"साबूदाना": अवतरणों में अंतर
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*साबूदाना एक खाद्य पदार्थ है। यह छोटे-छोटे मोती की तरह [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] और गोल होते हैं। यह सागो पाम नामक पेड़ के तने के गूदे से बनता है। सागो, ताड़ की तरह का एक पौधा होता है। ये मूलरूप से पूर्वी अफ़्रीका का पौधा है। इसका तना बड़ा मोटा हो जाता है और इसी के बीच के हिस्से को पीसकर पाउडर बनाया जाता है। फिर इसे छानकर गर्म किया जाता है, जिससे दाने बन सकें। | *साबूदाना एक खाद्य पदार्थ है। यह छोटे-छोटे मोती की तरह [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] और गोल होते हैं। यह सागो पाम नामक पेड़ के तने के गूदे से बनता है। सागो, ताड़ की तरह का एक पौधा होता है। ये मूलरूप से पूर्वी अफ़्रीका का पौधा है। इसका तना बड़ा मोटा हो जाता है और इसी के बीच के हिस्से को पीसकर पाउडर बनाया जाता है। फिर इसे छानकर गर्म किया जाता है, जिससे दाने बन सकें। | ||
* साबूदाना जल्दी पचने वाला हल्का और पौष्टिक होता है। साबूदाने को | * साबूदाना जल्दी पचने वाला हल्का और पौष्टिक होता है। साबूदाने को कमज़ोर व्यक्ति एवं रोगियों को [[दूध]] या पानी में पकाकर पथ्य के रूप में देना चाहिए। साबूदाना फलाहार माना जाता है, इसको [[व्रत]] तथा एकासन के दिनों में उपयोग किया जाता है।<ref name="jkhw"/> | ||
*[[भारत]] में इसका उपयोग अधिकतर पापड़, [[खीर]] और खिचड़ी बनाने में होता है। सूप और अन्य चीज़ों को गाढ़ा करने के लिये भी इसका उपयोग होता है। पकने के बाद यह अपारदर्शी से हल्का पारदर्शी, नर्म और स्पंजी हो जाता है। साबूदाना में [[कार्बोहाइड्रेट]] की प्रमुखता होती है और इसमें कुछ मात्रा में [[कैल्शियम]] व [[विटामिन]] सी भी होता है। | *[[भारत]] में इसका उपयोग अधिकतर पापड़, [[खीर]] और खिचड़ी बनाने में होता है। सूप और अन्य चीज़ों को गाढ़ा करने के लिये भी इसका उपयोग होता है। पकने के बाद यह अपारदर्शी से हल्का पारदर्शी, नर्म और स्पंजी हो जाता है। साबूदाना में [[कार्बोहाइड्रेट]] की प्रमुखता होती है और इसमें कुछ मात्रा में [[कैल्शियम]] व [[विटामिन]] सी भी होता है। | ||
*भारत में साबूदाने का उत्पादन सबसे पहले [[तमिलनाडु]] के सेलम में हुआ था। लगभग 1943 - 44 में भारत में इसका उत्पादन एक कुटीर उद्योग के रूप में हुआ था। इसमें पहले टैपियाका की जड़ों को मसल कर उसके दूध को छानकर उसे जमने देते थे। फिर उसकी छोटी छोटी गोलियां बनाकर सेंक लेते थे। <ref name="jkhw"/> | *भारत में साबूदाने का उत्पादन सबसे पहले [[तमिलनाडु]] के [[सेलम]] में हुआ था। लगभग 1943 - 44 में भारत में इसका उत्पादन एक कुटीर उद्योग के रूप में हुआ था। इसमें पहले टैपियाका की जड़ों को मसल कर उसके दूध को छानकर उसे जमने देते थे। फिर उसकी छोटी छोटी गोलियां बनाकर सेंक लेते थे। <ref name="jkhw"/> | ||
*दक्षिण भारत में तमिलनाडु प्रदेश के सेलम क्षेत्र में साबूदाना उद्योग की लगभग 700 इकाइयाँ स्थित है। मद्रास, कोयम्बटूर के मध्य साबूदाने के कई कारखाने आते हैं। इन कारखानों से लगभग 2 किलोमीटर दूर से ही बदबू का दौर शुरू हो जाता है। यह बदबू इतनी तीखी और असहाय होती है कि रोड़ पर चलना ही कठिन हो जाता है।<ref name="jkhw"/> | *दक्षिण भारत में तमिलनाडु प्रदेश के सेलम क्षेत्र में साबूदाना उद्योग की लगभग 700 इकाइयाँ स्थित है। मद्रास, कोयम्बटूर के मध्य साबूदाने के कई कारखाने आते हैं। इन कारखानों से लगभग 2 किलोमीटर दूर से ही बदबू का दौर शुरू हो जाता है। यह बदबू इतनी तीखी और असहाय होती है कि रोड़ पर चलना ही कठिन हो जाता है।<ref name="jkhw"/> | ||
*साबूदाना की कई किस्में | *साबूदाना की कई किस्में बाज़ार में उपलब्ध हैं। उनके बनाने की गुणवत्ता अलग होने पर उनके नाम बदल और गुण बदल जाते हैं, अन्यथा ये एक ही प्रकार का होता है। आरारोट भी इसी का एक उत्पाद है। | ||
*साबूदाना शकरकंदी के गूदे से बनाया जाता है। शकरकंदी के मौसम में कारखानें वाले इसे इकट्ठा | *साबूदाना [[शकरकंद|शकरकंदी]] के गूदे से बनाया जाता है। शकरकंदी के मौसम में कारखानें वाले इसे इकट्ठा ख़रीदकर रख लेते हैं और बाद में इसका मावा बना लेते हैं। गूदा अथवा मावा बनाने की प्रक्रिया बड़ी लोमहर्शक है। तैयार मावा खुले मैदान में एक बड़े से बर्तन में पड़ा रहता है। दूसरी ओर गूदे में पानी डालते रहते हैं, फलस्वरूप उसमें सफेद रंग की करोड़ों लम्बी-लम्बी लटें पड़ जाती हैं। 8-10 दिन बाद बर्तनों में छोटे-छोटे श्रमिक बच्चों को उतारा जाता है और मावे को रुंधवाया जाता है। रौंधने की इस प्रक्रिया में लटें मर जाती हैं। यह प्रक्रिया 4-6 महीने तक बार-बार चलती है उसके बाद मावे को निकालकर मशीनों में डाला जाता है जो साबूदाने के रूप में आता है। इसको सुखाये जाने के बाद इन पर ग्लूकोस और स्टार्च से बने पाउडर की पालिश की जाती है।<ref name="jkhw"/> | ||
==उपयोग== | ==उपयोग== | ||
रोगों मे सहायक - 100 ग्राम साबूदाने को एक गिलास पानी में रात को भिगो दें। सुबह छलनी में मिलाकर साबूदाना निकाल लें तथा पानी फेंक दें। फिर साबूदाने को हल्की आग पर सेंकें। सेंकते समय इन पर 1 चम्मच घी और 1 चम्मच जीरा डाल दें। सेंकने के बाद इन पर स्वादानुसार चीनी और चौथाई चम्मच नमक मिलाकर सुबह | रोगों मे सहायक - 100 ग्राम साबूदाने को एक गिलास पानी में रात को भिगो दें। सुबह छलनी में मिलाकर साबूदाना निकाल लें तथा पानी फेंक दें। फिर साबूदाने को हल्की आग पर सेंकें। सेंकते समय इन पर 1 चम्मच घी और 1 चम्मच जीरा डाल दें। सेंकने के बाद इन पर स्वादानुसार चीनी और चौथाई चम्मच नमक मिलाकर सुबह ख़ाली पेट सेवन करना चाहिए। इसके सेवन के पश्चात् 3 घण्टे और किसी चीज़ का सेवन नहीं करना चाहिए। इस मिश्रण से दस्त (अतिसार) जल्दी बंद हो जाते हैं। या लगभग 3 ग्राम साबूदाने को ठंडे पानी के साथ सुबह और शाम सेवन करने से दस्त का आना बंद हो जाता हैं। | ||
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*[http://www.jkhealthworld.com/detail.php?id=3914 साबूदाना (Sago)] | *[http://www.jkhealthworld.com/detail.php?id=3914 साबूदाना (Sago)] | ||
*[http://quest.webdunia.com/hindi/drinks/2/134/15797/question.html साबूदाना किस से बनता है? और कितने तरह के साबूदाने है?] | *[http://quest.webdunia.com/hindi/drinks/2/134/15797/question.html साबूदाना किस से बनता है? और कितने तरह के साबूदाने है?] | ||
==संबंधित लेख== | |||
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07:32, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
साबूदाना |
सागो पाम पेड़ |
- साबूदाना एक खाद्य पदार्थ है। यह छोटे-छोटे मोती की तरह सफ़ेद और गोल होते हैं। यह सागो पाम नामक पेड़ के तने के गूदे से बनता है। सागो, ताड़ की तरह का एक पौधा होता है। ये मूलरूप से पूर्वी अफ़्रीका का पौधा है। इसका तना बड़ा मोटा हो जाता है और इसी के बीच के हिस्से को पीसकर पाउडर बनाया जाता है। फिर इसे छानकर गर्म किया जाता है, जिससे दाने बन सकें।
- साबूदाना जल्दी पचने वाला हल्का और पौष्टिक होता है। साबूदाने को कमज़ोर व्यक्ति एवं रोगियों को दूध या पानी में पकाकर पथ्य के रूप में देना चाहिए। साबूदाना फलाहार माना जाता है, इसको व्रत तथा एकासन के दिनों में उपयोग किया जाता है।[1]
- भारत में इसका उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। सूप और अन्य चीज़ों को गाढ़ा करने के लिये भी इसका उपयोग होता है। पकने के बाद यह अपारदर्शी से हल्का पारदर्शी, नर्म और स्पंजी हो जाता है। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता होती है और इसमें कुछ मात्रा में कैल्शियम व विटामिन सी भी होता है।
- भारत में साबूदाने का उत्पादन सबसे पहले तमिलनाडु के सेलम में हुआ था। लगभग 1943 - 44 में भारत में इसका उत्पादन एक कुटीर उद्योग के रूप में हुआ था। इसमें पहले टैपियाका की जड़ों को मसल कर उसके दूध को छानकर उसे जमने देते थे। फिर उसकी छोटी छोटी गोलियां बनाकर सेंक लेते थे। [1]
- दक्षिण भारत में तमिलनाडु प्रदेश के सेलम क्षेत्र में साबूदाना उद्योग की लगभग 700 इकाइयाँ स्थित है। मद्रास, कोयम्बटूर के मध्य साबूदाने के कई कारखाने आते हैं। इन कारखानों से लगभग 2 किलोमीटर दूर से ही बदबू का दौर शुरू हो जाता है। यह बदबू इतनी तीखी और असहाय होती है कि रोड़ पर चलना ही कठिन हो जाता है।[1]
- साबूदाना की कई किस्में बाज़ार में उपलब्ध हैं। उनके बनाने की गुणवत्ता अलग होने पर उनके नाम बदल और गुण बदल जाते हैं, अन्यथा ये एक ही प्रकार का होता है। आरारोट भी इसी का एक उत्पाद है।
- साबूदाना शकरकंदी के गूदे से बनाया जाता है। शकरकंदी के मौसम में कारखानें वाले इसे इकट्ठा ख़रीदकर रख लेते हैं और बाद में इसका मावा बना लेते हैं। गूदा अथवा मावा बनाने की प्रक्रिया बड़ी लोमहर्शक है। तैयार मावा खुले मैदान में एक बड़े से बर्तन में पड़ा रहता है। दूसरी ओर गूदे में पानी डालते रहते हैं, फलस्वरूप उसमें सफेद रंग की करोड़ों लम्बी-लम्बी लटें पड़ जाती हैं। 8-10 दिन बाद बर्तनों में छोटे-छोटे श्रमिक बच्चों को उतारा जाता है और मावे को रुंधवाया जाता है। रौंधने की इस प्रक्रिया में लटें मर जाती हैं। यह प्रक्रिया 4-6 महीने तक बार-बार चलती है उसके बाद मावे को निकालकर मशीनों में डाला जाता है जो साबूदाने के रूप में आता है। इसको सुखाये जाने के बाद इन पर ग्लूकोस और स्टार्च से बने पाउडर की पालिश की जाती है।[1]
उपयोग
रोगों मे सहायक - 100 ग्राम साबूदाने को एक गिलास पानी में रात को भिगो दें। सुबह छलनी में मिलाकर साबूदाना निकाल लें तथा पानी फेंक दें। फिर साबूदाने को हल्की आग पर सेंकें। सेंकते समय इन पर 1 चम्मच घी और 1 चम्मच जीरा डाल दें। सेंकने के बाद इन पर स्वादानुसार चीनी और चौथाई चम्मच नमक मिलाकर सुबह ख़ाली पेट सेवन करना चाहिए। इसके सेवन के पश्चात् 3 घण्टे और किसी चीज़ का सेवन नहीं करना चाहिए। इस मिश्रण से दस्त (अतिसार) जल्दी बंद हो जाते हैं। या लगभग 3 ग्राम साबूदाने को ठंडे पानी के साथ सुबह और शाम सेवन करने से दस्त का आना बंद हो जाता हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम
भाषा | नाम |
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हिन्दी | साबूदाना, सागूदाना। |
अंग्रेज़ी | सैगौ (Sago) |
लैटिन | सेगस लीब्बस (Sagus Lea bus)[1] |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख