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[[चित्र:Kalibanga.jpg|thumb|250px|कालीबंगा के अवशेष]]
{{सूचना बक्सा पर्यटन
'''कालीबंगा (काले रंग की चूड़ियां)''' <br />
|चित्र=Kalibanga.jpg
 
|चित्र का नाम=कालीबंगा के अवशेष
यह स्थल [[राजस्थान]] के गंगानगर ज़िले में [[घग्घर नदी]] के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहाँ पर प्राक् [[हड़प्पा]] एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं।  
|विवरण=कालीबंगा एक ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ पर प्राक् [[हड़प्पा]] एवं [[हड़प्पा संस्कृति|हड़प्पाकालीन संस्कृति]] के [[अवशेष]] मिले हैं।
 
|राज्य=[[राजस्थान]]
हड़प्पा एवं [[मोहनजोदाड़ो]] की भांति यहाँ पर सुरक्षा दीवार से घिरे दो टीले पाए गए हैं। कुछ विद्धानों का मानना है कि यह [[सिंधु घाटी सभ्यता|सैंधव सभ्यता]] की तीसरी राजधानी रही होगी। पूर्वी टीले की सभ्यता प्राक्-हड़प्पाकालीन थी। काली बंगा में सिन्धु-पूर्व सभ्यता की यह बस्ती कच्ची ईंटों की किलेबन्दी से घिरी थी। किलेबन्दी के उत्तरी भाग में प्रवेश मार्ग था। जिससे सरस्वती नदी तक पहुँच सकते थे। मिट्टी के खिलौनों, पहियों तथा मवेशियों की हड्डियाँ के अंवेषण से बैलगाड़ी के अस्तित्व का अप्रत्यक्ष साक्ष्य प्राप्त होता है।  
|केन्द्र शासित प्रदेश=
 
|ज़िला=[[हनुमानगढ़ ज़िला|हनुमानगढ़]]
कालीबंगा के दुर्ग टीले के दक्षिण भाग में मिट्टी और कच्चे ईटों के बने हुए पाँच चबूतरे मिले हैं, जिसके शिखर पर हवन कुण्डों के होने के साक्ष्य मिले हैं।  
|निर्माता=
 
|स्वामित्व=
|प्रबंधक=
|निर्माण काल=
|स्थापना=
|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.com/maps?q=29.47,74.13&ll=29.500573,74.112396&spn=0.558175,0.883026&t=m&z=10&vpsrc=6 उत्तर- 29°28′, पूर्व- 74°08]
|मार्ग स्थिति=कालीबंगा हनुमानगढ़ जंक्शन से लगभग 32 किमी की दूरी पर स्थित है।
|मौसम=
|तापमान=
|प्रसिद्धि=कालीबंगा प्राचीन समय में चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध था।
|कब जाएँ=[[अक्तूबर]] से [[फ़रवरी]]
|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज़, रेल, बस आदि
|हवाई अड्डा=भटिंडा हवाई अड्डा और बीकानेर हवाई अड्डा
|रेलवे स्टेशन=हनुमानगढ़ जंक्शन
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|शीर्षक 1=[[भाषा]]
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}}
'''कालीबंगा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kalibangan'') [[राजस्थान]] के [[हनुमानगढ़ ज़िला|हनुमानगढ़ ज़िले]] में [[घग्घर नदी]] के बाएं [[तट]] पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहाँ पर प्राक् [[हड़प्पा]] एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के [[अवशेष]] मिले हैं। यह प्राचीन समय में चूडियों के लिए प्रसिद्ध था। ये चूडियाँ पत्‍थरों की बनी होती थी।
==सिन्धु-पूर्व सभ्यता==
हड़प्पा एवं [[मोहनजोदाड़ो]] की भांति यहाँ पर सुरक्षा दीवार से घिरे दो टीले पाए गए हैं। कुछ विद्धानों का मानना है कि यह [[सिंधु घाटी सभ्यता|सैंधव सभ्यता]] की तीसरी राजधानी रही होगी। पूर्वी टीले की सभ्यता प्राक्-हड़प्पाकालीन थी। कालीबंगा में सिन्धु-पूर्व सभ्यता की यह बस्ती कच्ची ईंटों की किलेबन्दी से घिरी थी। किलेबन्दी के उत्तरी भाग में प्रवेश मार्ग था। जिससे [[सरस्वती नदी]] तक पहुँच सकते थे। मिट्टी के खिलौनों, पहियों तथा मवेशियों की हड्डियाँ के [[अंवेषण]] से [[बैलगाड़ी]] के अस्तित्व का अप्रत्यक्ष साक्ष्य प्राप्त होता है।  
====साक्ष्य====
कालीबंगा के दुर्ग टीले के दक्षिण भाग में [[मिट्टी]] और कच्चे ईटों के बने हुए पाँच चबूतरे मिले हैं, जिसके शिखर पर हवन कुण्डों के होने के साक्ष्य मिले हैं।  
====दुर्ग====
अन्य हड़प्पा कालीन नगरों की भांति कालीबंगा दो भागों नगर दुर्ग (या गढ़ी) और नीचे दुर्ग में विभाजित था। नगर दुर्ग समनान्तर चतुर्भुजाकार था। यहाँ पर भवनों के अवशेष से स्पष्ट होता है कि यहाँ भवन कच्ची ईटों के बने थे।
अन्य हड़प्पा कालीन नगरों की भांति कालीबंगा दो भागों नगर दुर्ग (या गढ़ी) और नीचे दुर्ग में विभाजित था। नगर दुर्ग समनान्तर चतुर्भुजाकार था। यहाँ पर भवनों के अवशेष से स्पष्ट होता है कि यहाँ भवन कच्ची ईटों के बने थे।
 
==खेती==
कालीबंगा में 'प्राक् सैंधव संस्कृति' की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि एक जुते हुए खेत का साक्ष्य है जिसके कुंडों के बीच का फासला पूर्व में पश्चिम की ओर 30 से.मी. है और उत्तर से दक्षिण 1.10 मीटर है। कम दूरी के खांचों में चना एवं अधिक दूरी के खाचों में सरसों बोई जाती थी।  
कालीबंगा में 'प्राक् सैंधव संस्कृति' की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि एक जुते हुए खेत का साक्ष्य है जिसके कुंडों के बीच का फासला पूर्व में पश्चिम की ओर 30 से.मी. है और उत्तर से दक्षिण 1.10 मीटर है। कम दूरी के खांचों में चना एवं अधिक दूरी के खाचों में सरसों बोई जाती थी।  
 
[[चित्र:Kalibanga-2.jpg|thumb|left|क़ब्रिस्तान का मार्ग, कालीबंगा]]
==लघु पाषाण उपकरण==
यहाँ पर लघु पाषाण उपकरण, मणिक्य एवं मिट्टी के मनके, [[शंख]], कांच एवं मिट्टी की चूड़ियां, खिलौना गाड़ी के पहिए, सांड की खण्डित मृण्मूर्ति, सिलबट्टे आदि पुरावशेष मिले हैं। यहाँ से प्राप्त शैलखड़ी की मुहरें (सीलें) और मिट्टी की छोटी मुहरे (सीले) महत्त्वपूर्ण अभिलिखित वस्तुएं थी। मिट्टी की मुहरों पर सरकण्डे के छाप या निशान से यह लगता है कि इनका प्रयोग पैकिंग के लिए किया जाता रहा होगा।  
यहाँ पर लघु पाषाण उपकरण, मणिक्य एवं मिट्टी के मनके, [[शंख]], कांच एवं मिट्टी की चूड़ियां, खिलौना गाड़ी के पहिए, सांड की खण्डित मृण्मूर्ति, सिलबट्टे आदि पुरावशेष मिले हैं। यहाँ से प्राप्त शैलखड़ी की मुहरें (सीलें) और मिट्टी की छोटी मुहरे (सीले) महत्त्वपूर्ण अभिलिखित वस्तुएं थी। मिट्टी की मुहरों पर सरकण्डे के छाप या निशान से यह लगता है कि इनका प्रयोग पैकिंग के लिए किया जाता रहा होगा।  
 
==प्राप्त मुहरें व ईटें==
एक सील पर किसी अराध्य देव की आकृति है। यहाँ से प्राप्त मुहरें 'मेसोपोटामियाई' मुहरों के समकक्ष थी। कालीबंगा की प्राक्-सैंधव बस्तियों में प्रयुक्त होने वाली कच्ची ईटें 30x20x10 से.मी. आकार की होती थी। यहाँ से मिले मकानों के अवशेषों से पता चलता है कि सभी मकान कच्ची ईटों से बनाये गये थे, पर नाली और कुओं में पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था। यहाँ पर कुछ ईटें अलंकृत पायी गयी हैं। कालीबंगा का एक फर्श पूरे [[हड़प्पा]] का एक मात्र उदाहरण है जहाँ अलंकृत ईटों का प्रयोग किया गया है। इस पर प्रतिच्छेदी वृत का अलंकरण हैं।
एक सील पर किसी अराध्य देव की आकृति है। यहाँ से प्राप्त मुहरें 'मेसोपोटामियाई' मुहरों के समकक्ष थी। कालीबंगा की प्राक्-सैंधव बस्तियों में प्रयुक्त होने वाली कच्ची ईटें 30x20x10 से.मी. आकार की होती थी। यहाँ से मिले मकानों के अवशेषों से पता चलता है कि सभी मकान कच्ची ईटों से बनाये गये थे, पर नाली और [[कुआँ|कुओं]] में पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था। यहाँ पर कुछ ईटें अलंकृत पायी गयी हैं। कालीबंगा का एक फर्श पूरे [[हड़प्पा]] का एक मात्र उदाहरण है जहाँ अलंकृत ईटों का प्रयोग किया गया है। इस पर प्रतिच्छेदी वृत का अलंकरण हैं।
 
==क़ब्रिस्तान==
कालीबंगा के दक्षिण-पश्चिम में कब्रिस्तान स्थित था। यहाँ से शव विसर्जन के 37 उदाहरण मिले हैं। यहाँ अन्त्येष्टि संस्कार की तीन विधियां प्रचलित थी -  
[[चित्र:Kalibanga-1.jpg|thumb|250px|पश्चिमी गढ़ के रूप में टीले, कालीबंगा]]
#पूर्व समाधीकरण,
कालीबंगा के दक्षिण-पश्चिम में क़ब्रिस्तान स्थित था। यहाँ से शव विसर्जन के 37 उदाहरण मिले हैं। यहाँ अन्त्येष्टि संस्कार की तीन विधियां प्रचलित थी -  
#पूर्व समाधीकरण
#आंशिक समाधिकरण  
#आंशिक समाधिकरण  
#दाह संस्कार।
#दाह संस्कार
यहाँ पर बच्चे की खोपड़ी मिले है जिसमें 6 छेद हैं, इसे 'जल कपाली' या 'मस्तिष्क शोध' की बीमारी का पता चलता है। यहाँ से एक कंकाल मिला है जिसके बाएं घुटने पर किसी धारदार कुल्हाड़ी से काटने का निशान है।  
यहाँ पर बच्चे की खोपड़ी मिले है जिसमें 6 छेद हैं, इसे 'जल कपाली' या 'मस्तिष्क शोध' की बीमारी का पता चलता है। यहाँ से एक कंकाल मिला है जिसके बाएं घुटने पर किसी धारदार [[कुल्हाड़ी]] से काटने का निशान है।  
 
====भूकम्प के साक्ष्य====
यहाँ से भूकम्प के प्राचीनतम साक्ष्य के प्रमाण मिलते हैं। सम्भवतः घग्घर नदी के सूख जाने से कालीबंगा का विनाश हो गया।
यहाँ से भूकम्प के प्राचीनतम साक्ष्य के प्रमाण मिलते हैं। सम्भवतः घग्घर नदी के सूख जाने से कालीबंगा का विनाश हो गया।
 
====पहला टीला: प्राप्त साक्ष्य====
[[चित्र:Kalibangan-Seal-Commemorative-Stamp.jpg|thumb|250px|कालीबंगा से प्राप्त मुहर पर जारी [[डाक टिकट]]]]
इस सिन्धु-पूर्व सभ्यता मैं सामान्यता मकान में एक आँगन होता था और उसके किनारे पर कुछ कमरे बने होते थे आँगन में खाना पकाने का साक्ष्य भी प्राप्त होता है, क्योंकि वहाँ भूमि के ऊपर और नीचे दोनों प्रकार के तन्दूर मिले हैं। हल के प्रयोग का साक्ष्य मिला है, क्योंकि इस स्तर पर हराई के निशान पाये गये हैं। हल चलाने के ढंग से संकेत मिलता है कि एक ओर के खाँचे पूर्व-पश्चिम की दिशा में बनाये जाते थे और दूसरी ओर के उत्तर-दक्षिण दिशा में। इस युग में पत्थर और ताँबे दोनों प्रकार के उपकरण प्रचलित थे परंतु पत्थर के उपकरणों का प्रयोग अधिक होता था। यहाँ से दैनिक जीवन प्रयुक्त होने वाली वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कालीबंगा के इस चरण का जीवन 3000 ई.पू. के आस-पास रहा होगा।  
इस सिन्धु-पूर्व सभ्यता मैं सामान्यता मकान में एक आँगन होता था और उसके किनारे पर कुछ कमरे बने होते थे आँगन में खाना पकाने का साक्ष्य भी प्राप्त होता है, क्योंकि वहाँ भूमि के ऊपर और नीचे दोनों प्रकार के तन्दूर मिले हैं। हल के प्रयोग का साक्ष्य मिला है, क्योंकि इस स्तर पर हराई के निशान पाये गये हैं। हल चलाने के ढंग से संकेत मिलता है कि एक ओर के खाँचे पूर्व-पश्चिम की दिशा में बनाये जाते थे और दूसरी ओर के उत्तर-दक्षिण दिशा में। इस युग में पत्थर और ताँबे दोनों प्रकार के उपकरण प्रचलित थे परंतु पत्थर के उपकरणों का प्रयोग अधिक होता था। यहाँ से दैनिक जीवन प्रयुक्त होने वाली वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कालीबंगा के इस चरण का जीवन 3000 ई.पू. के आस-पास रहा होगा।  
 
====दूसरा टीला====
दूसरे बड़े टीले से जो वस्तुएँ मिली हैं, वे हड़प्पा सभ्यता के समानुरुप हैं। कालीबंगा के इस टीले में कुछ अग्नि कुण्ड भी मिले हैं। कालीबंगा से मिट्टी के बर्तनों के कुछ ऐसे टुकड़े मिले हैं, जिनसे यह निश्चय होता है कि सिन्धु सभ्यता की लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी। कालीबंगा में मोहनजोदड़ो जैसी उच्च-स्तर की जल निकास व्यवस्था का आभास नहीं होता है। भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों से किया जाता था, किंतु नालियों, कुओं तथा स्नानागारों में पकाई ईंटों प्रयुक्त की गई हैं।  
दूसरे बड़े टीले से जो वस्तुएँ मिली हैं, वे हड़प्पा सभ्यता के समानुरुप हैं। कालीबंगा के इस टीले में कुछ अग्नि कुण्ड भी मिले हैं। कालीबंगा से मिट्टी के बर्तनों के कुछ ऐसे टुकड़े मिले हैं, जिनसे यह निश्चय होता है कि सिन्धु सभ्यता की लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी। कालीबंगा में मोहनजोदड़ो जैसी उच्च-स्तर की जल निकास व्यवस्था का आभास नहीं होता है। भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों से किया जाता था, किंतु नालियों, कुओं तथा स्नानागारों में पकाई ईंटों प्रयुक्त की गई हैं।  


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*[http://www.asi.nic.in/asi_museums_kalibangan_hn.asp पुरातत्‍वीय संग्रहालय, कालीबंगा]
*[http://www.asi.nic.in/asi_museums_kalibangan_hn.asp पुरातत्‍वीय संग्रहालय, कालीबंगा]
*[http://www.asi.nic.in/asi_hn_excavations.asp  उत्खनन - Excavations]
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09:21, 10 मार्च 2024 के समय का अवतरण

कालीबंगा
कालीबंगा के अवशेष
कालीबंगा के अवशेष
विवरण कालीबंगा एक ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
राज्य राजस्थान
ज़िला हनुमानगढ़
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 29°28′, पूर्व- 74°08
मार्ग स्थिति कालीबंगा हनुमानगढ़ जंक्शन से लगभग 32 किमी की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि कालीबंगा प्राचीन समय में चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध था।
कब जाएँ अक्तूबर से फ़रवरी
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि
हवाई अड्डा भटिंडा हवाई अड्डा और बीकानेर हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन हनुमानगढ़ जंक्शन
एस.टी.डी. कोड 1552
गूगल मानचित्र
भाषा हिंदी, राजस्थानी, अंग्रेजी
अन्य जानकारी कालीबंगा की खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी।
अद्यतन‎

कालीबंगा (अंग्रेज़ी: Kalibangan) राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहाँ पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। यह प्राचीन समय में चूडियों के लिए प्रसिद्ध था। ये चूडियाँ पत्‍थरों की बनी होती थी।

सिन्धु-पूर्व सभ्यता

हड़प्पा एवं मोहनजोदाड़ो की भांति यहाँ पर सुरक्षा दीवार से घिरे दो टीले पाए गए हैं। कुछ विद्धानों का मानना है कि यह सैंधव सभ्यता की तीसरी राजधानी रही होगी। पूर्वी टीले की सभ्यता प्राक्-हड़प्पाकालीन थी। कालीबंगा में सिन्धु-पूर्व सभ्यता की यह बस्ती कच्ची ईंटों की किलेबन्दी से घिरी थी। किलेबन्दी के उत्तरी भाग में प्रवेश मार्ग था। जिससे सरस्वती नदी तक पहुँच सकते थे। मिट्टी के खिलौनों, पहियों तथा मवेशियों की हड्डियाँ के अंवेषण से बैलगाड़ी के अस्तित्व का अप्रत्यक्ष साक्ष्य प्राप्त होता है।

साक्ष्य

कालीबंगा के दुर्ग टीले के दक्षिण भाग में मिट्टी और कच्चे ईटों के बने हुए पाँच चबूतरे मिले हैं, जिसके शिखर पर हवन कुण्डों के होने के साक्ष्य मिले हैं।

दुर्ग

अन्य हड़प्पा कालीन नगरों की भांति कालीबंगा दो भागों नगर दुर्ग (या गढ़ी) और नीचे दुर्ग में विभाजित था। नगर दुर्ग समनान्तर चतुर्भुजाकार था। यहाँ पर भवनों के अवशेष से स्पष्ट होता है कि यहाँ भवन कच्ची ईटों के बने थे।

खेती

कालीबंगा में 'प्राक् सैंधव संस्कृति' की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि एक जुते हुए खेत का साक्ष्य है जिसके कुंडों के बीच का फासला पूर्व में पश्चिम की ओर 30 से.मी. है और उत्तर से दक्षिण 1.10 मीटर है। कम दूरी के खांचों में चना एवं अधिक दूरी के खाचों में सरसों बोई जाती थी।

क़ब्रिस्तान का मार्ग, कालीबंगा

लघु पाषाण उपकरण

यहाँ पर लघु पाषाण उपकरण, मणिक्य एवं मिट्टी के मनके, शंख, कांच एवं मिट्टी की चूड़ियां, खिलौना गाड़ी के पहिए, सांड की खण्डित मृण्मूर्ति, सिलबट्टे आदि पुरावशेष मिले हैं। यहाँ से प्राप्त शैलखड़ी की मुहरें (सीलें) और मिट्टी की छोटी मुहरे (सीले) महत्त्वपूर्ण अभिलिखित वस्तुएं थी। मिट्टी की मुहरों पर सरकण्डे के छाप या निशान से यह लगता है कि इनका प्रयोग पैकिंग के लिए किया जाता रहा होगा।

प्राप्त मुहरें व ईटें

एक सील पर किसी अराध्य देव की आकृति है। यहाँ से प्राप्त मुहरें 'मेसोपोटामियाई' मुहरों के समकक्ष थी। कालीबंगा की प्राक्-सैंधव बस्तियों में प्रयुक्त होने वाली कच्ची ईटें 30x20x10 से.मी. आकार की होती थी। यहाँ से मिले मकानों के अवशेषों से पता चलता है कि सभी मकान कच्ची ईटों से बनाये गये थे, पर नाली और कुओं में पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था। यहाँ पर कुछ ईटें अलंकृत पायी गयी हैं। कालीबंगा का एक फर्श पूरे हड़प्पा का एक मात्र उदाहरण है जहाँ अलंकृत ईटों का प्रयोग किया गया है। इस पर प्रतिच्छेदी वृत का अलंकरण हैं।

क़ब्रिस्तान

पश्चिमी गढ़ के रूप में टीले, कालीबंगा

कालीबंगा के दक्षिण-पश्चिम में क़ब्रिस्तान स्थित था। यहाँ से शव विसर्जन के 37 उदाहरण मिले हैं। यहाँ अन्त्येष्टि संस्कार की तीन विधियां प्रचलित थी -

  1. पूर्व समाधीकरण
  2. आंशिक समाधिकरण
  3. दाह संस्कार

यहाँ पर बच्चे की खोपड़ी मिले है जिसमें 6 छेद हैं, इसे 'जल कपाली' या 'मस्तिष्क शोध' की बीमारी का पता चलता है। यहाँ से एक कंकाल मिला है जिसके बाएं घुटने पर किसी धारदार कुल्हाड़ी से काटने का निशान है।

भूकम्प के साक्ष्य

यहाँ से भूकम्प के प्राचीनतम साक्ष्य के प्रमाण मिलते हैं। सम्भवतः घग्घर नदी के सूख जाने से कालीबंगा का विनाश हो गया।

पहला टीला: प्राप्त साक्ष्य

कालीबंगा से प्राप्त मुहर पर जारी डाक टिकट

इस सिन्धु-पूर्व सभ्यता मैं सामान्यता मकान में एक आँगन होता था और उसके किनारे पर कुछ कमरे बने होते थे आँगन में खाना पकाने का साक्ष्य भी प्राप्त होता है, क्योंकि वहाँ भूमि के ऊपर और नीचे दोनों प्रकार के तन्दूर मिले हैं। हल के प्रयोग का साक्ष्य मिला है, क्योंकि इस स्तर पर हराई के निशान पाये गये हैं। हल चलाने के ढंग से संकेत मिलता है कि एक ओर के खाँचे पूर्व-पश्चिम की दिशा में बनाये जाते थे और दूसरी ओर के उत्तर-दक्षिण दिशा में। इस युग में पत्थर और ताँबे दोनों प्रकार के उपकरण प्रचलित थे परंतु पत्थर के उपकरणों का प्रयोग अधिक होता था। यहाँ से दैनिक जीवन प्रयुक्त होने वाली वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कालीबंगा के इस चरण का जीवन 3000 ई.पू. के आस-पास रहा होगा।

दूसरा टीला

दूसरे बड़े टीले से जो वस्तुएँ मिली हैं, वे हड़प्पा सभ्यता के समानुरुप हैं। कालीबंगा के इस टीले में कुछ अग्नि कुण्ड भी मिले हैं। कालीबंगा से मिट्टी के बर्तनों के कुछ ऐसे टुकड़े मिले हैं, जिनसे यह निश्चय होता है कि सिन्धु सभ्यता की लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी। कालीबंगा में मोहनजोदड़ो जैसी उच्च-स्तर की जल निकास व्यवस्था का आभास नहीं होता है। भवनों का निर्माण कच्ची ईंटों से किया जाता था, किंतु नालियों, कुओं तथा स्नानागारों में पकाई ईंटों प्रयुक्त की गई हैं।


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