विरोध करने पर जननेता पहले ही गिरफ्तार कर लिए थे । इस गिरफ्तारी की निंदा करने और पहले हुए गोली कांड की भर्त्सना करने के लिए जलियांवाला बाग़ में शांतिपूर्वक एक सभा आयोजित की गयी थी । 13 अप्रैल 1919 को तीसरे पहर दस हजार से भी ज्यादा निहत्थे स्त्री, पुरुष और बच्चे जनसभा करने पर प्रतिबंध होने के बावजूद  अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में विरोध सभा के लिए एकत्र हुए ।
|राज्य=[[पंजाब]]
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|ज़िला=[[अमृतसर ज़िला|अमृतसर]]
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|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=31.62053,74.88031&ll=31.622197,74.88071&spn=0.008533,0.013797&t=m&vpsrc=6&z=16&iwloc=near उत्तर- 31° 37' 13.91", पूर्व- 74° 52' 49.12"]
|मार्ग स्थिति=जलियाँवाला बाग़ अमृतसर रेलवे स्टेशन से लगभग 2 से 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
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|प्रसिद्धि=जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी [[ब्रिटिश शासन]] के [[जनरल डायर]] की कहानी कहता नज़र आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था।
|कब जाएँ=
|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज़, रेल, बस व कार
|हवाई अड्डा=श्री गुरु राम दास जी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, राजा सांसी हवाई अड्डा
|रेलवे स्टेशन=अमृतसर रेलवे स्टेशन
|बस अड्डा=अमृतसर बस अड्डा
|यातायात=टैक्सी, ऑटो रिक्शा, रिक्शा
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|कहाँ ठहरें=होटल, अतिथि ग्रह, धर्मशाला
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|संबंधित लेख=[[गुरुद्वारे अमृतसर]], [[खरउद्दीन मस्जिद अमृतसर|खरउद्दीन मस्जिद]], [[बाघा बॉर्डर अमृतसर|बाघा बॉर्डर]], [[हाथी गेट मंदिर अमृतसर|हाथी गेट मंदिर]], [[रणजीत सिंह संग्रहालय अमृतसर|रणजीत सिंह संग्रहालय]], [[अकाल तख्त अमृतसर|अकाल तख्त]]
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|अन्य जानकारी=जलियाँवाला बाग़ नामक स्थान पर [[13 अप्रैल]], [[1919]] ई. को [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी।
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}}'''जलियाँवाला बाग़''' [[अमृतसर]], [[पंजाब]] राज्य में स्थित है। इस स्थान पर [[13 अप्रैल]], [[1919]] ई. को [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी। इस हत्यारी सेना की टुकड़ी का नेतृत्व ब्रिटिश शासन के अत्याचारी [[जनरल डायर]] ने किया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नज़र आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। वह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।
==जनता का आक्रोश==
[[गांधी जी]] तथा कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रदेश पर प्रतिबंध लगे होने के कारण वहाँ की जनता में बड़ा आक्रोश व्याप्त था। यह आक्रोश उस समय और अधिक बढ़ गया, जब पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉक्टर सत्यपाल एवं [[सैफ़ुद्दीन किचलू]] को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ने बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में जनता ने एक शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला। पुलिस ने जुलूस को आगे बढ़ने से रोका और रोकने में सफल ना होने पर आगे बढ़ रही भीड़ पर गोलियाँ चला दी, जिसके परिणामस्वरूप दो लोग मारे गये। जुलूस ने उग्र रूप धारण कर लिया। सरकारी इमारतों को आग लगा दी गई और इसके साथ ही पांच [[अंग्रेज़]] भी जान से मार दिये गए। अमृतसर शहर की स्थिति से बौखला कर ब्रिटिश सरकार ने [[10 अप्रैल]], 1919 ई. को शहर का प्रशासन सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल डायर को सौंप दिया। उसने [[12 अप्रैल]] को कुछ गिरफ्तारियाँ भी कीं और कड़ी कार्रवाई करवायी।
====सभा का आयोजन====
1919 ई. में [[भारत]] की [[ब्रिटिश सरकार]] ने [[रॉलेट एक्ट]] का शांतिपूर्वक विरोध करने पर जननेताओं पहले ही गिरफ्तार कर लिया था। इस गिरफ्तारी की निंदा करने और पहले हुए गोली कांड की भर्त्सना करने के लिए 13 अप्रैल, 1919 ई. को बैशाखी के दिन शाम को क़रीब साढ़े चार बजे अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में 20,000 व्यक्ति इकट्ठे हुए थे। दूसरी ओर डायर ने उस दिन साढ़े नौ बजे सभा को अवैधानिक घोषित कर दिया था। सभा में डॉक्टर किचलू एवं सत्यपाल की रिहाई एवं रौलट एक्ट के विरोध में भाषणवाजी की जा रही थी।
==घटनाक्रम==
==घटनाक्रम==
वह रविवार का दिन था और आसपास के गांवों के अनेक किसान हिंदुओं तथा सिक्खों का उत्सव [[बैसाखी]]बनाने अमृतसर आए थे । यह बाग़ चारों ओर से घिरा हुआ था। अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था।  
वह [[रविवार]] का [[दिन]] था और आस-पास के गांवों के अनेक किसान [[हिंदु|हिंदुओं]] तथा [[सिक्ख|सिक्खों]] का उत्सव [[बैसाखी]] बनाने अमृतसर आए थे। यह बाग़ चारों ओर से घिरा हुआ था। अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था। जनरल डायर ने अपने सिपाहियों को बाग़ के एकमात्र तंग प्रवेश मार्ग पर तैनात किया था। बाग़ साथ-साथ सटी ईंटों की इमारतों के पिछवाड़े की दीवारों से तीन तरफ से घिरा था। डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियाँ चलाने का आदेश दिया और चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियाँ दाग़ दी गईं। जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए। इस हत्याकांड में हंसराज नाम के एक व्यक्ति ने डायर को सहयोग दिया था।
जनरल आर. ई. एच. डायर ने अपने सिपाहियों को बाग़ के एकमात्र तंग प्रवेशमार्ग पर तैनात किया था । बाग़ साथ- साथ सटी ईंटों की इमारतों के पिछवाड़े की दीवारों से तीन तरफ से घिरा था । डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियां दाग़ दी गई । जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए ।
====शहीदों के आँकड़े====
==शहीदों के आँकड़े==
सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 के लगभग घायल हुए, जिन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई। [[अमृतसर]] के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है। जलियाँवाला बाग़ में 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 200 लोगों के घायल, 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गयी थी, जिसमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग किशोर लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा भी था। अनाधिकारिक आँकड़ों में कहा जाता है कि 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 2000 से भी अधिक घायल हो गये थे।
सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 के लगभग घायल हुए, जिन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई । अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है। जलियांवाला बाग़ में 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 200 लोगों के घायल, 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गयी है जिसमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग किशोर लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा भी था। अनाधिकारिक आँकड़ों में कहा जाता है कि 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 2000 से भी अधिक घायल हो गये थे।
 
==जनरल  डायर का तर्क==
*दीनबन्धु एफ. एण्ड्रूज ने इस हत्याकांड को 'जानबूझकर की गई क्रूर हत्या कहा।' [[अमृतसर]] के इस नरसंहार को मांटेग्यू तक ने निवारक हत्या कहकर तीव्र आलोचना की। जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के समय [[पंजाब]] का लेफ्टिनेंट गर्वनर माइकल ओ. डायर था। उसने डायर के इस कृत्य के संदर्भ में कहा कि 'तुम्हारी कार्रवाई ठीक है, गवर्नर इसे स्वीकार करता है।'
जनरल डायर ने अपनी कार्यवाही को सही ठहराने के लिए तर्क दिये और कहा कि ‘नैतिक और दूरगामी प्रभाव’ के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए उन्होंने गोली चलवाई। डायर ने स्वीकार कर कहा कि अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती । निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेजी सेना तब तक गोली चलाती रही जब तक कि उनके पास गोलियां समाप्त नहीं हो गईं ।
==डायर का तर्क==
कांग्रेस की जांच कमेटी के अनुमान के अनुसार एक हजार से अधिक व्यक्ति वहीं मारे गए थे। सैकड़ों व्यक्ति ज़िंदा कुँए में कूद गये थे । गोलियां भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे । इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई किन्तु ‘ब्रिटिश हाउस आफ लाडर्स’ में जनरल डायर की प्रशंसा की गई
जनरल डायर ने अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए तर्क दिये और कहा कि- "नैतिक और दूरगामी प्रभाव के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए मैंने गोली चलवाई।" डायर ने स्वीकार कर कहा कि- "अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती।" निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेज़ी सेना तब तक गोली चलाती रही, जब तक कि उनके पास गोलियाँ समाप्त नहीं हो गईं। [[कांग्रेस]] की जांच कमेटी के अनुमान के अनुसार एक हज़ार से अधिक व्यक्ति वहीं मारे गए थे। सैकड़ों व्यक्ति ज़िंदा कुँए में कूद गये थे। गोलियाँ भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे। इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई, किन्तु 'ब्रिटिश हाउस ऑफ़ लाडर्स' में [[जनरल डायर]] की प्रशंसा की गई।
====महापुरुष कथन====
इस बर्बर हत्याकाण्ड के बाद [[15 अप्रैल]] को पंजाब के [[लाहौर]], गुजरांवाला, कसूर, शेखपुरा एवं वजीराबाद में 'मार्शल लॉ' लागू कर दिया गया, जिसमें लगभग 298 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर अनेक तरह की सजायें दी गयीं। भारतीय सदस्य शंकर नायर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में [[वायसराय]] की कार्यकारिणी परिषद से इस्तीफा दे दिया। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने क्षुब्ध होकर अपनी 'सर' की उपाधि वापस कर दी। साथ ही टैगोर ने कहा "समय आ गया है, जब सम्मान के तमगे अपमान के बेतुके संदर्भ में हमारे कलंक को सुस्पष्ठ कर देते हैं और जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मै सभी विशेष उपाधियों से रहित होकर अपने देशवाशियो के साथ खड़ा होना चाहता हूं।" इस काण्ड के बारे में थॉम्पसन एवं गैरट ने लिखा कि "अमृतसर दुघर्टना [[भारत]]-[[ब्रिटेन]] सम्बन्धों में युगान्तकारी घटना थी, जैसा कि [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 का विद्रोह]]"
==जांच आयोग का गठन==
==जांच आयोग का गठन==
पंजाब प्रांत के गवर्नर माइकेल ओ. डायर ने अमृतसर में हुए नरसंहार का समर्थन किया, उसे सही बताया और 15 अप्रैल को पूरे प्रांत में मार्शल लॉ लागू कर दिया, लेकिन वाइसरॉय चेम्सफ़ोर्ड ने इस कार्यवाही को ग़लत फ़ैसला बताया और  विदेश मंत्री एड्-विन मॉन्टेग्यू ने नरसंहार का पता चलने पर लॉर्ड हंटर की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी अलग जांच समिति गठित की । यद्यपि बाद में डायर को पद से हटा दिया गया, लेकिन ब्रिटेन में वह बहुतों के लिए विशेषकर कंज़रवेटिव पार्टी के लिए, वह नायक बनकर लौटे। उन्होंने डायर को रत्नजड़ित तलवार भेंट की, जिस पर लिखा था, ‘पंजाब का रक्षक’ और चंदा करके उसे दो हजार पौंड का इनाम दिया गया ।  
[[पंजाब]] प्रांत के गवर्नर माइकेल ओ. डायर ने अमृतसर में हुए नरसंहार का समर्थन किया, उसे सही बताया और [[15 अप्रैल]] को पूरे प्रांत में मार्शल लॉ लागू कर दिया, लेकिन वाइसरॉय चेम्सफ़ोर्ड ने इस कार्रवाई को ग़लत फ़ैसला बताया और  विदेश मंत्री एड्-विन मॉन्टेग्यू ने नरसंहार का पता चलने पर लॉर्ड हंटर की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी अलग जांच समिति गठित की। यद्यपि बाद में डायर को पद से हटा दिया गया, लेकिन ब्रिटेन में वह बहुतों के लिए विशेषकर कंज़रवेटिव पार्टी के लिए, वह नायक बनकर लौटे। उन्होंने डायर को रत्नजड़ित तलवार भेंट की, जिस पर लिखा था, 'पंजाब का रक्षक' और चंदा करके उसे दो हज़ार पौंड का इनाम दिया गया ।  
==रॉलेट एक्ट की प्रतिक्रिया==
==रॉलेट एक्ट की प्रतिक्रिया==
स्वतंत्रता संग्राम पर कई पुस्तकें लिख चुके 'प्रोफेसर चमन लाल' का कथन है कि ब्रिटिश शासन आज़ादी की लड़ाई में हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता को देखकर घबरा गया था। उन्होंने दोनों समुदायों में धर्म के आधार पर नफ़रत की दीवार खड़ी करने की कोशिशें कीं, लेकिन वे सफल नहीं हो पा रहे थे।
स्वतंत्रता संग्राम पर कई पुस्तकें लिख चुके 'प्रोफेसर चमन लाल' का कथन है कि ब्रिटिश शासन आज़ादी की लड़ाई में हिन्दुओं और [[मुसलमान|मुसलमानों]] की एकता को देखकर घबरा गया था। उन्होंने दोनों समुदायों में [[धर्म]] के आधार पर नफ़रत की दीवार खड़ी करने की कोशिशें कीं, लेकिन वे सफल नहीं हो पा रहे थे।
 
[[चित्र:Bullet-Holes-Jallianwalah-Bagh-Amritsar.jpg|गोली के निशान, जलियाँवाला बाग़, [[अमृतसर]]|thumb|200px|left]]
ब्रिटिश शासन ने जब [[रॉलेट एक्ट]] लागू किया तो पूरे देश में आज़ादी की लहर आई। पंजाब में इसका ज़्यादा असर था। रॉलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण तरीके से अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक जनसभा रखी गई, जिसे विफल करने के लिए ब्रिटिश शासन हिंसा पर उतर आया।
ब्रिटिश शासन ने जब [[रॉलेट एक्ट]] लागू किया तो पूरे देश में आज़ादी की लहर आई। पंजाब में इसका ज़्यादा असर था। रॉलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण तरीक़े से अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में एक जनसभा रखी गई, जिसे विफल करने के लिए ब्रिटिश शासन हिंसा पर उतर आया।
==हड़ताल और ब्रिटिश शासन==
==हड़ताल और ब्रिटिश शासन==
प्रो॰चमन लाल के अनुसार छह अप्रैल को पूरे पंजाब में हड़ताल रही और 10 अप्रैल 1919 को हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर बहुत बड़े स्तर पर [[रामनवमी]] के त्योहार का आयोजन किया। हिन्दू मुस्लिम एकता से [[पंजाब]] का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर घबरा गया। ब्रिटिश शासन ने 13 अप्रैल की जनसभा को विफल करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग किया। लोगों को ड़राने के लिए इस सभा से कुछ दिन पहले ही 22 देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
प्रो.चमन लाल के अनुसार छह अप्रैल को पूरे पंजाब में हड़ताल रही और 10 अप्रैल 1919 को हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर बहुत बड़े स्तर पर [[रामनवमी]] के त्योहार का आयोजन किया। हिन्दू मुस्लिम एकता से [[पंजाब]] का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर घबरा गया। ब्रिटिश शासन ने 13 अप्रैल की जनसभा को विफल करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग किया। लोगों को ड़राने के लिए इस सभा से कुछ दिन पहले ही 22 देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया गया था।


10 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश शासन ने दो बड़े नेताओं [[सत्यपाल|डॉ. सत्यपाल]] और [[सैफुद्दीन किचलू]] को वार्ता के लिए बुलवाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कालापानी की सजा दे दी गई। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर उप कमिश्नर से इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग की गई किन्तु ब्रिटिशों ने शांति से विरोध कर रही जनता पर गोलियाँ चलवा दीं जिससे तनाव और बढ़ गया। उस दिन बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशनों पर आगज़नी हुई। इस हिंसा में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हो गई। इसके बाद ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर गोलियाँ चलाते रहे जिससे लगभग 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हो गयी। अगले दो दिन अमृतसर शांत रहा किन्तु पंजाब के कई क्षेत्रों में हिंसा फैल गई। इसे दबाने के लिए ब्रिटिश शासन ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया।
[[10 अप्रैल]] 1919 को ब्रिटिश शासन ने दो बड़े नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को वार्ता के लिए बुलवाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कालापानी की सज़ा दे दी गई। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर उप कमिश्नर से इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग की गई किन्तु ब्रिटिशों ने शांति से विरोध कर रही जनता पर गोलियाँ चलवा दीं जिससे तनाव और बढ़ गया। उस दिन बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशनों पर आगज़नी हुई। इस हिंसा में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हो गई। इसके बाद ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर गोलियाँ चलाते रहे जिससे लगभग 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हो गयी। अगले दो दिन अमृतसर शांत रहा किन्तु पंजाब के कई क्षेत्रों में हिंसा फैल गई। इसे दबाने के लिए ब्रिटिश शासन ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया।
==गाँधी जी की गिरफ्तारी==
==गाँधी जी की गिरफ्तारी==
ब्रिटिश शासन ने जलियाँवाला बाग की जनसभा में भाग लेने जा रहे महात्मा गाँधी को भी 10 अप्रैल को पलवल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। अपने नेताओं की गिरफ्तारी से लोग भड़क गये और 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हजारों की संख्या में जलियाँवाला बाग पहुँचे। हिन्दू, सिख और मुसलमानों की एकता से अपने शासन को ख़तरे में देखकर ब्रिटिश शासन ने भारतीयों को सबक सिखाने के लिए यह सब किया। जलियाँवाला बाग में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं जो ब्रिटिश शासन के अत्याचार की कहानी कहते हैं।
ब्रिटिश शासन ने जलियाँवाला बाग़ की जनसभा में भाग लेने जा रहे [[महात्मा गाँधी]] को भी 10 अप्रैल को पलवल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। अपने नेताओं की गिरफ्तारी से लोग भड़क गये और 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हज़ारों की संख्या में जलियाँवाला बाग़ पहुँचे। हिन्दू, सिख और मुसलमानों की एकता से अपने शासन को ख़तरे में देखकर ब्रिटिश शासन ने भारतीयों को सबक सिखाने के लिए यह सब किया। जलियाँवाला बाग़ में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं जो ब्रिटिश शासन के अत्याचार की कहानी कहते हैं।
==जनसंहार की प्रतिक्रियाएं==
==जनसंहार की प्रतिक्रियाएं==
[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर]] ने इस हत्याकाण्ड के मुखर विरोध किया और विरोध स्वरूप अपनी 'नाइटहुड' की उपाधि को वापस कर दिया था। आजादी का सपना ऐसी भयावह घटना के बाद भी पस्त नहीं हुआ। इस घटना के बाद आजादी हासिल करने की इच्छा और जोर से उफन पड़ी। यद्यपि उन दिनों संचार के साधन कम थे, फिर भी यह समाचार पूरे देश में आग की तरह फैल गया। 'आजादी का सपना' पंजाब ही नहीं, पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा। उस दौरान हजारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग़ की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय [[स्वतंत्रता आंदोलन]] में सम्मिलित हो गया और इसी संहार की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप गांधी जी ने 1920 में [[असहयोग आंदोलन]] प्रारंभ किया।
[[चित्र:Jallianwalah-Bagh-Amritsar-1.jpg|thumb|250px|जलियाँवाला बाग़, [[अमृतसर]]]]
 
[[रबीन्द्रनाथ ठाकुर|गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर]] ने इस हत्याकाण्ड का मुखर विरोध किया और विरोध स्वरूप अपनी 'नाइटहुड' की उपाधि को वापस कर दिया था। आज़ादी का सपना ऐसी भयावह घटना के बाद भी पस्त नहीं हुआ। इस घटना के बाद आज़ादी हासिल करने की इच्छा और ज़ोर से उफन पड़ी। यद्यपि उन दिनों संचार के साधन कम थे, फिर भी यह समाचार पूरे देश में आग की तरह फैल गया। 'आज़ादी का सपना' पंजाब ही नहीं, पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा। उस दौरान हज़ारों भारतीयों ने जलियाँवाला बाग़ की [[मिट्टी]] से माथे पर [[तिलक (हिन्दू धर्म)|तिलक]] लगाकर देश को आज़ाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय [[स्वतंत्रता आंदोलन]] में सम्मिलित हो गया और इसी संहार की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप गांधी जी ने [[1920]] में [[असहयोग आंदोलन]] प्रारंभ किया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के समय [[अमर शहीद ऊधम सिंह|उधम सिंह]] जलियाँवाला बाग़ में थे। उधम सिंह को भी गोली लगी थी। उन्होंने इसका बदला लेने के लिए [[13 मार्च]] 1940 को  [[लंदन]] के कैक्सटन हॉल में बम विस्फोट किया। इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर को गोली से मार डाला। ऊधम सिंह को [[31 जुलाई]] [[1940]] को फाँसी दे दी गयी। गांधी जी और [[जवाहरलाल नेहरू]] ने ऊधम सिंह द्वारा की गई इस हत्या की निंदा की थी। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का 12 वर्ष की उम्र के [[भगत सिंह]] के बाल मन पर गहरा असर डाला और इसकी सूचना प्राप्त होते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियांवाला बाग़ पहुंच गए थे।
जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के समय [[अमर शहीद ऊधम सिंह|उधम सिंह]] जलियांवाला बाग़ में थे। उधम सिंह को भी गोली लगी थी। उन्होंने   इसका बदला लेने के लिए 13 मार्च 1940 को  लंदन के कैक्सटन हॉल में बम विस्फोट किया। इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर को गोली से मार डाला। ऊधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी दे दी गयी। गांधी जी और [[जवाहरलाल नेहरू]] ने ऊधम सिंह द्वारा की गई इस हत्या की निंदा की थी।
 
जलियांवाला बाग़ हत्याकांड का 12 वर्ष की उम्र के [[भगत सिंह]] के बाल मन पर गहरा असर डाला और इसकी सूचना प्राप्त होते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियांवाला बाग़ पहुंच गए थे।
 
==स्मारक==
==स्मारक==
आज़ादी के बाद अमेरिकी डिज़ाइनर बेंजामिन पोक ने जलियाँवाला बाग स्मारक का डिज़ाइन तैयार किया, जिसका उद्घाटन 13 अप्रैल 1961 को किया गया।
आज़ादी के बाद अमेरिकी डिज़ाइनर बेंजामिन पोक ने जलियाँवाला बाग़ स्मारक का डिज़ाइन तैयार किया, जिसका उद्घाटन [[13 अप्रैल]], [[1961]] को किया गया।
===बाहरी कड़ियाँ===
==वीथिका==
*[http://lachlan.bluehaze.com.au/churchill/amritsar.htm जलियाँवाला बाग पर विंस्टन चर्चिल का बयान]  
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चित्र:Amar-Jyoti-Jallianwalah-Bagh.jpg|अमर ज्योति, जलियाँवाला बाग़, [[अमृतसर]]
चित्र:Martyrs-Well-Jallianwalah-Bagh.jpg|शहीदी कुँआ, जलियाँवाला बाग़, [[अमृतसर]]
चित्र:Jallianwalah-Bagh-Amritsar.jpg|जलियाँवाला बाग़ स्मारक, [[अमृतसर]]
चित्र:Bullet-Holes-Jallianwalah-Bagh-Amritsar-1.jpg|गोली के निशान, जलियांवाला बाग़, अमृतसर
चित्र:Jallianwalah-Bagh-3.jpeg|जलियांवाला बाग़, अमृतसर
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://lachlan.bluehaze.com.au/churchill/amritsar.htm जलियाँवाला बाग़ पर विंस्टन चर्चिल का बयान]  
*[http://www.amritsar.com/Jallian%20Wala%20Bagh.shtml जलियाँवाला बाग/ Amritsar MassacreJallian Wala Bagh]  
*[http://www.amritsar.com/Jallian%20Wala%20Bagh.shtml जलियाँवाला बाग/ Amritsar MassacreJallian Wala Bagh]  
*[http://kabira.freeservers.com/jallianwallabagh.html जलियाँवाला बाग/ Jallianwala Bagh massacre]
*[http://kabira.freeservers.com/jallianwallabagh.html जलियाँवाला बाग/ Jallianwala Bagh massacre]
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==संबंधित लेख==
[[Category:अंग्रेजी शासन]]
{{पंजाब के पर्यटन स्थल}}{{पंजाब के ऐतिहासिक स्थान}}
[[Category:स्वतन्त्रता संग्राम 1857]]
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10:55, 21 मई 2022 के समय का अवतरण

जलियाँवाला बाग़
जलियाँवाला बाग़ स्मारक, अमृतसर
जलियाँवाला बाग़ स्मारक, अमृतसर
विवरण जलियाँवाला बाग़ अमृतसर में स्थित एक ऐतिहासिक बाग़ है।
राज्य पंजाब
ज़िला अमृतसर
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 31° 37' 13.91", पूर्व- 74° 52' 49.12"
मार्ग स्थिति जलियाँवाला बाग़ अमृतसर रेलवे स्टेशन से लगभग 2 से 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नज़र आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था।
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस व कार
हवाई अड्डा श्री गुरु राम दास जी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, राजा सांसी हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन अमृतसर रेलवे स्टेशन
बस अड्डा अमृतसर बस अड्डा
यातायात टैक्सी, ऑटो रिक्शा, रिक्शा
कहाँ ठहरें होटल, अतिथि ग्रह, धर्मशाला
एस.टी.डी. कोड 0183
ए.टी.एम लगभग सभी
गूगल मानचित्र
संबंधित लेख गुरुद्वारे अमृतसर, खरउद्दीन मस्जिद, बाघा बॉर्डर, हाथी गेट मंदिर, रणजीत सिंह संग्रहालय, अकाल तख्त


अन्य जानकारी जलियाँवाला बाग़ नामक स्थान पर 13 अप्रैल, 1919 ई. को अंग्रेज़ों की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी।
अद्यतन‎

जलियाँवाला बाग़ अमृतसर, पंजाब राज्य में स्थित है। इस स्थान पर 13 अप्रैल, 1919 ई. को अंग्रेज़ों की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी। इस हत्यारी सेना की टुकड़ी का नेतृत्व ब्रिटिश शासन के अत्याचारी जनरल डायर ने किया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नज़र आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। वह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।

जनता का आक्रोश

गांधी जी तथा कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रदेश पर प्रतिबंध लगे होने के कारण वहाँ की जनता में बड़ा आक्रोश व्याप्त था। यह आक्रोश उस समय और अधिक बढ़ गया, जब पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉक्टर सत्यपाल एवं सैफ़ुद्दीन किचलू को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ने बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में जनता ने एक शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला। पुलिस ने जुलूस को आगे बढ़ने से रोका और रोकने में सफल ना होने पर आगे बढ़ रही भीड़ पर गोलियाँ चला दी, जिसके परिणामस्वरूप दो लोग मारे गये। जुलूस ने उग्र रूप धारण कर लिया। सरकारी इमारतों को आग लगा दी गई और इसके साथ ही पांच अंग्रेज़ भी जान से मार दिये गए। अमृतसर शहर की स्थिति से बौखला कर ब्रिटिश सरकार ने 10 अप्रैल, 1919 ई. को शहर का प्रशासन सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल डायर को सौंप दिया। उसने 12 अप्रैल को कुछ गिरफ्तारियाँ भी कीं और कड़ी कार्रवाई करवायी।

सभा का आयोजन

1919 ई. में भारत की ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट का शांतिपूर्वक विरोध करने पर जननेताओं पहले ही गिरफ्तार कर लिया था। इस गिरफ्तारी की निंदा करने और पहले हुए गोली कांड की भर्त्सना करने के लिए 13 अप्रैल, 1919 ई. को बैशाखी के दिन शाम को क़रीब साढ़े चार बजे अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन हुआ। इस सभा में 20,000 व्यक्ति इकट्ठे हुए थे। दूसरी ओर डायर ने उस दिन साढ़े नौ बजे सभा को अवैधानिक घोषित कर दिया था। सभा में डॉक्टर किचलू एवं सत्यपाल की रिहाई एवं रौलट एक्ट के विरोध में भाषणवाजी की जा रही थी।

घटनाक्रम

वह रविवार का दिन था और आस-पास के गांवों के अनेक किसान हिंदुओं तथा सिक्खों का उत्सव बैसाखी बनाने अमृतसर आए थे। यह बाग़ चारों ओर से घिरा हुआ था। अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था। जनरल डायर ने अपने सिपाहियों को बाग़ के एकमात्र तंग प्रवेश मार्ग पर तैनात किया था। बाग़ साथ-साथ सटी ईंटों की इमारतों के पिछवाड़े की दीवारों से तीन तरफ से घिरा था। डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियाँ चलाने का आदेश दिया और चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियाँ दाग़ दी गईं। जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए। इस हत्याकांड में हंसराज नाम के एक व्यक्ति ने डायर को सहयोग दिया था।

शहीदों के आँकड़े

सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 के लगभग घायल हुए, जिन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है। जलियाँवाला बाग़ में 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 200 लोगों के घायल, 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गयी थी, जिसमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग किशोर लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा भी था। अनाधिकारिक आँकड़ों में कहा जाता है कि 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 2000 से भी अधिक घायल हो गये थे।

  • दीनबन्धु एफ. एण्ड्रूज ने इस हत्याकांड को 'जानबूझकर की गई क्रूर हत्या कहा।' अमृतसर के इस नरसंहार को मांटेग्यू तक ने निवारक हत्या कहकर तीव्र आलोचना की। जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गर्वनर माइकल ओ. डायर था। उसने डायर के इस कृत्य के संदर्भ में कहा कि 'तुम्हारी कार्रवाई ठीक है, गवर्नर इसे स्वीकार करता है।'

डायर का तर्क

जनरल डायर ने अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए तर्क दिये और कहा कि- "नैतिक और दूरगामी प्रभाव के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए मैंने गोली चलवाई।" डायर ने स्वीकार कर कहा कि- "अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती।" निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेज़ी सेना तब तक गोली चलाती रही, जब तक कि उनके पास गोलियाँ समाप्त नहीं हो गईं। कांग्रेस की जांच कमेटी के अनुमान के अनुसार एक हज़ार से अधिक व्यक्ति वहीं मारे गए थे। सैकड़ों व्यक्ति ज़िंदा कुँए में कूद गये थे। गोलियाँ भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे। इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई, किन्तु 'ब्रिटिश हाउस ऑफ़ लाडर्स' में जनरल डायर की प्रशंसा की गई।

महापुरुष कथन

इस बर्बर हत्याकाण्ड के बाद 15 अप्रैल को पंजाब के लाहौर, गुजरांवाला, कसूर, शेखपुरा एवं वजीराबाद में 'मार्शल लॉ' लागू कर दिया गया, जिसमें लगभग 298 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर अनेक तरह की सजायें दी गयीं। भारतीय सदस्य शंकर नायर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद से इस्तीफा दे दिया। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने क्षुब्ध होकर अपनी 'सर' की उपाधि वापस कर दी। साथ ही टैगोर ने कहा "समय आ गया है, जब सम्मान के तमगे अपमान के बेतुके संदर्भ में हमारे कलंक को सुस्पष्ठ कर देते हैं और जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मै सभी विशेष उपाधियों से रहित होकर अपने देशवाशियो के साथ खड़ा होना चाहता हूं।" इस काण्ड के बारे में थॉम्पसन एवं गैरट ने लिखा कि "अमृतसर दुघर्टना भारत-ब्रिटेन सम्बन्धों में युगान्तकारी घटना थी, जैसा कि 1857 का विद्रोह।"

जांच आयोग का गठन

पंजाब प्रांत के गवर्नर माइकेल ओ. डायर ने अमृतसर में हुए नरसंहार का समर्थन किया, उसे सही बताया और 15 अप्रैल को पूरे प्रांत में मार्शल लॉ लागू कर दिया, लेकिन वाइसरॉय चेम्सफ़ोर्ड ने इस कार्रवाई को ग़लत फ़ैसला बताया और विदेश मंत्री एड्-विन मॉन्टेग्यू ने नरसंहार का पता चलने पर लॉर्ड हंटर की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी अलग जांच समिति गठित की। यद्यपि बाद में डायर को पद से हटा दिया गया, लेकिन ब्रिटेन में वह बहुतों के लिए विशेषकर कंज़रवेटिव पार्टी के लिए, वह नायक बनकर लौटे। उन्होंने डायर को रत्नजड़ित तलवार भेंट की, जिस पर लिखा था, 'पंजाब का रक्षक' और चंदा करके उसे दो हज़ार पौंड का इनाम दिया गया ।

रॉलेट एक्ट की प्रतिक्रिया

स्वतंत्रता संग्राम पर कई पुस्तकें लिख चुके 'प्रोफेसर चमन लाल' का कथन है कि ब्रिटिश शासन आज़ादी की लड़ाई में हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता को देखकर घबरा गया था। उन्होंने दोनों समुदायों में धर्म के आधार पर नफ़रत की दीवार खड़ी करने की कोशिशें कीं, लेकिन वे सफल नहीं हो पा रहे थे।

गोली के निशान, जलियाँवाला बाग़, अमृतसर

ब्रिटिश शासन ने जब रॉलेट एक्ट लागू किया तो पूरे देश में आज़ादी की लहर आई। पंजाब में इसका ज़्यादा असर था। रॉलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण तरीक़े से अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में एक जनसभा रखी गई, जिसे विफल करने के लिए ब्रिटिश शासन हिंसा पर उतर आया।

हड़ताल और ब्रिटिश शासन

प्रो.चमन लाल के अनुसार छह अप्रैल को पूरे पंजाब में हड़ताल रही और 10 अप्रैल 1919 को हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर बहुत बड़े स्तर पर रामनवमी के त्योहार का आयोजन किया। हिन्दू मुस्लिम एकता से पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर घबरा गया। ब्रिटिश शासन ने 13 अप्रैल की जनसभा को विफल करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग किया। लोगों को ड़राने के लिए इस सभा से कुछ दिन पहले ही 22 देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

10 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश शासन ने दो बड़े नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को वार्ता के लिए बुलवाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कालापानी की सज़ा दे दी गई। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर उप कमिश्नर से इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग की गई किन्तु ब्रिटिशों ने शांति से विरोध कर रही जनता पर गोलियाँ चलवा दीं जिससे तनाव और बढ़ गया। उस दिन बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशनों पर आगज़नी हुई। इस हिंसा में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हो गई। इसके बाद ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर गोलियाँ चलाते रहे जिससे लगभग 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हो गयी। अगले दो दिन अमृतसर शांत रहा किन्तु पंजाब के कई क्षेत्रों में हिंसा फैल गई। इसे दबाने के लिए ब्रिटिश शासन ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया।

गाँधी जी की गिरफ्तारी

ब्रिटिश शासन ने जलियाँवाला बाग़ की जनसभा में भाग लेने जा रहे महात्मा गाँधी को भी 10 अप्रैल को पलवल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। अपने नेताओं की गिरफ्तारी से लोग भड़क गये और 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हज़ारों की संख्या में जलियाँवाला बाग़ पहुँचे। हिन्दू, सिख और मुसलमानों की एकता से अपने शासन को ख़तरे में देखकर ब्रिटिश शासन ने भारतीयों को सबक सिखाने के लिए यह सब किया। जलियाँवाला बाग़ में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं जो ब्रिटिश शासन के अत्याचार की कहानी कहते हैं।

जनसंहार की प्रतिक्रियाएं

जलियाँवाला बाग़, अमृतसर

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड का मुखर विरोध किया और विरोध स्वरूप अपनी 'नाइटहुड' की उपाधि को वापस कर दिया था। आज़ादी का सपना ऐसी भयावह घटना के बाद भी पस्त नहीं हुआ। इस घटना के बाद आज़ादी हासिल करने की इच्छा और ज़ोर से उफन पड़ी। यद्यपि उन दिनों संचार के साधन कम थे, फिर भी यह समाचार पूरे देश में आग की तरह फैल गया। 'आज़ादी का सपना' पंजाब ही नहीं, पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा। उस दौरान हज़ारों भारतीयों ने जलियाँवाला बाग़ की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर देश को आज़ाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया और इसी संहार की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप गांधी जी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के समय उधम सिंह जलियाँवाला बाग़ में थे। उधम सिंह को भी गोली लगी थी। उन्होंने इसका बदला लेने के लिए 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में बम विस्फोट किया। इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर को गोली से मार डाला। ऊधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी दे दी गयी। गांधी जी और जवाहरलाल नेहरू ने ऊधम सिंह द्वारा की गई इस हत्या की निंदा की थी। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह के बाल मन पर गहरा असर डाला और इसकी सूचना प्राप्त होते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियांवाला बाग़ पहुंच गए थे।

स्मारक

आज़ादी के बाद अमेरिकी डिज़ाइनर बेंजामिन पोक ने जलियाँवाला बाग़ स्मारक का डिज़ाइन तैयार किया, जिसका उद्घाटन 13 अप्रैल, 1961 को किया गया।

वीथिका

बाहरी कड़ियाँ

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