"पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी": अवतरणों में अंतर

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'''पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Padumlal Punnalal Bakshi'', जन्म- [[27 मई]], [[1894]] - मृत्यु- [[18 दिसंबर]], [[1971]]) [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] के कुशल संपादक, साहित्य वाचस्पति और मास्टरजी के नाम से प्रसिद्ध है। यह एक प्रसिद्ध निबंधकार हैं।
'''पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Padumlal Punnalal Bakshi'', जन्म- [[27 मई]], [[1894]] - मृत्यु- [[18 दिसंबर]], [[1971]]) [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] के कुशल संपादक, साहित्य वाचस्पति और मास्टर जी के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह एक प्रसिद्ध निबंधकार थे।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म [[27 मई]], [[1894]], [[राजनांदगाँव ज़िला|राजनांदगाँव]], [[छत्तीसगढ़]], [[भारत]] में हुआ था। इनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी 'खेरागढ़' के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी [[चंद्रकांता संतति|चंद्रकांता संतति उपन्यास]] के प्रति विशेष आसक्ति के कारण स्कूल से भाग खड़े हुए तथा हेडमास्टर पंडित रविशंकर शुक्ल ([[मध्य प्रदेश]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]]) द्वारा जमकर बेतों से पीटे गये। 14वीं शताब्दी में बख्शी जी के पूर्वज श्री लक्ष्मीनिधि राजा के साथ मण्डला से खैरागढ़ में आये थे और तब से यहीं बस गये। बख्शी के पूर्वज फतेह सिंह और उनके पुत्र श्रीमान राजा उमराव सिंह दोनों के शासनकाल में श्री उमराव बख्शी राजकवि थे।  
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म [[27 मई]], [[1894]], [[राजनांदगांव]], [[छत्तीसगढ़]], [[भारत]] में हुआ था। इनके [[पिता]] श्री पुन्नालाल बख्शी 'खेरागढ़' के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी [[चंद्रकांता संतति|चंद्रकांता संतति उपन्यास]] के प्रति विशेष आसक्ति के कारण स्कूल से भाग खड़े हुए तथा हेडमास्टर [[रविशंकर शुक्ल|पंडित रविशंकर शुक्ल]] ([[मध्य प्रदेश]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]]) द्वारा जमकर बेतों से पीटे गये। 14वीं शताब्दी में बख्शी जी के पूर्वज श्री लक्ष्मीनिधि राजा के साथ मण्डला से [[खैरागढ़]] में आये थे और तब से यहीं बस गये। बख्शी के पूर्वज फतेह सिंह और उनके पुत्र श्रीमान राजा उमराव सिंह दोनों के शासनकाल में श्री उमराव बख्शी राजकवि थे।  
====शिक्षा====
====शिक्षा====
पदुमलाल बख्शी की प्रायमरी की शिक्षा खैरागढ़ में ही हुई । 1911 में यह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में बैठे । हेडमास्टर एन.ए. गुलामअली के निर्देशन पर उनके नाम के साथ उनके पिता का नाम पुन्नालाल लिखा गया। तब से यह अपना पूरा नाम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी लिखने लगे । मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में यह अनुत्तीर्ण हो गये । उसी वर्ष 1911 में इन्होंने साहित्य जगत में प्रवेश किया । 1912 में इन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की । उच्च शिक्षा के लिए इन्होंने [[बनारस]] के सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया ।  1916  में ही इनकी नियुक्ति स्टेट हाई स्कूल राजनाँदगाँव में संस्कृत अध्यापक के पद पर हुई।  
पदुमलाल बख्शी की प्राइमरी की शिक्षा खैरागढ़ में ही हुई । 1911 में यह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में बैठे । हेडमास्टर एन.ए. ग़ुलामअली के निर्देशन पर उनके नाम के साथ उनके पिता का नाम पुन्नालाल लिखा गया। तब से यह अपना पूरा नाम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी लिखने लगे । मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में यह अनुत्तीर्ण हो गये । उसी वर्ष 1911 में इन्होंने साहित्य जगत् में प्रवेश किया । 1912 में इन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की । उच्च शिक्षा के लिए इन्होंने [[बनारस]] के सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया ।  1916  में ही इनकी नियुक्ति स्टेट हाई स्कूल राजनाँदगाँव में संस्कृत अध्यापक के पद पर हुई।
====विवाह====
====विवाह====
सन् [[1913]] में लक्ष्मी देवी के साथ उनका [[विवाह]] हो गया। [[1916]] में उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आये और सरस्वती में लिखना प्रारम्भ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है।
सन् [[1913]] में लक्ष्मी देवी के साथ उनका [[विवाह]] हो गया। [[1916]] में उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आये और सरस्वती में लिखना प्रारम्भ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है।
==कार्यक्षेत्र==
==कार्यक्षेत्र==
[[1911]] में [[जबलपुर]] से निकलने वाली ‘हितकारिणी’ में बख्शी की प्रथम कहानी ‘तारिणी’ प्रकाशित हो चुकी थी। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम 1916 से [[1919]] तक [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] शिक्षक के रूप में सेवा की।  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारम्भ कवि के रूप में किया था। 1916 ई. से लेकर लगभग [[1925]] ई. तक इनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। बाद में 'शतदल' नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्तविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली।  
[[1911]] में [[जबलपुर]] से निकलने वाली ‘हितकारिणी’ में बख्शी की प्रथम कहानी ‘तारिणी’ प्रकाशित हो चुकी थी। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम [[1916]] से [[1919]] तक [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] शिक्षक के रूप में सेवा की।  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारम्भ कवि के रूप में किया था। 1916 ई. से लेकर लगभग [[1925]] ई. तक इनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। बाद में 'शतदल' नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्तविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली।  
==सरस्वती पत्रिका के संपादक==
==सरस्वती पत्रिका के संपादक==
[[चित्र:Padum lal punnalal bakshi.jpeg|left|thumb|200px|पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]]
सन् [[1920]] में यह [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही [[1921]] में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने ([[1925]]) तक उस पद पर बने रहे। सन् [[1929]] से [[1949]] तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंगेज़ी शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे। कांकेर में भी कुछ समय तक उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया। तब ‘सरस्‍वती’ [[हिन्दी]] की एक मात्र ऐसी [[पत्रिका]] थी जो हिन्‍दी साहित्‍य की आमुख पत्रिका थी। [[हजारी प्रसाद द्विवेदी|आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]] के संपादन में प्रारंभ इस पत्रिका के संबंध में सभी विज्ञ पाठक जानते हैं। सन् 1920 में द्विवेदी जी ने पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी की संपादन क्षमता को नया आयाम देते हुए इन्‍हें ‘सरस्‍वती’ का सहा. संपादक नियुक्‍त किया। फिर 1921 में वे ‘सरस्‍वती’ के प्रधान संपादक बने,  यही वो समय था जब विषम परिस्थितियों में भी उन्‍होंने हिन्‍दी के स्‍तरीय साहित्‍य को संकलित कर ‘सरस्‍वती’ का प्रकाशन प्रारंभ रखा।<ref>{{cite web |url=http://aarambha.blogspot.in/2007/12/padumlal-pannalal-bakshi-khairagarh.html |title=डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=आरम्भ (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>
सन् [[1920]] में यह [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही [[1921]] में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने ([[1925]]) तक उस पद पर बने रहे। सन् [[1929]] से [[1949]] तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंगेज़ी शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे। कांकेर में भी कुछ समय तक उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया। तब ‘सरस्‍वती’ [[हिन्दी]] की एक मात्र ऐसी [[पत्रिका]] थी जो हिन्‍दी साहित्‍य की आमुख पत्रिका थी। [[हजारी प्रसाद द्विवेदी|आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]] के संपादन में प्रारंभ इस पत्रिका के संबंध में सभी विज्ञ पाठक जानते हैं। सन् 1920 में द्विवेदी जी ने पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी की संपादन क्षमता को नया आयाम देते हुए इन्‍हें ‘सरस्‍वती’ का सहा. संपादक नियुक्‍त किया। फिर 1921 में वे ‘सरस्‍वती’ के प्रधान संपादक बने,  यही वो समय था जब विषम परिस्थितियों में भी उन्‍होंने हिन्‍दी के स्‍तरीय साहित्‍य को संकलित कर ‘सरस्‍वती’ का प्रकाशन प्रारंभ रखा।<ref>{{cite web |url=http://aarambha.blogspot.in/2007/12/padumlal-pannalal-bakshi-khairagarh.html |title=डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=आरम्भ (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref>


==साहित्यिक परिचय==
==साहित्यिक परिचय==
साहित्य जगत में 'साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी' का प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि का व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्वपूर्ण भी। बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।  उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे। उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते। लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।<ref name="vaani"/>  
साहित्य जगत् में 'साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी' का प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि का व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण भी। बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।  उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे। उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते। लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।<ref name="vaani"/>  


आरम्भ में बख्शी जी की दो आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं-  
आरम्भ में बख्शी जी की दो आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं-  
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इन कृतियों में भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य सिद्धान्तों के सामंजस्य एवं विवेचन की चेष्टा की गयी है। 'विश्व साहित्य' में यूरोपीय साहित्य तथा पाश्चात्य काव्य मत पर कुछ फुटकर निबन्ध भी दिये गये हैं। इन पुस्तकों के अतिरिक्त बख्शी की दो अन्य आलोचनात्मक कृतियाँ बाद में प्रकाशित हुईं- 'हिन्दी कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में सामने आते हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विभिन्न विषयों पर उच्च कोटि के ललित निबन्ध लिखे हैं। इनके निबन्धों में नाटक की सी रमणीयता और कहानी जैसी रंजकता पायी जाती है। यत्र-तत्र शिष्ट तथा गम्भीर व्यंग्य-विनोद की अवतारणा करते चलना इनके शैलीकार की एक प्रमुख विशेषता है। उनका पहला निबंध ‘सोना निकालने वाली चींटियाँ’ सरस्वती में प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने [[1929]] से [[1934]] तक अनेक महत्त्वपूर्ण पाठ्यपुस्तकों यथा- पंचपात्र, विश्वसाहित्य, प्रदीप की रचना की। मास्टर जी की उल्लेखनीय सेवा को देखते हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन् [[1949]] में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से इनको अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे [[मध्य प्रदेश]] हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।
इन कृतियों में भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य सिद्धान्तों के सामंजस्य एवं विवेचन की चेष्टा की गयी है। 'विश्व साहित्य' में यूरोपीय साहित्य तथा पाश्चात्य काव्य मत पर कुछ फुटकर निबन्ध भी दिये गये हैं। इन पुस्तकों के अतिरिक्त बख्शी की दो अन्य आलोचनात्मक कृतियाँ बाद में प्रकाशित हुईं- 'हिन्दी कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में सामने आते हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विभिन्न विषयों पर उच्च कोटि के ललित निबन्ध लिखे हैं। इनके निबन्धों में नाटक की सी रमणीयता और कहानी जैसी रंजकता पायी जाती है। यत्र-तत्र शिष्ट तथा गम्भीर व्यंग्य-विनोद की अवतारणा करते चलना इनके शैलीकार की एक प्रमुख विशेषता है। उनका पहला निबंध ‘सोना निकालने वाली चींटियाँ’ सरस्वती में प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने [[1929]] से [[1934]] तक अनेक महत्त्वपूर्ण पाठ्यपुस्तकों यथा- पंचपात्र, विश्वसाहित्य, प्रदीप की रचना की। मास्टर जी की उल्लेखनीय सेवा को देखते हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन् [[1949]] में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से इनको अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे [[मध्य प्रदेश]] हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।
====प्रसिद्ध कृतियाँ====
====प्रसिद्ध कृतियाँ====
महाकौशल के रविवासरीय अंक का संपादन कार्य भी मास्टर जी ने [[1952]] से [[1956]] तक किया तथा [[1955]] से 1956 तक खैरागढ़ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया। तीसरी बार यह [[20 अगस्त]], [[1959]] में दिग्विजय कॉलेज राजनांदगाँव में हिन्दी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। इसी मध्य [[1949]] से [[1957]] के दरमियान ही मास्टरजी की महत्त्वपूर्ण संग्रह- कुछ, और कुछ, यात्री, हिन्दी कथा साहित्य, हिन्दी साहित्य विमर्श, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, कथानक आदि प्रकाशित हो चुके थे। [[1968]] का वर्ष उनके लिए अत्य़न्त महत्त्वपूर्ण रहा क्योंकि इसी बीच उनकी प्रमुख और प्रसिद्ध निबंध संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें हम-मेरी अपनी कथा, मेरा देश, मेरे प्रिय निबंध, वे दिन, समस्या और समाधान, नवरात्र, जिन्हें नहीं भूलूंगा, हिन्दी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा, अंतिम अध्याय को गिना सकते हैं ।
महाकौशल के रविवासरीय अंक का संपादन कार्य भी मास्टर जी ने [[1952]] से [[1956]] तक किया तथा [[1955]] से 1956 तक [[खैरागढ़]] में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया। तीसरी बार यह [[20 अगस्त]], [[1959]] में दिग्विजय कॉलेज [[राजनांदगांव]] में हिन्दी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। इसी मध्य [[1949]] से [[1957]] के दरमियान ही मास्टरजी की महत्त्वपूर्ण संग्रह- कुछ, और कुछ, यात्री, हिन्दी कथा साहित्य, हिन्दी साहित्य विमर्श, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, कथानक आदि प्रकाशित हो चुके थे। [[1968]] का वर्ष उनके लिए अत्य़न्त महत्त्वपूर्ण रहा क्योंकि इसी बीच उनकी प्रमुख और प्रसिद्ध निबंध संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें हम-मेरी अपनी कथा, मेरा देश, मेरे प्रिय निबंध, वे दिन, समस्या और समाधान, नवरात्र, जिन्हें नहीं भूलूंगा, हिन्दी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा, अंतिम अध्याय को गिना सकते हैं ।


बख्शी जी की एक पुस्तक 'यात्री' नाम से प्रकाशित हुई है। यह एक यात्रा वृत्तान्त है और इसमें 'अनन्त पथ की यात्रा' का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की सेवाएँ उल्लेखनीय हैं। इन्होंने [[1920]] ई. से [[1927]] ई. तक 'सरस्वती' का सम्पादन किया। कुछ वर्षों तक 'छाया' ([[इलाहाबाद]]) के भी सम्पादक रहे।  
बख्शी जी की एक पुस्तक 'यात्री' नाम से प्रकाशित हुई है। यह एक यात्रा वृत्तान्त है और इसमें 'अनन्त पथ की यात्रा' का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की सेवाएँ उल्लेखनीय हैं। इन्होंने [[1920]] ई. से [[1927]] ई. तक 'सरस्वती' का सम्पादन किया। कुछ वर्षों तक 'छाया' ([[इलाहाबाद]]) के भी सम्पादक रहे।  
====आचार्य द्विवेदी जी के उत्तराधिकारी====  
====आचार्य द्विवेदी जी के उत्तराधिकारी====  
1903 में [[महावीर प्रसाद द्विवेदी|आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी]] ने [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] का सम्पादकीय कार्य प्रारम्भ किया था। हिन्दी साहित्य के नन्दनवन को बनाने में [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]], [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] और अन्य प्रबुद्ध विद्वानों का अवदान व परिश्रम तथा जागरूक बुद्धिमत्ता का ही प्रतिफल है। उसी साहित्यिक नन्दनवन में द्विवेदी जी के स्नेह संरक्षण व कुशल मार्ग निर्देशन में बख्शी रूपी कल्पतरु का भी विकास हुआ जिनकी रचनाओं के सौरभ से हिन्दी साहित्य की मंजूषा सुरभित हुए बिना न रह सकी। यही कारण है कि बख्शी जी आचार्य द्विवेदी जी के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बख्शी जी ने अपनी साहित्यिक कृतियों का संस्थापन किया है। 'विश्व-साहित्य', 'हिन्दी साहित्य विमर्श', 'हिन्दी कथा-साहित्य','पचतंत्र', 'नवरात्र', 'समस्या और समाधान' , 'प्रदीप' आदि में इनके साहित्यिक निबन्धों की विशिष्ट मीमांसा है। बख्शी जी के निबन्धों में जीवन की छोटी-बड़ी अनेक घटनाओं के प्रसंग अतीत की स्मृति का सरस लेखा-जोखा करते हैं। इनके निबन्धों में विधवा-समस्या, गृह-जीवन में असंतोष आदि निबन्ध जीवन की सच्चाइयों को सरलता से प्रतिबिम्बित करते हैं। 'समाज सेवा' इनका प्रसिद्ध निबन्ध है।<ref name="vaani"/>
[[1903]] में [[महावीर प्रसाद द्विवेदी|आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी]] ने [[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]] का सम्पादकीय कार्य प्रारम्भ किया था। हिन्दी साहित्य के नन्दनवन को बनाने में [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]], [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] और अन्य प्रबुद्ध विद्वानों का अवदान व परिश्रम तथा जागरूक बुद्धिमत्ता का ही प्रतिफल है। उसी साहित्यिक नन्दनवन में द्विवेदी जी के स्नेह संरक्षण व कुशल मार्ग निर्देशन में बख्शी रूपी कल्पतरु का भी विकास हुआ जिनकी रचनाओं के सौरभ से हिन्दी साहित्य की मंजूषा सुरभित हुए बिना न रह सकी। यही कारण है कि बख्शी जी आचार्य द्विवेदी जी के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बख्शी जी ने अपनी साहित्यिक कृतियों का संस्थापन किया है। 'विश्व-साहित्य', 'हिन्दी साहित्य विमर्श', 'हिन्दी कथा-साहित्य','पचतंत्र', 'नवरात्र', 'समस्या और समाधान' , 'प्रदीप' आदि में इनके साहित्यिक निबन्धों की विशिष्ट मीमांसा है। बख्शी जी के निबन्धों में जीवन की छोटी-बड़ी अनेक घटनाओं के प्रसंग अतीत की स्मृति का सरस लेखा-जोखा करते हैं। इनके निबन्धों में विधवा-समस्या, गृह-जीवन में असंतोष आदि निबन्ध जीवन की सच्चाइयों को सरलता से प्रतिबिम्बित करते हैं। 'समाज सेवा' इनका प्रसिद्ध निबन्ध है।<ref name="vaani"/>
 
==बख्शी ग्रन्थावली==
==बक्शी ग्रन्थावली==
[[चित्र:Padumlal-Punnalal-Bakshi.gif|thumb|150px|बख्शी जी की जीवनी पर लिखी पुस्तक का आवरण पृष्ठ]]
[[चित्र:Padumlal-Punnalal-Bakshi.gif|thumb|150px|बख्शी जी की जीवनी पर लिखी पुस्तक का आवरण पृष्ठ]]
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की रचनाओं की ग्रन्थावली आठ खण्डों में विभक्त है जो निम्नवत है-
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की रचनाओं की ग्रन्थावली आठ खण्डों में विभक्त है जो निम्नवत है-
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==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
[[1969]] में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र (तत्कालीन मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा, उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता रहा जिसमें मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मध्य प्रदेश शासन आदि प्रमुख हैं। सन 1949  में उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मलेन द्वारा 'साहित्य वाचस्पति' से विभूषित किया गया ।  
[[1969]] में सागर विश्वविद्यालय से [[द्वारका प्रसाद मिश्र]] (तत्कालीन [[मुख्यमंत्री]]) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा, उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता रहा जिसमें मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मध्य प्रदेश शासन आदि प्रमुख हैं। सन 1949  में उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मलेन द्वारा 'साहित्य वाचस्पति' से विभूषित किया गया ।  
==मृत्यु==
==मृत्यु==
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की मृत्यु [[18 दिसम्बर]], [[1971]] को [[रायपुर]] के शासकीय डी. के. हॉस्पिटल में हो गई।  
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की मृत्यु [[18 दिसम्बर]], [[1971]] को [[रायपुर]] के शासकीय डी. के. हॉस्पिटल में हो गई।  
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*[http://books.google.co.in/books?id=ObFCT5_taSgC&pg=PA332&lpg=PA332&dq=padumlal+punnalal+bakshi&source=bl&ots=mVE_-BBVs2&sig=msPLsjkBjgfGkcc1cvHR5ZAreb0&hl=en&sa=X&ei=h4fJUJiVE4KzrAfJ1ICQCg&ved=0CEMQ6AEwBw#v=onepage&q=padumlal%20punnalal%20bakshi&f=false padumlal punnalal bakshi]
*[http://books.google.co.in/books?id=ObFCT5_taSgC&pg=PA332&lpg=PA332&dq=padumlal+punnalal+bakshi&source=bl&ots=mVE_-BBVs2&sig=msPLsjkBjgfGkcc1cvHR5ZAreb0&hl=en&sa=X&ei=h4fJUJiVE4KzrAfJ1ICQCg&ved=0CEMQ6AEwBw#v=onepage&q=padumlal%20punnalal%20bakshi&f=false padumlal punnalal bakshi]
*[http://www.hindibooks.org/general-reference-books/patrikarita-jansampark/padumlal-punnalal-bakshi PADUMLAL PUNNALAL BAKSHI]
*[http://www.hindibooks.org/general-reference-books/patrikarita-jansampark/padumlal-punnalal-bakshi PADUMLAL PUNNALAL BAKSHI]
==संबंधित लेख==
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पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
पूरा नाम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
जन्म 27 मई, 1894
जन्म भूमि राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
मृत्यु 18 दिसंबर, 1971
मृत्यु स्थान रायपुर, छत्तीसगढ़
अभिभावक पुन्नालाल बख्शी (पिता)
पति/पत्नी लक्ष्मी देवी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य
मुख्य रचनाएँ बख्शी ग्रन्थावली
भाषा हिंदी
विद्यालय सेंट्रल हिन्दू कॉलेज, बनारस
शिक्षा बी.ए.
पुरस्कार-उपाधि डी-लिट्, साहित्य वाचस्पति, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (अंग्रेज़ी: Padumlal Punnalal Bakshi, जन्म- 27 मई, 1894 - मृत्यु- 18 दिसंबर, 1971) सरस्वती के कुशल संपादक, साहित्य वाचस्पति और मास्टर जी के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह एक प्रसिद्ध निबंधकार थे।

जीवन परिचय

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म 27 मई, 1894, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़, भारत में हुआ था। इनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी 'खेरागढ़' के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी चंद्रकांता संतति उपन्यास के प्रति विशेष आसक्ति के कारण स्कूल से भाग खड़े हुए तथा हेडमास्टर पंडित रविशंकर शुक्ल (मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री) द्वारा जमकर बेतों से पीटे गये। 14वीं शताब्दी में बख्शी जी के पूर्वज श्री लक्ष्मीनिधि राजा के साथ मण्डला से खैरागढ़ में आये थे और तब से यहीं बस गये। बख्शी के पूर्वज फतेह सिंह और उनके पुत्र श्रीमान राजा उमराव सिंह दोनों के शासनकाल में श्री उमराव बख्शी राजकवि थे।

शिक्षा

पदुमलाल बख्शी की प्राइमरी की शिक्षा खैरागढ़ में ही हुई । 1911 में यह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में बैठे । हेडमास्टर एन.ए. ग़ुलामअली के निर्देशन पर उनके नाम के साथ उनके पिता का नाम पुन्नालाल लिखा गया। तब से यह अपना पूरा नाम पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी लिखने लगे । मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में यह अनुत्तीर्ण हो गये । उसी वर्ष 1911 में इन्होंने साहित्य जगत् में प्रवेश किया । 1912 में इन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की । उच्च शिक्षा के लिए इन्होंने बनारस के सेंट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया । 1916 में ही इनकी नियुक्ति स्टेट हाई स्कूल राजनाँदगाँव में संस्कृत अध्यापक के पद पर हुई।

विवाह

सन् 1913 में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। 1916 में उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आये और सरस्वती में लिखना प्रारम्भ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है।

कार्यक्षेत्र

1911 में जबलपुर से निकलने वाली ‘हितकारिणी’ में बख्शी की प्रथम कहानी ‘तारिणी’ प्रकाशित हो चुकी थी। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम 1916 से 1919 तक संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवा की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारम्भ कवि के रूप में किया था। 1916 ई. से लेकर लगभग 1925 ई. तक इनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। बाद में 'शतदल' नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्तविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली।

सरस्वती पत्रिका के संपादक

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

सन् 1920 में यह सरस्वती के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने (1925) तक उस पद पर बने रहे। सन् 1929 से 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंगेज़ी शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे। कांकेर में भी कुछ समय तक उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया। तब ‘सरस्‍वती’ हिन्दी की एक मात्र ऐसी पत्रिका थी जो हिन्‍दी साहित्‍य की आमुख पत्रिका थी। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के संपादन में प्रारंभ इस पत्रिका के संबंध में सभी विज्ञ पाठक जानते हैं। सन् 1920 में द्विवेदी जी ने पदुमलाल पन्‍नालाल बख्‍शी की संपादन क्षमता को नया आयाम देते हुए इन्‍हें ‘सरस्‍वती’ का सहा. संपादक नियुक्‍त किया। फिर 1921 में वे ‘सरस्‍वती’ के प्रधान संपादक बने, यही वो समय था जब विषम परिस्थितियों में भी उन्‍होंने हिन्‍दी के स्‍तरीय साहित्‍य को संकलित कर ‘सरस्‍वती’ का प्रकाशन प्रारंभ रखा।[1]

साहित्यिक परिचय

साहित्य जगत् में 'साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी' का प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि का व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण भी। बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं।  उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे। उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते। लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।[2]

आरम्भ में बख्शी जी की दो आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं-

  • 'हिन्दी साहित्य विमर्श' (1924 ई.)
  • 'विश्व साहित्य' (1924 ई.)।

इन कृतियों में भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य सिद्धान्तों के सामंजस्य एवं विवेचन की चेष्टा की गयी है। 'विश्व साहित्य' में यूरोपीय साहित्य तथा पाश्चात्य काव्य मत पर कुछ फुटकर निबन्ध भी दिये गये हैं। इन पुस्तकों के अतिरिक्त बख्शी की दो अन्य आलोचनात्मक कृतियाँ बाद में प्रकाशित हुईं- 'हिन्दी कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में सामने आते हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विभिन्न विषयों पर उच्च कोटि के ललित निबन्ध लिखे हैं। इनके निबन्धों में नाटक की सी रमणीयता और कहानी जैसी रंजकता पायी जाती है। यत्र-तत्र शिष्ट तथा गम्भीर व्यंग्य-विनोद की अवतारणा करते चलना इनके शैलीकार की एक प्रमुख विशेषता है। उनका पहला निबंध ‘सोना निकालने वाली चींटियाँ’ सरस्वती में प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने 1929 से 1934 तक अनेक महत्त्वपूर्ण पाठ्यपुस्तकों यथा- पंचपात्र, विश्वसाहित्य, प्रदीप की रचना की। मास्टर जी की उल्लेखनीय सेवा को देखते हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन् 1949 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से इनको अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।

प्रसिद्ध कृतियाँ

महाकौशल के रविवासरीय अंक का संपादन कार्य भी मास्टर जी ने 1952 से 1956 तक किया तथा 1955 से 1956 तक खैरागढ़ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया। तीसरी बार यह 20 अगस्त, 1959 में दिग्विजय कॉलेज राजनांदगांव में हिन्दी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। इसी मध्य 1949 से 1957 के दरमियान ही मास्टरजी की महत्त्वपूर्ण संग्रह- कुछ, और कुछ, यात्री, हिन्दी कथा साहित्य, हिन्दी साहित्य विमर्श, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, कथानक आदि प्रकाशित हो चुके थे। 1968 का वर्ष उनके लिए अत्य़न्त महत्त्वपूर्ण रहा क्योंकि इसी बीच उनकी प्रमुख और प्रसिद्ध निबंध संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें हम-मेरी अपनी कथा, मेरा देश, मेरे प्रिय निबंध, वे दिन, समस्या और समाधान, नवरात्र, जिन्हें नहीं भूलूंगा, हिन्दी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा, अंतिम अध्याय को गिना सकते हैं ।

बख्शी जी की एक पुस्तक 'यात्री' नाम से प्रकाशित हुई है। यह एक यात्रा वृत्तान्त है और इसमें 'अनन्त पथ की यात्रा' का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की सेवाएँ उल्लेखनीय हैं। इन्होंने 1920 ई. से 1927 ई. तक 'सरस्वती' का सम्पादन किया। कुछ वर्षों तक 'छाया' (इलाहाबाद) के भी सम्पादक रहे।

आचार्य द्विवेदी जी के उत्तराधिकारी

1903 में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती का सम्पादकीय कार्य प्रारम्भ किया था। हिन्दी साहित्य के नन्दनवन को बनाने में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और अन्य प्रबुद्ध विद्वानों का अवदान व परिश्रम तथा जागरूक बुद्धिमत्ता का ही प्रतिफल है। उसी साहित्यिक नन्दनवन में द्विवेदी जी के स्नेह संरक्षण व कुशल मार्ग निर्देशन में बख्शी रूपी कल्पतरु का भी विकास हुआ जिनकी रचनाओं के सौरभ से हिन्दी साहित्य की मंजूषा सुरभित हुए बिना न रह सकी। यही कारण है कि बख्शी जी आचार्य द्विवेदी जी के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बख्शी जी ने अपनी साहित्यिक कृतियों का संस्थापन किया है। 'विश्व-साहित्य', 'हिन्दी साहित्य विमर्श', 'हिन्दी कथा-साहित्य','पचतंत्र', 'नवरात्र', 'समस्या और समाधान' , 'प्रदीप' आदि में इनके साहित्यिक निबन्धों की विशिष्ट मीमांसा है। बख्शी जी के निबन्धों में जीवन की छोटी-बड़ी अनेक घटनाओं के प्रसंग अतीत की स्मृति का सरस लेखा-जोखा करते हैं। इनके निबन्धों में विधवा-समस्या, गृह-जीवन में असंतोष आदि निबन्ध जीवन की सच्चाइयों को सरलता से प्रतिबिम्बित करते हैं। 'समाज सेवा' इनका प्रसिद्ध निबन्ध है।[2]

बख्शी ग्रन्थावली

बख्शी जी की जीवनी पर लिखी पुस्तक का आवरण पृष्ठ

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की रचनाओं की ग्रन्थावली आठ खण्डों में विभक्त है जो निम्नवत है-

बक्शी ग्रन्थावली[2]
ग्रन्थावली एवं संक्षिप्त विवरण ISBN संख्या
बख्शी ग्रन्थावली-1 (कविताएँ, नाटक / एकांकी, उपन्यास) 81-8143-510-9
बख्शी ग्रन्थावली-2 (कथा साहित्य-बाल कथाएँ) 81-8143-511-07
बख्शी ग्रन्थावली-3 (समीक्षात्मक निबन्ध) 81-8143-512-05
बख्शी ग्रन्थावली-4 (साहित्यिक निबन्ध) 81-8143-513-03
बख्शी ग्रन्थावली-5 (साहित्यिक, सांस्कृतिक निबन्ध) 81-8143-514-01
बख्शी ग्रन्थावली-6 (संस्मरणात्मक निबन्ध) 81-8143-515-X
बख्शी ग्रन्थावली-7 (अन्य निबन्ध) 81-8143-516-08
बख्शी ग्रन्थावली-8 (अन्य निबन्ध, सम्पादकीय, डायरी) 81-8143-517-6

सम्मान और पुरस्कार

1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारका प्रसाद मिश्र (तत्कालीन मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा, उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता रहा जिसमें मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मध्य प्रदेश शासन आदि प्रमुख हैं। सन 1949 में उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मलेन द्वारा 'साहित्य वाचस्पति' से विभूषित किया गया ।

मृत्यु

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की मृत्यु 18 दिसम्बर, 1971 को रायपुर के शासकीय डी. के. हॉस्पिटल में हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) आरम्भ (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।
  2. 2.0 2.1 2.2 श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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