"रवीन्द्र केलकर": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
[[राम मनोहर लोहिया]] से मिलने के बाद रवीन्द्र केलकर ने जाना कि जनता को जगाने के लिए अपनी मातृभाषा को माध्यम बनाकर कैसे लड़ा जा सकता है। बाद में वे मुंबई से [[वर्धा]] चले आएं। छह साल तक वर्धा में रहते हुए एक [[पत्रिका]] का संपादन किया। [[1949]] में [[दिल्ली]] के गांधी स्मारक संग्रहालय में लाइब्रेरियन के रूप में काम करने लगे। देश आजाद हो चुका था, लेकिन [[गोवा]] पर अभी भी [[पुर्तगाली]] आधिपत्य था। रवींद्र केलकर ने एक साल में ही दिल्ली की नौकरी छोड़ दी और चले पड़े गोवा को आज़ाद कराने। | [[राम मनोहर लोहिया]] से मिलने के बाद रवीन्द्र केलकर ने जाना कि जनता को जगाने के लिए अपनी मातृभाषा को माध्यम बनाकर कैसे लड़ा जा सकता है। बाद में वे मुंबई से [[वर्धा]] चले आएं। छह साल तक वर्धा में रहते हुए एक [[पत्रिका]] का संपादन किया। [[1949]] में [[दिल्ली]] के गांधी स्मारक संग्रहालय में लाइब्रेरियन के रूप में काम करने लगे। देश आजाद हो चुका था, लेकिन [[गोवा]] पर अभी भी [[पुर्तगाली]] आधिपत्य था। रवींद्र केलकर ने एक साल में ही दिल्ली की नौकरी छोड़ दी और चले पड़े गोवा को आज़ाद कराने। | ||
==गोवा की आज़ादी== | ==गोवा की आज़ादी== | ||
गोवा पहुंचकर उन्होंने गांधीवादी अहिंसक रास्ते से गोवा की मुक्ति के लिए संघर्ष आरंभ किया। उन्होंने जन जागरण के लिए [[हिंदी]], [[मराठी]] और [[कोंकणी]] में लेख लिखें। मुंबई से उन्होंने ‘गोमांतभारती’ साप्ताहिक पत्रिका निकाली, जो रोमन लिपि में कोंकणी में प्रकाशित होती थी। [[1961]] में [[भारतीय सेना]] ने गोवा को आजाद करा लिया। इसके बाद उन्होंने कोंकणी भाषा और गोवा को [[महाराष्ट्र]] से अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। उनके आंदोलन का ही परिणाम था कि [[भारत सरकार]] ने गोवा को महाराष्ट्र में शामिल करने के बजाय केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया। | गोवा पहुंचकर उन्होंने गांधीवादी अहिंसक रास्ते से गोवा की मुक्ति के लिए संघर्ष आरंभ किया। उन्होंने जन जागरण के लिए [[हिंदी]], [[मराठी]] और [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]] में लेख लिखें। मुंबई से उन्होंने ‘गोमांतभारती’ साप्ताहिक पत्रिका निकाली, जो रोमन लिपि में कोंकणी में प्रकाशित होती थी। [[1961]] में [[भारतीय सेना]] ने गोवा को आजाद करा लिया। इसके बाद उन्होंने कोंकणी भाषा और गोवा को [[महाराष्ट्र]] से अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। उनके आंदोलन का ही परिणाम था कि [[भारत सरकार]] ने गोवा को महाराष्ट्र में शामिल करने के बजाय केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया। | ||
==पूर्ण राज्य के लिए आंदोलन== | ==पूर्ण राज्य के लिए आंदोलन== | ||
कोंकणी भाषा को [[संविधान]] की आठवीं अनुसूची में शामिल करने और गोवा को पूर्ण राज्य बनाने के लिए रवीन्द्र केलकर का संघर्ष और योगदान अप्रतिम है। [[1962]] में प्रकाशित उनकी ‘आमची भास कोंकणिच’ पुस्तक से उन्होंने लोगों से कोंकणी भाषा की अस्मिता के लिए आह्वान किया। ‘कोंकणी साहित्य की ग्रंथसूची’ को कोंकणी, हिंदी और [[कन्नड़]] में प्रस्तुत कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कोंकणी का महत्व स्वीकारा जाना चाहिए। उन्हीं के संघर्षों के फलस्वरूप [[1975]] में साहित्य अकादेमी ने कोंकणी को स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दी। [[1987]] में जब [[गोवा]] को पृथक राज्य घोषित किया गया तो राज्य विधानसभा ने कोंकणी को राज्य की आधिकारिक भाषा स्वीकार किया। यही नहीं, उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप [[1992]] में कोंकणी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।<ref name="pp"/> | कोंकणी भाषा को [[संविधान]] की आठवीं अनुसूची में शामिल करने और गोवा को पूर्ण राज्य बनाने के लिए रवीन्द्र केलकर का संघर्ष और योगदान अप्रतिम है। [[1962]] में प्रकाशित उनकी ‘आमची भास कोंकणिच’ पुस्तक से उन्होंने लोगों से कोंकणी भाषा की अस्मिता के लिए आह्वान किया। ‘कोंकणी साहित्य की ग्रंथसूची’ को कोंकणी, हिंदी और [[कन्नड़]] में प्रस्तुत कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कोंकणी का महत्व स्वीकारा जाना चाहिए। उन्हीं के संघर्षों के फलस्वरूप [[1975]] में साहित्य अकादेमी ने कोंकणी को स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दी। [[1987]] में जब [[गोवा]] को पृथक राज्य घोषित किया गया तो राज्य विधानसभा ने कोंकणी को राज्य की आधिकारिक भाषा स्वीकार किया। यही नहीं, उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप [[1992]] में कोंकणी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।<ref name="pp"/> | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 48: | ||
*साल [[2007]] में उन्हें जीवनपर्यंत [[साहित्य]] सेवा के लिए साहित्य अकादमी का फैलो चुना गया। | *साल [[2007]] में उन्हें जीवनपर्यंत [[साहित्य]] सेवा के लिए साहित्य अकादमी का फैलो चुना गया। | ||
*रवीन्द्र केलकर को [[2008]] में [[पद्म भूषण]] से नवाजा गया। | *रवीन्द्र केलकर को [[2008]] में [[पद्म भूषण]] से नवाजा गया। | ||
==मृत्यु== | |||
रवीन्द्र केलकर की मृत्यु [[27 अगस्त]], [[2010]] को हुई। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
10:23, 27 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण
रवीन्द्र केलकर
| |
पूरा नाम | रवीन्द्र केलकर |
जन्म | 7 मार्च, 1925 |
जन्म भूमि | कोकुलिम, दक्षिण गोवा |
मृत्यु | 27 अगस्त, 2010 |
मृत्यु स्थान | मडगांव, गोवा |
अभिभावक | पिता- डॉ. राजाराम केलकर |
पति/पत्नी | गोदुबाई केलकर |
संतान | एक |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कोंकणी, हिन्दी, मराठी व गुजराती साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | गांधी -एक जीवनी (हिंदी); जपान जसा दिसला, गांधीजींच्या सहवासात (मराठी); हिमालयांत, मंगल प्रभात, आशे आशिल्ले गांधीजी, ब्रह्माण्डातले तांडव, महाभारत (भाषांतर), भाषेचे समाज शास्त्र (कोंकणी)। |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, 2008 |
प्रसिद्धि | कोंकणी साहित्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ‘कोंकणी साहित्य की ग्रंथसूची’ को कोंकणी, हिंदी और कन्नड़ में प्रस्तुत कर रवीन्द्र केलकर ने सिद्ध कर दिया था कि कोंकणी का महत्व स्वीकारा जाना चाहिए। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रवीन्द्र केलकर (अंग्रेज़ी: Ravindra Kelekar, जन्म- 7 मार्च, 1925; मृत्यु- 27 अगस्त, 2010) कोंकणी साहित्य के सबसे मजबूत स्तंभ थे। 'पद्म भूषण से सम्मानित रवीन्द्र केलकर ने अंग्रेज़ी, हिंदी, कोंकणी, मराठी और गुजराती भाषा में अनेक कृतियों की रचना की। इस महान हस्ती को वर्ष 2006 का 'ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। रवीन्द्र केलकर की प्रमुख रचनाओं में 'आमची भास कोंकणीच', 'बहुभाषिक भारतान्त भाषान्चे समाजशास्त्र' शामिल हैं। रवीन्द्र केलकर को 1977 में उनकी पुस्तक 'हिमालयवंत के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' भी मिला।
परिचय
रवींद्र केलकर का जन्म दक्षिण गोवा के कोकुलिम में डॉ. राजाराम केलकर के यहां 7 मार्च, सन 1925 को हुआ। पणजी में आरंभिक शिक्षा के दौरान ही रवींद्र केलकर 1946 में गोवा मुक्ति संग्राम से जुड़ गए। इस दौरान वे कई स्थानीय और राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में थे। शिक्षाविद, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण राव सरदेसाई ने उनके भीतर देशभक्ति को जगाया। उन्हीं दिनों स्वाधीनता सेनानियों ने एक सरकारी स्कूल को जला डाला था और इसमें रवीन्द्र केलकर की गिरफ्तारी हो सकती थी, इसलिए वो भागकर मुंबई आ गए। यहां वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं और गांधीजी के संपर्क में आए।[1]
राम मनोहर लोहिया का प्रभाव
राम मनोहर लोहिया से मिलने के बाद रवीन्द्र केलकर ने जाना कि जनता को जगाने के लिए अपनी मातृभाषा को माध्यम बनाकर कैसे लड़ा जा सकता है। बाद में वे मुंबई से वर्धा चले आएं। छह साल तक वर्धा में रहते हुए एक पत्रिका का संपादन किया। 1949 में दिल्ली के गांधी स्मारक संग्रहालय में लाइब्रेरियन के रूप में काम करने लगे। देश आजाद हो चुका था, लेकिन गोवा पर अभी भी पुर्तगाली आधिपत्य था। रवींद्र केलकर ने एक साल में ही दिल्ली की नौकरी छोड़ दी और चले पड़े गोवा को आज़ाद कराने।
गोवा की आज़ादी
गोवा पहुंचकर उन्होंने गांधीवादी अहिंसक रास्ते से गोवा की मुक्ति के लिए संघर्ष आरंभ किया। उन्होंने जन जागरण के लिए हिंदी, मराठी और कोंकणी में लेख लिखें। मुंबई से उन्होंने ‘गोमांतभारती’ साप्ताहिक पत्रिका निकाली, जो रोमन लिपि में कोंकणी में प्रकाशित होती थी। 1961 में भारतीय सेना ने गोवा को आजाद करा लिया। इसके बाद उन्होंने कोंकणी भाषा और गोवा को महाराष्ट्र से अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। उनके आंदोलन का ही परिणाम था कि भारत सरकार ने गोवा को महाराष्ट्र में शामिल करने के बजाय केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया।
पूर्ण राज्य के लिए आंदोलन
कोंकणी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने और गोवा को पूर्ण राज्य बनाने के लिए रवीन्द्र केलकर का संघर्ष और योगदान अप्रतिम है। 1962 में प्रकाशित उनकी ‘आमची भास कोंकणिच’ पुस्तक से उन्होंने लोगों से कोंकणी भाषा की अस्मिता के लिए आह्वान किया। ‘कोंकणी साहित्य की ग्रंथसूची’ को कोंकणी, हिंदी और कन्नड़ में प्रस्तुत कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि कोंकणी का महत्व स्वीकारा जाना चाहिए। उन्हीं के संघर्षों के फलस्वरूप 1975 में साहित्य अकादेमी ने कोंकणी को स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दी। 1987 में जब गोवा को पृथक राज्य घोषित किया गया तो राज्य विधानसभा ने कोंकणी को राज्य की आधिकारिक भाषा स्वीकार किया। यही नहीं, उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप 1992 में कोंकणी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।[1]
सम्मान और पुरस्कार
- रवींद्र केलकर संघर्षशील और जुझारू कलम के योद्धा थे। कोंकणी में उन्होंने महाभारत के दो खंडों का अनुवाद भी किया। उनके यात्रा संस्मरणों की पुस्तक ‘हिमालयांत’ को 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।
- गुजराती निबंधकार झवेरचंद मेघानी की पुस्तक का कोंकणी में अनुवाद करने के लिए उन्हें 1990 में दोबारा साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।
- उन्हें 2006 का ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला, ऐसा पहली बार हुआ था जब कोंकणी भाषा में लिखने वाले लेखक को यह सम्मान प्राप्त हुआ था। अस्वस्थता के कारण उन्हें यह सम्मान 2010 में दिया जा सका।
- साल 2007 में उन्हें जीवनपर्यंत साहित्य सेवा के लिए साहित्य अकादमी का फैलो चुना गया।
- रवीन्द्र केलकर को 2008 में पद्म भूषण से नवाजा गया।
मृत्यु
रवीन्द्र केलकर की मृत्यु 27 अगस्त, 2010 को हुई।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 शख्सियतः रविंद्र केलकर (हिंदी) jansatta.com। अभिगमन तिथि: 27 सितंबर, 2021।
संबंधित लेख