"राघोबा": अवतरणों में अंतर
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''' | {{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र | ||
|चित्र=Raghunathrao.jpg | |||
|चित्र का नाम=राघोबा | |||
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|अन्य नाम=रघुनाथराव | |||
|जन्म=[[18 अगस्त]], 1734 ई. | |||
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|संबंधित लेख=[[शिवाजी]], [[शाहजी भोंसले]], [[शम्भाजी|शम्भाजी पेशवा]], [[बालाजी विश्वनाथ]], [[बाजीराव प्रथम]], [[बाजीराव द्वितीय]], [[राजाराम शिवाजी]], [[ग्वालियर]], [[नाना फड़नवीस]], [[दौलतराव शिन्दे]], [[सालबाई की सन्धि]], [[टीपू सुल्तान]], [[सूरत की सन्धि]], [[आंग्ल-मराठा युद्ध]], [[पेशवा]] | |||
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}}'''राघोबा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Raghoba'', जन्म: [[18 अगस्त]], 1734 ई., मृत्यु: [[11 दिसम्बर]], 1783 ई.) जिसे 'रघुनाथराव' के नाम से भी जाना जाता है, द्वितीय [[पेशवा]] [[बाजीराव प्रथम]] का द्वितीय [[पुत्र]] था, जो एक कुशल सेना नायक था। अपने बड़े भाई [[बालाजी बाजीराव]] के पेशवा काल में उसने होल्कर के सहयोग से उत्तरी [[भारत]] में बृहत सैनिक अभियान चलाया था। रघुनाथराव अपने भतीजे माधवराव को पेशवा बनाने के ख़िलाफ़ था। [[माधवराव प्रथम]] की [[मृत्यु]] के बाद नारायणराव पेशवा हुआ, लेकिन रघुनाथराव ने उसकी हत्या करवा दी। अपने जीवन के अंतिम दिन उसने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की पेंशन पर आश्रित रहकर व्यतीत किए थे। [[अमृतराव]] रघुनाथराव (राघोबा) का दत्तक पुत्र था, जो पेशवा बाजीराव प्रथम का दूसरा पुत्र था। | |||
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'''1758 ई. में उसने''' [[अहमदशाह अब्दाली]] के पुत्र तैमूरशाह को परास्त करके [[सरहिन्द]] पर अधिकार कर लिया तथा [[पंजाब]] पर अधिकार करके [[मराठा|मराठों]] ([[हिन्दू|हिन्दुओं]]) की सत्ता [[अटक]] तक संस्थापित कर दी। किन्तु राजनीतिक तथा आर्थिक दृष्टियों से उक्त उपलब्धियाँ लाभदायक सिद्ध नहीं हुईं। तैमूरशाह को पंजाब से खदेड़ने के कारण उसके पिता अहमदशाह अब्दाली ने 1759 ई. में भारत पर एक बार फिर से आक्रमण करके मराठों की शक्ति का उन्मूलन कर दिया। इसके उपरान्त 1761 ई. में [[पानीपत | '''1758 ई. में उसने''' [[अहमदशाह अब्दाली]] के पुत्र तैमूरशाह को परास्त करके [[सरहिन्द]] पर अधिकार कर लिया तथा [[पंजाब]] पर अधिकार करके [[मराठा|मराठों]] ([[हिन्दू|हिन्दुओं]]) की सत्ता [[अटक]] तक संस्थापित कर दी। किन्तु राजनीतिक तथा आर्थिक दृष्टियों से उक्त उपलब्धियाँ लाभदायक सिद्ध नहीं हुईं। तैमूरशाह को पंजाब से खदेड़ने के कारण उसके पिता अहमदशाह अब्दाली ने 1759 ई. में [[भारत]] पर एक बार फिर से आक्रमण करके मराठों की शक्ति का उन्मूलन कर दिया। इसके उपरान्त 1761 ई. में [[पानीपत युद्ध तृतीय |पानीपत के तृतीय युद्ध]] में मराठों की गहरी पराजय हुई। इस युद्ध में भीषण नर संहार हुआ, पर रघुनावराव किसी प्रकार से बच निकला। | ||
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'''रघुनाथराव अत्यघिक महत्त्वाकांक्षी था'''। बड़े भाई बालाजी बाजीराव की मृत्यु के उपरान्त उसके पुत्र | '''रघुनाथराव अत्यघिक महत्त्वाकांक्षी था'''। बड़े भाई बालाजी बाजीराव की मृत्यु के उपरान्त उसके पुत्र और अपने भतीजे [[माधवराव प्रथम|माधवराव]] के पेशवा बनने पर वह क्षुब्ध हो गया। किन्तु नवयुवक पेशवा माधवराव योग्य एवं चतुर निकला। उसने रघुनावराव की समस्त चालों को विफल कर दिया। किन्तु 1772 ई. में [[माधवराव प्रथम]] की अचानक मृत्यु हो जाने के कारण जब उसका छोटा भाई [[नारायणराव]] पेशवा हुआ तो रघुनाथराव अपनी महत्त्वाकांक्षा को अंकुश में नहीं रख सका। उसने 1773 ई. में षडयंत्र करके नवयुवक पेशवा को अपनी आँखों के सामने ही मरवा डाला। मृत्यु के समय नारायणराव का कोई भी पुत्र नहीं था। अत: रघुनाथराव [[पेशवा]] पद का अकेला दावेदार हुआ और 1773 ई. में ही उसे पेशवा घोषित कर दिया गया। | ||
==विरोध== | ==विरोध== | ||
'''किन्तु''' [[नाना फड़नवीस]] के नेतृत्व में मराठों के एक शक्तिशाली दल ने [[पूना]] में उसके पदासीन होने का सबल विरोध किया। इस दल को नारायणराव के मरणोपरान्त 1774 में | '''किन्तु''' [[नाना फड़नवीस]] के नेतृत्व में मराठों के एक शक्तिशाली दल ने [[पूना]] में उसके पदासीन होने का सबल विरोध किया। इस दल को नारायणराव के मरणोपरान्त 1774 में उसका एक पुत्र उत्पन्न होने से और भी अधिक सहारा मिल गया। रघुनाथराव के विरोधियों ने अविलम्ब नवजात शिशु [[माधवराव नारायण]] को पेशवा नियुक्त कर दिया। उन्होंने एक संरक्षक समिति बना ली तथा बालक पेशवा के नाम पर समस्त [[मराठा]] राज्य का संचालन सम्भाल लिया। इस प्रकार रघुनाथराव अकेला पड़ गया और उसे [[महाराष्ट्र]] से निकाल दिया गया। | ||
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'''अपनी महत्त्वाकांक्षाओं पर पानी फिर''' जाने से रघुनाथराव की समस्त देशभक्ति कुण्ठित हो गई और उसने [[बम्बई]] जाकर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से सहायता की याचना की तथा 1775 ई. में उनसे सन्धि कर ली, जो कि सूरत की सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है। सन्धि के अंतर्गत अंग्रेज़ों ने रघुनाथराव की सहायता के लिए 2500 सैनिक देने का वचन दिया, परन्तु इनका समस्त व्यय भार रघुनाथराव को ही वहन करना था। इसके बाद में रघुनाथराव ने [[साष्टी]] और [[बसई की सन्धि|बसई]] तथा भड़ौच और सूरत ज़िलों की आय का कुछ भाग अंग्रेज़ों को देना स्वीकार कर लिया। साथ ही उसने [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] के शत्रुओं से किसी प्रकार की सन्धि न करने तथा पूना सरकार से सन्धि या समझौता करते समय अंग्रेज़ों को भी भागी बनाने का वचन दिया। | '''अपनी महत्त्वाकांक्षाओं पर पानी फिर''' जाने से रघुनाथराव की समस्त देशभक्ति कुण्ठित हो गई और उसने [[बम्बई]] जाकर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से सहायता की याचना की तथा 1775 ई. में उनसे सन्धि कर ली, जो कि [[सूरत की सन्धि]] के नाम से प्रसिद्ध है। सन्धि के अंतर्गत अंग्रेज़ों ने रघुनाथराव की सहायता के लिए 2500 सैनिक देने का वचन दिया, परन्तु इनका समस्त व्यय भार रघुनाथराव को ही वहन करना था। इसके बाद में रघुनाथराव ने [[साष्टी]] और [[बसई की सन्धि|बसई]] तथा भड़ौच और [[सूरत ज़िला|सूरत ज़िलों]] की आय का कुछ भाग अंग्रेज़ों को देना स्वीकार कर लिया। साथ ही उसने [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] के शत्रुओं से किसी प्रकार की सन्धि न करने तथा पूना सरकार से सन्धि या समझौता करते समय अंग्रेज़ों को भी भागी बनाने का वचन दिया। | ||
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'''सन्धि के अनुसार बम्बई''' के अंग्रेज़ों ने रघुनाथराव का पक्ष लिया और प्रथम मराठा युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध 1775 ई. से 1783 ई. तक चलता रहा और इसकी समाप्ति [[सालबाई की सन्धि]] से हुई। अपनी देशद्रोहिता एवं घृणित स्वार्थपरता के परिणामस्वरूप रघुनाथराव को केवल पेंशन ही प्राप्त हुई, जिसका उपभोग वह अपने | '''सन्धि के अनुसार बम्बई''' के अंग्रेज़ों ने रघुनाथराव का पक्ष लिया और [[आंग्ल मराठा युद्ध प्रथम|प्रथम मराठा युद्ध]] आरम्भ हो गया। यह युद्ध 1775 ई. से 1783 ई. तक चलता रहा और इसकी समाप्ति [[सालबाई की सन्धि]] से हुई। अपनी देशद्रोहिता एवं घृणित स्वार्थपरता के परिणामस्वरूप रघुनाथराव को केवल पेंशन ही प्राप्त हुई, जिसका उपभोग वह अपने एकाकी जीवन में मृत्युपर्यन्त करता रहा। | ||
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राघोबा का निधन [[11 दिसम्बर]], 1783 ई. में हुआ था। | |||
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राघोबा
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पूरा नाम | राघोबा |
अन्य नाम | रघुनाथराव |
जन्म | 18 अगस्त, 1734 ई. |
मृत्यु तिथि | 11 दिसम्बर, 1783 ई. |
पिता/माता | पेशवा बाजीराव प्रथम |
उपाधि | पेशवा |
युद्ध | मराठा युद्ध, (1775 ई. से 1783 ई.) |
संबंधित लेख | शिवाजी, शाहजी भोंसले, शम्भाजी पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बाजीराव द्वितीय, राजाराम शिवाजी, ग्वालियर, नाना फड़नवीस, दौलतराव शिन्दे, सालबाई की सन्धि, टीपू सुल्तान, सूरत की सन्धि, आंग्ल-मराठा युद्ध, पेशवा |
पेशवा काल | 1773-1774 ई. |
अन्य जानकारी | रघुनाथराव की समस्त देशभक्ति कुण्ठित हो गई और उसने बम्बई जाकर अंग्रेज़ों से सहायता की याचना की तथा 1775 ई. में उनसे सन्धि कर ली, जो कि सूरत की सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है। |
राघोबा (अंग्रेज़ी: Raghoba, जन्म: 18 अगस्त, 1734 ई., मृत्यु: 11 दिसम्बर, 1783 ई.) जिसे 'रघुनाथराव' के नाम से भी जाना जाता है, द्वितीय पेशवा बाजीराव प्रथम का द्वितीय पुत्र था, जो एक कुशल सेना नायक था। अपने बड़े भाई बालाजी बाजीराव के पेशवा काल में उसने होल्कर के सहयोग से उत्तरी भारत में बृहत सैनिक अभियान चलाया था। रघुनाथराव अपने भतीजे माधवराव को पेशवा बनाने के ख़िलाफ़ था। माधवराव प्रथम की मृत्यु के बाद नारायणराव पेशवा हुआ, लेकिन रघुनाथराव ने उसकी हत्या करवा दी। अपने जीवन के अंतिम दिन उसने अंग्रेज़ों की पेंशन पर आश्रित रहकर व्यतीत किए थे। अमृतराव रघुनाथराव (राघोबा) का दत्तक पुत्र था, जो पेशवा बाजीराव प्रथम का दूसरा पुत्र था।
अब्दाली से सामना
1758 ई. में उसने अहमदशाह अब्दाली के पुत्र तैमूरशाह को परास्त करके सरहिन्द पर अधिकार कर लिया तथा पंजाब पर अधिकार करके मराठों (हिन्दुओं) की सत्ता अटक तक संस्थापित कर दी। किन्तु राजनीतिक तथा आर्थिक दृष्टियों से उक्त उपलब्धियाँ लाभदायक सिद्ध नहीं हुईं। तैमूरशाह को पंजाब से खदेड़ने के कारण उसके पिता अहमदशाह अब्दाली ने 1759 ई. में भारत पर एक बार फिर से आक्रमण करके मराठों की शक्ति का उन्मूलन कर दिया। इसके उपरान्त 1761 ई. में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की गहरी पराजय हुई। इस युद्ध में भीषण नर संहार हुआ, पर रघुनावराव किसी प्रकार से बच निकला।
महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति
रघुनाथराव अत्यघिक महत्त्वाकांक्षी था। बड़े भाई बालाजी बाजीराव की मृत्यु के उपरान्त उसके पुत्र और अपने भतीजे माधवराव के पेशवा बनने पर वह क्षुब्ध हो गया। किन्तु नवयुवक पेशवा माधवराव योग्य एवं चतुर निकला। उसने रघुनावराव की समस्त चालों को विफल कर दिया। किन्तु 1772 ई. में माधवराव प्रथम की अचानक मृत्यु हो जाने के कारण जब उसका छोटा भाई नारायणराव पेशवा हुआ तो रघुनाथराव अपनी महत्त्वाकांक्षा को अंकुश में नहीं रख सका। उसने 1773 ई. में षडयंत्र करके नवयुवक पेशवा को अपनी आँखों के सामने ही मरवा डाला। मृत्यु के समय नारायणराव का कोई भी पुत्र नहीं था। अत: रघुनाथराव पेशवा पद का अकेला दावेदार हुआ और 1773 ई. में ही उसे पेशवा घोषित कर दिया गया।
विरोध
किन्तु नाना फड़नवीस के नेतृत्व में मराठों के एक शक्तिशाली दल ने पूना में उसके पदासीन होने का सबल विरोध किया। इस दल को नारायणराव के मरणोपरान्त 1774 में उसका एक पुत्र उत्पन्न होने से और भी अधिक सहारा मिल गया। रघुनाथराव के विरोधियों ने अविलम्ब नवजात शिशु माधवराव नारायण को पेशवा नियुक्त कर दिया। उन्होंने एक संरक्षक समिति बना ली तथा बालक पेशवा के नाम पर समस्त मराठा राज्य का संचालन सम्भाल लिया। इस प्रकार रघुनाथराव अकेला पड़ गया और उसे महाराष्ट्र से निकाल दिया गया।
अंग्रेज़ों की शरण
अपनी महत्त्वाकांक्षाओं पर पानी फिर जाने से रघुनाथराव की समस्त देशभक्ति कुण्ठित हो गई और उसने बम्बई जाकर अंग्रेज़ों से सहायता की याचना की तथा 1775 ई. में उनसे सन्धि कर ली, जो कि सूरत की सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है। सन्धि के अंतर्गत अंग्रेज़ों ने रघुनाथराव की सहायता के लिए 2500 सैनिक देने का वचन दिया, परन्तु इनका समस्त व्यय भार रघुनाथराव को ही वहन करना था। इसके बाद में रघुनाथराव ने साष्टी और बसई तथा भड़ौच और सूरत ज़िलों की आय का कुछ भाग अंग्रेज़ों को देना स्वीकार कर लिया। साथ ही उसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शत्रुओं से किसी प्रकार की सन्धि न करने तथा पूना सरकार से सन्धि या समझौता करते समय अंग्रेज़ों को भी भागी बनाने का वचन दिया।
मराठा युद्ध
सन्धि के अनुसार बम्बई के अंग्रेज़ों ने रघुनाथराव का पक्ष लिया और प्रथम मराठा युद्ध आरम्भ हो गया। यह युद्ध 1775 ई. से 1783 ई. तक चलता रहा और इसकी समाप्ति सालबाई की सन्धि से हुई। अपनी देशद्रोहिता एवं घृणित स्वार्थपरता के परिणामस्वरूप रघुनाथराव को केवल पेंशन ही प्राप्त हुई, जिसका उपभोग वह अपने एकाकी जीवन में मृत्युपर्यन्त करता रहा।
निधन
राघोबा का निधन 11 दिसम्बर, 1783 ई. में हुआ था।
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