"कनिंघम": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
(8 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 25 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
''' | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
|चित्र=Alexander Cunningham.jpg | |||
|चित्र का नाम=कनिंघम | |||
|पूरा नाम=अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[23 जनवरी]], 1814 | |||
|जन्म भूमि= | |||
|मृत्यु=[[18 नवम्बर]], [[1893]] | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|अभिभावक= | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|गुरु= | |||
|कर्म भूमि=[[भारत]] | |||
|कर्म-क्षेत्र=पुरातत्त्व अन्वेषक | |||
|मुख्य रचनाएँ= | |||
|विषय= | |||
|खोज= | |||
|भाषा= | |||
|शिक्षा= | |||
|विद्यालय= | |||
|पुरस्कार-'उपाधि=ऑर्डर ऑफ़ स्टार ऑफ़ इंडिया' ([[1870]]), 'ऑर्डर ऑफ़ इंडियन एम्पायर' ([[1878]]), 'नाइट कमांडर ऑफ़ इंडियन एंपायर' ([[1887]]) | |||
|प्रसिद्धि='भारत के पुरातत्त्व अन्वेषण के पिता' | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|शीर्षक 3= | |||
|पाठ 3= | |||
|शीर्षक 4= | |||
|पाठ 4= | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|अन्य जानकारी=कॅनिंघम ने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई [[ग्रंथ]] भी लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Alexander Cunningham'', जन्म- [[23 जनवरी]], 1814; मृत्यु- [[18 नवम्बर]], [[1893]]) को "भारत के पुरातत्त्व अन्वेषण का पिता" कहा जाता है। कॅनिंघम एक ब्रिटिश पुरातत्वशास्त्री तथा सेना में अभियांत्रिक पद पर नियुक्त थे। इनके दोनों भाई फ़्रैन्सिस कॅनिंघम एवं जोसफ़ कॅनिंघम भी अपने योगदानों के लिए ब्रिटिश भारत में प्रसिद्ध हुए थे। | |||
==भारत आगमन== | |||
1833 ई. में एक सैनिक शिक्षार्थी के रूप में वह [[ब्रिटेन]] से [[भारत]] आये थे, सैनिक इंजीनियर बनकर युद्धों में भाग लिया तथा बाद में [[बर्मा]] (वर्तमान [[म्यांमार]]) और पश्चिमोत्तर प्रांत के मुख्य अभियंता रहे। वर्ष [[1861]] ई. में सेवानिवृत्त होने पर वह [[पुरातत्त्व]] के काम में लग गये तथा अपने अध्ययन के आधार पर मृदाशास्त्र के अधिकारी विद्वान् माने जाने लगे। | |||
====खुदाई का कार्य==== | |||
कॅनिंघम ने [[मथुरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में [[वर्ष]] [[1871]] और [[1882]]-[[1883]] में खुदाई का कार्य कराया। सर अलेक्जंडर कनिंघम ने [[भारत]] के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक के रूप में [[1870]] से [[1885]] ई. तक काम किया। उनकी रुचि विविध विषयों में थी। | |||
==लेखन== | |||
कॅनिंघम ने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई [[ग्रंथ]] भी लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है। जनरल एलेक्जेंडर कॅनिंघम ने भारतीय भूगोल लिखते समय यह माना कि क्लीसीबोरा नाम [[वृन्दावन]] के लिए है। इसके विषय में उन्होंने लिखा है कि [[कालिय नाग]] के वृन्दावन निवास के कारण यह नगर `कालिकावर्त' नाम से जाना गया। [[यूनानी]] लेखकों के क्लीसोबोरा का पाठ वे `कालिसोबोर्क' या `कालिकोबोर्त' मानते हैं। उन्हें '[[इंडिका]]' की एक प्राचीन प्रति में `काइरिसोबोर्क' पाठ मिला, जिससे उनके इस अनुमान को बल मिला।<ref>देखिए कनिंघम्स ऎंश्यंट जिओग्रफी आफ इंडिया (कलकत्ता 1924) पृ0 429।</ref> परंतु सम्भवतः कनिंघम का यह अनुमान सही नहीं है। | |||
==टीका टिप्पणी== | कॅनिंघम ने अपनी [[1882]]-[[1883]] की खोज-रिपोर्ट में क्लीसोबोरा के विषय में अपना मत बदल कर इस शब्द का मूलरूप `केशवपुरा'<ref>लैसन ने भाषा-विज्ञान के आधार पर क्लीसोबोरा का मूल [[संस्कृत]] रूप `कृष्णपुर' माना है। उनका अनुमान है कि यह स्थान आगरा में रहा होगा। (इंडिश्चे आल्टरटुम्सकुण्डे, वॉन 1869, जिल्द 1, पृष्ठ 127, नोट 3।</ref> माना है और उसकी पहचान उन्होंने केशवपुरा या [[कटरा केशवदेव मन्दिर मथुरा|कटरा केशवदेव]] से की है। केशव या [[श्रीकृष्ण]] का जन्म स्थान होने के कारण यह स्थान 'केशवपुरा' कहलाता है। | ||
==पुरस्कार व सम्मान== | |||
कॅनिंघम को इनके योगदानों के लिए [[20 मई]], [[1870]] को 'ऑर्डर ऑफ़ स्टार ऑफ़ इंडिया' (सी.एस.आई) से सम्मानित किया गया था। बाद में [[1878]] में इन्हें 'ऑर्डर ऑफ़ इंडियन एम्पायर' से भी सम्मानित किया गया। [[1887]] में इन्हें 'नाइट कमांडर ऑफ़ इंडियन एंपायर' घोषित किया गया। | |||
====कॅनिंघम का मत==== | |||
कॅनिंघम का मत है कि उस समय में [[यमुना नदी|यमुना]] की प्रधान धारा वर्तमान [[कटरा केशव देव मंदिर मथुरा|कटरा केशवदेव]] की पूर्वी दीवार के नीचे से बहती रही होगी और दूसरी ओर [[मथुरा]] शहर रहा होगा। कटरा के कुछ आगे से दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ कर यमुना की वर्तमान बड़ी धारा में मिलती रही होगी।<ref>कनिंघम-आर्केंओलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ऐनुअल रिपोर्ट, जिल्द 20 (1882-83), पृ0 31-32।</ref> जनरल कॅनिंघम का यह मत विचारणीय है। यह कहा जा सकता है कि किसी काल में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा वर्तमान कटरा के नीचे से बहती रही हो और इस धारा के दोनों तरफ नगर रहा हो, मथुरा से भिन्न `केशवपुर' या `कृष्णपुर' नाम का नगर वर्तमान कटरा केशवदेव और उसके आस-पास होता तो उसका उल्लेख [[पुराण|पुराणों]] या अन्य सहित्य में अवश्य होता। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | |||
[[Category:इतिहास कोश]] | {{विदेशी अन्वेषक}}{{भारतीय अन्वेषक}} | ||
[[Category:अन्वेषक]][[Category:पुरातत्त्व शास्त्री]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:विदेशी अन्वेषक]] | |||
[[Category:विदेशी]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
11:01, 13 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
कनिंघम
| |
पूरा नाम | अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम |
जन्म | 23 जनवरी, 1814 |
मृत्यु | 18 नवम्बर, 1893 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | पुरातत्त्व अन्वेषक |
प्रसिद्धि | 'भारत के पुरातत्त्व अन्वेषण के पिता' |
अन्य जानकारी | कॅनिंघम ने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई ग्रंथ भी लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है। |
अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम (अंग्रेज़ी: Alexander Cunningham, जन्म- 23 जनवरी, 1814; मृत्यु- 18 नवम्बर, 1893) को "भारत के पुरातत्त्व अन्वेषण का पिता" कहा जाता है। कॅनिंघम एक ब्रिटिश पुरातत्वशास्त्री तथा सेना में अभियांत्रिक पद पर नियुक्त थे। इनके दोनों भाई फ़्रैन्सिस कॅनिंघम एवं जोसफ़ कॅनिंघम भी अपने योगदानों के लिए ब्रिटिश भारत में प्रसिद्ध हुए थे।
भारत आगमन
1833 ई. में एक सैनिक शिक्षार्थी के रूप में वह ब्रिटेन से भारत आये थे, सैनिक इंजीनियर बनकर युद्धों में भाग लिया तथा बाद में बर्मा (वर्तमान म्यांमार) और पश्चिमोत्तर प्रांत के मुख्य अभियंता रहे। वर्ष 1861 ई. में सेवानिवृत्त होने पर वह पुरातत्त्व के काम में लग गये तथा अपने अध्ययन के आधार पर मृदाशास्त्र के अधिकारी विद्वान् माने जाने लगे।
खुदाई का कार्य
कॅनिंघम ने मथुरा, उत्तर प्रदेश में वर्ष 1871 और 1882-1883 में खुदाई का कार्य कराया। सर अलेक्जंडर कनिंघम ने भारत के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक के रूप में 1870 से 1885 ई. तक काम किया। उनकी रुचि विविध विषयों में थी।
लेखन
कॅनिंघम ने अनेक पुरातत्त्व-स्थलों की खोज की तथा इस विषय पर कई ग्रंथ भी लिखे, जिनका महत्त्व आज भी है। जनरल एलेक्जेंडर कॅनिंघम ने भारतीय भूगोल लिखते समय यह माना कि क्लीसीबोरा नाम वृन्दावन के लिए है। इसके विषय में उन्होंने लिखा है कि कालिय नाग के वृन्दावन निवास के कारण यह नगर `कालिकावर्त' नाम से जाना गया। यूनानी लेखकों के क्लीसोबोरा का पाठ वे `कालिसोबोर्क' या `कालिकोबोर्त' मानते हैं। उन्हें 'इंडिका' की एक प्राचीन प्रति में `काइरिसोबोर्क' पाठ मिला, जिससे उनके इस अनुमान को बल मिला।[1] परंतु सम्भवतः कनिंघम का यह अनुमान सही नहीं है।
कॅनिंघम ने अपनी 1882-1883 की खोज-रिपोर्ट में क्लीसोबोरा के विषय में अपना मत बदल कर इस शब्द का मूलरूप `केशवपुरा'[2] माना है और उसकी पहचान उन्होंने केशवपुरा या कटरा केशवदेव से की है। केशव या श्रीकृष्ण का जन्म स्थान होने के कारण यह स्थान 'केशवपुरा' कहलाता है।
पुरस्कार व सम्मान
कॅनिंघम को इनके योगदानों के लिए 20 मई, 1870 को 'ऑर्डर ऑफ़ स्टार ऑफ़ इंडिया' (सी.एस.आई) से सम्मानित किया गया था। बाद में 1878 में इन्हें 'ऑर्डर ऑफ़ इंडियन एम्पायर' से भी सम्मानित किया गया। 1887 में इन्हें 'नाइट कमांडर ऑफ़ इंडियन एंपायर' घोषित किया गया।
कॅनिंघम का मत
कॅनिंघम का मत है कि उस समय में यमुना की प्रधान धारा वर्तमान कटरा केशवदेव की पूर्वी दीवार के नीचे से बहती रही होगी और दूसरी ओर मथुरा शहर रहा होगा। कटरा के कुछ आगे से दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ कर यमुना की वर्तमान बड़ी धारा में मिलती रही होगी।[3] जनरल कॅनिंघम का यह मत विचारणीय है। यह कहा जा सकता है कि किसी काल में यमुना की प्रधान धारा या उसकी एक बड़ी शाखा वर्तमान कटरा के नीचे से बहती रही हो और इस धारा के दोनों तरफ नगर रहा हो, मथुरा से भिन्न `केशवपुर' या `कृष्णपुर' नाम का नगर वर्तमान कटरा केशवदेव और उसके आस-पास होता तो उसका उल्लेख पुराणों या अन्य सहित्य में अवश्य होता।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देखिए कनिंघम्स ऎंश्यंट जिओग्रफी आफ इंडिया (कलकत्ता 1924) पृ0 429।
- ↑ लैसन ने भाषा-विज्ञान के आधार पर क्लीसोबोरा का मूल संस्कृत रूप `कृष्णपुर' माना है। उनका अनुमान है कि यह स्थान आगरा में रहा होगा। (इंडिश्चे आल्टरटुम्सकुण्डे, वॉन 1869, जिल्द 1, पृष्ठ 127, नोट 3।
- ↑ कनिंघम-आर्केंओलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ऐनुअल रिपोर्ट, जिल्द 20 (1882-83), पृ0 31-32।