"सुभद्रा कुमारी चौहान": अवतरणों में अंतर
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|चित्र=Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg | |चित्र=Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg | ||
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|अन्य नाम= | |अन्य नाम= | ||
|जन्म=[[16 अगस्त]], [[1904]] | |जन्म=[[16 अगस्त]], [[1904]] | ||
|जन्म भूमि=[[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] | |जन्म भूमि=निहालपुर, [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] | ||
| | |अभिभावक=[[पिता]]- ठाकुर रामनाथ सिंह | ||
|पति/पत्नी=ठाकुर लक्ष्मण सिंह | |पति/पत्नी=ठाकुर लक्ष्मण सिंह | ||
|संतान= | |संतान=सुधा चौहान, अजय चौहान, विजय चौहान, अशोक चौहानत और ममता चौहान | ||
|कर्म भूमि= | |कर्म भूमि=[[भारत]] | ||
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|मृत्यु=[[15 फरवरी]], [[1948]] | |मृत्यु=[[15 फरवरी]], [[1948]] | ||
|मृत्यु स्थान=सड़क दुर्घटना ([[नागपुर]] - [[जबलपुर]] के मध्य) | |मृत्यु स्थान=सड़क दुर्घटना ([[नागपुर]] - [[जबलपुर]] के मध्य) | ||
|मुख्य रचनाएँ='मुकुल', 'झाँसी की रानी', बिखरे मोती | |मुख्य रचनाएँ='मुकुल', 'झाँसी की रानी', बिखरे मोती आदि। | ||
|विषय=सामाजिक, देशप्रेम | |विषय=सामाजिक, देशप्रेम | ||
|भाषा=[[हिन्दी]] | |भाषा=[[हिन्दी]] | ||
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|पुरस्कार-उपाधि=सेकसरिया पुरस्कार | |पुरस्कार-उपाधि=सेकसरिया पुरस्कार | ||
|प्रसिद्धि=स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री, कहानीकार | |प्रसिद्धि=स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री, कहानीकार | ||
|विशेष योगदान=राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए, उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने जो कविताएँ लिखीं, वे उस आन्दोलन में स्त्रियों में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं। | |विशेष योगदान=राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए, उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने जो [[कविता|कविताएँ]] लिखीं, वे उस आन्दोलन में स्त्रियों में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं। | ||
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<poem>'चमक उठी | | style="width:18em; float:right;"| | ||
<div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:5px"> | |||
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! सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ | |||
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<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%"> | |||
{{सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ}} | |||
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'''सुभद्रा कुमारी चौहान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Subhadra Kumari Chauhan'', जन्म: [[16 अगस्त]], [[1904]]; मृत्यु: [[15 फरवरी]], [[1948]]) [[हिन्दी]] की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए, पर उनकी प्रसिद्धि 'झाँसी की रानी' [[कविता]] के कारण है। सुभद्रा जी राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रहीं, किन्तु उन्होंने [[स्वाधीनता संग्राम]] में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात् अपनी अनुभूतियों को [[कहानी]] में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण उनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। | |||
<poem>'चमक उठी सन् सत्तावन में | |||
वह तलवार पुरानी थी | वह तलवार पुरानी थी | ||
बुंदेले हरबोलों के मुँह | बुंदेले हरबोलों के मुँह | ||
हमने सुनी कहानी थी | हमने सुनी कहानी थी | ||
ख़ूब लड़ी मरदानी वह तो | ख़ूब लड़ी मरदानी वह तो | ||
झाँसी वाली रानी थी।<ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2009/12/blog-post_17.html|title=झांसी की रानी - सुभद्राकुमारी चौहान|accessmonthday=17 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= | झाँसी वाली रानी थी।<ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2009/12/blog-post_17.html|title=झांसी की रानी - सुभद्राकुमारी चौहान|accessmonthday=17 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=हिन्दी कुंज|language=हिन्दी}}</ref></poem> | ||
'''हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में।''' | [[वीर रस]] से ओत प्रोत इन पंक्तियों की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान को 'राष्ट्रीय वसंत की प्रथम कोकिला' का विरुद दिया गया था। यह वह [[कविता]] है जो जन-जन का कंठहार बनी। कविता में [[भाषा]] का ऐसा ऋजु प्रवाह मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता सुभद्रा जी के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। इनकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी ऊर्जा से भर सकता है।<ref>{{cite web |url=http://kavyanchal.com/parichay/?p=237 |title=सुभद्राकुमारी चौहान |accessmonthday=17 मार्च|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink=|format= |publisher=काव्यांचल|language=हिन्दी }}</ref> ऐसा नहीं कि कविता केवल सामान्य जन के लिए ग्राह्य है, यदि काव्य-रसिक उसमें काव्यत्व खोजना चाहें तो वह भी है - | ||
<blockquote>'''हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में।'''</blockquote> | |||
[[लक्ष्मीबाई]] की वीरता का राजमहलों की समृद्धि में आना जैसा एक मणिकांचन योग था, कदाचित उसके लिए 'वीरता और वैभव की सगाई' से उपयुक्त प्रयोग दूसरा नहीं हो सकता था। स्वतंत्रता संग्राम के समय के जो अगणित कविताएँ लिखी गईं, उनमें इस कविता और माखनलाल चतुर्वेदी 'एक भारतीय आत्मा' की '''पुष्प की अभिलाषा''' का अनुपम स्थान है। सुभद्रा जी का नाम [[मैथिलीशरण गुप्त]], माखनलाल चतुर्वेदी, [[बालकृष्ण शर्मा नवीन]] की यशस्वी परम्परा में आदर के साथ लिया जाता है। वह बीसवीं शताब्दी की सर्वाधिक यशस्वी और प्रसिद्ध कवयित्रियों में अग्रणी हैं। | [[लक्ष्मीबाई]] की वीरता का राजमहलों की समृद्धि में आना जैसा एक मणिकांचन योग था, कदाचित उसके लिए 'वीरता और वैभव की सगाई' से उपयुक्त प्रयोग दूसरा नहीं हो सकता था। स्वतंत्रता संग्राम के समय के जो अगणित कविताएँ लिखी गईं, उनमें इस कविता और [[माखनलाल चतुर्वेदी]] 'एक भारतीय आत्मा' की '''पुष्प की अभिलाषा''' का अनुपम स्थान है। सुभद्रा जी का नाम [[मैथिलीशरण गुप्त]], माखनलाल चतुर्वेदी, [[बालकृष्ण शर्मा नवीन]] की यशस्वी परम्परा में आदर के साथ लिया जाता है। वह बीसवीं शताब्दी की सर्वाधिक यशस्वी और प्रसिद्ध कवयित्रियों में अग्रणी हैं। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म [[नागपंचमी]] के दिन [[16 अगस्त]] [[1904]] को [[इलाहाबाद]] के पास निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम 'ठाकुर रामनाथ सिंह' था। सुभद्रा कुमारी की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी। आपका विद्यार्थी जीवन [[प्रयाग]] में ही बीता। 'क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज' में आपने शिक्षा प्राप्त की। [[1913]] में नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका 'मर्यादा' में प्रकाशित हुई थी। यह कविता 'सुभद्राकुँवरि' के नाम से छपी। यह कविता ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई थी। सुभद्रा चंचल और कुशाग्र बुद्धि थी। पढ़ाई में प्रथम आने पर उसको इनाम मिलता था। सुभद्रा अत्यंत शीघ्र कविता लिख डालती थी, मानो उनको कोई प्रयास ही न करना पड़ता हो। स्कूल के काम की कविताएँ तो वह साधारणतया घर से आते-जाते तांगे में लिख लेती थी। इसी कविता की रचना करने के कारण से स्कूल में उसकी बड़ी प्रसिद्धि थी। | सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म [[नागपंचमी]] के दिन [[16 अगस्त]] [[1904]] को [[इलाहाबाद]] के पास निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम 'ठाकुर रामनाथ सिंह' था। सुभद्रा कुमारी की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी। आपका विद्यार्थी जीवन [[प्रयाग]] में ही बीता। 'क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज' में आपने शिक्षा प्राप्त की। [[1913]] में नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका 'मर्यादा' में प्रकाशित हुई थी। यह [[कविता]] 'सुभद्राकुँवरि' के नाम से छपी। यह कविता ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई थी। सुभद्रा चंचल और कुशाग्र बुद्धि थी। पढ़ाई में प्रथम आने पर उसको इनाम मिलता था। सुभद्रा अत्यंत शीघ्र कविता लिख डालती थी, मानो उनको कोई प्रयास ही न करना पड़ता हो। स्कूल के काम की कविताएँ तो वह साधारणतया घर से आते-जाते तांगे में लिख लेती थी। इसी कविता की रचना करने के कारण से स्कूल में उसकी बड़ी प्रसिद्धि थी। | ||
====बचपन==== | |||
सुभद्रा और [[महादेवी वर्मा]] दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं। दोनों ने एक-दूसरे की कीर्ति से सुख पाया। सुभद्रा की पढ़ाई नवीं कक्षा के बाद छूट गई। शिक्षा समाप्त करने के बाद नवलपुर के सुप्रसिद्ध 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' के साथ आपका विवाह हो गया।<ref>{{cite web |url=http://www.milansagar.com/kobi/kobi-subhadrakumchauhan.html|title=सुभद्राकुमारी चौहान|accessmonthday=17 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink=|format= | सुभद्रा और [[महादेवी वर्मा]] दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं। दोनों ने एक-दूसरे की कीर्ति से सुख पाया। सुभद्रा की पढ़ाई नवीं कक्षा के बाद छूट गई। शिक्षा समाप्त करने के बाद नवलपुर के सुप्रसिद्ध 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' के साथ आपका विवाह हो गया।<ref>{{cite web |url=http://www.milansagar.com/kobi/kobi-subhadrakumchauhan.html|title=सुभद्राकुमारी चौहान|accessmonthday=17 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink=|format=एच.टी.एम.एल|publisher=मिलनसागर|language=हिन्दी}}</ref> बाल्यकाल से ही साहित्य में रुचि थी। प्रथम काव्य रचना आपने 15 वर्ष की आयु में ही लिखी थी। सुभद्रा कुमारी का स्वभाव बचपन से ही दबंग, बहादुर व विद्रोही था। वह बचपन से ही अशिक्षा, अंधविश्वास, जाति आदि रूढ़ियों के विरुद्ध लडीं। | ||
==विवाह== | ==विवाह== | ||
[[1919]] ई. में उनका विवाह 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' से हुआ, विवाह के | [[1919]] ई. में उनका विवाह 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' से हुआ, विवाह के पश्चात् वे [[जबलपुर]] में रहने लगीं। सुभद्राकुमारी चौहान अपने नाटककार पति लक्ष्मणसिंह के साथ शादी के डेढ़ वर्ष के होते ही [[सत्याग्रह आंदोलन|सत्याग्रह]] में शामिल हो गईं और उन्होंने जेलों में ही जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण वर्ष गुज़ारे। गृहस्थी और नन्हे-नन्हे बच्चों का जीवन सँवारते हुए उन्होंने समाज और राजनीति की सेवा की। देश के लिए कर्तव्य और समाज की ज़िम्मेदारी सँभालते हुए उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ की बलि चढ़ा दी- | ||
<blockquote>'''न होने दूँगी अत्याचार, चलो मैं हो जाऊँ बलिदान।'''</blockquote> | |||
'''न होने दूँगी अत्याचार, चलो मैं हो जाऊँ बलिदान।''' | |||
सुभद्रा जी ने बहुत पहले अपनी कविताओं में भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों, धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण और सांप्रदायिक सद्भाव का वातावरण बनाने के प्रयत्नों को रेखांकित कर दिया था- | सुभद्रा जी ने बहुत पहले अपनी कविताओं में भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों, धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण और सांप्रदायिक सद्भाव का वातावरण बनाने के प्रयत्नों को रेखांकित कर दिया था- | ||
<poem>मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी यह मेरी | <poem>मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी यह मेरी | ||
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प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास | प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास | ||
जीव दया जिन पर गौतम की, आओ देखो इसके पास।</poem> | जीव दया जिन पर गौतम की, आओ देखो इसके पास।</poem> | ||
[[जबलपुर]] से माखनलाल चतुर्वेदी 'कर्मवीर' पत्र निकालते थे। उसमें लक्ष्मण सिंह को नौकरी मिल गईं। सुभद्रा भी उनके साथ जबलपुर आ गईं। सुभद्रा जी सास के अनुशासन में रहकर सुघड़ गृहिणी बनकर संतुष्ट नहीं थीं। उनके भीतर जो तेज था, काम करने का उत्साह था, कुछ नया करने की जो लगन थी, उसके लिए घर की सीमा बहुत छोटी थी। सुभद्रा जी में लिखने की प्रतिभा थी और अब पति के रुप में उन्हें ऐसा व्यक्ति मिला था जिसने उनकी प्रतिभा को पनपने के लिए उचित वातावरण देने का प्रयत्न किया। | [[जबलपुर]] से [[माखनलाल चतुर्वेदी]] 'कर्मवीर' पत्र निकालते थे। उसमें लक्ष्मण सिंह को नौकरी मिल गईं। सुभद्रा भी उनके साथ जबलपुर आ गईं। सुभद्रा जी सास के अनुशासन में रहकर सुघड़ गृहिणी बनकर संतुष्ट नहीं थीं। उनके भीतर जो तेज था, काम करने का उत्साह था, कुछ नया करने की जो लगन थी, उसके लिए घर की सीमा बहुत छोटी थी। सुभद्रा जी में लिखने की प्रतिभा थी और अब पति के रुप में उन्हें ऐसा व्यक्ति मिला था जिसने उनकी प्रतिभा को पनपने के लिए उचित वातावरण देने का प्रयत्न किया। | ||
==स्वतंत्रता में योगदान== | |||
[[1920]] - [[1921|21]] में सुभद्रा और लक्ष्मण सिंह | [[1920]]-[[1921|21]] में सुभद्रा और लक्ष्मण सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। उन्होंने नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और घर-घर में [[कांग्रेस]] का संदेश पहुँचाया। त्याग और सादगी में सुभद्रा जी सफ़ेद खादी की बिना किनारी [[धोती]] पहनती थीं। गहनों और कपड़ों का बहुत शौक़ होते हुए भी वह [[चूड़ी]] और [[बिंदी]] का प्रयोग नहीं करती थी। उन को सादा वेशभूषा में देख कर [[महात्मा गाँधी|बापू]] ने सुभद्रा जी से पूछ ही लिया, 'बेन! तुम्हारा ब्याह हो गया है?' सुभद्रा ने कहा, 'हाँ!' और फिर उत्साह से बताया कि मेरे पति भी मेरे साथ आए हैं। इसको सुनकर [[कस्तूरबा गाँधी|बा]] और [[महात्मा गाँधी|बापू]] जहाँ आश्वस्त हुए वहाँ कुछ नाराज़ भी हुए। बापू ने सुभद्रा को डाँटा, 'तुम्हारे माथे पर [[सिन्दूर]] क्यों नहीं है और तुमने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनीं? जाओ, कल किनारे वाली साड़ी पहनकर आना।' सुभद्रा जी के सहज स्नेही मन और निश्छल स्वभाव का जादू सभी पर चलता था। उनका जीवन प्रेम से युक्त था और निरंतर निर्मल प्यार बाँटकर भी ख़ाली नहीं होता था।<br /> | ||
[[1922]] का जबलपुर का 'झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएँ होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख '''लोकल सरोजिनी''' कहकर किया था। सुभद्रा जी में बड़े सहज ढंग से गंभीरता और चंचलता का अद्भुत संयोग था। वे जिस सहजता से देश की पहली स्त्री सत्याग्रही बनकर जेल जा सकती थीं, उसी तरह अपने घर में, बाल-बच्चों में और गृहस्थी के छोटे-मोटे कामों में भी रमी रह सकती थीं।<br /> | |||
[[1922]] का जबलपुर का 'झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएँ होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख '''लोकल सरोजिनी''' कहकर किया था। सुभद्रा जी में बड़े सहज ढंग से गंभीरता और चंचलता का अद्भुत संयोग था। वे जिस सहजता से देश की पहली स्त्री सत्याग्रही बनकर जेल जा सकती थीं, उसी तरह अपने घर में, बाल-बच्चों में और गृहस्थी के छोटे-मोटे कामों में भी रमी रह सकती थीं। | लक्ष्मणसिंह चौहान जैसे जीवनसाथी और माखनलाल चतुर्वेदी जैसा पथ-प्रदर्शक पाकर वह स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर सक्रिय भाग लेती रहीं। कई बार जेल भी गईं। काफ़ी दिनों तक मध्य प्रांत असेम्बली की [[कांग्रेस]] सदस्या रहीं और साहित्य एवं राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेकर अन्त तक देश की एक जागरूक नारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाती रहीं। [[गांधी जी]] की असहयोग की पुकार को पूरा देश सुन रहा था। सुभद्रा ने भी स्कूल से बाहर आकर पूरे मन-प्राण से [[असहयोग आंदोलन]] में अपने को दो रूपों में झोंक दिया - | ||
लक्ष्मणसिंह चौहान जैसे जीवनसाथी और माखनलाल चतुर्वेदी जैसा पथ-प्रदर्शक पाकर वह स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर सक्रिय भाग लेती रहीं। कई बार जेल भी गईं। काफ़ी दिनों तक मध्य प्रांत असेम्बली की कांग्रेस सदस्या रहीं और साहित्य एवं राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेकर अन्त तक देश की एक जागरूक नारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाती रहीं। [[गांधी जी]] की असहयोग की पुकार को पूरा देश सुन रहा था। सुभद्रा ने भी स्कूल से बाहर आकर पूरे मन-प्राण से [[असहयोग आंदोलन]] में अपने को दो रूपों में झोंक दिया - | |||
#देश - सेविका के रूप में | #देश - सेविका के रूप में | ||
#देशभक्त कवि के रूप में। | #देशभक्त कवि के रूप में। | ||
‘[[जलियांवाला बाग]],’ [[1917]] के नृशंस हत्याकांड से उनके मन पर गहरा आघात लगा। उन्होंने तीन आग्नेय कविताएँ लिखीं। ‘जलियाँवाले बाग़ में वसंत’ में उन्होंने लिखा- | ‘[[जलियांवाला बाग]],’ [[1917]] के नृशंस हत्याकांड से उनके मन पर गहरा आघात लगा। उन्होंने तीन आग्नेय कविताएँ लिखीं। ‘जलियाँवाले बाग़ में वसंत’ में उन्होंने लिखा- | ||
<poem>परिमलहीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है | <poem>परिमलहीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है | ||
हा! यह प्यारा बाग़ | हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है। | ||
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना | आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना | ||
यह है शोक स्थान यहाँ मत शोर मचाना। | यह है शोक स्थान यहाँ मत शोर मचाना। | ||
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर | कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर | ||
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।<ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2010/02/subhadra-kumari-chauhan.html|title=जलियाँवाला बाग़ में बसंत - सुभद्रा कुमारी चौहान|accessmonthday=17 मार्च |accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= | कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।<ref>{{cite web |url=http://www.hindikunj.com/2010/02/subhadra-kumari-chauhan.html|title=जलियाँवाला बाग़ में बसंत - सुभद्रा कुमारी चौहान|accessmonthday=17 मार्च |accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=हिन्दी कुँज|language=हिन्दी}}</ref></poem> | ||
सन [[1920]] में जब चारों ओर [[गांधी जी]] के नेतृत्व की धूम थी, तो उनके आह्वान पर दोनों पति-पत्नि स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए कटिबद्ध हो गए। उनकी कविताई इसीलिए आज़ादी की आग से ज्वालामयी बन गई है।<ref>{{cite web |url=http://www.swarajsansthan.org/books.htm|title=सुभद्राकुमारी चौहान|accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= | सन [[1920]] में जब चारों ओर [[गांधी जी]] के नेतृत्व की धूम थी, तो उनके आह्वान पर दोनों पति-पत्नि स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए कटिबद्ध हो गए। उनकी कविताई इसीलिए आज़ादी की आग से ज्वालामयी बन गई है।<ref>{{cite web |url=http://www.swarajsansthan.org/books.htm|title=सुभद्राकुमारी चौहान|accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=स्वराज संस्थान|language=हिन्दी}}</ref> | ||
==रचनाएँ== | ==रचनाएँ== | ||
उन्होंने लगभग 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की। किसी कवि की कोई [[कविता]] इतनी अधिक लोकप्रिय हो जाती है कि शेष कविताई प्रायः गौण होकर रह जाती है। [[हरिवंश राय बच्चन|बच्चन]] की '[[मधुशाला]]' और सुभद्रा जी की इस कविता के समय यही हुआ। यदि केवल लोकप्रियता की दृष्टि से ही विस्तार करें तो उनकी कविता पुस्तक 'मुकुल' [[1930]] के छह संस्करण उनके जीवन काल में ही हो जाना कोई सामान्य बात नहीं है। इनका पहला काव्य-संग्रह 'मुकुल' [[1930]] में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ 'त्रिधारा' में प्रकाशित हुई हैं। 'झाँसी की रानी' इनकी बहुचर्चित रचना है। [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] में सक्रिय भागीदारी और जेल यात्रा के बाद भी उनके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए- | |||
#'बिखरे मोती ([[1932]]) | |||
#उन्मादिनी ([[1934]]) | |||
#सीधे-सादे चित्र ([[1947]]) | |||
#'बिखरे मोती (1932 ) | इन कथा संग्रहों में कुल 38 कहानियाँ (क्रमशः पंद्रह, नौ और चौदह)। सुभद्रा जी की समकालीन स्त्री-कथाकारों की संख्या अधिक नहीं थीं। | ||
#उन्मादिनी (1934) | |||
#सीधे-सादे चित्र (1947 ) | |||
==स्त्रियों की प्रेरणा== | ==स्त्रियों की प्रेरणा== | ||
राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए, उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने जो कविताएँ लिखीं, वे उस आन्दोलन में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं। स्त्रियों को सम्बोधन करती यह कविता देखिए-- | राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए, उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने जो कविताएँ लिखीं, वे उस आन्दोलन में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं। स्त्रियों को सम्बोधन करती यह कविता देखिए-- | ||
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भारत लक्ष्मी लौटाने को , रच दें लंका काण्ड सखी।।"</poem> | भारत लक्ष्मी लौटाने को , रच दें लंका काण्ड सखी।।"</poem> | ||
[[असहयोग आन्दोलन]] के लिए यह आह्वान इस शैली में तब हुआ है, जब स्त्री सशक्तीकरण का ऐसा अधिक प्रभाव नहीं था। | [[असहयोग आन्दोलन]] के लिए यह आह्वान इस शैली में तब हुआ है, जब स्त्री सशक्तीकरण का ऐसा अधिक प्रभाव नहीं था। | ||
{{दाँयाबक्सा|पाठ=[[1922]] का [[जबलपुर]] का 'झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएँ होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख '''लोकल सरोजिनी''' कहकर किया था। |विचारक=}} | |||
==देशप्रेम== | ==देशप्रेम== | ||
'''वीरों का कैसा हो वसन्त' उनकी एक ओर प्रसिद्ध देश-प्रेम की [[कविता]] है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की सधि मापर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं। | |||
'''वीरों का कैसा हो | |||
==राष्ट्रभाषा प्रेम== | ==राष्ट्रभाषा प्रेम== | ||
'राष्ट्रभाषा' के प्रति भी उनका गहरा सरोकार है, जिसकी सजग अभिव्यक्ति 'मातृ मन्दिर में', नामक कविता में हुई है, यह उनकी राष्ट्रभाषा के उत्कर्ष के लिए चिन्ता है - | 'राष्ट्रभाषा' के प्रति भी उनका गहरा सरोकार है, जिसकी सजग अभिव्यक्ति 'मातृ मन्दिर में', नामक कविता में हुई है, यह उनकी राष्ट्रभाषा के उत्कर्ष के लिए चिन्ता है - | ||
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दुखिनी की उस दीना को"</poem> | दुखिनी की उस दीना को"</poem> | ||
==काव्य में प्रेमानुभुति== | ==काव्य में प्रेमानुभुति== | ||
{{ | {{दाँयाबक्सा|पाठ=सुभद्राकुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारियों की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी के साथ-साथ एक सच्ची देश सेविका के भाव उन्होंने व्यक्त किए हैं। उनकी शैली में वही सरलता है, वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है।|विचारक=[[गजानन माधव मुक्तिबोध]]}} | ||
तरल जीवनानुभुतियों से उपजी सुभद्रा कुमारी चौहान कि कविता का प्रेम दूसरा आधार-स्तम्भ है। यह प्रेम द्विमुखी है। शैशव - बचपन से प्रेम और दूसरा दाम्पत्य प्रेम, 'तीसरे' की उपस्थिति का यहाँ पर सवाल ही नहीं है। | तरल जीवनानुभुतियों से उपजी सुभद्रा कुमारी चौहान कि कविता का प्रेम दूसरा आधार-स्तम्भ है। यह प्रेम द्विमुखी है। शैशव - बचपन से प्रेम और दूसरा दाम्पत्य प्रेम, 'तीसरे' की उपस्थिति का यहाँ पर सवाल ही नहीं है। | ||
====बचपन से प्रेम==== | ====बचपन से प्रेम==== | ||
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<poem>"बार-बार आती है मुझको | <poem>"बार-बार आती है मुझको | ||
मधुर याद बचपन तेरी", | मधुर याद बचपन तेरी", | ||
"आ जा बचपन, एक बार फिर | "आ जा बचपन, एक बार फिर | ||
दे दो अपनी निर्मल शान्ति | दे दो अपनी निर्मल शान्ति | ||
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली | व्याकुल व्यथा मिटाने वाली | ||
वह अपनी प्राकृत विश्रांति।"</poem> | वह अपनी प्राकृत विश्रांति।"</poem> | ||
अपनी संतति में मनुष्य किस प्रकार 'मेरा नया बचपन कविता' कविता में मार्मिक अभिव्यक्ति पाता है- | अपनी संतति में मनुष्य किस प्रकार 'मेरा नया बचपन कविता' कविता में मार्मिक अभिव्यक्ति पाता है- | ||
<poem>"मैं बचपन को बुला रही थी | <poem>"मैं बचपन को बुला रही थी | ||
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नंदन वन सी फूल उठी | नंदन वन सी फूल उठी | ||
यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।"</poem> | यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।"</poem> | ||
शैशव सम्बन्धी इन कविताओं की एक और बहुत बड़ी विशेषता है, कि ये 'बिटिया प्रधान' कविताएँ हैं - कन्या भ्रूण-हत्या की बात तो हम आज ज़ोर-शोर से कर रहे हैं, किन्तु बहुत ही चुपचाप, बिना मुखरता के, सुभद्रा इस विचार को सहजता से व्यक्त करती हैं। यहाँ 'अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो' का भाव नहीं, अपितु संसार का समस्त सुख बेटी में देखा गया है। 'बालिका का परिचय' बिटिया के महत्व को इस प्रकार प्रस्थापित करती है- | |||
शैशव सम्बन्धी इन कविताओं की एक और बहुत बड़ी विशेषता है, कि ये 'बिटिया प्रधान' कविताएँ हैं - कन्या भ्रूण-हत्या की बात तो हम आज | |||
<poem>"दीपशिखा है अंधकार की | <poem>"दीपशिखा है अंधकार की | ||
घनी घटा की उजियाली | घनी घटा की उजियाली | ||
पंक्ति 146: | पंक्ति 149: | ||
और दया के तुम आगार | और दया के तुम आगार | ||
सदा दिखाई दो तुम हँसते | सदा दिखाई दो तुम हँसते | ||
चाहे मुझसे करो न प्यार।<ref>{{cite web |url=http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A5%87_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8 |title=प्रियतम से|accessmonthday=18 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= | चाहे मुझसे करो न प्यार।<ref>{{cite web |url=http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A5%87_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8 |title=प्रियतम से|accessmonthday=18 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=कविताकोश|language=हिन्दी}}</ref>" | ||
अपने और प्रिय और बीच किसी 'तीसरे' की उपस्थिति उनके लिए पूर्ण असहनीय है। 'मानिनि राध', कविता में व्यक्त यह आक्रोश पूरे साहित्य में विरल है- | अपने और प्रिय और बीच किसी 'तीसरे' की उपस्थिति उनके लिए पूर्ण असहनीय है। 'मानिनि राध', कविता में व्यक्त यह आक्रोश पूरे साहित्य में विरल है- | ||
" | "ख़ूनी भाव उठें उसके प्रति | ||
जो हों प्रिय का प्यारा | जो हों प्रिय का प्यारा | ||
उसके लिए हृदय यह मेरा | उसके लिए हृदय यह मेरा | ||
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खो दिया जिसे मद जिसे मद में मैंने | खो दिया जिसे मद जिसे मद में मैंने | ||
लाओ, दे दो वह सब मेरा।" </poem> | लाओ, दे दो वह सब मेरा।" </poem> | ||
==भक्ति भावना== | ==भक्ति भावना== | ||
उनका भक्ति-भाव | उनका भक्ति-भाव भी प्रबल है। पूर्ण मन से प्रभु के सम्मुख सर्वात्म समर्पण की इससे सुन्दर, सहज अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती- | ||
<poem>"देव! तुम्हारे कई उपासक | <poem>"देव! तुम्हारे कई उपासक | ||
कई ढंग से आते | कई ढंग से आते | ||
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कई रंग की लाते हैं।"</poem> | कई रंग की लाते हैं।"</poem> | ||
==प्रकृति प्रेम== | ==प्रकृति प्रेम== | ||
प्रकृति से भी सुभद्रा कुमारी चौहान के कवि का गहन अनुराग रहा है--'नीम' | प्रकृति से भी सुभद्रा कुमारी चौहान के कवि का गहन अनुराग रहा है--'नीम', 'फूल के प्रति', 'मुरझाया फूल' आदि में उन्होंने प्रकृति का चित्रण बड़े सहज भाव से किया है। इस प्रकार सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का फ़लक अत्यन्त व्यापक है, किंतु फिर भी.........खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी, उनकी अक्षय कीर्ति का ऐसा स्तम्भ है जिस पर काल की बात अपना कोई प्रभाव नहीं छोड़ पायेगी, यह कविता जन-जन का हृदयहार बनी ही रहेगी। | ||
==बाल कविताएँ== | ==बाल कविताएँ== | ||
[[चित्र:Subhadra-Chauhan-Stamp.jpg|thumb|सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]] | |||
सुभद्रा जी ने मातृत्व से प्रेरित होकर बहुत सुंदर बाल कविताएँ भी लिखी हैं। यह कविताएँ भी उनकी राष्ट्रीय भावनाओं से ओत प्रोत हैं। 'सभा का खेल' नामक कविता में, खेल-खेल में राष्ट्रीय भाव जगाने का प्रयास इस प्रकार किया है - | सुभद्रा जी ने मातृत्व से प्रेरित होकर बहुत सुंदर बाल कविताएँ भी लिखी हैं। यह कविताएँ भी उनकी राष्ट्रीय भावनाओं से ओत प्रोत हैं। 'सभा का खेल' नामक कविता में, खेल-खेल में राष्ट्रीय भाव जगाने का प्रयास इस प्रकार किया है - | ||
<poem>सभा-सभा का खेल आज हम खेलेंगे, | <poem>सभा-सभा का खेल आज हम खेलेंगे, | ||
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हम घायल मरने वाले।</poem> | हम घायल मरने वाले।</poem> | ||
इस कविता में बच्चों के खेल, गांधी जी का संदेश, [[नेहरु जी]] के मन में गांधी जी के प्रति भक्ति, [[सरोजिनी नायडू]] की सांप्रदायिक एकता संबंधी विचारधारा को बड़ी खूबी से व्यक्त किया गया है। असहयोग आंदोलन के वातावरण में पले-बढे़ बच्चों के लिए ऐसे खेल स्वाभाविक थे। | इस कविता में बच्चों के खेल, [[गांधी जी]] का संदेश, [[नेहरु जी]] के मन में गांधी जी के प्रति भक्ति, [[सरोजिनी नायडू]] की सांप्रदायिक एकता संबंधी विचारधारा को बड़ी खूबी से व्यक्त किया गया है। [[असहयोग आंदोलन]] के वातावरण में पले-बढे़ बच्चों के लिए ऐसे खेल स्वाभाविक थे। प्रसिद्ध हिन्दी कवि [[गजानन माधव मुक्तिबोध]] ने सुभद्रा जी के राष्ट्रीय काव्य को हिन्दी में बेजोड़ माना है- '''कुछ विशेष अर्थों में सुभद्रा जी का राष्ट्रीय काव्य हिन्दी में बेजोड़ है। क्योंकि उन्होंने उस राष्ट्रीय आदर्श को जीवन में समाया हुआ देखा है, उसकी प्रवृत्ति अपने अंतःकरण में पाई है, अतः वह अपने समस्त जीवन-संबंधों को उसी प्रवृत्ति की प्रधानता पर आश्रित कर देती हैं, उन जीवन संबंधों को उस प्रवृत्ति के प्रकाश में चमका देती हैं।… सुभद्राकुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारियों की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी के साथ-साथ एक सच्ची देश सेविका के भाव उन्होंने व्यक्त किए हैं। उनकी शैली में वही सरलता है, वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है। उनमें एक ओर जहाँ नारी-सुलभ गुणों का उत्कर्ष है, वहाँ वह स्वदेश प्रेम और देशाभिमान भी है जो एक क्षत्रिय नारी में होना चाहिए।''' | ||
प्रसिद्ध हिन्दी कवि [[गजानन माधव मुक्तिबोध]] ने सुभद्रा जी के राष्ट्रीय काव्य को हिन्दी में बेजोड़ माना है- '''कुछ विशेष अर्थों में सुभद्रा जी का राष्ट्रीय काव्य हिन्दी में बेजोड़ है। क्योंकि उन्होंने उस राष्ट्रीय आदर्श को जीवन में समाया हुआ देखा है, उसकी प्रवृत्ति अपने अंतःकरण में पाई है, अतः वह अपने समस्त जीवन-संबंधों को उसी प्रवृत्ति की प्रधानता पर आश्रित कर देती हैं, उन जीवन संबंधों को उस प्रवृत्ति के प्रकाश में चमका देती हैं।… सुभद्राकुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारियों की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी के साथ-साथ एक सच्ची देश सेविका के भाव उन्होंने व्यक्त किए हैं। उनकी शैली में वही सरलता है, वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है। उनमें एक ओर जहाँ नारी-सुलभ गुणों का उत्कर्ष है, वहाँ वह स्वदेश प्रेम और देशाभिमान भी है जो एक क्षत्रिय नारी में होना चाहिए।''' | |||
==नारी समाज का विश्वास== | ==नारी समाज का विश्वास== | ||
सुभद्रा जी की बेटी सुधा चौहान का विवाह प्रसिद्ध साहित्यकार [[प्रेमचंद]] के पुत्र [[अमृतराय]] से हुआ था जो स्वयं अच्छे लेखक थे। सुधा ने उनकी जीवनी लिखी- '''मिला तेज से तेज'''।<ref>{{cite web |url=http://hindi-blog-podcast.blogspot.com/2007/09/subhdra-kumari-chauhan-laxman-singh.html |title=सुभद्रा कुमारी चौहान -बचपन, विवाह: मिला तेज से तेज|accessmonthday=15 मार्च|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= | सुभद्रा जी की बेटी सुधा चौहान का विवाह प्रसिद्ध साहित्यकार [[प्रेमचंद]] के पुत्र [[अमृतराय]] से हुआ था जो स्वयं अच्छे लेखक थे। सुधा ने उनकी जीवनी लिखी- '''मिला तेज से तेज'''।<ref>{{cite web |url=http://hindi-blog-podcast.blogspot.com/2007/09/subhdra-kumari-chauhan-laxman-singh.html |title=सुभद्रा कुमारी चौहान -बचपन, विवाह: मिला तेज से तेज|accessmonthday=15 मार्च|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट|language=हिन्दी}}</ref> सुभद्रा जी का पूरा जीवन सक्रिय राजनीति में बीता। वह नगर की सबसे पुरानी कार्यकर्ती थीं। [[1930]] - [[1931|31]] और [[1941]] - [[1942|42]] में [[जबलपुर]] की आम सभाओं में स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होती थीं जो एक नया ही अनुभव था। स्त्रियों की इस जागृति के पीछे सुभद्रा जी थीं जो उनकी तैयार की गई टोली के अनवरत प्रयास का फल था। सन् [[1920]] से ही वे सभाओं में पर्दे का विरोध, रूढ़ियों के विरोध, छुआछूत हटाने के पक्ष में और स्त्री-शिक्षा के प्रचार के लिए बोलती रही थीं। उन सबसे बहुत-सी बातों में अलग होकर भी वह उन्हीं में से एक थीं। उनमें भारतीय नारी की सहज शील और मर्यादा थी, इस कारण उन्हें नारी समाज का पूरा विश्वास प्राप्त था। विचारों की दृढ़ता के साथ-साथ उनके स्वभाव और व्यवहार में एक लचीलापन था, जिससे भिन्न विचारों और रहन-सहन वालों के दिल में भी उन्होंने घर बना लिया था। | ||
==कहानी लेखन== | ==कहानी लेखन== | ||
सुभद्रा जी ने कहानी लिखना आरंभ किया क्योंकि उस समय संपादक कविताओं पर पारिश्रमिक नहीं देते थे। संपादक चाहते थे कि वह गद्य रचना करें और उसके लिए पारिश्रमिक भी देते थे। समाज की अनीतियों से जुड़ी जिस वेदना को वह अभिव्यक्त करना चाहती थीं, उसकी अभिव्यक्ति का एक मात्र माध्यम गद्य ही हो सकता था। अतः सुभद्रा जी ने कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों में देश-प्रेम के साथ-साथ समाज की विद्रूपता, अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए संघर्षरत नारी की पीड़ा और विद्रोह का स्वर देखने को मिलता है। एक ही वर्ष में उन्होंने एक कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' बना डाला।<ref>{{cite web |url=http://rachanakar.blogspot.com/2008/04/blog-post_4623.html|title=सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि|accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= | सुभद्रा जी ने कहानी लिखना आरंभ किया क्योंकि उस समय संपादक कविताओं पर पारिश्रमिक नहीं देते थे। संपादक चाहते थे कि वह गद्य रचना करें और उसके लिए पारिश्रमिक भी देते थे। समाज की अनीतियों से जुड़ी जिस वेदना को वह अभिव्यक्त करना चाहती थीं, उसकी अभिव्यक्ति का एक मात्र माध्यम गद्य ही हो सकता था। अतः सुभद्रा जी ने कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों में देश-प्रेम के साथ-साथ समाज की विद्रूपता, अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए संघर्षरत नारी की पीड़ा और विद्रोह का स्वर देखने को मिलता है। एक ही वर्ष में उन्होंने एक कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' बना डाला।<ref>{{cite web |url=http://rachanakar.blogspot.com/2008/04/blog-post_4623.html|title=सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि|accessmonthday=16 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=रचनाकार|language=हिन्दी}}</ref> 'बिखरे मोती' संग्रह को छपवाने के लिए वह इलाहाबाद गईं। इस बार भी सेकसरिया पुरस्कार उन्हें ही मिला- कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' के लिए। उनकी अधिकांश कहानियाँ सत्य घटना पर आधारित हैं। देश-प्रेम के साथ-साथ उनमें ग़रीबों के लिए सच्ची सहानुभूति दिखती है। | ||
==अंतिम रचना== | ==अंतिम रचना== | ||
{{ | {{दाँयाबक्सा|पाठ=उनकी मृत्यु पर '''माखनलाल चतुर्वेदी''' ने लिखा कि सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों।|विचारक=}} | ||
<poem>मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है। | <poem>मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है। | ||
किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥ | किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥ | ||
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तुम देखो पहिचान सको तो तुम मेरे मन को पहिचानो। | तुम देखो पहिचान सको तो तुम मेरे मन को पहिचानो। | ||
जग न भले ही समझे, मेरे प्रभु! मेमन की जानो॥</poem> | जग न भले ही समझे, मेरे प्रभु! मेमन की जानो॥</poem> | ||
*'''यह कविता | *'''यह कविता कवयित्री की अंतिम रचना है।'''<ref>{{cite web |url=http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A5%81_%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87_%E0%A4%AE%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8B_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8 |title=प्रभु तुम मेरे मन की जानो|accessmonthday=22 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=कविताकोश|language=हिन्दी}}</ref> | ||
==दु:खद निधन== | ==दु:खद निधन== | ||
[[14 फरवरी]] को उन्हें [[नागपुर]] में शिक्षा विभाग की मीटिंग में भाग लेने जाना था। डॉक्टर ने उन्हें रेल से न जाकर कार से जाने की सलाह दी। [[15 फरवरी]] [[1948]] को दोपहर के समय वे [[जबलपुर]] के लिए वापस लौट रहीं थीं। उनका पुत्र कार चला रहा था। सुभद्रा ने देखा कि बीच सड़क पर तीन-चार मुर्गी के बच्चे आ गये थे। उन्होंने अचकचाकर पुत्र से मुर्गी के बच्चों को बचाने के लिए कहा। एकदम तेज़ी से काटने के कारण कार सड़क किनारे के पेड़ से टकरा गई। सुभद्रा जी ने ‘बेटा’ कहा और वह बेहोश हो गई। अस्पताल के सिविल सर्जन ने उन्हें मृत घोषित किया। उनका चेहरा शांत और निर्विकार था मानों | [[14 फरवरी]] को उन्हें [[नागपुर]] में शिक्षा विभाग की मीटिंग में भाग लेने जाना था। डॉक्टर ने उन्हें रेल से न जाकर कार से जाने की सलाह दी। [[15 फरवरी]] [[1948]] को दोपहर के समय वे [[जबलपुर]] के लिए वापस लौट रहीं थीं। उनका पुत्र कार चला रहा था। सुभद्रा ने देखा कि बीच सड़क पर तीन-चार मुर्गी के बच्चे आ गये थे। उन्होंने अचकचाकर पुत्र से मुर्गी के बच्चों को बचाने के लिए कहा। एकदम तेज़ी से काटने के कारण कार सड़क किनारे के पेड़ से टकरा गई। सुभद्रा जी ने ‘बेटा’ कहा और वह बेहोश हो गई। अस्पताल के सिविल सर्जन ने उन्हें मृत घोषित किया। उनका चेहरा शांत और निर्विकार था मानों | ||
गहरी नींद सो गई हों। [[16 अगस्त]] [[1904]] को जन्मी सुभद्रा कुमारी चौहान का देहांत [[15 फरवरी]] [[1948]] को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। एक संभावनापूर्ण जीवन का अंत हो गया। | गहरी नींद सो गई हों। [[16 अगस्त]] [[1904]] को जन्मी सुभद्रा कुमारी चौहान का देहांत [[15 फरवरी]] [[1948]] को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। एक संभावनापूर्ण जीवन का अंत हो गया। | ||
उनकी मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि '''सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों। सुभद्रा जी का जाना ऐसा मालूम होता है मानो ‘झाँसी वाली रानी’ की गायिका, झाँसी की रानी से कहने गई हो कि लो, फिरंगी खदेड़ दिया गया और मातृभूमि आज़ाद हो गई। सुभद्रा जी का जाना ऐसा लगता है मानो अपने मातृत्व के दुग्ध, स्वर और आँसुओं से उन्होंने अपने नन्हे पुत्र को कठोर उत्तरदायित्व सौंपा हो। प्रभु करे, सुभद्रा जी को अपनी प्रेरणा से हमारे बीच अमर करके रखने का बल इस पीढ़ी में हो।''' | उनकी मृत्यु पर [[माखनलाल चतुर्वेदी]] ने लिखा कि '''सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों। सुभद्रा जी का जाना ऐसा मालूम होता है मानो ‘झाँसी वाली रानी’ की गायिका, झाँसी की रानी से कहने गई हो कि लो, फिरंगी खदेड़ दिया गया और मातृभूमि आज़ाद हो गई। सुभद्रा जी का जाना ऐसा लगता है मानो अपने मातृत्व के दुग्ध, स्वर और आँसुओं से उन्होंने अपने नन्हे पुत्र को कठोर उत्तरदायित्व सौंपा हो। प्रभु करे, सुभद्रा जी को अपनी प्रेरणा से हमारे बीच अमर करके रखने का बल इस पीढ़ी में हो।''' | ||
==पुरस्कार | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
*इन्हें 'मुकुल' तथा 'बिखरे मोती' पर अलग-अलग '''सेकसरिया पुरस्कार''' मिले। | *इन्हें 'मुकुल' तथा 'बिखरे मोती' पर अलग-अलग '''सेकसरिया पुरस्कार''' मिले। | ||
*भारतीय तटरक्षक सेना ने [[28 अप्रॅल]] [[2006]] | *[[नौसेना|भारतीय तटरक्षक सेना]] ने [[28 अप्रॅल]] [[2006]] को सुभद्रा कुमारी चौहान को सम्मानित करते हुए नवीन नियुक्त तटरक्षक जहाज़ को उन का नाम दिया है।<ref name="ili">{{cite web |url=http://www.iloveindia.com/indian-heroes/subhadra-kumari-chauhan.html|title=सुभद्रा कुमारी चौहान|accessmonthday=15 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=iloveindia.com/indian-heroes|language=अंग्रेज़ी}}</ref> | ||
*भारतीय डाक तार विभाग ने [[6 अगस्त]] [[1976]] को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया था।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5237645/|title=खूब लड़ी मर्दानी का प्रतिरूप थीं सुभद्रा|accessmonthday=15 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= | *भारतीय डाक तार विभाग ने [[6 अगस्त]] [[1976]] को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक [[डाक टिकट|डाक-टिकट]] जारी किया था।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5237645/|title=खूब लड़ी मर्दानी का प्रतिरूप थीं सुभद्रा|accessmonthday=15 मार्च|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल|publisher=जागरण याहू|language=हिन्दी}}</ref> | ||
*जबलपुर के निवासियों ने चंदा इकट्ठा करके नगरपालिका प्रांगण में सुभद्रा जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई जिसका अनावरण [[27 नवंबर]] [[1949]] को कवयित्री और उनकी बचपन की सहेली [[महादेवी वर्मा]] ने किया। प्रतिमा अनावरण के समय | *[[जबलपुर]] के निवासियों ने चंदा इकट्ठा करके नगरपालिका प्रांगण में सुभद्रा जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई जिसका अनावरण [[27 नवंबर]] [[1949]] को कवयित्री और उनकी बचपन की सहेली [[महादेवी वर्मा]] ने किया। प्रतिमा अनावरण के समय [[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]], [[हरिवंशराय बच्चन]] जी, [[रामकुमार वर्मा|डॉ. रामकुमार वर्मा]] और [[इलाचंद्र जोशी]] भी उपस्थित थे। महादेवी जी ने इस अवसर पर कहा, '''नदियों का कोई स्मारक नहीं होता। दीपक की लौ को सोने से मढ़ दीजिए पर इससे क्या होगा? हम सुभद्रा के संदेश को दूर-दूर तर फैलाएँ और आचरण में उसके महत्व को मानें- यही असल स्मारक है।''' | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
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*[http://kavyanchal.com/parichay/?p=237 सुभद्राकुमारी चौहान] | *[http://kavyanchal.com/parichay/?p=237 सुभद्राकुमारी चौहान] | ||
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*[http://rachanakar.blogspot.com/2008/04/blog-post_4623.html सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि] | *[http://rachanakar.blogspot.com/2008/04/blog-post_4623.html सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि] | ||
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05:19, 16 अगस्त 2018 के समय का अवतरण
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सुभद्रा कुमारी चौहान (अंग्रेज़ी: Subhadra Kumari Chauhan, जन्म: 16 अगस्त, 1904; मृत्यु: 15 फरवरी, 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए, पर उनकी प्रसिद्धि 'झाँसी की रानी' कविता के कारण है। सुभद्रा जी राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रहीं, किन्तु उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात् अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण उनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।
'चमक उठी सन् सत्तावन में
वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी
ख़ूब लड़ी मरदानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।[2]
वीर रस से ओत प्रोत इन पंक्तियों की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान को 'राष्ट्रीय वसंत की प्रथम कोकिला' का विरुद दिया गया था। यह वह कविता है जो जन-जन का कंठहार बनी। कविता में भाषा का ऐसा ऋजु प्रवाह मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता सुभद्रा जी के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। इनकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी ऊर्जा से भर सकता है।[3] ऐसा नहीं कि कविता केवल सामान्य जन के लिए ग्राह्य है, यदि काव्य-रसिक उसमें काव्यत्व खोजना चाहें तो वह भी है -
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में।
लक्ष्मीबाई की वीरता का राजमहलों की समृद्धि में आना जैसा एक मणिकांचन योग था, कदाचित उसके लिए 'वीरता और वैभव की सगाई' से उपयुक्त प्रयोग दूसरा नहीं हो सकता था। स्वतंत्रता संग्राम के समय के जो अगणित कविताएँ लिखी गईं, उनमें इस कविता और माखनलाल चतुर्वेदी 'एक भारतीय आत्मा' की पुष्प की अभिलाषा का अनुपम स्थान है। सुभद्रा जी का नाम मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन की यशस्वी परम्परा में आदर के साथ लिया जाता है। वह बीसवीं शताब्दी की सर्वाधिक यशस्वी और प्रसिद्ध कवयित्रियों में अग्रणी हैं।
जीवन परिचय
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म नागपंचमी के दिन 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के पास निहालपुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम 'ठाकुर रामनाथ सिंह' था। सुभद्रा कुमारी की काव्य प्रतिभा बचपन से ही सामने आ गई थी। आपका विद्यार्थी जीवन प्रयाग में ही बीता। 'क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज' में आपने शिक्षा प्राप्त की। 1913 में नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा की पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका 'मर्यादा' में प्रकाशित हुई थी। यह कविता 'सुभद्राकुँवरि' के नाम से छपी। यह कविता ‘नीम’ के पेड़ पर लिखी गई थी। सुभद्रा चंचल और कुशाग्र बुद्धि थी। पढ़ाई में प्रथम आने पर उसको इनाम मिलता था। सुभद्रा अत्यंत शीघ्र कविता लिख डालती थी, मानो उनको कोई प्रयास ही न करना पड़ता हो। स्कूल के काम की कविताएँ तो वह साधारणतया घर से आते-जाते तांगे में लिख लेती थी। इसी कविता की रचना करने के कारण से स्कूल में उसकी बड़ी प्रसिद्धि थी।
बचपन
सुभद्रा और महादेवी वर्मा दोनों बचपन की सहेलियाँ थीं। दोनों ने एक-दूसरे की कीर्ति से सुख पाया। सुभद्रा की पढ़ाई नवीं कक्षा के बाद छूट गई। शिक्षा समाप्त करने के बाद नवलपुर के सुप्रसिद्ध 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' के साथ आपका विवाह हो गया।[4] बाल्यकाल से ही साहित्य में रुचि थी। प्रथम काव्य रचना आपने 15 वर्ष की आयु में ही लिखी थी। सुभद्रा कुमारी का स्वभाव बचपन से ही दबंग, बहादुर व विद्रोही था। वह बचपन से ही अशिक्षा, अंधविश्वास, जाति आदि रूढ़ियों के विरुद्ध लडीं।
विवाह
1919 ई. में उनका विवाह 'ठाकुर लक्ष्मण सिंह' से हुआ, विवाह के पश्चात् वे जबलपुर में रहने लगीं। सुभद्राकुमारी चौहान अपने नाटककार पति लक्ष्मणसिंह के साथ शादी के डेढ़ वर्ष के होते ही सत्याग्रह में शामिल हो गईं और उन्होंने जेलों में ही जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण वर्ष गुज़ारे। गृहस्थी और नन्हे-नन्हे बच्चों का जीवन सँवारते हुए उन्होंने समाज और राजनीति की सेवा की। देश के लिए कर्तव्य और समाज की ज़िम्मेदारी सँभालते हुए उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ की बलि चढ़ा दी-
न होने दूँगी अत्याचार, चलो मैं हो जाऊँ बलिदान।
सुभद्रा जी ने बहुत पहले अपनी कविताओं में भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों, धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण और सांप्रदायिक सद्भाव का वातावरण बनाने के प्रयत्नों को रेखांकित कर दिया था-
मेरा मंदिर, मेरी मस्जिद, काबा-काशी यह मेरी
पूजा-पाठ, ध्यान जप-तप है घट-घट वासी यह मेरी।
कृष्णचंद्र की क्रीड़ाओं को, अपने आँगन में देखो।
कौशल्या के मातृमोद को, अपने ही मन में लेखो।
प्रभु ईसा की क्षमाशीलता, नबी मुहम्मद का विश्वास
जीव दया जिन पर गौतम की, आओ देखो इसके पास।
जबलपुर से माखनलाल चतुर्वेदी 'कर्मवीर' पत्र निकालते थे। उसमें लक्ष्मण सिंह को नौकरी मिल गईं। सुभद्रा भी उनके साथ जबलपुर आ गईं। सुभद्रा जी सास के अनुशासन में रहकर सुघड़ गृहिणी बनकर संतुष्ट नहीं थीं। उनके भीतर जो तेज था, काम करने का उत्साह था, कुछ नया करने की जो लगन थी, उसके लिए घर की सीमा बहुत छोटी थी। सुभद्रा जी में लिखने की प्रतिभा थी और अब पति के रुप में उन्हें ऐसा व्यक्ति मिला था जिसने उनकी प्रतिभा को पनपने के लिए उचित वातावरण देने का प्रयत्न किया।
स्वतंत्रता में योगदान
1920-21 में सुभद्रा और लक्ष्मण सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। उन्होंने नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और घर-घर में कांग्रेस का संदेश पहुँचाया। त्याग और सादगी में सुभद्रा जी सफ़ेद खादी की बिना किनारी धोती पहनती थीं। गहनों और कपड़ों का बहुत शौक़ होते हुए भी वह चूड़ी और बिंदी का प्रयोग नहीं करती थी। उन को सादा वेशभूषा में देख कर बापू ने सुभद्रा जी से पूछ ही लिया, 'बेन! तुम्हारा ब्याह हो गया है?' सुभद्रा ने कहा, 'हाँ!' और फिर उत्साह से बताया कि मेरे पति भी मेरे साथ आए हैं। इसको सुनकर बा और बापू जहाँ आश्वस्त हुए वहाँ कुछ नाराज़ भी हुए। बापू ने सुभद्रा को डाँटा, 'तुम्हारे माथे पर सिन्दूर क्यों नहीं है और तुमने चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनीं? जाओ, कल किनारे वाली साड़ी पहनकर आना।' सुभद्रा जी के सहज स्नेही मन और निश्छल स्वभाव का जादू सभी पर चलता था। उनका जीवन प्रेम से युक्त था और निरंतर निर्मल प्यार बाँटकर भी ख़ाली नहीं होता था।
1922 का जबलपुर का 'झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएँ होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख लोकल सरोजिनी कहकर किया था। सुभद्रा जी में बड़े सहज ढंग से गंभीरता और चंचलता का अद्भुत संयोग था। वे जिस सहजता से देश की पहली स्त्री सत्याग्रही बनकर जेल जा सकती थीं, उसी तरह अपने घर में, बाल-बच्चों में और गृहस्थी के छोटे-मोटे कामों में भी रमी रह सकती थीं।
लक्ष्मणसिंह चौहान जैसे जीवनसाथी और माखनलाल चतुर्वेदी जैसा पथ-प्रदर्शक पाकर वह स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर सक्रिय भाग लेती रहीं। कई बार जेल भी गईं। काफ़ी दिनों तक मध्य प्रांत असेम्बली की कांग्रेस सदस्या रहीं और साहित्य एवं राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेकर अन्त तक देश की एक जागरूक नारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाती रहीं। गांधी जी की असहयोग की पुकार को पूरा देश सुन रहा था। सुभद्रा ने भी स्कूल से बाहर आकर पूरे मन-प्राण से असहयोग आंदोलन में अपने को दो रूपों में झोंक दिया -
- देश - सेविका के रूप में
- देशभक्त कवि के रूप में।
‘जलियांवाला बाग,’ 1917 के नृशंस हत्याकांड से उनके मन पर गहरा आघात लगा। उन्होंने तीन आग्नेय कविताएँ लिखीं। ‘जलियाँवाले बाग़ में वसंत’ में उन्होंने लिखा-
परिमलहीन पराग दाग़-सा बना पड़ा है
हा! यह प्यारा बाग़ ख़ून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना
यह है शोक स्थान यहाँ मत शोर मचाना।
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।[5]
सन 1920 में जब चारों ओर गांधी जी के नेतृत्व की धूम थी, तो उनके आह्वान पर दोनों पति-पत्नि स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए कटिबद्ध हो गए। उनकी कविताई इसीलिए आज़ादी की आग से ज्वालामयी बन गई है।[6]
रचनाएँ
उन्होंने लगभग 88 कविताओं और 46 कहानियों की रचना की। किसी कवि की कोई कविता इतनी अधिक लोकप्रिय हो जाती है कि शेष कविताई प्रायः गौण होकर रह जाती है। बच्चन की 'मधुशाला' और सुभद्रा जी की इस कविता के समय यही हुआ। यदि केवल लोकप्रियता की दृष्टि से ही विस्तार करें तो उनकी कविता पुस्तक 'मुकुल' 1930 के छह संस्करण उनके जीवन काल में ही हो जाना कोई सामान्य बात नहीं है। इनका पहला काव्य-संग्रह 'मुकुल' 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ 'त्रिधारा' में प्रकाशित हुई हैं। 'झाँसी की रानी' इनकी बहुचर्चित रचना है। राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदारी और जेल यात्रा के बाद भी उनके तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए-
इन कथा संग्रहों में कुल 38 कहानियाँ (क्रमशः पंद्रह, नौ और चौदह)। सुभद्रा जी की समकालीन स्त्री-कथाकारों की संख्या अधिक नहीं थीं।
स्त्रियों की प्रेरणा
राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए, उस आनन्द और जोश में सुभद्रा जी ने जो कविताएँ लिखीं, वे उस आन्दोलन में एक नयी प्रेरणा भर देती हैं। स्त्रियों को सम्बोधन करती यह कविता देखिए--
"सबल पुरुष यदि भीरु बनें, तो हमको दे वरदान सखी।
अबलाएँ उठ पड़ें देश में, करें युद्ध घमासान सखी।
पंद्रह कोटि असहयोगिनियाँ, दहला दें ब्रह्मांड सखी।
भारत लक्ष्मी लौटाने को , रच दें लंका काण्ड सखी।।"
असहयोग आन्दोलन के लिए यह आह्वान इस शैली में तब हुआ है, जब स्त्री सशक्तीकरण का ऐसा अधिक प्रभाव नहीं था।
1922 का जबलपुर का 'झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा जी की पहली महिला सत्याग्रही थीं। रोज़-रोज़ सभाएँ होती थीं और जिनमें सुभद्रा भी बोलती थीं। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संवाददाता ने अपनी एक रिपोर्ट में उनका उल्लेख लोकल सरोजिनी कहकर किया था।
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देशप्रेम
वीरों का कैसा हो वसन्त' उनकी एक ओर प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की सधि मापर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं।
राष्ट्रभाषा प्रेम
'राष्ट्रभाषा' के प्रति भी उनका गहरा सरोकार है, जिसकी सजग अभिव्यक्ति 'मातृ मन्दिर में', नामक कविता में हुई है, यह उनकी राष्ट्रभाषा के उत्कर्ष के लिए चिन्ता है -
'उस हिन्दू जन की गरविनी
हिन्दी प्यारी हिन्दी का
प्यारे भारतवर्ष कृष्ण की
उस प्यारी कालिन्दी का
है उसका ही समारोह यह
उसका ही उत्सव प्यारा
मैं आश्चर्य भरी आंखों से
देख रही हूँ यह सारा
जिस प्रकार कंगाल बालिका
अपनी माँ धनहीता को
टुकड़ों की मोहताज़ आज तक
दुखिनी की उस दीना को"
काव्य में प्रेमानुभुति
तरल जीवनानुभुतियों से उपजी सुभद्रा कुमारी चौहान कि कविता का प्रेम दूसरा आधार-स्तम्भ है। यह प्रेम द्विमुखी है। शैशव - बचपन से प्रेम और दूसरा दाम्पत्य प्रेम, 'तीसरे' की उपस्थिति का यहाँ पर सवाल ही नहीं है।
बचपन से प्रेम
शैशव से प्रेम पर जितनी सुन्दर कविताएँ उन्होंने लिखी हैं, भक्तिकाल के बाद वे अतुलनीय हैं। निर्दोष और अल्हड़ बचपन को जिस प्रकार स्मृति में बसाकर उन्होंने मधुरता से अभिव्यक्त किया है, वे कभी पुरानी न पड़ने वाली कविता है। उदाहरणार्थ -
"बार-बार आती है मुझको
मधुर याद बचपन तेरी",
"आ जा बचपन, एक बार फिर
दे दो अपनी निर्मल शान्ति
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली
वह अपनी प्राकृत विश्रांति।"
अपनी संतति में मनुष्य किस प्रकार 'मेरा नया बचपन कविता' कविता में मार्मिक अभिव्यक्ति पाता है-
"मैं बचपन को बुला रही थी
बोल उठी बिटिया मेरी
नंदन वन सी फूल उठी
यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।"
शैशव सम्बन्धी इन कविताओं की एक और बहुत बड़ी विशेषता है, कि ये 'बिटिया प्रधान' कविताएँ हैं - कन्या भ्रूण-हत्या की बात तो हम आज ज़ोर-शोर से कर रहे हैं, किन्तु बहुत ही चुपचाप, बिना मुखरता के, सुभद्रा इस विचार को सहजता से व्यक्त करती हैं। यहाँ 'अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो' का भाव नहीं, अपितु संसार का समस्त सुख बेटी में देखा गया है। 'बालिका का परिचय' बिटिया के महत्व को इस प्रकार प्रस्थापित करती है-
"दीपशिखा है अंधकार की
घनी घटा की उजियाली
ऊषा है यह कमल-भृंग की
है पतझड़ की हरियाली।"
कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पुत्री का कन्यादान करने से मना कर दिया कि 'कन्या कोई वस्तु नहीं कि उसका दान कर दिया जाए।' स्त्री-स्वतंत्र्य का कितना बड़ा पग था वह।
दाम्पत्य प्रेम
प्रेम की कविताओं में जीवन-साथी के प्रति अटूट प्रेम, निष्ठा एवं रागात्मकता के दर्शन होते हैं- 'प्रियतम से', 'चिन्ता', 'मनुहार राधे।', 'आहत की अभिलाषा', 'प्रेम श्रृखला', 'अपराधी है कौन', 'दण्ड का भागी बनता कौन', आदि उनकी बहुत सुन्दर प्रेम कविताएँ हैं। दाम्पत्य की रूठने और मनुहार करती 'प्रियतम से' कविता का यह अंश देखिए-
"ज़रा-ज़रा सी बातों पर
मत रूको मेरे अभिमानी
लो प्रसन्न हो जाओ
ग़लती मैंने अपनी सब मानी
मैं भूलों की भरी पिटारी
और दया के तुम आगार
सदा दिखाई दो तुम हँसते
चाहे मुझसे करो न प्यार।[7]"
अपने और प्रिय और बीच किसी 'तीसरे' की उपस्थिति उनके लिए पूर्ण असहनीय है। 'मानिनि राध', कविता में व्यक्त यह आक्रोश पूरे साहित्य में विरल है-
"ख़ूनी भाव उठें उसके प्रति
जो हों प्रिय का प्यारा
उसके लिए हृदय यह मेरा
बन जाता हत्यारा।"
दाम्पत्य की विषम, विर्तुल और गोपन स्थितियों की जिस अकुंठ भाव से अभिव्यक्ति सुभद्रा कुमारी चौहान ने की है, वह बड़ी मार्मिक बन पड़ी है-
"यह मर्म-कथा अपनी ही है
औरों की नहीं सुनाऊँगी
तुम रूठो सौ-सौ बार तुम्हें
पैरों पड़ सदा मनाऊँगी
बस, बहुत हो चुका, क्षमा करो
अवसाद हटा दो अब मेरा
खो दिया जिसे मद जिसे मद में मैंने
लाओ, दे दो वह सब मेरा।"
भक्ति भावना
उनका भक्ति-भाव भी प्रबल है। पूर्ण मन से प्रभु के सम्मुख सर्वात्म समर्पण की इससे सुन्दर, सहज अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती-
"देव! तुम्हारे कई उपासक
कई ढंग से आते
में बहुमूल्य भेंट व
कई रंग की लाते हैं।"
प्रकृति प्रेम
प्रकृति से भी सुभद्रा कुमारी चौहान के कवि का गहन अनुराग रहा है--'नीम', 'फूल के प्रति', 'मुरझाया फूल' आदि में उन्होंने प्रकृति का चित्रण बड़े सहज भाव से किया है। इस प्रकार सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का फ़लक अत्यन्त व्यापक है, किंतु फिर भी.........खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी, उनकी अक्षय कीर्ति का ऐसा स्तम्भ है जिस पर काल की बात अपना कोई प्रभाव नहीं छोड़ पायेगी, यह कविता जन-जन का हृदयहार बनी ही रहेगी।
बाल कविताएँ
सुभद्रा जी ने मातृत्व से प्रेरित होकर बहुत सुंदर बाल कविताएँ भी लिखी हैं। यह कविताएँ भी उनकी राष्ट्रीय भावनाओं से ओत प्रोत हैं। 'सभा का खेल' नामक कविता में, खेल-खेल में राष्ट्रीय भाव जगाने का प्रयास इस प्रकार किया है -
सभा-सभा का खेल आज हम खेलेंगे,
जीजी आओ मैं गांधी जी, छोटे नेहरु, तुम सरोजिनी बन जाओ।
मेरा तो सब काम लंगोटी गमछे से चल जाएगा,
छोटे भी खद्दर का कुर्ता पेटी से ले आएगा।
मोहन, लल्ली पुलिस बनेंगे,
हम भाषण करने वाले वे लाठियाँ चलाने वाले,
हम घायल मरने वाले।
इस कविता में बच्चों के खेल, गांधी जी का संदेश, नेहरु जी के मन में गांधी जी के प्रति भक्ति, सरोजिनी नायडू की सांप्रदायिक एकता संबंधी विचारधारा को बड़ी खूबी से व्यक्त किया गया है। असहयोग आंदोलन के वातावरण में पले-बढे़ बच्चों के लिए ऐसे खेल स्वाभाविक थे। प्रसिद्ध हिन्दी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध ने सुभद्रा जी के राष्ट्रीय काव्य को हिन्दी में बेजोड़ माना है- कुछ विशेष अर्थों में सुभद्रा जी का राष्ट्रीय काव्य हिन्दी में बेजोड़ है। क्योंकि उन्होंने उस राष्ट्रीय आदर्श को जीवन में समाया हुआ देखा है, उसकी प्रवृत्ति अपने अंतःकरण में पाई है, अतः वह अपने समस्त जीवन-संबंधों को उसी प्रवृत्ति की प्रधानता पर आश्रित कर देती हैं, उन जीवन संबंधों को उस प्रवृत्ति के प्रकाश में चमका देती हैं।… सुभद्राकुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारियों की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी के साथ-साथ एक सच्ची देश सेविका के भाव उन्होंने व्यक्त किए हैं। उनकी शैली में वही सरलता है, वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है। उनमें एक ओर जहाँ नारी-सुलभ गुणों का उत्कर्ष है, वहाँ वह स्वदेश प्रेम और देशाभिमान भी है जो एक क्षत्रिय नारी में होना चाहिए।
नारी समाज का विश्वास
सुभद्रा जी की बेटी सुधा चौहान का विवाह प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय से हुआ था जो स्वयं अच्छे लेखक थे। सुधा ने उनकी जीवनी लिखी- मिला तेज से तेज।[8] सुभद्रा जी का पूरा जीवन सक्रिय राजनीति में बीता। वह नगर की सबसे पुरानी कार्यकर्ती थीं। 1930 - 31 और 1941 - 42 में जबलपुर की आम सभाओं में स्त्रियाँ बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होती थीं जो एक नया ही अनुभव था। स्त्रियों की इस जागृति के पीछे सुभद्रा जी थीं जो उनकी तैयार की गई टोली के अनवरत प्रयास का फल था। सन् 1920 से ही वे सभाओं में पर्दे का विरोध, रूढ़ियों के विरोध, छुआछूत हटाने के पक्ष में और स्त्री-शिक्षा के प्रचार के लिए बोलती रही थीं। उन सबसे बहुत-सी बातों में अलग होकर भी वह उन्हीं में से एक थीं। उनमें भारतीय नारी की सहज शील और मर्यादा थी, इस कारण उन्हें नारी समाज का पूरा विश्वास प्राप्त था। विचारों की दृढ़ता के साथ-साथ उनके स्वभाव और व्यवहार में एक लचीलापन था, जिससे भिन्न विचारों और रहन-सहन वालों के दिल में भी उन्होंने घर बना लिया था।
कहानी लेखन
सुभद्रा जी ने कहानी लिखना आरंभ किया क्योंकि उस समय संपादक कविताओं पर पारिश्रमिक नहीं देते थे। संपादक चाहते थे कि वह गद्य रचना करें और उसके लिए पारिश्रमिक भी देते थे। समाज की अनीतियों से जुड़ी जिस वेदना को वह अभिव्यक्त करना चाहती थीं, उसकी अभिव्यक्ति का एक मात्र माध्यम गद्य ही हो सकता था। अतः सुभद्रा जी ने कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों में देश-प्रेम के साथ-साथ समाज की विद्रूपता, अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए संघर्षरत नारी की पीड़ा और विद्रोह का स्वर देखने को मिलता है। एक ही वर्ष में उन्होंने एक कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' बना डाला।[9] 'बिखरे मोती' संग्रह को छपवाने के लिए वह इलाहाबाद गईं। इस बार भी सेकसरिया पुरस्कार उन्हें ही मिला- कहानी संग्रह 'बिखरे मोती' के लिए। उनकी अधिकांश कहानियाँ सत्य घटना पर आधारित हैं। देश-प्रेम के साथ-साथ उनमें ग़रीबों के लिए सच्ची सहानुभूति दिखती है।
अंतिम रचना
उनकी मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों।
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मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है।
किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥
प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी।
यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी॥
इसीलिए इस अंधकार में, मैं छिपती-छिपती आई हूँ।
तेरे चरणों में खो जाऊँ, इतना व्याकुल मन लाई हूँ॥
तुम देखो पहिचान सको तो तुम मेरे मन को पहिचानो।
जग न भले ही समझे, मेरे प्रभु! मेमन की जानो॥
- यह कविता कवयित्री की अंतिम रचना है।[10]
दु:खद निधन
14 फरवरी को उन्हें नागपुर में शिक्षा विभाग की मीटिंग में भाग लेने जाना था। डॉक्टर ने उन्हें रेल से न जाकर कार से जाने की सलाह दी। 15 फरवरी 1948 को दोपहर के समय वे जबलपुर के लिए वापस लौट रहीं थीं। उनका पुत्र कार चला रहा था। सुभद्रा ने देखा कि बीच सड़क पर तीन-चार मुर्गी के बच्चे आ गये थे। उन्होंने अचकचाकर पुत्र से मुर्गी के बच्चों को बचाने के लिए कहा। एकदम तेज़ी से काटने के कारण कार सड़क किनारे के पेड़ से टकरा गई। सुभद्रा जी ने ‘बेटा’ कहा और वह बेहोश हो गई। अस्पताल के सिविल सर्जन ने उन्हें मृत घोषित किया। उनका चेहरा शांत और निर्विकार था मानों गहरी नींद सो गई हों। 16 अगस्त 1904 को जन्मी सुभद्रा कुमारी चौहान का देहांत 15 फरवरी 1948 को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। एक संभावनापूर्ण जीवन का अंत हो गया।
उनकी मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि सुभद्रा जी का आज चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों। सुभद्रा जी का जाना ऐसा मालूम होता है मानो ‘झाँसी वाली रानी’ की गायिका, झाँसी की रानी से कहने गई हो कि लो, फिरंगी खदेड़ दिया गया और मातृभूमि आज़ाद हो गई। सुभद्रा जी का जाना ऐसा लगता है मानो अपने मातृत्व के दुग्ध, स्वर और आँसुओं से उन्होंने अपने नन्हे पुत्र को कठोर उत्तरदायित्व सौंपा हो। प्रभु करे, सुभद्रा जी को अपनी प्रेरणा से हमारे बीच अमर करके रखने का बल इस पीढ़ी में हो।
सम्मान और पुरस्कार
- इन्हें 'मुकुल' तथा 'बिखरे मोती' पर अलग-अलग सेकसरिया पुरस्कार मिले।
- भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रॅल 2006 को सुभद्रा कुमारी चौहान को सम्मानित करते हुए नवीन नियुक्त तटरक्षक जहाज़ को उन का नाम दिया है।[1]
- भारतीय डाक तार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया था।[11]
- जबलपुर के निवासियों ने चंदा इकट्ठा करके नगरपालिका प्रांगण में सुभद्रा जी की आदमकद प्रतिमा लगवाई जिसका अनावरण 27 नवंबर 1949 को कवयित्री और उनकी बचपन की सहेली महादेवी वर्मा ने किया। प्रतिमा अनावरण के समय भदन्त आनन्द कौसल्यायन, हरिवंशराय बच्चन जी, डॉ. रामकुमार वर्मा और इलाचंद्र जोशी भी उपस्थित थे। महादेवी जी ने इस अवसर पर कहा, नदियों का कोई स्मारक नहीं होता। दीपक की लौ को सोने से मढ़ दीजिए पर इससे क्या होगा? हम सुभद्रा के संदेश को दूर-दूर तर फैलाएँ और आचरण में उसके महत्व को मानें- यही असल स्मारक है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सुभद्रा कुमारी चौहान (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) iloveindia.com/indian-heroes। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2011।
- ↑ झांसी की रानी - सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दी कुंज। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।
- ↑ सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) काव्यांचल। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।
- ↑ सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) मिलनसागर। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।
- ↑ जलियाँवाला बाग़ में बसंत - सुभद्रा कुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दी कुँज। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2011।
- ↑ सुभद्राकुमारी चौहान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) स्वराज संस्थान। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2011।
- ↑ प्रियतम से (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) कविताकोश। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2011।
- ↑ सुभद्रा कुमारी चौहान -बचपन, विवाह: मिला तेज से तेज (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) हिन्दी चिट्ठे एवं पॉडकास्ट। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2011।
- ↑ सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) रचनाकार। अभिगमन तिथि: 16 मार्च, 2011।
- ↑ प्रभु तुम मेरे मन की जानो (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) कविताकोश। अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2011।
- ↑ खूब लड़ी मर्दानी का प्रतिरूप थीं सुभद्रा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- सुभद्राकुमारी चौहान
- मेरा नया बचपन - सुभद्राकुमारी चौहान
- सुभद्राकुमारी चौहान
- झांसी की रानी - सुभद्राकुमारी चौहान
- सुभद्रा कुमारी चौहान - बचपन, विवाह: मिला तेज से तेज
- सुभद्रा कुमारी चौहान
- सुभद्रा कुमारी चौहान की कथा दृष्टि
- COMMISSIONING OF COAST GUARD SHIP SUBHADRA KUMARI CHAUHAN 28 APR 2006
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