"व्यथा की रात -महादेवी वर्मा": अवतरणों में अंतर

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ज्योति-शर से पूर्व का
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साँस की जंजीर दुहरी,
साँस की जंजीर दुहरी,
जागरण के द्वार पर
जागरण के द्वार पर
सपने बने निस्तंद्र प्रहरी,
सपने बने निस्पृह प्रहरी,
नयन पर सूने क्षणों का अचल घेरा है ।
नयन पर सूने क्षणों का अचल घेरा है ।


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किरण-पथ पर क्यों अकेला दीप मेरा है ?
किरण-पथ पर क्यों अकेला दीप मेरा है ?


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व्यथा की रात -महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च, 1907
जन्म स्थान फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 22 सितम्बर, 1987
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियाँ, अतीत के चलचित्र, नीरजा, नीहार
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
महादेवी वर्मा की रचनाएँ

यह व्यथा की रात का कैसा सवेरा है?

ज्योति-शर से पूर्व का
रीता अभी तूणीर भी है,
कुहर-पंखों से क्षितिज
रूँधे विभा का तीर भी है,
क्यों लिया फिर श्रांत तारों ने बसेरा है ?

छंद-रचना-सी गगन की
रंगमय उमड़े नहीं घन,
विहग-सरगम में न सुन
पड़ता दिवस के यान का स्वन,
पंक-सा रथचक्र से लिपटा अँधेरा है ।

रोकती पथ में पगों को
साँस की जंजीर दुहरी,
जागरण के द्वार पर
सपने बने निस्पृह प्रहरी,
नयन पर सूने क्षणों का अचल घेरा है ।

दीप को अब दूँ विदा, या
आज इसमें स्नेह ढालूँ ?
दूँ बुझा, या ओट में रख
दग्ध बाती को सँभालूँ ?
किरण-पथ पर क्यों अकेला दीप मेरा है ?

यह व्यथा की रात का कैसा सबेरा है?

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