"मार्गशीर्ष": अवतरणों में अंतर
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'''मार्गशीर्ष''' [[हिन्दू]] [[पंचांग]] के अनुसार [[वर्ष]] का नौवाँ माह है। इस माह को 'अगहन' भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष का सम्पूर्ण मास अत्यन्त पवित्र माना जाता है। मास भर प्रात:काल भजन मण्डलियाँ भजन तथा कीर्तन करती हुई निकलती हैं। '[[गीता]]'<ref>गीता (10.35</ref> में स्वयं [[कृष्ण|भगवान कृष्ण]] ने कहा है- '''मासानां मार्गशीर्षोऽयम्'''। [[सत युग]] में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया था। इसी मास में [[कश्यप|कश्यप ऋषि]] ने सुन्दर [[कश्मीर]] प्रदेश की रचना की थी। इसलिए इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए। | |||
==नामकरण== | |||
अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से क्यों जानते हैं? इस मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध [[मृगशिरा नक्षत्र]] से है। [[ज्योतिष]] के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं जिसमें से एक है मृगशिरा। इस माह की [[पूर्णिमा]] मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से जाना जाता है। | |||
==महत्त्व== | |||
*[[भागवत पुराण|भागवत]] के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि- "सभी माह में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है।" मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी में [[स्नान]] और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। | |||
*श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता [[गोपी|गोपियों]] को भी बताई थी। उन्होंने कहा था कि- "मार्गशीर्ष माह में [[यमुना]] में स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा।" तभी से इस माह में नदी स्नान का खास महत्व माना गया है। | |||
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*मार्गशीर्ष [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[द्वादशी]] को उपवास प्रारम्भ कर प्रतिमास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए। | |||
*प्रति द्वादशी को [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के [[केशव (विष्णु)|केशव]] से [[दामोदर]] तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।<ref>अनुशासन, अध्याय 10-, बृ. सं. 104.14-16</ref> | |||
*मार्गशीर्ष की [[पूर्णिमा]] को [[चन्द्रमा]] की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था। | |||
*इस दिन गौओं का [[नमक]] दिया जाए तथा माता, बहिन, पुत्री और [[परिवार]] की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। | |||
*इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर एक उत्सव भी किया जाना चाहिए। | |||
*मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही '[[दत्तात्रेय जयन्ती]]' मनायी जानी चाहिए।<ref>कृत्यकल्पतरु का नैत्य कालिक काण्ड, 432-33; कृत्यरत्नाकर, 471-72</ref> | |||
==विशेषताएँ== | |||
#मार्गशीर्ष मास में इन तीन पावन पाठ की बहुत महिमा है- [[विष्णु सहस्रनाम]], भगवत गीता और गजेन्द्रमोक्ष। इन्हें दिन में 2-3 बार अवश्य पढ़ना चाहिए। | |||
#इस मास में '[[श्रीमद्भागवत]]' ग्रन्थ को देखने भर की विशेष महिमा है। [[स्कन्द पुराण]] में लिखा है- "घर में अगर भागवत हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम करना चाहिए।" | |||
#इस मास में अपने गुरु को, इष्ट को ॐ दामोदराय नमः कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के अवरोध समाप्त होते हैं। | |||
#इस माह में [[शंख]] में तीर्थ का पानी भरें और घर में जो पूजा का स्थान है, उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र बोलते हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं। | |||
#अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का रूप है।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/astrology-articles/importance-of-hindu-month-agahan-116111800022_1.html |title=अगहन मास सर्वोत्तम है, जानिए इस माह की 10 पवित्र विशेषताएं|accessmonthday= 18 नवम्बर|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=webdunia.com |language=हिंदी }}</ref> | |||
==मार्गशीर्ष अमावस्या== | |||
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जिस प्रकार [[कार्तिक]], [[माघ]], [[वैशाख]] आदि महीने [[गंगा]] में स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं, उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष माह की अमावस का आध्यात्मिक महत्व खूब रहा है। जिस दिन मार्गशिर्ष माह में अमावस तिथि हो, उस दिन स्नान दान और [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] का विशेष महत्व रहता है। अमावस तिथि के दिन व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है, जो अमोघ फलदायी होती है। इस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा सामर्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है। | |||
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==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[https://religion.bhaskar.com/news/utsav--why-say-aghan-manth-is-also-margshirsh-2566088.html अगहन मास को मार्गशीर्ष भी क्यों कहते हैं?] | |||
*[https://religion.bhaskar.com/news/DHA-UTS-utsav--interesting-things-know-why-aghan-month-also-called-is-margashirsha-4094678-NOR.html जानिए अगहन मास को मार्गशीर्ष भी क्यों कहते हैं] | |||
*[http://understandhindudharma.blogspot.in/2012/12/blog-post_7967.html मार्गशीर्ष मास अत्यंत पवित्र है] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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12:10, 18 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
मार्गशीर्ष
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विवरण | मार्गशीर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नौवाँ माह है। इस माह को अगहन भी कहा जाता है। |
अंग्रेज़ी | नवम्बर-दिसम्बर |
हिजरी माह | मुहर्रम - सफ़र |
व्रत एवं त्योहार | विहार पंचमी, मोक्षदा एकादशी, कालाष्टमी |
जयंती एवं मेले | अन्नपूर्णा जयन्ती |
पिछला | कार्तिक |
अगला | पौष |
विशेष | सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया। |
अन्य जानकारी | मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी अर्थात विहार पंचमी के दिन ही त्रेता युग में सीता-राम का विवाह हुआ था। मिथिलाचंल और अयोध्या में यह तिथि 'विवाह पंचमी' के नाम से प्रसिद्ध है। |
मार्गशीर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का नौवाँ माह है। इस माह को 'अगहन' भी कहा जाता है। मार्गशीर्ष का सम्पूर्ण मास अत्यन्त पवित्र माना जाता है। मास भर प्रात:काल भजन मण्डलियाँ भजन तथा कीर्तन करती हुई निकलती हैं। 'गीता'[1] में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है- मासानां मार्गशीर्षोऽयम्। सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया था। इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुन्दर कश्मीर प्रदेश की रचना की थी। इसलिए इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए।
नामकरण
अगहन मास को मार्गशीर्ष नाम से क्यों जानते हैं? इस मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही एक रूप है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र 27 होते हैं जिसमें से एक है मृगशिरा। इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से जाना जाता है।
महत्त्व
- भागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि- "सभी माह में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है।" मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
- श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों को भी बताई थी। उन्होंने कहा था कि- "मार्गशीर्ष माह में यमुना में स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा।" तभी से इस माह में नदी स्नान का खास महत्व माना गया है।
- मार्गशीर्ष माह में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए। स्नान के समय 'ॐ नमो नारायणाय' या 'गायत्री मंत्र' का जप करना चाहिए।[2]
धार्मिक क्रियाकलाप
- मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को उपवास प्रारम्भ कर प्रतिमास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए।
- प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुँच जाता है, जहाँ फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।[3]
- मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था।
- इस दिन गौओं का नमक दिया जाए तथा माता, बहिन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए।
- इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर एक उत्सव भी किया जाना चाहिए।
- मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही 'दत्तात्रेय जयन्ती' मनायी जानी चाहिए।[4]
विशेषताएँ
- मार्गशीर्ष मास में इन तीन पावन पाठ की बहुत महिमा है- विष्णु सहस्रनाम, भगवत गीता और गजेन्द्रमोक्ष। इन्हें दिन में 2-3 बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
- इस मास में 'श्रीमद्भागवत' ग्रन्थ को देखने भर की विशेष महिमा है। स्कन्द पुराण में लिखा है- "घर में अगर भागवत हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम करना चाहिए।"
- इस मास में अपने गुरु को, इष्ट को ॐ दामोदराय नमः कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के अवरोध समाप्त होते हैं।
- इस माह में शंख में तीर्थ का पानी भरें और घर में जो पूजा का स्थान है, उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र बोलते हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं।
- अगहन मास को मार्गशीर्ष कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का रूप है।[5]
मार्गशीर्ष अमावस्या
जिस प्रकार कार्तिक, माघ, वैशाख आदि महीने गंगा में स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं, उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष माह की अमावस का आध्यात्मिक महत्व खूब रहा है। जिस दिन मार्गशिर्ष माह में अमावस तिथि हो, उस दिन स्नान दान और तर्पण का विशेष महत्व रहता है। अमावस तिथि के दिन व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है, जो अमोघ फलदायी होती है। इस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा सामर्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता (10.35
- ↑ अगहन मास को मार्गशीर्ष क्यों कहते हैं (हिंदी) webdunia.com। अभिगमन तिथि: 18 नवम्बर, 2017।
- ↑ अनुशासन, अध्याय 10-, बृ. सं. 104.14-16
- ↑ कृत्यकल्पतरु का नैत्य कालिक काण्ड, 432-33; कृत्यरत्नाकर, 471-72
- ↑ अगहन मास सर्वोत्तम है, जानिए इस माह की 10 पवित्र विशेषताएं (हिंदी) webdunia.com। अभिगमन तिथि: 18 नवम्बर, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
- अगहन मास को मार्गशीर्ष भी क्यों कहते हैं?
- जानिए अगहन मास को मार्गशीर्ष भी क्यों कहते हैं
- मार्गशीर्ष मास अत्यंत पवित्र है