"आभूषण": अवतरणों में अंतर

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*दुनिया को अपनी चमक दमक से आकर्षित करने वाले आभूषण [[गंगा]] [[यमुना|जमुनी]] तहज़ीब वाले देश [[भारत]] में लगभग हर [[धर्म]] से जुड़ी परम्पराओं का अभिन्न अंग हैं। इस मुल्क में ज़ेवर सिर्फ़ आभूषण नहीं बल्कि रीति-रिवाज़ भावनाओं और आन बान शान का प्रतिबिम्ब है।
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*आभूषणों के दीवाने देश भारत में ज़ेवरात के प्रति आकर्षण अब भी कम नहीं हुआ है हालांकि पसंद और तौर तरीकों में बदलाव ज़रूर हुआ है। कभी सोने की चिड़ियाँ कहा जाने वाला भारत आज भी सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और मुल्क का आभूषण उद्योग सबसे तेज़ी से विकास कर रहे क्षेत्रों में शुमार किया जाता है।
'''आभूषण''' का प्रयोग मुख्यतः महिलाएँ अपने को संवारने में करती रही हैं। आदिवासी समुदाय में इनका महत्व बुरी [[आत्मा|आत्माओं]] को दूर भगाने के लिए है। इसीलिए देवी-[[देवता|देवताओं]] की मूर्तियों के आकार वाले ताबीज़ों एवं लटकनों का प्रयोग भी ये करते हैं। अलग-अलग अंगों के लिए इन आभूषणों की पूरी क़िस्म मौज़ूद है।
*कभी सोने-[[चाँदी]], [[हीरा|हीरे]] ज़वाहरात के ज़ख़ीरे को अपनी शान और ताक़त के प्रदर्शन का ज़रिया मानने की राजा महाराजाओं की धारणा वाले देश में शादी ब्याह तथा अन्य रस्मों में आज भी आभूषण को सबसे शानदार तोहफा माना जाता है। भारत में श्रृंगार का अभिन्न अंग और महिलाओं की कमज़ोरी समझे जाने वाले आभूषणों की चमक कभी फीकी नहीं पड़ी।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/woman/fashion/0902/15/1090215071_1.htm |title=परंपराओं के प्रतीक है आभूषण |accessmonthday=[[25 फ़रवरी]] |accessyear=[[2011]] |last=सलीम |first=एम. मजहर |authorlink= |format=एच.टी.एम |publisher=वेबदुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
*दुनिया को अपनी चमक दमक से आकर्षित करने वाले आभूषण [[गंगा]] [[यमुना|जमुनी]] तहज़ीब वाले देश [[भारत]] में लगभग हर [[धर्म]] से जुड़ी परम्पराओं का अभिन्न अंग हैं। इस मुल्क में ज़ेवर सिर्फ़ आभूषण नहीं बल्कि रीति-रिवाज भावनाओं और आन बान शान का प्रतिबिम्ब हैं।
*नारियाँ ज़्यादा कर आभूषणों से प्रेम करती हैं। हमारे शास्त्रों ने भी नारियों के लिये विविध प्रकार के रत़्नाभूषणों आदि की व्यवस्था की है, पर प्रत्येक आभूषण के अन्तर्गत एक गुण, सन्देश छिपा है।  
*आभूषणों के दीवाने देश भारत में ज़ेवरात के प्रति आकर्षण अब भी कम नहीं हुआ है हालांकि पसंद और तौर तरीकों में बदलाव ज़रूर हुआ है। कभी [[सोना|सोने]] की चिड़ियाँ कहा जाने वाला भारत आज भी सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और मुल्क का आभूषण उद्योग सबसे तेज़ी से विकास कर रहे क्षेत्रों में शुमार किया जाता है।
*कभी [[सोना|सोने]]-[[चाँदी]], [[हीरा|हीरे]] ज़वाहरात के ज़ख़ीरे को अपनी शान और ताक़त के प्रदर्शन का ज़रिया मानने की राजा महाराजाओं की धारणा वाले देश में शादी ब्याह तथा अन्य रस्मों में आज भी आभूषण को सबसे शानदार तोहफा माना जाता है। भारत में श्रृंगार का अभिन्न अंग और महिलाओं की कमज़ोरी समझे जाने वाले आभूषणों की चमक कभी फीकी नहीं पड़ी।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/woman/fashion/0902/15/1090215071_1.htm |title=परंपराओं के प्रतीक है आभूषण |accessmonthday=[[25 फ़रवरी]] |accessyear=[[2011]] |last=सलीम |first=एम. मज़हर |authorlink= |format=एच.टी.एम |publisher=वेबदुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
*नारियाँ ज़्यादातर आभूषणों से प्रेम करती हैं। हमारे शास्त्रों ने भी नारियों के लिये विविध प्रकार के रत़्नाभूषणों आदि की व्यवस्था की है, पर प्रत्येक आभूषण के अन्तर्गत एक गुण, सन्देश छिपा है।  
[[चित्र:Harappa-Jewelery.jpg|left|thumb|250px|[[हड़प्पा|हड़प्पा कालीन]] आभूषण]]
==नारी के आभूषण==
==नारी के आभूषण==
#नथ
#नथ
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#करघनी या कमरबंद
#करघनी या कमरबंद
#[[पायल]]
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==आभूषणों का प्रयोग==
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*चेहरे को अलंकृत करने हेतु, [[नाक]], [[कान]] और ललाट के आभूषण हैं। 'नथ' उर 'फुली' इसी में आते हैं।
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*गले के लिए हार या लॉकेट का प्रयोग होता है।
*पैर की अंगुलियों के लिए 'बिछुआ' का प्रयोग किया जाता है।
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*आदिवासी एक विशेष प्रकार की [[बिंदी]] का प्रयोग करते हैं। [[चांदी]] से बनी यह बिंदी पूरी ललाट को ढके रहती है।
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*[[राजस्थान]]  और [[पंजाब]] में इनकी अपेक्षा कुछ हल्की हंसली पहनी जाती हैं।
*[[कुल्लू]] में नाक में महिलाएँ 'नथ' या 'बुलाक' पहनती हैं।
*कुल्लू और [[किन्नौर ज़िला|किन्नौर]] में [[चांदी]] की बजाय [[पीपल]] के पत्ते से बना एक आभूषण '[[पीपल]] पत्र' माथे पर पहना जाता है।
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06:55, 18 मई 2018 के समय का अवतरण

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आभूषण का प्रयोग मुख्यतः महिलाएँ अपने को संवारने में करती रही हैं। आदिवासी समुदाय में इनका महत्व बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए है। इसीलिए देवी-देवताओं की मूर्तियों के आकार वाले ताबीज़ों एवं लटकनों का प्रयोग भी ये करते हैं। अलग-अलग अंगों के लिए इन आभूषणों की पूरी क़िस्म मौज़ूद है।

  • दुनिया को अपनी चमक दमक से आकर्षित करने वाले आभूषण गंगा जमुनी तहज़ीब वाले देश भारत में लगभग हर धर्म से जुड़ी परम्पराओं का अभिन्न अंग हैं। इस मुल्क में ज़ेवर सिर्फ़ आभूषण नहीं बल्कि रीति-रिवाज भावनाओं और आन बान शान का प्रतिबिम्ब हैं।
  • आभूषणों के दीवाने देश भारत में ज़ेवरात के प्रति आकर्षण अब भी कम नहीं हुआ है हालांकि पसंद और तौर तरीकों में बदलाव ज़रूर हुआ है। कभी सोने की चिड़ियाँ कहा जाने वाला भारत आज भी सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और मुल्क का आभूषण उद्योग सबसे तेज़ी से विकास कर रहे क्षेत्रों में शुमार किया जाता है।
  • कभी सोने-चाँदी, हीरे ज़वाहरात के ज़ख़ीरे को अपनी शान और ताक़त के प्रदर्शन का ज़रिया मानने की राजा महाराजाओं की धारणा वाले देश में शादी ब्याह तथा अन्य रस्मों में आज भी आभूषण को सबसे शानदार तोहफा माना जाता है। भारत में श्रृंगार का अभिन्न अंग और महिलाओं की कमज़ोरी समझे जाने वाले आभूषणों की चमक कभी फीकी नहीं पड़ी।[1]
  • नारियाँ ज़्यादातर आभूषणों से प्रेम करती हैं। हमारे शास्त्रों ने भी नारियों के लिये विविध प्रकार के रत़्नाभूषणों आदि की व्यवस्था की है, पर प्रत्येक आभूषण के अन्तर्गत एक गुण, सन्देश छिपा है।
हड़प्पा कालीन आभूषण

नारी के आभूषण

  1. नथ
  2. टीका
  3. कर्णफ़ूल
  4. हँसली
  5. कण्ठहार
  6. कड़े
  7. छल्ले
  8. करघनी या कमरबंद
  9. पायल

आभूषणों का प्रयोग

चूड़ियों का दृश्य, कोलकाता
  • चेहरे को अलंकृत करने हेतु, नाक, कान और ललाट के आभूषण हैं। 'नथ' उर 'फुली' इसी में आते हैं।
  • हाथों को सजाने के लिए चूड़ी, गजरा, करधा, बैंज, बाजू, चूड़ा का प्रयोग होता है।
  • गले के लिए हार या लॉकेट का प्रयोग होता है।
  • पैर की अंगुलियों के लिए 'बिछुआ' का प्रयोग किया जाता है।

विभिन्न स्थानों पर महत्व

  • आदिवासी एक विशेष प्रकार की बिंदी का प्रयोग करते हैं। चांदी से बनी यह बिंदी पूरी ललाट को ढके रहती है।
  • सौराष्ट्र तथा महाराष्ट्र में चांदी की बनी हुई 'हंसली' का प्रयोग गर्दन की सुंदरता के लिए किया जाता है।
  • राजस्थान और पंजाब में इनकी अपेक्षा कुछ हल्की हंसली पहनी जाती हैं।
  • कुल्लू में नाक में महिलाएँ 'नथ' या 'बुलाक' पहनती हैं।
  • कुल्लू और किन्नौर में चांदी की बजाय पीपल के पत्ते से बना एक आभूषण 'पीपल पत्र' माथे पर पहना जाता है।
  • कश्मीर में कानों को सजाने के लिए 'तारकांता' तथा 'पानकांता' का प्रयोग होता है।
  • उड़ीसा और केरल के स्वर्णांभूषण भी काफ़ी प्रसिद्ध हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सलीम, एम. मज़हर। परंपराओं के प्रतीक है आभूषण (हिन्दी) (एच.टी.एम) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 25 फ़रवरी, 2011

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