"गोदावरी नदी": अवतरणों में अंतर
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'''गोदावरी नदी / Godavari River'''< | {{सूचना बक्सा नदी | ||
|चित्र=Godavari-River.jpg | |||
|चित्र का नाम=गोदावरी घाट, [[नासिक]] | |||
|अन्य नाम= | |||
|देश=[[भारत]] | |||
|राज्य=[[महाराष्ट्र]], [[तेलंगाना]], [[छत्तीसगढ़]], [[आंध्र प्रदेश]] | |||
|प्रमुख नगर=[[नासिक]], [[नांदेड]], निज़ामाबाद, राजामुन्द्री | |||
|अपवाह= | |||
|उद्गम स्थल= | |||
|विसर्जन स्थल= | |||
|प्रवाह समय= | |||
|लम्बाई=1465 किमी (910 मील) | |||
|अधिकतम गहराई= | |||
|अधिकतम चौड़ाई= | |||
|इससे जुड़ी नहरें= | |||
|जलचर= | |||
|सहायक नदियाँ= | |||
|पौराणिक उल्लेख=[[वराह पुराण]]<ref>वराह पुराण, 71.37-44</ref> ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। | |||
|धार्मिक महत्त्व=गोदावरी नदी के तट पर ही [[त्र्यंबकेश्वर]], [[नासिक]], [[पैठण]] जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणीगंगा' भी कहते हैं। | |||
|ऐतिहासिक महत्त्व= | |||
|वर्तमान स्थिति= | |||
|गूगल मानचित्र=[https://www.google.com/maps/place/Godavari+River/@17.8916008,79.5375831,7.64z/data=!4m15!1m12!4m11!1m3!2m2!1d78.6626921!2d17.6207!1m6!1m2!1s0x3a32ca1b3fbcf36b:0x851fc2251af61352!2sGodavari+River!2m2!1d80.3490935!2d17.6965978!3m1!1s0x3a32ca1b3fbcf36b:0x851fc2251af61352?hl=en गोदावरी नदी] | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=[[कालिदास]] ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''गोदावरी नदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Godavari River'') [[भारत]] की प्रसिद्ध नदी है। यह नदी [[दक्षिण भारत]] में पश्चिमी घाट से लेकर पूर्वी घाट तक प्रवाहित होती है। नदी की लंबाई लगभग 900 मील {{मील|मील=900}} है। यह नदी [[नासिक]] त्रयंबक गाँव की पृष्ठवर्ती पहाड़ियों में स्थित एक बड़े जलागार से निकलती है। मुख्य रूप से नदी का बहाव दक्षिण-पूर्व की ओर है। ऊपरी हिस्से में नदी की चौड़ाई एक से दो मील तक है, जिसके बीच-बीच में बालू की भित्तिकाएँ हैं। [[समुद्र]] में मिलने से 60 मील {{मील|मील=60}} पहले ही नदी बहुत ही सँकरी उच्च दीवारों के बीच से बहती है। [[बंगाल की खाड़ी]] में दौलेश्वरम् के पास [[डेल्टा]] बनाती हुई यह नदी सात धाराओं के रूप में समुद्र में गिरती है। भारत की प्रायद्वीपीय नदियाँ- गोदावरी और कृष्णा, ये दोनों मिलकर 'कृष्णा-गोदावरी डेल्टा' का निर्माण करती हैं, जो सुन्दरबन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा डेल्टा है। इस डेल्टा को बहुधा 'केजी डेल्टा' भी कहा जाता है। | |||
==मुख्य धाराएँ== | |||
गोदावरी की सात शाखाएँ मानी गई हैं- | |||
#[[गौतमी नदी|गौतमी]] | |||
#[[वसिष्ठा]] | |||
#[[कौशिकी नदी|कौशिकी]] | |||
#[[आत्रेयी नदी|आत्रेयी]] | |||
#[[वृद्ध गौतमी]] | |||
#[[तुल्या नदी|तुल्या]] | |||
#[[भारद्वाजी नदी|भारद्वाजी]] | |||
====पौराणिक उल्लेख==== | |||
पुराणों में गोदावरी नदी का विवरण निम्न प्रकार प्राप्त होता है- | |||
*[[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]]<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 85, 43</ref> में सप्त गोदावरी का उल्लेख है- | |||
<blockquote>'सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियतो नियताशान:।'</blockquote> | |||
*[[ब्रह्मपुराण]] के 133वें अध्याय में तथा अन्यत्र भी गोदावरी (गौतमी) का उल्लेख है। | |||
*[[श्रीमद्भागवत]]<ref>[[श्रीमद्भागवत]] 5, 19, 18</ref> में गोदावरी की अन्य नदियों के साथ उल्लेख है- | |||
<blockquote>'कृष्णवेण्या भीमरथी गोदावरी निर्विन्ध्या’।'</blockquote> | |||
*[[विष्णुपुराण]]<ref>[[विष्णुपुराण]] 2, 3, 12</ref> में गोदावरी से सह्य पर्वत से निस्सृत माना है- | |||
<blockquote>'गोदावरी भीमरथी कृष्णवेण्यादिकास्तथा। सह्मपादोद्भवा नद्य: स्मृता: पापभयापहा:।'</blockquote> | |||
*महाभारत, [[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्मपर्व]]<ref>[[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्मपर्व]] 9, 14</ref> में गोदावरी का [[भारत]] की कई नदियों के साथ उल्लेख है- | |||
<blockquote>'गोदावरी नर्मदा च बाहुदां च महानदीम्।'</blockquote> | |||
*गोदावरी नदी को [[पांडव|पांडवों]] ने तीर्थयात्रा के प्रसंग में देखा था- | |||
<blockquote>'द्विजाति मुख्येषुधनं विसृज्य गोदावरी सागरगामगच्छत्।'<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 118, 3</ref></blockquote> | |||
*[[महाकवि कालिदास]] के '[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]'<ref>[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] 13, 33, 13, 35</ref> में गोदावरी का सुंदर शब्द चित्र खींचा है- | |||
<blockquote>'अमूर्विमानान्तरलबिनोनां श्रुत्वा स्वनं कांचनर्किकणीम्, प्रत्युद्ब्रजन्तीव खमुत्पतन्य: गोदावरीसारस पंक्तयस्त्वाम्’;’ ‘अत्रानुगोदं मृगया निवृतस्तरंग वातेन विनीत खेद: रहस्त्वदुत्संग निपुण्णमुर्घा स्मरामि वानीरगृंहेषु सुप्त:।'</blockquote> | |||
[[चित्र:Godavari-River-12.jpg|thumb|left|250px|गोदावरी नदी]] | |||
[[कालिदास]] ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है। | |||
[[वैदिक साहित्य]] में अभी तक गोदावरी की कहीं भी चर्चा नहीं प्राप्त हो सकी है। [[बौद्ध]] ग्रन्थों में बावरी के विषय में कई दन्तकथाएँ मिलती हैं। [[ब्रह्मपुराण]] में [[गौतमी नदी]] पर 106 दीर्घ पूर्ण अध्याय है। इनमें इसकी महिमा वर्णित है। वह पहले महाकोसल का पुरोहित था और पश्चात् पसनेदि का, वह गोदावरी पर अलक के पार्श्व में अस्यक की भूमि में निवास करता था और ऐसा कहा जाता है कि उसने [[श्रावस्ती]] में बुद्ध के पास कतिपय शिष्य भेजे थे।<ref>सुत्तनिपात, सैक्रेड बुक आव दि ईस्ट, जिल्द 10, भाग 2, 184 एवं 187</ref> [[पाणिनि]]<ref>[[पाणिनि]], 5.4.75</ref> के 'संख्याया नदी-गोदावरीभ्यां च' वार्तिक में 'गोदावरी' नाम आया है और इससे 'सप्तगोदावर' भी परिलक्षित होता है। [[रामायण]], [[महाभारत]] एवं [[पुराण|पुराणों]] में इसकी चर्चा हुई हैं। [[वन पर्व महाभारत|वन पर्व]]<ref>[[वन पर्व महाभारत]], 88.2</ref> ने इसे दक्षिण में पायी जाने वाली एक पुनीत नदी की संज्ञा दी है और कहा है कि यह निर्झरपूर्ण एवं वाटिकाओं से [[आच्छादित]] तटवाली थी और यहाँ मुनिगण तपस्या किया करते थे। रामायण के [[अरण्य काण्ड वा. रा.]]<ref>[[अरण्य काण्ड वा. रा.|रामायण (अरण्य काण्ड)]], 13.13 एवं 21</ref> ने गोदावरी के पास के पंचवटी नामक स्थल का वर्णन किया है, जहाँ मृगों के झुण्ड रहा करते थे और जो [[अगस्त्य]] के आश्रम से दो योजन की दूरी पर था। [[ब्रह्म पुराण]]<ref>[[ब्रह्म पुराण]], अध्याय 70-175</ref> में गोदावरी एवं इसके उपतीर्थों का सविस्तार वर्णन हुआ है। तीर्थंसार<ref>नृसिंह पुराण का एक भाग</ref> ने ब्रह्मपुराण के कतिपय अध्यायों<ref>[[ब्रह्म पुराण]], यथा- 89, 91, 106, 107, 116-118, 121, 122, 131, 144, 154, 159, 172</ref> से लगभग 60 श्लोक उद्धृत किये हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि आज के ब्रह्मपुराण के गौतमी वाले अध्याय 1500 ई. के पूर्व उपस्थित थे। [[पांडुरंग वामन काणे|वामन काणे]] के लेख के अनुसार<ref>जर्नल आव दी बाम्बे ब्रांच आव दी एशियाटिक सोसाइटी, सन् 1917, पृ0 27-28</ref> ब्रह्म पुराण ने गोदावारी को सामान्य रूप में गौतमी कहा है।<ref>विन्ध्यस्य दक्षिणे गंगा गौतमी सा निगद्यते। उत्तरे सापि विन्ध्यस्य भागीरथ्यभिधीयते॥ [[ब्रह्म पुराण]] (78।77) एवं तीर्थसार (पृ. 45)।</ref> [[ब्रह्मपुराण]]<ref>[[ब्रह्मपुराण]], 78.77</ref> में आया है कि विन्ध्य के दक्षिण में [[गंगा नदी|गंगा]] को गौतमी और उत्तर में [[भागीरथी]] कहा जाता है। गोदावरी की 200 योजन की लम्बाई कही गयी है और कहा गया है कि इस पर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ पाये जाते हैं।<ref>[[ब्रह्म पुराण]] 77.8-9</ref> दण्डकारण्य को धर्म एवं मुक्ति का बीज एवं उसकी भूमि को (उसके द्वारा आश्लिष्ट स्थल को) पुण्यतम कहा गया है।<ref>तिस्र: कोट्योऽर्धकोटी च योजनानां शतद्वयें। तीर्थानि मुनिशार्दूल सम्भविष्यन्ति गौतम॥ ब्रह्म पुराण (77।8-9)। धर्मबीजं मुक्तिबीजं दण्डकारण्यमुच्यते। विशेषाद् गौतमीश्लिष्टो देश: पुण्यतमोऽभवत्॥ ब्रह्म पुराण (161।73)।</ref> | |||
==नामकरण== | |||
[[चित्र:Godavari-River-2.jpg|गोदावरी नदी, [[आंध्र प्रदेश]]|thumb|250px]] | |||
कुछ विद्वानों के अनुसार, इसका नामकरण [[तेलुगु भाषा]] के शब्द 'गोद' से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है। एक बार महर्षि गौतम ने घोर तप किया। इससे रुद्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया। गंगाजल के स्पर्श से एक मृत गाय पुनर्जीवित हो उठी। इसी कारण इसका नाम गोदावरी पड़ा। गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। इसमें नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। गोदावरी की सात धारा वसिष्ठा, कौशिकी, वृद्ध गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध है। [[पुराण|पुराणों]] में इनका वर्णन मिलता है। इन्हें महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है- | |||
<blockquote><poem>सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशन: । | |||
महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके च गच्छति ॥</poem></blockquote> | |||
==ब्रह्मगिरि पर उतरी गंगा== | ==ब्रह्मगिरि पर उतरी गंगा== | ||
बहुत-से पुराणों में एक [[श्लोक]] आया है- 'मध्य के देश सह्य पर्वत के अनन्तर में हैं, वहीं पर गोदावरी है और वह भूमि तीनों लोकों में सबसे सुन्दर है। वहाँ [[गोवर्धन]] है, जो मन्दर एवं गन्धमादन के समान है।'<ref>सह्यस्यानन्तरे चैते तत्र गोदावरी नदी। पृथिव्यामपि कृत्स्नायां स प्रदेशो मनोरम:। यत्र गोवर्धनो नाम मन्दरो गन्धमादन:॥ [[मत्स्य पुराण]] (114.37-38=[[वायु पुराण]] 45.112-113=[[मार्कण्डेय पुराण]] 54.34-35=[[ब्रह्माण्ड पुराण]] 2।16।43)। और देखिए ब्रह्म पुराण (27.43-44)।</ref> ब्रह्म पुराण<ref>ब्रह्म पुराण, 27.43-44</ref> में वर्णन आया है कि किस प्रकार गौतम ने [[शिव]] की जटा से गंगा को ब्रह्मगिरि पर उतारा, जहाँ उनका आश्रम था और किस प्रकार इस कार्य में [[गणेश]] ने सहायता दी। [[नारद पुराण]]<ref>[[नारद पुराण]], उत्तरार्ध, 72</ref> में आया है कि जब [[गौतम]] तप कर रहे थे तो बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसा और दुर्भिक्ष पड़ गया, इस पर सभी मुनिगण उनके पास गये और उन्होंने गंगा को अपने आश्रम में उतारा। वे प्रात:काल शालि के अन्न बोते थे और मध्याह्न में काट लेते थे और यह कार्य वे तब तक करते चले गये जब तक पर्याप्त रूप में अन्न एकत्र नहीं हो गया। शिवजी प्रकट हुए और ऋषि ने प्रार्थना की कि वे (शिवजी) उनके आश्रम के पास रहें और इसी से वह पर्वत जहाँ गौतम का आश्रम अवस्थित था, त्र्यम्बक नाम से विख्यात हुआ।<ref>नारद पुराण, श्लोक 24</ref> | |||
बहुत-से पुराणों में एक श्लोक आया है- 'मध्य के देश सह्य पर्वत के अनन्तर में हैं, वहीं पर गोदावरी है और वह भूमि तीनों लोकों में सबसे सुन्दर है। वहाँ [[गोवर्धन]] है, जो मन्दर एवं गन्धमादन के समान है।'<ref>सह्यस्यानन्तरे चैते तत्र गोदावरी नदी। पृथिव्यामपि कृत्स्नायां स प्रदेशो मनोरम:। यत्र गोवर्धनो नाम मन्दरो गन्धमादन:॥ [[मत्स्य पुराण]] (114.37-38= | ==मुख्य नादियाँ== | ||
गोदावरी नदी के तट पर ही [[त्र्यंबकेश्वर]], [[नासिक]], [[पैठण]] जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणीगंगा' भी कहते हैं। इसका काफ़ी भाग [[दक्षिण भारत]] में हैं। इसकी कुल लंबाई 1465 किमी है, जिसका 48.6 भाग [[महाराष्ट्र]], 20.7 भाग [[मध्य प्रदेश]], 14 [[कर्नाटक]], 5.5 [[उड़ीसा]], और 23.8 [[आंध्र प्रदेश]] में पड़ता है। इसमें मुख्य नादियाँ जो आकर मिलती हैं, वे हैं– | |||
*पूर्णा | |||
*क़दम | |||
*प्रांहिता | |||
*सबरी | |||
*इंद्रावती | |||
*मुजीरा | |||
*सिंधुकाना | |||
*मनेर | |||
*प्रवर | |||
इसके मुहानों में काफ़ी खेती होती है और इस पर कई महत्त्वपूर्ण बांध भी बने हैं। | |||
==विशेष महत्ता== | ==विशेष महत्ता== | ||
वराह पुराण< | [[चित्र:Godavari-Bridge.jpg|गोदावरी पुल, [[राजमहेन्द्री]] ([[आंध्र प्रदेश]])|thumb|250px]] | ||
*त्र्यम्बक< | [[वराह पुराण]]<ref>वराह पुराण, 71.37-44</ref> ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। [[कूर्म पुराण]]<ref>[[कूर्म पुराण]], 2.20.29-35</ref> ने नदियों की एक लम्बी सूची देकर अन्त में कहा है कि [[श्राद्ध]] करने के लिए गोदावरी की विशेष महत्ता है। ब्रह्म पुराण<ref>ब्रह्म पुराण, 124.93</ref> में ऐसा आया है कि 'सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए केवल दो (उपाय) घोषित हैं- पुनीत नदी गौतमी एवं शिव जो करुणाकर हैं। ब्रह्म पुराण ने यहाँ के लगभग 100 तीर्थों का वर्णन किया है, यथा- | ||
*कुशावर्त< | *त्र्यम्बक<ref>[[ब्रह्म पुराण]], 71.6</ref> | ||
*जनस्थान< | *कुशावर्त<ref>ब्रह्म पुराण, 980.1-3</ref> | ||
*गोवर्धन< | *जनस्थान<ref>ब्रह्म पुराण, 988.1</ref> | ||
*प्रवरा-संगम< | *गोवर्धन<ref>ब्रह्म पुराण, अध्याय 91</ref> | ||
*निवासपुर< | *प्रवरा-संगम<ref>ब्रह्म पुराण, 106</ref> | ||
*वञ्जरा-संगम< | *निवासपुर<ref>ब्रह्म पुराण, 106.55</ref> | ||
*वञ्जरा-संगम<ref>ब्रह्म पुराण, 159</ref> आदि। | |||
किन्तु स्थानाभाव से हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे। किन्तु नासिक, गोवर्धन, पंचवटी एवं जनस्थान के विषय में कुछ लिख देना आवश्यक है। | किन्तु स्थानाभाव से हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे। किन्तु नासिक, गोवर्धन, पंचवटी एवं जनस्थान के विषय में कुछ लिख देना आवश्यक है। | ||
==दान का वर्णन== | ==दान का वर्णन== | ||
भरहुत स्तूप के घेरे के एक स्तम्भ पर एक लेख है जिसमें नासिक के वसुक की पत्नी गोरक्षिता के दान का वर्णन है। यह लेख | भरहुत स्तूप के घेरे के एक स्तम्भ पर एक लेख है जिसमें नासिक के वसुक की पत्नी गोरक्षिता के दान का वर्णन है। यह लेख ई.पू. 200 ई. का है और अब तक के पाये गये नासिक-सम्बन्धी लेखों में सब से पुराना हे। [[महाभाष्य]]<ref>[[महाभाष्य]], 6.1.63</ref> में नासिक्य पुरी का उल्लेख हुआ हें [[वायु पुराण]]<ref>[[वायु पुराण]], 45.130</ref> ने नासिक्य को एक देश के रूप में कहा है। पाण्डुलेणा की गुफ़ाओं के नासिक लेखों से पता चलता है कि ईसा के कई शताब्दियों पूर्व से नासिक एक समृद्धिशाली स्थल था।<ref>एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द 8, पृ0 59-96</ref> टॉलेमी (लगभग 150 ई.) ने भी नासिक का उल्लेख किया हे।<ref>टॉलेमी, पृ0 156</ref> | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
[[नासिक]] के इतिहास इसके स्नान-स्थलों, मन्दिरों, जलाशयों, तीर्थयात्रा एवं पूजा-कृत्यों के विषय में स्थानाभाव से अधिक नहीं लिखा जा सकता। इस विषय में देखिए बम्बई का गजेटियर< | [[चित्र:Godavari-River-1.jpg|thumb|250px|गोदावरी नदी, [[नासिक]]]] | ||
*पंचवटी में रामजी का मन्दिर | [[नासिक]] के इतिहास इसके स्नान-स्थलों, मन्दिरों, जलाशयों, तीर्थयात्रा एवं पूजा-कृत्यों के विषय में स्थानाभाव से अधिक नहीं लिखा जा सकता। इस विषय में देखिए बम्बई का गजेटियर<ref>जिल्द 16, नासिक ज़िला</ref> यहाँ यह वर्णित है कि नासिक में 60 मन्दिर एवं गोदावरी के वाम तट पर पंचवटी में 16 मन्दिर हैं। किन्तु आज प्राचीन मन्दिरों में कदाचित् ही कोई खड़ा हो। सन् 1680 ई. में दक्षिण की सूबेदारी में [[औरंगज़ेब]] ने नासिक के 25 मन्दिर तुड़वा डाले। आज के सभी मन्दिर [[पूना]] के [[पेशवा|पेशवाओं]] द्वारा निर्मित कराये गये हैं (सन् 1850 एवं 1818 के भीतर) इनमें तीन उल्लेखनीय हैं- | ||
*गोदावरी के बायें तट पर पहले मोड़ के पास नारो-शंकर का मन्दिर (या घण्टामन्दिर) | *पंचवटी में रामजी का मन्दिर | ||
*नासिक के आदित्यवार पेठ में सुन्दर नारायण का | *गोदावरी के बायें तट पर पहले मोड़ के पास नारो-शंकर का मन्दिर (या घण्टामन्दिर) | ||
*[[नासिक]] के आदित्यवार पेठ में सुन्दर नारायण का मन्दिर | |||
==गुफ़ा का दर्शन== | ==गुफ़ा का दर्शन== | ||
पंचवटी में सीता-गुफ़ा का दर्शन किया जाता है, इसके पास बरगद के प्राचीन पेड़ हैं जिनके विषय में ऐसा विश्वास है कि ये पाँच वटो से उत्पन्न हुए हैं जिनसे इस स्थान को पंचवटी की संज्ञा मिली है। सीता-गुफ़ा से थोड़ी दूर पर काले राम का मन्दिर है जो पश्चिम भारत के सुन्दर मन्दिरों में परिगणित होता है। गोवर्धन< | पंचवटी में सीता-गुफ़ा का दर्शन किया जाता है, इसके पास बरगद के प्राचीन पेड़ हैं जिनके विषय में ऐसा विश्वास है कि ये पाँच वटो से उत्पन्न हुए हैं जिनसे इस स्थान को पंचवटी की संज्ञा मिली है। सीता-गुफ़ा से थोड़ी दूर पर काले राम का मन्दिर है जो पश्चिम भारत के सुन्दर मन्दिरों में परिगणित होता है। गोवर्धन<ref>नासिक से 6 मील पश्चिम</ref> एवं तपोवन<ref>नासिक से 1॥ मील दक्षिण-पूर्व</ref> के बीच में बहुत-से स्नान-स्थल एवं पवित्र कुण्ड हैं। गोदावरी की बायीं ओर जहां इसका दक्षिण की ओर प्रथम घुमाव है, नासिक का रामकुण्ड नामक पवित्रतम स्थल है। कालाराम-मन्दिर के प्रति दिन के धार्मिक कृत्य एवं पूजा यात्री लोग नासिक में ही करते हैं। | ||
==नासिक नाम की उत्पत्ति== | ==नासिक नाम की उत्पत्ति== | ||
नासिक के उत्सवों में [[रामनवमी]] एक बहुत बड़ा पर्व है। 'नासिक' शब्द 'नासिका' से बना है और इसी से 'नासिक्य' शब्द भी बना है। सम्भवत: यह नाम इसलिए पड़ा है कि यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक (नासिका) काटी थी।<ref>देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द 6, | नासिक के उत्सवों में [[रामनवमी]] एक बहुत बड़ा पर्व है। 'नासिक' शब्द 'नासिका' से बना है और इसी से 'नासिक्य' शब्द भी बना है। सम्भवत: यह नाम इसलिए पड़ा है कि यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक (नासिका) काटी थी।<ref>देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द 6, पृ. 517-518, 529-531 एवं 522-526 </ref> | ||
==पंचवटी== | ==पंचवटी== | ||
उषवदात के नासिक-शिलालेख में, जो बहुत लम्बा एवं प्रसिद्ध हैं, 'गोवर्धन' शब्द आया है।< | [[चित्र:Godavari-Bridge-2.jpg|गोदावरी पुल, [[राजमहेन्द्री]] ([[आंध्र प्रदेश]])|thumb|250px]] | ||
उषवदात के नासिक-शिलालेख में, जो बहुत लम्बा एवं प्रसिद्ध हैं, 'गोवर्धन' शब्द आया है।<ref>देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द 16, पृ. 569-570</ref> पंचवटी नाम ज्यों-का-त्यों चला आया है। यह ज्ञातव्य है कि [[रामायण]]<ref>[[रामायण]], 3.13.13</ref> में पंचवटी को देश कहा गया है। [[शल्य पर्व महाभारत|शल्य पर्व]]<ref>[[शल्य पर्व महाभारत|शल्य पर्व]], 939.9-10</ref>, रामायण<ref>रामायण, 3.21.19-20</ref>, [[नारद पुराण]]<ref>नारदीय पुराण, 2.75.30</ref> एवं [[अग्नि पुराण]]<ref>[[अग्नि पुराण]], 7.2-3</ref> के मत से जनस्थान दण्डकारण्य में था और पंचवटी उसका (अर्थात् जनस्थान का) एक भाग था। जनस्थान विस्तार में 4 योजन था और यह नाम इसलिए पड़ा कि यहाँ जनक-कुल के राजाओं ने गोदावरी की कृपा से मुक्ति पायी थी।<ref>ब्रह्म पुराण 88.22-24</ref> | |||
==महापुण्य== | ==महापुण्य== | ||
जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करता है उस समय का गोदावरी-स्नान आज भी महापुण्य-कारक माना जाता है।< | जब [[बृहस्पति ग्रह]] सिंह राशि में प्रवेश करता है उस समय का गोदावरी-स्नान आज भी महापुण्य-कारक माना जाता है।<ref>धर्मसिन्धु, पृ. 7</ref> ब्रह्म पुराण<ref>ब्रह्म पुराण, 152.38-39</ref> में ऐसा आया है कि तीनों लोकों के साढ़े तीन करोड़ [[देवता]] इस समय यहाँ स्नानार्थ आते हैं और इस समय का केवल एक गोदावरी-स्नान भागीरथी में प्रति दिन किये जाने वाले 60 सहस्र वर्षों तक के स्नान के बराबर है। [[वराह पुराण]]<ref>[[वराह पुराण]], 71.45-46</ref> में ऐसा आया है कि जब कोई सिंहस्थ वर्ष में गोदावरी जाता है, वहाँ स्नान करता है और पितरों का तर्पण एवं श्राद्ध करता है तो उसके वे पितर, जो नरक में रहते हैं, स्वर्ग चले जाते हैं, और जो स्वर्ग के वासी होते हैं, वे मुक्ति पा जाते हैं। 12 वर्षों के उपरान्त, एक बार बृहस्पति सिंह राशि में आता है। इस सिंहस्थ वर्ष में [[भारत]] के सभी भागों से सहस्रों की संख्या में यात्रीगण नासिक आते हैं। | ||
==पौराणिक कथा== | ==पौराणिक कथा== | ||
[[गौतम]] मुनि बहुत वर्षों तक वहाँ तपस्या में लगे रहे। तदनन्तर अम्बिकापति भगवान [[शिव]] ने उनकी तपस्या से संतुष्ट हो उन्हें अपने पार्षदगणों के साथ दर्शन दिया और कहा- 'वर माँगो।' तब मुनिवर गौतम ने भगवान | [[गौतम]] मुनि बहुत वर्षों तक वहाँ तपस्या में लगे रहे। तदनन्तर अम्बिकापति भगवान [[शिव]] ने उनकी तपस्या से संतुष्ट हो उन्हें अपने पार्षदगणों के साथ दर्शन दिया और कहा- 'वर माँगो।' [[चित्र:Godavari-9.jpg|thumb|250px|गोदावरी नदी|left]] तब मुनिवर गौतम ने भगवान त्र्यंबक को साष्टांग प्रणाम किया और बोले-'सबका कल्याण करने वाले भगवन! आपके चरणों में मेरी सदा भक्ति बनी रहे और मेरे आश्रम के समीप इसी पर्वत के ऊपर आपको मैं सदा विराजमान देखूँ, यही मेरे लिये अभीष्ट वर है।' मुनि के ऐसा कहने पर भक्तों को मनोवाञ्छित वर देने वाले [[पार्वती देवी|पार्वती]]वल्लभ भगवान शिव ने उन्हें अपना सामीप्य प्रदान किया। भगवान त्र्यम्बक उसी रूप से वहीं निवास करने लगे। तभी से वह पर्वत त्र्यंबक कहलाने लगा। सुभगे! जो मानव भक्तिभाव से गोदावरी-गंगा में जाकर स्नान करते हैं, वे भवसागर से मुक्त हो जाते हैं। जो लोग गोदावरी के जल में स्नान करके उस पर्वत पर विराजमान भगवान त्र्यम्बक का विविध उपचारों से पूजन करते हैं, वे साक्षात महेश्वर हैं। मोहिनी! भगवान त्र्यम्बक का यह माहात्म्य मैंने संक्षेप से बताया है। तदनन्तर जहाँ तक गोदावरी का साक्षात दर्शन होता है, वहाँ तक बहुत-से पुण्यमय आश्रम हैं। उन सब में स्नान करके देवताओं तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करने से मनुष्य मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। भद्रे! गोदावरी कहीं प्रकट हैं और कहीं गुप्त हैं; फिर आगे जाकर पुण्यमयी गोदावरी नदी ने इस [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] को आप्लावित किया है। मनुष्यों की भक्ति से जहाँ वे महेश्वरी देवी प्रकट हुई हैं, वहाँ महान् पुण्यतीर्थ है जो स्नान मात्र से पापों को हर लेने वाला है। तदनन्तर गोदावरी देवी [[पंचवटी]] में जाकर भली-भाँति प्रकाश में आयी हैं। वहाँ वे सम्पूर्ण लोकों को उत्तम गति प्रदान करती हैं। विधिनन्दिनी! जो मनुष्य नियम एवं व्रत का पालन करते हुए पंचवटी की गोदावरी में स्नान करता है, वह अभीष्ट कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। जब [[त्रेता युग]] में भगवान श्री [[राम]] अपनी धर्मपत्नी [[सीता]] और छोटे भाई [[लक्ष्मण]] के साथ आकर रहने लगे, तब से उन्होंने पंचवटी को और भी पुण्यमयी बना दिया। शुभे! इस प्रकार यह सब [[गौतमाश्रम]] का माहात्म्य कहा गया है। | ||
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10:33, 8 जून 2018 के समय का अवतरण
गोदावरी नदी
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देश | भारत |
राज्य | महाराष्ट्र, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश |
प्रमुख नगर | नासिक, नांदेड, निज़ामाबाद, राजामुन्द्री |
लम्बाई | 1465 किमी (910 मील) |
पौराणिक उल्लेख | वराह पुराण[1] ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। |
धार्मिक महत्त्व | गोदावरी नदी के तट पर ही त्र्यंबकेश्वर, नासिक, पैठण जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणीगंगा' भी कहते हैं। |
गूगल मानचित्र | गोदावरी नदी |
अन्य जानकारी | कालिदास ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है। |
गोदावरी नदी (अंग्रेज़ी: Godavari River) भारत की प्रसिद्ध नदी है। यह नदी दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट से लेकर पूर्वी घाट तक प्रवाहित होती है। नदी की लंबाई लगभग 900 मील (लगभग 1440 कि.मी.) है। यह नदी नासिक त्रयंबक गाँव की पृष्ठवर्ती पहाड़ियों में स्थित एक बड़े जलागार से निकलती है। मुख्य रूप से नदी का बहाव दक्षिण-पूर्व की ओर है। ऊपरी हिस्से में नदी की चौड़ाई एक से दो मील तक है, जिसके बीच-बीच में बालू की भित्तिकाएँ हैं। समुद्र में मिलने से 60 मील (लगभग 96 कि.मी.) पहले ही नदी बहुत ही सँकरी उच्च दीवारों के बीच से बहती है। बंगाल की खाड़ी में दौलेश्वरम् के पास डेल्टा बनाती हुई यह नदी सात धाराओं के रूप में समुद्र में गिरती है। भारत की प्रायद्वीपीय नदियाँ- गोदावरी और कृष्णा, ये दोनों मिलकर 'कृष्णा-गोदावरी डेल्टा' का निर्माण करती हैं, जो सुन्दरबन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा डेल्टा है। इस डेल्टा को बहुधा 'केजी डेल्टा' भी कहा जाता है।
मुख्य धाराएँ
गोदावरी की सात शाखाएँ मानी गई हैं-
पौराणिक उल्लेख
पुराणों में गोदावरी नदी का विवरण निम्न प्रकार प्राप्त होता है-
'सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियतो नियताशान:।'
- ब्रह्मपुराण के 133वें अध्याय में तथा अन्यत्र भी गोदावरी (गौतमी) का उल्लेख है।
- श्रीमद्भागवत[3] में गोदावरी की अन्य नदियों के साथ उल्लेख है-
'कृष्णवेण्या भीमरथी गोदावरी निर्विन्ध्या’।'
- विष्णुपुराण[4] में गोदावरी से सह्य पर्वत से निस्सृत माना है-
'गोदावरी भीमरथी कृष्णवेण्यादिकास्तथा। सह्मपादोद्भवा नद्य: स्मृता: पापभयापहा:।'
'गोदावरी नर्मदा च बाहुदां च महानदीम्।'
- गोदावरी नदी को पांडवों ने तीर्थयात्रा के प्रसंग में देखा था-
'द्विजाति मुख्येषुधनं विसृज्य गोदावरी सागरगामगच्छत्।'[6]
- महाकवि कालिदास के 'रघुवंश'[7] में गोदावरी का सुंदर शब्द चित्र खींचा है-
'अमूर्विमानान्तरलबिनोनां श्रुत्वा स्वनं कांचनर्किकणीम्, प्रत्युद्ब्रजन्तीव खमुत्पतन्य: गोदावरीसारस पंक्तयस्त्वाम्’;’ ‘अत्रानुगोदं मृगया निवृतस्तरंग वातेन विनीत खेद: रहस्त्वदुत्संग निपुण्णमुर्घा स्मरामि वानीरगृंहेषु सुप्त:।'
कालिदास ने इस उल्लेख में गोदावरी को 'गोदा' कहा है। ‘शब्द-भेद प्रकाश’ नामक कोश में भी गोदावरी का रूपांतर ‘गोदा’ दिया हुआ है।
वैदिक साहित्य में अभी तक गोदावरी की कहीं भी चर्चा नहीं प्राप्त हो सकी है। बौद्ध ग्रन्थों में बावरी के विषय में कई दन्तकथाएँ मिलती हैं। ब्रह्मपुराण में गौतमी नदी पर 106 दीर्घ पूर्ण अध्याय है। इनमें इसकी महिमा वर्णित है। वह पहले महाकोसल का पुरोहित था और पश्चात् पसनेदि का, वह गोदावरी पर अलक के पार्श्व में अस्यक की भूमि में निवास करता था और ऐसा कहा जाता है कि उसने श्रावस्ती में बुद्ध के पास कतिपय शिष्य भेजे थे।[8] पाणिनि[9] के 'संख्याया नदी-गोदावरीभ्यां च' वार्तिक में 'गोदावरी' नाम आया है और इससे 'सप्तगोदावर' भी परिलक्षित होता है। रामायण, महाभारत एवं पुराणों में इसकी चर्चा हुई हैं। वन पर्व[10] ने इसे दक्षिण में पायी जाने वाली एक पुनीत नदी की संज्ञा दी है और कहा है कि यह निर्झरपूर्ण एवं वाटिकाओं से आच्छादित तटवाली थी और यहाँ मुनिगण तपस्या किया करते थे। रामायण के अरण्य काण्ड वा. रा.[11] ने गोदावरी के पास के पंचवटी नामक स्थल का वर्णन किया है, जहाँ मृगों के झुण्ड रहा करते थे और जो अगस्त्य के आश्रम से दो योजन की दूरी पर था। ब्रह्म पुराण[12] में गोदावरी एवं इसके उपतीर्थों का सविस्तार वर्णन हुआ है। तीर्थंसार[13] ने ब्रह्मपुराण के कतिपय अध्यायों[14] से लगभग 60 श्लोक उद्धृत किये हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि आज के ब्रह्मपुराण के गौतमी वाले अध्याय 1500 ई. के पूर्व उपस्थित थे। वामन काणे के लेख के अनुसार[15] ब्रह्म पुराण ने गोदावारी को सामान्य रूप में गौतमी कहा है।[16] ब्रह्मपुराण[17] में आया है कि विन्ध्य के दक्षिण में गंगा को गौतमी और उत्तर में भागीरथी कहा जाता है। गोदावरी की 200 योजन की लम्बाई कही गयी है और कहा गया है कि इस पर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ पाये जाते हैं।[18] दण्डकारण्य को धर्म एवं मुक्ति का बीज एवं उसकी भूमि को (उसके द्वारा आश्लिष्ट स्थल को) पुण्यतम कहा गया है।[19]
नामकरण
कुछ विद्वानों के अनुसार, इसका नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द 'गोद' से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है। एक बार महर्षि गौतम ने घोर तप किया। इससे रुद्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया। गंगाजल के स्पर्श से एक मृत गाय पुनर्जीवित हो उठी। इसी कारण इसका नाम गोदावरी पड़ा। गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। इसमें नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। गोदावरी की सात धारा वसिष्ठा, कौशिकी, वृद्ध गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध है। पुराणों में इनका वर्णन मिलता है। इन्हें महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है-
सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशन: ।
महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके च गच्छति ॥
ब्रह्मगिरि पर उतरी गंगा
बहुत-से पुराणों में एक श्लोक आया है- 'मध्य के देश सह्य पर्वत के अनन्तर में हैं, वहीं पर गोदावरी है और वह भूमि तीनों लोकों में सबसे सुन्दर है। वहाँ गोवर्धन है, जो मन्दर एवं गन्धमादन के समान है।'[20] ब्रह्म पुराण[21] में वर्णन आया है कि किस प्रकार गौतम ने शिव की जटा से गंगा को ब्रह्मगिरि पर उतारा, जहाँ उनका आश्रम था और किस प्रकार इस कार्य में गणेश ने सहायता दी। नारद पुराण[22] में आया है कि जब गौतम तप कर रहे थे तो बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसा और दुर्भिक्ष पड़ गया, इस पर सभी मुनिगण उनके पास गये और उन्होंने गंगा को अपने आश्रम में उतारा। वे प्रात:काल शालि के अन्न बोते थे और मध्याह्न में काट लेते थे और यह कार्य वे तब तक करते चले गये जब तक पर्याप्त रूप में अन्न एकत्र नहीं हो गया। शिवजी प्रकट हुए और ऋषि ने प्रार्थना की कि वे (शिवजी) उनके आश्रम के पास रहें और इसी से वह पर्वत जहाँ गौतम का आश्रम अवस्थित था, त्र्यम्बक नाम से विख्यात हुआ।[23]
मुख्य नादियाँ
गोदावरी नदी के तट पर ही त्र्यंबकेश्वर, नासिक, पैठण जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल हैं। इसे 'दक्षिणीगंगा' भी कहते हैं। इसका काफ़ी भाग दक्षिण भारत में हैं। इसकी कुल लंबाई 1465 किमी है, जिसका 48.6 भाग महाराष्ट्र, 20.7 भाग मध्य प्रदेश, 14 कर्नाटक, 5.5 उड़ीसा, और 23.8 आंध्र प्रदेश में पड़ता है। इसमें मुख्य नादियाँ जो आकर मिलती हैं, वे हैं–
- पूर्णा
- क़दम
- प्रांहिता
- सबरी
- इंद्रावती
- मुजीरा
- सिंधुकाना
- मनेर
- प्रवर
इसके मुहानों में काफ़ी खेती होती है और इस पर कई महत्त्वपूर्ण बांध भी बने हैं।
विशेष महत्ता
वराह पुराण[24] ने भी कहा है कि गौतम ही जाह्नवी को दण्डक वन में ले आये और वह गोदावरी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। कूर्म पुराण[25] ने नदियों की एक लम्बी सूची देकर अन्त में कहा है कि श्राद्ध करने के लिए गोदावरी की विशेष महत्ता है। ब्रह्म पुराण[26] में ऐसा आया है कि 'सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए केवल दो (उपाय) घोषित हैं- पुनीत नदी गौतमी एवं शिव जो करुणाकर हैं। ब्रह्म पुराण ने यहाँ के लगभग 100 तीर्थों का वर्णन किया है, यथा-
- त्र्यम्बक[27]
- कुशावर्त[28]
- जनस्थान[29]
- गोवर्धन[30]
- प्रवरा-संगम[31]
- निवासपुर[32]
- वञ्जरा-संगम[33] आदि।
किन्तु स्थानाभाव से हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे। किन्तु नासिक, गोवर्धन, पंचवटी एवं जनस्थान के विषय में कुछ लिख देना आवश्यक है।
दान का वर्णन
भरहुत स्तूप के घेरे के एक स्तम्भ पर एक लेख है जिसमें नासिक के वसुक की पत्नी गोरक्षिता के दान का वर्णन है। यह लेख ई.पू. 200 ई. का है और अब तक के पाये गये नासिक-सम्बन्धी लेखों में सब से पुराना हे। महाभाष्य[34] में नासिक्य पुरी का उल्लेख हुआ हें वायु पुराण[35] ने नासिक्य को एक देश के रूप में कहा है। पाण्डुलेणा की गुफ़ाओं के नासिक लेखों से पता चलता है कि ईसा के कई शताब्दियों पूर्व से नासिक एक समृद्धिशाली स्थल था।[36] टॉलेमी (लगभग 150 ई.) ने भी नासिक का उल्लेख किया हे।[37]
इतिहास
नासिक के इतिहास इसके स्नान-स्थलों, मन्दिरों, जलाशयों, तीर्थयात्रा एवं पूजा-कृत्यों के विषय में स्थानाभाव से अधिक नहीं लिखा जा सकता। इस विषय में देखिए बम्बई का गजेटियर[38] यहाँ यह वर्णित है कि नासिक में 60 मन्दिर एवं गोदावरी के वाम तट पर पंचवटी में 16 मन्दिर हैं। किन्तु आज प्राचीन मन्दिरों में कदाचित् ही कोई खड़ा हो। सन् 1680 ई. में दक्षिण की सूबेदारी में औरंगज़ेब ने नासिक के 25 मन्दिर तुड़वा डाले। आज के सभी मन्दिर पूना के पेशवाओं द्वारा निर्मित कराये गये हैं (सन् 1850 एवं 1818 के भीतर) इनमें तीन उल्लेखनीय हैं-
- पंचवटी में रामजी का मन्दिर
- गोदावरी के बायें तट पर पहले मोड़ के पास नारो-शंकर का मन्दिर (या घण्टामन्दिर)
- नासिक के आदित्यवार पेठ में सुन्दर नारायण का मन्दिर
गुफ़ा का दर्शन
पंचवटी में सीता-गुफ़ा का दर्शन किया जाता है, इसके पास बरगद के प्राचीन पेड़ हैं जिनके विषय में ऐसा विश्वास है कि ये पाँच वटो से उत्पन्न हुए हैं जिनसे इस स्थान को पंचवटी की संज्ञा मिली है। सीता-गुफ़ा से थोड़ी दूर पर काले राम का मन्दिर है जो पश्चिम भारत के सुन्दर मन्दिरों में परिगणित होता है। गोवर्धन[39] एवं तपोवन[40] के बीच में बहुत-से स्नान-स्थल एवं पवित्र कुण्ड हैं। गोदावरी की बायीं ओर जहां इसका दक्षिण की ओर प्रथम घुमाव है, नासिक का रामकुण्ड नामक पवित्रतम स्थल है। कालाराम-मन्दिर के प्रति दिन के धार्मिक कृत्य एवं पूजा यात्री लोग नासिक में ही करते हैं।
नासिक नाम की उत्पत्ति
नासिक के उत्सवों में रामनवमी एक बहुत बड़ा पर्व है। 'नासिक' शब्द 'नासिका' से बना है और इसी से 'नासिक्य' शब्द भी बना है। सम्भवत: यह नाम इसलिए पड़ा है कि यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक (नासिका) काटी थी।[41]
पंचवटी
उषवदात के नासिक-शिलालेख में, जो बहुत लम्बा एवं प्रसिद्ध हैं, 'गोवर्धन' शब्द आया है।[42] पंचवटी नाम ज्यों-का-त्यों चला आया है। यह ज्ञातव्य है कि रामायण[43] में पंचवटी को देश कहा गया है। शल्य पर्व[44], रामायण[45], नारद पुराण[46] एवं अग्नि पुराण[47] के मत से जनस्थान दण्डकारण्य में था और पंचवटी उसका (अर्थात् जनस्थान का) एक भाग था। जनस्थान विस्तार में 4 योजन था और यह नाम इसलिए पड़ा कि यहाँ जनक-कुल के राजाओं ने गोदावरी की कृपा से मुक्ति पायी थी।[48]
महापुण्य
जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करता है उस समय का गोदावरी-स्नान आज भी महापुण्य-कारक माना जाता है।[49] ब्रह्म पुराण[50] में ऐसा आया है कि तीनों लोकों के साढ़े तीन करोड़ देवता इस समय यहाँ स्नानार्थ आते हैं और इस समय का केवल एक गोदावरी-स्नान भागीरथी में प्रति दिन किये जाने वाले 60 सहस्र वर्षों तक के स्नान के बराबर है। वराह पुराण[51] में ऐसा आया है कि जब कोई सिंहस्थ वर्ष में गोदावरी जाता है, वहाँ स्नान करता है और पितरों का तर्पण एवं श्राद्ध करता है तो उसके वे पितर, जो नरक में रहते हैं, स्वर्ग चले जाते हैं, और जो स्वर्ग के वासी होते हैं, वे मुक्ति पा जाते हैं। 12 वर्षों के उपरान्त, एक बार बृहस्पति सिंह राशि में आता है। इस सिंहस्थ वर्ष में भारत के सभी भागों से सहस्रों की संख्या में यात्रीगण नासिक आते हैं।
पौराणिक कथा
गौतम मुनि बहुत वर्षों तक वहाँ तपस्या में लगे रहे। तदनन्तर अम्बिकापति भगवान शिव ने उनकी तपस्या से संतुष्ट हो उन्हें अपने पार्षदगणों के साथ दर्शन दिया और कहा- 'वर माँगो।'
तब मुनिवर गौतम ने भगवान त्र्यंबक को साष्टांग प्रणाम किया और बोले-'सबका कल्याण करने वाले भगवन! आपके चरणों में मेरी सदा भक्ति बनी रहे और मेरे आश्रम के समीप इसी पर्वत के ऊपर आपको मैं सदा विराजमान देखूँ, यही मेरे लिये अभीष्ट वर है।' मुनि के ऐसा कहने पर भक्तों को मनोवाञ्छित वर देने वाले पार्वतीवल्लभ भगवान शिव ने उन्हें अपना सामीप्य प्रदान किया। भगवान त्र्यम्बक उसी रूप से वहीं निवास करने लगे। तभी से वह पर्वत त्र्यंबक कहलाने लगा। सुभगे! जो मानव भक्तिभाव से गोदावरी-गंगा में जाकर स्नान करते हैं, वे भवसागर से मुक्त हो जाते हैं। जो लोग गोदावरी के जल में स्नान करके उस पर्वत पर विराजमान भगवान त्र्यम्बक का विविध उपचारों से पूजन करते हैं, वे साक्षात महेश्वर हैं। मोहिनी! भगवान त्र्यम्बक का यह माहात्म्य मैंने संक्षेप से बताया है। तदनन्तर जहाँ तक गोदावरी का साक्षात दर्शन होता है, वहाँ तक बहुत-से पुण्यमय आश्रम हैं। उन सब में स्नान करके देवताओं तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करने से मनुष्य मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। भद्रे! गोदावरी कहीं प्रकट हैं और कहीं गुप्त हैं; फिर आगे जाकर पुण्यमयी गोदावरी नदी ने इस पृथ्वी को आप्लावित किया है। मनुष्यों की भक्ति से जहाँ वे महेश्वरी देवी प्रकट हुई हैं, वहाँ महान् पुण्यतीर्थ है जो स्नान मात्र से पापों को हर लेने वाला है। तदनन्तर गोदावरी देवी पंचवटी में जाकर भली-भाँति प्रकाश में आयी हैं। वहाँ वे सम्पूर्ण लोकों को उत्तम गति प्रदान करती हैं। विधिनन्दिनी! जो मनुष्य नियम एवं व्रत का पालन करते हुए पंचवटी की गोदावरी में स्नान करता है, वह अभीष्ट कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। जब त्रेता युग में भगवान श्री राम अपनी धर्मपत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ आकर रहने लगे, तब से उन्होंने पंचवटी को और भी पुण्यमयी बना दिया। शुभे! इस प्रकार यह सब गौतमाश्रम का माहात्म्य कहा गया है।
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वीथिका
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नासिक, रामकुण्ड
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गोदावरी नदी
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गोदावरी नदी
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गोदावरी नदी के स्रोत
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गोदावरी नदी
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वराह पुराण, 71.37-44
- ↑ वनपर्व 85, 43
- ↑ श्रीमद्भागवत 5, 19, 18
- ↑ विष्णुपुराण 2, 3, 12
- ↑ भीष्मपर्व 9, 14
- ↑ वनपर्व 118, 3
- ↑ रघुवंश 13, 33, 13, 35
- ↑ सुत्तनिपात, सैक्रेड बुक आव दि ईस्ट, जिल्द 10, भाग 2, 184 एवं 187
- ↑ पाणिनि, 5.4.75
- ↑ वन पर्व महाभारत, 88.2
- ↑ रामायण (अरण्य काण्ड), 13.13 एवं 21
- ↑ ब्रह्म पुराण, अध्याय 70-175
- ↑ नृसिंह पुराण का एक भाग
- ↑ ब्रह्म पुराण, यथा- 89, 91, 106, 107, 116-118, 121, 122, 131, 144, 154, 159, 172
- ↑ जर्नल आव दी बाम्बे ब्रांच आव दी एशियाटिक सोसाइटी, सन् 1917, पृ0 27-28
- ↑ विन्ध्यस्य दक्षिणे गंगा गौतमी सा निगद्यते। उत्तरे सापि विन्ध्यस्य भागीरथ्यभिधीयते॥ ब्रह्म पुराण (78।77) एवं तीर्थसार (पृ. 45)।
- ↑ ब्रह्मपुराण, 78.77
- ↑ ब्रह्म पुराण 77.8-9
- ↑ तिस्र: कोट्योऽर्धकोटी च योजनानां शतद्वयें। तीर्थानि मुनिशार्दूल सम्भविष्यन्ति गौतम॥ ब्रह्म पुराण (77।8-9)। धर्मबीजं मुक्तिबीजं दण्डकारण्यमुच्यते। विशेषाद् गौतमीश्लिष्टो देश: पुण्यतमोऽभवत्॥ ब्रह्म पुराण (161।73)।
- ↑ सह्यस्यानन्तरे चैते तत्र गोदावरी नदी। पृथिव्यामपि कृत्स्नायां स प्रदेशो मनोरम:। यत्र गोवर्धनो नाम मन्दरो गन्धमादन:॥ मत्स्य पुराण (114.37-38=वायु पुराण 45.112-113=मार्कण्डेय पुराण 54.34-35=ब्रह्माण्ड पुराण 2।16।43)। और देखिए ब्रह्म पुराण (27.43-44)।
- ↑ ब्रह्म पुराण, 27.43-44
- ↑ नारद पुराण, उत्तरार्ध, 72
- ↑ नारद पुराण, श्लोक 24
- ↑ वराह पुराण, 71.37-44
- ↑ कूर्म पुराण, 2.20.29-35
- ↑ ब्रह्म पुराण, 124.93
- ↑ ब्रह्म पुराण, 71.6
- ↑ ब्रह्म पुराण, 980.1-3
- ↑ ब्रह्म पुराण, 988.1
- ↑ ब्रह्म पुराण, अध्याय 91
- ↑ ब्रह्म पुराण, 106
- ↑ ब्रह्म पुराण, 106.55
- ↑ ब्रह्म पुराण, 159
- ↑ महाभाष्य, 6.1.63
- ↑ वायु पुराण, 45.130
- ↑ एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द 8, पृ0 59-96
- ↑ टॉलेमी, पृ0 156
- ↑ जिल्द 16, नासिक ज़िला
- ↑ नासिक से 6 मील पश्चिम
- ↑ नासिक से 1॥ मील दक्षिण-पूर्व
- ↑ देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द 6, पृ. 517-518, 529-531 एवं 522-526
- ↑ देखिए बम्बई गजेटियर, जिल्द 16, पृ. 569-570
- ↑ रामायण, 3.13.13
- ↑ शल्य पर्व, 939.9-10
- ↑ रामायण, 3.21.19-20
- ↑ नारदीय पुराण, 2.75.30
- ↑ अग्नि पुराण, 7.2-3
- ↑ ब्रह्म पुराण 88.22-24
- ↑ धर्मसिन्धु, पृ. 7
- ↑ ब्रह्म पुराण, 152.38-39
- ↑ वराह पुराण, 71.45-46
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