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'''सत्य साईं बाबा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Satya Sai Baba'', जन्म: [[23 नवंबर]], [[1926]] - मृत्यु: [[24 अप्रैल]], [[2011]]) [[भारत]] के बेहद प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। आज दुनिया जिन्हें सत्य साई बाबा के नाम से जानती है, उनके बचपन का नाम 'आर. सत्यनारायण राजू' था। सत्यनारायण राजू [[साईं बाबा]] के बहुत ही बड़े [[भक्त]] थे। उनके गाँव में ही [[23 नवम्बर]], [[1950]] को 'साईं धाम' की स्थापना की गई थी। सत्य साईं बाबा ने आध्यात्म की शिक्षा ग्रहण की और यह संदेश दिया की सभी से प्रेम करो, सब की सहायता करो और किसी का भी बुरा मत करो। | |||
==जन्म तथा बाल्यकाल== | |||
==जन्म | सत्य साईं का जन्म [[भारत]] में [[आन्ध्र प्रदेश]] के छोटे-से गाँव गोवर्धन पल्ली में [[23 नवंबर]], [[1926]] को हुआ था। इसी जगह को आज '''पुट्टापर्थी''' के रूप में जाना जाता है। वे बचपन से ही बड़े बुद्धिमान और दयालु स्वभाव के थे, तथा प्रमाणित और आर्दश गुणवत्ता के कारण अपने गाँव के अन्य बच्चों से भिन्न थे। [[संगीत]], [[नृत्य]], गाना, लिखना इन सबमें काफ़ी अच्छे थे। ऐसा कहा जाता है कि वे बचपन में ही चमत्कार दिखाने लग गए थे, हवा से मिठाई और खाने-पीने की दूसरी चीज़ें पैदा कर देते थे।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_7628785.html |title=सत्य साईं बाबा और उनका मर्म |accessmonthday=[[25 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language= [[हिन्दी]]}}</ref>ऐसा माना जाता है कि जब वह मात्र 14 वर्ष के थे, तब उन्हें बिच्छू ने काट लिया। उसके बाद उनका व्यवहार ही बदल गया। वह हंसते-हंसते अचानक रोने लगते। कभी-कभी [[संस्कृत]] के [[श्लोक]] बोलने लगते। [[23 मई]], [[1940]] को उन्होंने अपने आप को शिरडी के [[साईं बाबा]] का [[अवतार]] घोषित कर दिया। वास्तव में जब सत्य साई बाबा का जन्म हुआ, उसके 8 वर्ष पहले ही शिरडी के साईं बाबा का देहांत हो चुका था।<ref name="jyi">{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/news/opinion/general/6_3_7631529.html |title=करिश्माई व्यक्तित्व की विदाई |accessmonthday=[[25 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण याहू इंडिया |language= [[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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यह माना जाता है कि जब सत्य साईं [[29 अक्टूबर]], [[1940]] को 14 साल के हुए, उसी समय उन्होंने अपने गाँव के लोगों और परिवार के समक्ष यह बताया कि वह साईं बाबा को जान सके और साईं अध्यात्म का प्रचार प्रसार कर सके। इसके लिए उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की, जिससे की वह मानव जीवन में अध्यात्म शांति और प्रेम का प्रचार प्रसार कर सकें। उन्होंने [[1947]] में अपने भाई को पत्र लिखा और पत्र में कहा कि मेरे पास कार्य है कि सभी मानव जाति में शांति, सुख और प्रेम की धारा बहा दूँ। वह साईं के बहुत बड़े भक्त थे और उनके गाँव में ही [[23 नवम्बर]] [[1950]] को साईं धाम की स्थापना की गई थी। सत्य साईं बाबा ने आध्यात्म की शिक्षा ग्रहण की और उन्होंने यह संदेश दिया की सभी से प्रेम करो, सब की सहायता करो और किसी का भी बुरा मत करो। उन्होंने साईं के प्रचार प्रसार के लिए कई वाल्यूम प्रकाशित भी किए। बाबा ने [[भारत]] को "गुरुओं का देश" कहा है। बाबा अपने भक्तों को संस्कृति, सभ्यता का उपदेश देते रहे। बाबा [[आयुर्वेद]] की सहायता से रोगियों का इलाज भी करते थे। बाबा की आय का साधन उनके द्वारा बनाए गई संस्थाएँ हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/national/nat-Satya%20Sai%20Baba%20died%20after%20prolonged%20illness-10419.html |title=सत्य साई बाबा का जीवन चक्र |accessmonthday=[[25 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अमर उजाला |language= [[हिन्दी]]}}</ref> | |||
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[[23 मई]] [[1940]] को उनकी दिव्यता का लोगों को अहसास हुआ। सत्य साईं ने घर के सभी लोगों को बुलाया और चमत्कार दिखाने लगे। | [[23 मई]], [[1940]] को उनकी दिव्यता का लोगों को अहसास हुआ। सत्य साईं ने घर के सभी लोगों को बुलाया और चमत्कार दिखाने लगे। उन्होंने अपने आप को 'शिरडी साईं बाबा' का [[अवतार]] घोषित कर दिया। शिरडी साईं बाबा, सत्य साईं की पैदाइश से 8 साल पहले ही गुज़र चुके थे। खुद को शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषित करने के बाद सत्य साई बाबा के पास श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी। सत्य साई बाबा अपने शिष्यों को यही समझाते रहे कि उन्हें अपना [[धर्म]] और अपना ईष्ट छोड़ने की ज़रूरत नहीं। उन्होंने [[मद्रास]] और [[दक्षिण भारत]] के अन्य हिस्सों की यात्रा की। इससे उनके भक्तों की तादाद बढ़ती गई। हर [[गुरुवार]] को उनके घर पर भजन-कीर्तन होने लगा था, जो बाद में रोज़ाना हो गया।<ref name="nvt">{{cite web |url=http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/8071044.cms?prtpage=1 |title=सत्यनारायण से साईं बाबा बनने की कहानी |accessmonthday=[[25 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=नवभारत टाइम्स |language= [[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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[[29 जून]], [[1968]] को उन्होंने अपनी पहली और एकमात्र विदेश यात्रा की। | [[29 जून]], [[1968]] को उन्होंने अपनी पहली और एकमात्र विदेश यात्रा की। वे युगांडा गए, जहाँ नैरोबी में उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैं यहाँ आपके दिल में प्यार और सद्भाव का दीप जलाने आया हूँ, मैं किसी [[धर्म]] के लिए नहीं आया, किसी को भक्त बनाने नहीं आया, मैं तो प्यार का संदेश फैलाने आया हूँ।<ref>{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/article/NAT-spiritual-gurusathyanarayana-rajusathya-sai-demi-godsathya-sai-baba-deadputtaparthi-2047668.html |title=बचपन से ही सामने आने लगे थे साईं बाबा के चमत्कार |accessmonthday=[[25 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=दैनिक भास्कर |language= [[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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सत्य साईं बाबा
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पूरा नाम | सत्य साईं बाबा |
अन्य नाम | सत्यनारायण राजू (मूल नाम) |
जन्म | 23 नवंबर, 1926 |
जन्म भूमि | पुट्टापर्थी, आंध्र प्रदेश |
मृत्यु | 24 अप्रैल 2011 |
मृत्यु स्थान | पुट्टापर्थी, आंध्र प्रदेश |
भाषा | हिन्दी |
प्रसिद्धि | आध्यात्मिक गुरु |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष | सत्य साईं बाबा के भक्तों में अटल बिहारी वाजपेयी, विलासराव देशमुख, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, रजनीकांत, सुनील गावस्कर, क्लाइव लायड जैसी हस्तियाँ हैं। |
अन्य जानकारी | सत्य साईं बाबा का पूरा जीवन मानवता की सेवा को समर्पित रहा। उनके 'सत्य साईं ट्रस्ट' ने विभिन्न देशों में धर्मार्थ-निस्वार्थ भावना से इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अस्पताल खोले, जिनके द्वार ज़रूरतमंदों के लिए हमेशा ही खुले रहते थे। |
सत्य साईं बाबा (अंग्रेज़ी: Satya Sai Baba, जन्म: 23 नवंबर, 1926 - मृत्यु: 24 अप्रैल, 2011) भारत के बेहद प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। आज दुनिया जिन्हें सत्य साई बाबा के नाम से जानती है, उनके बचपन का नाम 'आर. सत्यनारायण राजू' था। सत्यनारायण राजू साईं बाबा के बहुत ही बड़े भक्त थे। उनके गाँव में ही 23 नवम्बर, 1950 को 'साईं धाम' की स्थापना की गई थी। सत्य साईं बाबा ने आध्यात्म की शिक्षा ग्रहण की और यह संदेश दिया की सभी से प्रेम करो, सब की सहायता करो और किसी का भी बुरा मत करो।
जन्म तथा बाल्यकाल
सत्य साईं का जन्म भारत में आन्ध्र प्रदेश के छोटे-से गाँव गोवर्धन पल्ली में 23 नवंबर, 1926 को हुआ था। इसी जगह को आज पुट्टापर्थी के रूप में जाना जाता है। वे बचपन से ही बड़े बुद्धिमान और दयालु स्वभाव के थे, तथा प्रमाणित और आर्दश गुणवत्ता के कारण अपने गाँव के अन्य बच्चों से भिन्न थे। संगीत, नृत्य, गाना, लिखना इन सबमें काफ़ी अच्छे थे। ऐसा कहा जाता है कि वे बचपन में ही चमत्कार दिखाने लग गए थे, हवा से मिठाई और खाने-पीने की दूसरी चीज़ें पैदा कर देते थे।[1]ऐसा माना जाता है कि जब वह मात्र 14 वर्ष के थे, तब उन्हें बिच्छू ने काट लिया। उसके बाद उनका व्यवहार ही बदल गया। वह हंसते-हंसते अचानक रोने लगते। कभी-कभी संस्कृत के श्लोक बोलने लगते। 23 मई, 1940 को उन्होंने अपने आप को शिरडी के साईं बाबा का अवतार घोषित कर दिया। वास्तव में जब सत्य साई बाबा का जन्म हुआ, उसके 8 वर्ष पहले ही शिरडी के साईं बाबा का देहांत हो चुका था।[2]
अध्यात्म की शिक्षा
यह माना जाता है कि जब सत्य साईं 29 अक्टूबर, 1940 को 14 साल के हुए, उसी समय उन्होंने अपने गाँव के लोगों और परिवार के समक्ष यह बताया कि वह साईं बाबा को जान सके और साईं अध्यात्म का प्रचार प्रसार कर सके। इसके लिए उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की, जिससे की वह मानव जीवन में अध्यात्म शांति और प्रेम का प्रचार प्रसार कर सकें। उन्होंने 1947 में अपने भाई को पत्र लिखा और पत्र में कहा कि मेरे पास कार्य है कि सभी मानव जाति में शांति, सुख और प्रेम की धारा बहा दूँ। वह साईं के बहुत बड़े भक्त थे और उनके गाँव में ही 23 नवम्बर 1950 को साईं धाम की स्थापना की गई थी। सत्य साईं बाबा ने आध्यात्म की शिक्षा ग्रहण की और उन्होंने यह संदेश दिया की सभी से प्रेम करो, सब की सहायता करो और किसी का भी बुरा मत करो। उन्होंने साईं के प्रचार प्रसार के लिए कई वाल्यूम प्रकाशित भी किए। बाबा ने भारत को "गुरुओं का देश" कहा है। बाबा अपने भक्तों को संस्कृति, सभ्यता का उपदेश देते रहे। बाबा आयुर्वेद की सहायता से रोगियों का इलाज भी करते थे। बाबा की आय का साधन उनके द्वारा बनाए गई संस्थाएँ हैं।[3]
साईं बाबा का अवतार
23 मई, 1940 को उनकी दिव्यता का लोगों को अहसास हुआ। सत्य साईं ने घर के सभी लोगों को बुलाया और चमत्कार दिखाने लगे। उन्होंने अपने आप को 'शिरडी साईं बाबा' का अवतार घोषित कर दिया। शिरडी साईं बाबा, सत्य साईं की पैदाइश से 8 साल पहले ही गुज़र चुके थे। खुद को शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषित करने के बाद सत्य साई बाबा के पास श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी। सत्य साई बाबा अपने शिष्यों को यही समझाते रहे कि उन्हें अपना धर्म और अपना ईष्ट छोड़ने की ज़रूरत नहीं। उन्होंने मद्रास और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों की यात्रा की। इससे उनके भक्तों की तादाद बढ़ती गई। हर गुरुवार को उनके घर पर भजन-कीर्तन होने लगा था, जो बाद में रोज़ाना हो गया।[4]
सत्य साईं बाबा |
माता के साथ सत्य साईं बाबा |
सत्य साईं बाबा |
सत्य साईं का मंदिर
वर्ष 1944 में सत्य साईं के एक भक्त ने उनके गाँव के नजदीक उनके लिए एक मंदिर बनवाया, जो आज पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता है। उनके मौजूदा आश्रम "प्रशांति निलयम" का निर्माण कार्य 1948 में शुरू हुआ था और 1950 में ये बनकर तैयार हुआ। 1957 में साईं बाबा उत्तर भारत के दौरे पर गये। 1963 में उन्हें कई बार दिल का दौरा पड़ा था, उससे वह उबर गए थे। ठीक होने पर उन्होंने ऐलान किया कि वे कर्नाटक प्रदेश में प्रेम साईं बाबा के रूप में पुन: अवतरित होंगे।[4]
विदेश यात्रा
29 जून, 1968 को उन्होंने अपनी पहली और एकमात्र विदेश यात्रा की। वे युगांडा गए, जहाँ नैरोबी में उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैं यहाँ आपके दिल में प्यार और सद्भाव का दीप जलाने आया हूँ, मैं किसी धर्म के लिए नहीं आया, किसी को भक्त बनाने नहीं आया, मैं तो प्यार का संदेश फैलाने आया हूँ।[5]
मानवता की सेवा
- सत्य साईं बाबा का पूरा जीवन मानवता की सेवा को समर्पित रहा। उनके 'सत्य साईं ट्रस्ट' ने विभिन्न देशों में धर्मार्थ-निस्वार्थ भावना से इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अस्पताल खोले, जिनके द्वार ज़रूरतमंदों के लिए हमेशा ही खुले रहते थे। सत्य साई बाबा की प्रेरणा से ही स्थापित 'सत्य साई सेंट्रल ट्रस्ट' के पास आज 40 हज़ार करोड़ रुपए की चल-अचल सपत्ति है। कुछ लोगों का मानना है कि यह संपत्ति 1.50 लाख करोड़ रुपए है।[2]
- साई बाबा द्वारा जो अनेक सस्थाएँ स्थापित की गई है, उनकी देखभाल 'सत्य साई काट्रेक्टर ट्रस्ट' द्वारा की जाती है। इस ट्रस्ट के माध्यम से पूरे विश्व के 186 देशों में क़रीब 1200 सस्थाएँ चल रही हैं। इन सस्थाओं में डिग्री कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, स्कूल, महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली सस्थाएँ और प्रकाशन सस्थान शामिल है। इन सस्थाओं की तरफ़ से पुट्टपर्थी और बेंगळूरू में कई अत्याधुनिक चिकित्सा केंद्रों का भी निर्माण किया गया है। अनेक शहरों में पानी की योजनाओं का सचालन भी यही सस्था कर रही है। बाबा जहाँ रहते थे, वहाँ सत्य साई यूनिवर्सिटी कांप्लेक्स, प्लेनेटोरियम, इडोर-आउटडोर स्टेडियम, एक अस्पताल, सगीत विद्यालय और एयरपोर्ट है।[2]
- वर्ष 2010 में 'सत्य साई यूनिवर्सिटी' के दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल पहुंची थीं। तमिलनाडु के मुख्यमत्री करुणानिधि को लोग नास्तिक के रूप में जानते है, पर वह भी बाबा के भक्त हैं। बाबा के बारे में वह कहते हैं कि जो मनुष्यों की सेवा करते हैं, मेरे लिए वे ही भगवान हैं। बाबा के भक्तों में अटल बिहारी वाजपेयी, विलासराव देशमुख, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, रजनीकांत, सुनील गावस्कर, क्लाइव लायड जैसी हस्तियाँ हैं। ये सभी समय-समय पर बाबा से भेंट करते रहते थे।[2]
निधन
86 वर्षीय साईं बाबा को हृदय और सांस संबंधी तकलीफों के बाद 28 मार्च, 2011 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई। हालत नाजुक होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। लो ब्लड प्रेशर और यकृत बेकार होने से उनकी हालत और चिंताजनक हो गई थी। उनके शरीर के लगभग सभी अंगों पर दवाइयाँ बेअसर साबित होने लगी थीं। 24 अप्रैल, 2011 की सुबह 7:40 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सत्य साईं बाबा और उनका मर्म (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 25 अप्रॅल, 2011।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 2.3 करिश्माई व्यक्तित्व की विदाई (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 25 अप्रॅल, 2011।
- ↑ सत्य साई बाबा का जीवन चक्र (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अमर उजाला। अभिगमन तिथि: 25 अप्रॅल, 2011।
- ↑ 4.0 4.1 4.2 सत्यनारायण से साईं बाबा बनने की कहानी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 25 अप्रॅल, 2011।
- ↑ बचपन से ही सामने आने लगे थे साईं बाबा के चमत्कार (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 25 अप्रॅल, 2011।
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