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'''सित्तण्णवासल''' एक ऐतिहासिक स्थान है। जो [[तमिलनाडु]] के तंजौर ज़िले के पुदुकोट्टा नामक स्थान से 16 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। सित्तण्णवासल शैलकृत गुहा मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। | |||
'''सित्तण्णवासल''' एक ऐतिहासिक स्थान है। जो [[तमिलनाडु]] के तंजौर ज़िले के पुदुकोट्टा नामक स्थान से 16 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। | |||
*सित्तण्णवासल शब्द का आशय है, [[जैन]] संतों के सिद्धों का निवास इस कथ्य की पुष्टि यहाँ से प्राप्त तीसरी सदी ई. पू. के ब्राह्मी अभिलेख से भी होती है, जो कहता है कि ये शैल-गुहाएँ जैन मुनियों के निवास के लिए निर्मित की गयी थीं। | *सित्तण्णवासल शब्द का आशय है, [[जैन]] संतों के सिद्धों का निवास इस कथ्य की पुष्टि यहाँ से प्राप्त तीसरी सदी ई. पू. के ब्राह्मी अभिलेख से भी होती है, जो कहता है कि ये शैल-गुहाएँ जैन मुनियों के निवास के लिए निर्मित की गयी थीं। | ||
*इन गुहाओं में भित्तिचित्रों के उत्कृष्ट नमूनों के [[अवशेष]] हैं। इन | *इन गुहाओं में भित्तिचित्रों के उत्कृष्ट नमूनों के [[अवशेष]] हैं। इन गुफ़ाओं की बाहरी तथा भीतरी दीवारों पर जो चित्र बने हुए थे, उनके [[रंग]] अधिकतर उड़ गये हैं। परंतु जो बचे हुए हैं, उनसे यहाँ की चित्रकला का आभास मिलता है। | ||
*सित्तण्णवासल की भित्तिचित्रों की खोज का श्रेय फ़ांसीसी शोधकर्त्ता दुब्रील को जाता है। कुछ समय पूर्व तक इन्हें पल्लव चित्रकला के सर्वश्रेष्ठ अवशेषों में माना जाता था, किंतु अब यह तथ्य सामने आया है कि ये पल्लवकालीन न होकर [[पाण्ड्य साम्राज्य|पांड्यकालीन]] हैं और इन्हें माड़वर्मन राजसिंह प्रथम (730 - 765 ई.) ने बनवाया था। प्रसिद्ध कलाविद् शिवराममूर्ति ने इनको पाण्ड्य चित्रकला का अप्रतिम केन्द्र माना है। | *सित्तण्णवासल की भित्तिचित्रों की खोज का श्रेय फ़ांसीसी शोधकर्त्ता दुब्रील को जाता है। कुछ समय पूर्व तक इन्हें पल्लव चित्रकला के सर्वश्रेष्ठ अवशेषों में माना जाता था, किंतु अब यह तथ्य सामने आया है कि ये पल्लवकालीन न होकर [[पाण्ड्य साम्राज्य|पांड्यकालीन]] हैं और इन्हें माड़वर्मन राजसिंह प्रथम (730 - 765 ई.) ने बनवाया था। प्रसिद्ध कलाविद् शिवराममूर्ति ने इनको पाण्ड्य चित्रकला का अप्रतिम केन्द्र माना है। | ||
यहाँ के प्रसिद्ध चित्र हैं:- | यहाँ के प्रसिद्ध चित्र हैं:- | ||
*जैन तीर्थंकरों के चित्र, | *जैन तीर्थंकरों के चित्र, | ||
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*चित्रों का विषय जैन एवं जैनेत्तर है। | *चित्रों का विषय जैन एवं जैनेत्तर है। | ||
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13:42, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण
सित्तण्णवासल एक ऐतिहासिक स्थान है। जो तमिलनाडु के तंजौर ज़िले के पुदुकोट्टा नामक स्थान से 16 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। सित्तण्णवासल शैलकृत गुहा मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
- सित्तण्णवासल शब्द का आशय है, जैन संतों के सिद्धों का निवास इस कथ्य की पुष्टि यहाँ से प्राप्त तीसरी सदी ई. पू. के ब्राह्मी अभिलेख से भी होती है, जो कहता है कि ये शैल-गुहाएँ जैन मुनियों के निवास के लिए निर्मित की गयी थीं।
- इन गुहाओं में भित्तिचित्रों के उत्कृष्ट नमूनों के अवशेष हैं। इन गुफ़ाओं की बाहरी तथा भीतरी दीवारों पर जो चित्र बने हुए थे, उनके रंग अधिकतर उड़ गये हैं। परंतु जो बचे हुए हैं, उनसे यहाँ की चित्रकला का आभास मिलता है।
- सित्तण्णवासल की भित्तिचित्रों की खोज का श्रेय फ़ांसीसी शोधकर्त्ता दुब्रील को जाता है। कुछ समय पूर्व तक इन्हें पल्लव चित्रकला के सर्वश्रेष्ठ अवशेषों में माना जाता था, किंतु अब यह तथ्य सामने आया है कि ये पल्लवकालीन न होकर पांड्यकालीन हैं और इन्हें माड़वर्मन राजसिंह प्रथम (730 - 765 ई.) ने बनवाया था। प्रसिद्ध कलाविद् शिवराममूर्ति ने इनको पाण्ड्य चित्रकला का अप्रतिम केन्द्र माना है।
यहाँ के प्रसिद्ध चित्र हैं:-
- जैन तीर्थंकरों के चित्र,
- कमल पुष्पों से भरा एक सरोवर, जिसमें जल-पक्षी एवं पशु भी दिखाये गए हैं तथा कुछ दिव्य पुरुषों को फूल तोड़ते हुए दिखाया गया है।
- नृत्यरत अप्सराओं के चित्र
- राजा रानी का चित्र।
इसी सन्दर्भ में यहाँ के चित्रों की विशेषताओं का निरूपण करना भी समीचीन होगा।
- चित्रों का विषय जैन एवं जैनेत्तर है।
- रेखाओं के माध्यम से आकारों का सौष्ठव निखर कर आया है।
- चित्रों में पीले, हरे व भूरे रंग की संगति का प्रयोग किया गया है।
- संयोजन में चित्रोपम तत्त्वों का तालमेल मधुर बन पड़ा है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ