"क्या जलने की रीत -महादेवी वर्मा": अवतरणों में अंतर
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<poem>क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक | <poem> | ||
क्या जलने की रीति, | |||
शलभ समझा, दीपक जाना। | |||
घेरे हैं बंदी दीपक को | घेरे हैं बंदी दीपक को, | ||
ज्वाला की | ज्वाला की बेला, | ||
दीन शलभ भी | दीन शलभ भी दीपशिखा से, | ||
सिर धुन धुन | सिर धुन धुन खेला। | ||
इसको क्षण संताप, | |||
भोर उसको भी बुझ जाना। | |||
इसके झुलसे पंख धूम की, | |||
उसके रेख रही, | |||
इसमें वह उन्माद, न उसमें | |||
ज्वाला शेष रही। | |||
धूम कहाँ विद्युत लहरों से | जग इसको चिर तृप्त कहे, | ||
हैं | या समझे पछताना। | ||
झंझा की कंपन देती | |||
चिर जागृति का | प्रिय मेरा चिर दीप जिसे छू, | ||
जाना | जल उठता जीवन, | ||
दीपक का आलोक, शलभ | |||
का भी इसमें क्रंदन। | |||
युग युग जल निष्कंप, | |||
इसे जलने का वर पाना। | |||
धूम कहाँ विद्युत लहरों से, | |||
हैं नि:श्वास भरा, | |||
झंझा की कंपन देती, | |||
चिर जागृति का पहरा। | |||
जाना उज्ज्वल प्रात: | |||
न यह काली निशि पहचाना। | |||
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11:35, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
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क्या जलने की रीति, |
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