"लक्ष्मण": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Ramayana.jpg|[[श्रीराम]], लक्ष्मण और [[सीता]]<br /> Shri Ram, Laxman And Sita|thumb|200px]]
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=लक्ष्मण|लेख का नाम=लक्ष्मण (बहुविकल्पी)}}
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*लक्ष्मण [[दशरथ]] तथा [[सुमित्रा]] के पुत्र थे। वह [[राम]] के छोटे भाई थे। राम के वनगमन के विषय में सुनकर वह भी राम के साथ चौदह वर्षों के लिए वन गये थे।  
*लक्ष्मण [[दशरथ]] तथा [[सुमित्रा]] के पुत्र थे। वह [[राम]] के छोटे भाई थे। राम के वनगमन के विषय में सुनकर वह भी राम के साथ चौदह वर्षों के लिए वन गये थे।  
*लक्ष्मण जी शेषावतार थे। किसी भी अवस्था में भगवान श्री राम का वियोग इन्हें सह्य नहीं था। इसलिये ये सदैव छाया की भाँति श्री राम का ही अनुगमन करते थे।  
*लक्ष्मण जी शेषावतार थे। किसी भी अवस्था में भगवान श्री राम का वियोग इन्हें सह्य नहीं था। इसलिये ये सदैव छाया की भाँति श्री राम का ही अनुगमन करते थे।  
*श्री राम के चरणों की सेवा ही इनके जीवन का मुख्य व्रत था। श्री राम की तुलना में संसार के सभी सम्बन्ध इनके लिये गौण थे।  
*श्री राम के चरणों की सेवा ही इनके जीवन का मुख्य व्रत था। श्री राम की तुलना में संसार के सभी सम्बन्ध इनके लिये गौण थे।  
*इनके लिये श्री राम ही माता-पिता, गुरु, भाई सब कुछ थे और उनकी आज्ञा का पालन ही इनका मुख्य धर्म था। इसलिये जब भगवान श्री राम [[विश्वामित्र]] की यज्ञ-रक्षा के लिये गये तो लक्ष्मण जी भी उनके साथ गये। भगवान श्री राम जब सोने जाते थे तो ये उनका पैर दबाते और भगवान के बार-बार आग्रह करने पर ही स्वयं सोते तथा भगवान के जागने के पूर्व ही जग जाते थे। अबोध शिशु की भाँति इन्होंने भगवान श्री राम के चरणों को ही दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया और भगवान ही इनकी अनन्य गति बन गये।  
*इनके लिये श्री राम ही माता-पिता, गुरु, भाई सब कुछ थे और उनकी आज्ञा का पालन ही इनका मुख्य धर्म था। इसलिये जब भगवान श्री राम [[विश्वामित्र]] की यज्ञ-रक्षा के लिये गये तो लक्ष्मण जी भी उनके साथ गये। भगवान श्री राम जब सोने जाते थे तो ये उनका पैर दबाते और भगवान के बार-बार आग्रह करने पर ही स्वयं सोते तथा भगवान के जागने के पूर्व ही जग जाते थे। अबोध शिशु की भाँति इन्होंने भगवान श्री राम के चरणों को ही दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया और भगवान ही इनकी अनन्य गति बन गये।  
[[चित्र:Ramlila-Mathura-13.jpg|left|200px|thumb|[[राम]], लक्ष्मण, [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] और [[शत्रुघ्न]] के वेश में रामलीला कलाकार, [[मथुरा]]]]
*भगवान श्री राम के प्रति किसी के भी अपमान सूचक शब्द को ये कभी बरदाश्त नहीं करते थे। जब महाराज [[जनक]] ने धनुष के न टूटने के क्षोभ में धरती को वीर-विहीन कह दिया, तब भगवान के उपस्थित रहते हुए जनक जी का यह कथन श्री लक्ष्मण जी को बाण-जैसा लगा। ये तत्काल कठोर शब्दों में जनक जी का प्रतिकार करते हुए बोले- भगवान श्री राम के विद्यमान रहते हुए जनक ने जिस अनुचित वाणी का प्रयोग किया है, वह मेरे हृदय में शूल की भाँति चुभ रही है। जिस सभा में [[रघुवंश]] का कोई भी वीर मौजूद हो, वहाँ इस प्रकार की बातें सुनना और कहना उनकी वीरता का अपमान है। यदि श्री राम आदेश दें तो मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को गेंद की भाँति उठा सकता हूँ, फिर जनक के इस सड़े धनुष की गिनती ही क्या है।' इसी प्रकार जब श्री [[परशुराम]]जी ने धनुष तोड़ने वाले को ललकारा तो ये उनसे भी भिड़ गये।  
*भगवान श्री राम के प्रति किसी के भी अपमान सूचक शब्द को ये कभी बरदाश्त नहीं करते थे। जब महाराज [[जनक]] ने धनुष के न टूटने के क्षोभ में धरती को वीर-विहीन कह दिया, तब भगवान के उपस्थित रहते हुए जनक जी का यह कथन श्री लक्ष्मण जी को बाण-जैसा लगा। ये तत्काल कठोर शब्दों में जनक जी का प्रतिकार करते हुए बोले- भगवान श्री राम के विद्यमान रहते हुए जनक ने जिस अनुचित वाणी का प्रयोग किया है, वह मेरे हृदय में शूल की भाँति चुभ रही है। जिस सभा में [[रघुवंश]] का कोई भी वीर मौजूद हो, वहाँ इस प्रकार की बातें सुनना और कहना उनकी वीरता का अपमान है। यदि श्री राम आदेश दें तो मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को गेंद की भाँति उठा सकता हूँ, फिर जनक के इस सड़े धनुष की गिनती ही क्या है।' इसी प्रकार जब श्री [[परशुराम]]जी ने धनुष तोड़ने वाले को ललकारा तो ये उनसे भी भिड़ गये।  
*भगवान श्री राम के प्रति श्री लक्ष्मण की अनन्य निष्ठा का उदाहरण भगवान के वनगमन के समय मिलता है। ये उस समय देह-गेह, सगे-सम्बन्धी, माता और नव-विवाहिता पत्नी सबसे सम्बन्ध तोड़कर भगवान के साथ वन जाने के लिये तैयार हो जाते हैं। वन में ये निद्रा और शरीर के समस्त सुखों का परित्याग करके श्री राम-[[सीता|जानकी]] की जी-जान से सेवा करते हैं। ये भगवान की सेवा में इतने मग्न हो जाते हैं कि माता-पिता, पत्नी, भाई तथा घर की तनिक भी सुधि नहीं करते।
*भगवान श्री राम के प्रति श्री लक्ष्मण की अनन्य निष्ठा का उदाहरण भगवान के वनगमन के समय मिलता है। ये उस समय देह-गेह, सगे-सम्बन्धी, माता और नव-विवाहिता पत्नी सबसे सम्बन्ध तोड़कर भगवान के साथ वन जाने के लिये तैयार हो जाते हैं। वन में ये निद्रा और शरीर के समस्त सुखों का परित्याग करके श्री राम-[[सीता|जानकी]] की जी-जान से सेवा करते हैं। ये भगवान की सेवा में इतने मग्न हो जाते हैं कि माता-पिता, पत्नी, भाई तथा घर की तनिक भी सुधि नहीं करते।
==लक्ष्मण मूर्च्छा==
==लक्ष्मण मूर्च्छा==
*'सीता-हरण' के संदर्भ में राम-[[रावण]] युद्ध हुआ। [[लंका]] में युद्ध प्रांरभ हुआ तो राक्षसों से वानर-सेना अधिक शक्तिशाली जान पड़ती थी। तभी अचानक [[मेघनाद]] ने अंतर्धान होकर माया के प्रभाव से अपने को छिपा लिया और राम तथा लक्ष्मण को बाणों से बेध डाला। वे बाण राम और लक्ष्मण को लगकर सर्प बन जाते थे। वे दोनों शर-शैया पर मूर्च्छित होकर पड़े हुए थे तभी राम और लक्ष्मण को मरा हुआ जानकर मेघनाद ने यह सूचना रावण को दी। रावण ने दासी त्रिजटा के साथ विमान में सीता को भेजा। वह मूर्च्छित राम तथा लक्ष्मण को देखकर विलाप करने लगी। त्रिजटा उसे अशोकवाटिका में ले गयी तथा समझाने लगी कि यदि राम न रहे होते तो पुष्पक विमान हमें लेकर न उड़ता, क्योंकि यह विधवा स्त्रियों का वहन नहीं करता है, अत: वे मात्र अचेत होंगे।  
*'सीता-हरण' के संदर्भ में राम-[[रावण]] युद्ध हुआ। [[लंका]] में युद्ध प्रांरभ हुआ तो राक्षसों से वानर-सेना अधिक शक्तिशाली जान पड़ती थी। तभी अचानक [[मेघनाद]] ने अंतर्धान होकर माया के प्रभाव से अपने को छिपा लिया और राम तथा लक्ष्मण को बाणों से बेध डाला। वे बाण राम और लक्ष्मण को लगकर सर्प बन जाते थे। वे दोनों शर-शैया पर मूर्च्छित होकर पड़े हुए थे तभी राम और लक्ष्मण को मरा हुआ जानकर मेघनाद ने यह सूचना रावण को दी। रावण ने दासी [[त्रिजटा]] के साथ विमान में सीता को भेजा। वह मूर्च्छित राम तथा लक्ष्मण को देखकर विलाप करने लगी। त्रिजटा उसे [[अशोकवाटिका]] में ले गयी तथा समझाने लगी कि यदि राम न रहे होते तो पुष्पक विमान हमें लेकर न उड़ता, क्योंकि यह विधवा स्त्रियों का वहन नहीं करता है, अत: वे मात्र अचेत होंगे।  
*उधर राम तो मूर्च्छा से जाग उठे, किन्तु लक्ष्मण की गहन मूर्च्छा को देखकर सब चिंतित एवं निराश होने लगे। [[विभीषण]] ने सबको सांत्वना दी। वे सब संजीवनी बूटी की खोज में [[हनुमान]] को भेज ही रहे थे कि विनतानंद पक्षिराज [[गरुड़]] ने प्रकट होकर राम-लक्ष्मण का स्पर्श किया जिससे वे पूर्ण स्वस्थ हो गये। उन्होंने यह भी बताया कि मेघनाद के बाण वास्तव में कद्रु के पुत्र नाग हैं। उनको स्वस्थ देखकर आधी रात में ही वानरों ने बहुत शोर मचाया तथा गरुड़ ने विदा ली।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 45 से 50 तक" style="color:blue">*</balloon>  
[[चित्र:Laxman-Jhula-Rishikesh-1.jpg|[[लक्ष्मण झूला]], [[ऋषिकेश]]<br /> Laxman Jhula, Rishikesh|thumb|left]]
*पुन: युद्ध करते समय रावण ने लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार किया।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 101, श्लोक 34-36" style="color:blue">*</balloon>  
*उधर राम तो मूर्च्छा से जाग उठे, किन्तु लक्ष्मण की गहन मूर्च्छा को देखकर सब चिंतित एवं निराश होने लगे। [[विभीषण]] ने सबको सांत्वना दी। वे सब संजीवनी बूटी की खोज में [[हनुमान]] को भेज ही रहे थे कि विनतानंद पक्षिराज [[गरुड़]] ने प्रकट होकर राम-लक्ष्मण का स्पर्श किया जिससे वे पूर्ण स्वस्थ हो गये। उन्होंने यह भी बताया कि [[मेघनाद]] के [[बाण अस्त्र|बाण]] वास्तव में [[कद्रु]] के पुत्र [[नाग]] हैं। उनको स्वस्थ देखकर आधी रात में ही वानरों ने बहुत शोर मचाया तथा गरुड़ ने विदा ली।<ref>बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 45 से 50 तक</ref>  
*लक्ष्मण मूर्च्छित हो गया। लक्ष्मण की ऐसी दशा देखकर राम विलाप करने लगे। [[सुषेण]] ने कहा-'लक्ष्मण के मुंह पर मृत्यु-चिह्न नहीं है।'<balloon title="बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 102, श्लोक 15-39" style="color:blue">*</balloon>
*पुन: युद्ध करते समय रावण ने लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार किया।<ref>बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 101, श्लोक 34-36</ref>  
*सुषेण ने हनुमान से कहा कि वह औषधि पर्वत से विशल्यकरणी, सावर्ण्यकरणी, संजीवकरणी तथा संधानी औषधियों को ले आये। हनुमान तुरंत पवन वेग से उडकर गया और औषधियों को न पहचान पाने के कारण पर्वत-शिखर ही उठा लाया। सुषेण ने औषधि पीसकर लक्ष्मण की नाक में डाली और वह तुरंत ठीक हो गया।<balloon title="बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, 101।34-36।,102।15-39। " style="color:blue">*</balloon>
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*सुषेण ने हनुमान से कहा कि वह औषधि पर्वत से विशल्यकरणी, सावर्ण्यकरणी, संजीवकरणी तथा संधानी औषधियों को ले आये। हनुमान तुरंत पवन वेग से उडकर गया और औषधियों को न पहचान पाने के कारण पर्वत-शिखर ही उठा लाया। सुषेण ने औषधि पीसकर लक्ष्मण की नाक में डाली और वह तुरंत ठीक हो गया।<ref>बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, 101।34-36।,102।15-39। </ref>


==पउम चरित से==  
==पउम चरित से==  
*लक्ष्मण ने मध्यप्रदेश में क्षेत्रांजलिपुर के राजा के विषय में सुना कि जो उसकी शक्ति को सह लेगा, उसी से वह अपनी कन्या का विवाह कर देगा। लक्ष्मण ने भाई की अनुज्ञा मानकर राजा से प्रहार करने को कहा। शक्ति सहकर उसने शत्रुदमन राजा की कन्या जितपद्मा को प्राप्त किया। जितपद्मा को समझा-बुझाकर राम, सीता तथा लक्ष्मण नगर से चले गये।  
*लक्ष्मण ने मध्यप्रदेश में क्षेत्रांजलिपुर के राजा के विषय में सुना कि जो उसकी शक्ति को सह लेगा, उसी से वह अपनी कन्या का विवाह कर देगा। लक्ष्मण ने भाई की अनुज्ञा मानकर राजा से प्रहार करने को कहा। शक्ति सहकर उसने शत्रुदमन राजा की कन्या जितपद्मा को प्राप्त किया। [[जितपद्मा]] को समझा-बुझाकर राम, सीता तथा लक्ष्मण नगर से चले गये।  
[[चित्र:Hanuman-Ram-Laxman.jpg|[[हनुमान]] [[राम]] और लक्ष्मण को ले जाते हुए|thumb]]
*राम-रावण युद्ध में विभीषण को रावण से बचाने के कारण लक्ष्मण रावण के मुख्य शत्रु रूप में सामने आया। रावण ने शक्ति के प्रहार से उसे युद्ध-क्षेत्र में गिरा दिया। राम रावण से विशेष रुष्ट हो गया, किंतु भाई के निर्जीव शरीर को देखकर रुष्ट हो गया, किंतु भाई के निर्जीव शरीर को देखकर विलाप करने लगा। [[जामवन्त|जांबवान]] ने कहा -'लक्ष्मण मृत नहीं हैं, उनके लिए शीघ्र उपाय करना होगा।' लक्ष्मण नारायण का रूप था। रावण से युद्ध करते हुए उसे महाचक्र की प्राप्ति हुई थी। चक्र से ही उसने रावण को मारा था। तदुपरांत राम-लक्ष्मण सीता को प्राप्त करके [[लंका]] में छ: वर्ष तक रहें पूर्वसमर्पित तथा परिणीत समस्त कन्याओं को लक्ष्मण ने वहीं बुलवा लिया। लक्ष्मण का राज्याभिषेक हुआ। राम ने राज्याभिषेक करवाना स्वीकार नहीं किया।  
*राम-रावण युद्ध में विभीषण को रावण से बचाने के कारण लक्ष्मण रावण के मुख्य शत्रु रूप में सामने आया। रावण ने शक्ति के प्रहार से उसे युद्ध-क्षेत्र में गिरा दिया। राम रावण से विशेष रुष्ट हो गया, किंतु भाई के निर्जीव शरीर को देखकर रुष्ट हो गया, किंतु भाई के निर्जीव शरीर को देखकर विलाप करने लगा। [[जामवन्त|जांबवान]] ने कहा -'लक्ष्मण मृत नहीं हैं, उनके लिए शीघ्र उपाय करना होगा।' लक्ष्मण नारायण का रूप था। रावण से युद्ध करते हुए उसे महाचक्र की प्राप्ति हुई थी। चक्र से ही उसने रावण को मारा था। तदुपरांत राम-लक्ष्मण सीता को प्राप्त करके [[लंका]] में छ: वर्ष तक रहें पूर्वसमर्पित तथा परिणीत समस्त कन्याओं को लक्ष्मण ने वहीं बुलवा लिया। लक्ष्मण का राज्याभिषेक हुआ। राम ने राज्याभिषेक करवाना स्वीकार नहीं किया।  
*एक बार रत्नचूल और मणिचूल नामक देवों ने राम-लक्ष्मण के पारस्परिक प्रेम की परीक्षा लेने के लिए राम के भवन में यह मायानिर्मित शब्द का प्रसार किया कि 'राम मर गये हैं।' इस शब्द को सुनकर शोकातुर लक्ष्मण ने प्राण त्याग दिये। दोनों देव अपने कृत्य में पापबोध करते हुए देवलोक चले गये।<balloon title="पउम चरित, 38।61।62।, 73।-77।,110। " style="color:blue">*</balloon>  
*एक बार रत्नचूल और मणिचूल नामक देवों ने राम-लक्ष्मण के पारस्परिक प्रेम की परीक्षा लेने के लिए राम के भवन में यह मायानिर्मित शब्द का प्रसार किया कि 'राम मर गये हैं।' इस शब्द को सुनकर शोकातुर लक्ष्मण ने प्राण त्याग दिये। दोनों देव अपने कृत्य में पापबोध करते हुए देवलोक चले गये।<ref>पउम चरित, 38।61।62।, 73।-77।,110। </ref>  
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श्री लक्ष्मण जी ने अपने चौदह वर्ष के अखण्ड ब्रह्मचर्य और अद्भुत चरित्र-बल पर [[लंका]] में [[मेघनाद]] जैसे शक्तिशाली योद्धा पर विजय प्राप्त किया। ये भगवान की कठोर–से–कठोर आज्ञा का पालन करने में भी कभी नहीं हिचकते। भगवान की आज्ञा होने पर आँसुओं को भीतर-ही-भीतर पीकर इन्होंने श्री जानकी जी को वन में छोड़ने में भी संकोच नहीं किया। इनका आत्मत्याग भी अनुपम है। जिस समय तापस वेशधारी काल की श्री राम से वार्ता चल रही थी तो द्वारपाल के रूप में उस समय श्री लक्ष्मण ही उपस्थित थे। किसी को भीतर जाने की अनुमति नहीं थी। उसी समय [[दुर्वासा]] ऋषि का आगमन होता है और वे श्री राम का तत्काल दर्शन करने की इच्छा प्रकट करते हैं। दर्शन न होने पर वे शाप देकर सम्पूर्ण परिवार को भस्म करने की बात करते हैं। श्री लक्ष्मण जी ने अपने प्राणों की परवाह न करके उस समय दुर्वासा को श्री राम से मिलाया और बदलें में भगवान से परित्याग का दण्ड प्राप्त कर अद्भुत आत्मत्याग किया। श्री राम के अनन्य सेवक श्रीलक्ष्मण धन्य हैं।


श्री लक्ष्मण जी ने अपने चौदह वर्ष के अखण्ड ब्रह्मचर्य और अद्भुत चरित्र-बल पर [[लंका]] में [[मेघनाद]] जैसे शक्तिशाली योद्धा पर विजय प्राप्त किया। ये भगवान की कठोर–से–कठोर आज्ञा का पालन करने में भी कभी नहीं हिचकते। भगवान की आज्ञा होने पर आँसुओं को भीतर-ही-भीतर पीकर इन्होंने श्री जानकी जी को वन में छोड़ने में भी संकोच नहीं किया। इनका आत्मत्याग भी अनुपम है। जिस समय तापस वेशधारी काल की श्री राम से वार्ता चल रही थी तो द्वारपाल के रूप में उस समय श्री लक्ष्मण ही उपस्थित थे। किसी को भीतर जाने की अनुमति नहीं थी। उसी समय [[दुर्वासा]] ऋषि का आगमन होता है और वे श्री राम का तत्काल दर्शन करने की इच्छा प्रकट करते हैं। दर्शन न होने पर वे शाप देकर सम्पूर्ण परिवार को भस्म करने की बात करते हैं। श्री लक्ष्मण जी ने अपने प्राणों की परवाह न करके उस समय दुर्वासा को श्री राम से मिलाया और बदलें में भगवान से परित्याग का दण्ड प्राप्त कर अद्भुत आत्मत्याग किया। श्री राम के अनन्य सेवक श्रीलक्ष्मण धन्य हैं।
[[चित्र:Rama-Sita-Lakshmana-In-The-Forest.jpg|thumb|left|जंगल में [[राम]], [[सीता]] और लक्ष्मण]]
====<u>वनमाला</u>====
{{मुख्य|वनमाला}}
महीधर नामक राजा की कन्या का नाम वनमाला था। उसने बाल्यकाल से ही लक्ष्मण से विवाह करने का संकल्प कर रखा था। लक्ष्मण के राज्य से चले जाने के बाद महीधर ने उसका विवाह अन्यत्र करना चाहा, किन्तु वह तैयार नहीं हुई। वह सखियों के साथ वनदेवता की पूजा करने के लिए गई। बरगद के वृक्ष (जिसके नीचे पहले राम, सीता और लक्ष्मण रह चुके थे) के नीचे खड़े होकर उसने गले में फंदा डाल लिया। वह बोली की लक्ष्मण को न पाकर मेरा जीवन व्यर्थ है, अत: वह आत्महत्या करने के लिए तत्पर हो गई। संयोग से उसी समय लक्ष्मण ने वहाँ पर पहुँचकर उसे बचाया तथा उसे ग्रहण किया। उसने लक्ष्मण के साथ जाकर राम और सीता को प्रणाम किया। राजा महीधर ने उन सबका सत्कार किया।
====<u>वज्रकर्ण</u>====
{{मुख्य|वज्रकर्ण}}
दक्षिणापथ की ओर बढ़ते हुए राम, सीता और लक्ष्मण एक निर्जन तथा धनहीन प्रदेश में पहुँचे। वहाँ एक शीघ्रगामी व्यक्ति भी मिला, जिसने बताया, "उस नगरी के राजा का नाम वज्रकर्ण है। सुव्रत, मुनि का उपदेश ग्रहण करके उसने निश्चय किया था कि जिन मुनियों के अतिरिक्त किसी के सम्मुख नमन नहीं करेगा। उसने अपने दाहिने अँगूठे में सुव्रत की दृष्टि से अंकित मुद्रिका धारण कर ली है। इस बात से रुष्ट होकर राजा सिंहोदर ने उसे मार डालने का निश्चय किया।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{रामायण}}{{हनुमान2}}
{{हनुमान}}
[[Category:पौराणिक कोश]]  
[[Category:पौराणिक कोश]]  
[[Category:रामायण]]  
[[Category:रामायण]] [[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:राम]]
 
__NOTOC__
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{{रामायण}}
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13:35, 23 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

लक्ष्मण एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- लक्ष्मण (बहुविकल्पी)
संक्षिप्त परिचय
लक्ष्मण
अवतार शेषावतार
वंश-गोत्र इक्ष्वाकु
कुल रघुकुल
पिता दशरथ
माता सुमित्रा
जन्म विवरण कौशल्या और कैकयी ने प्रसाद फल आधा-आधा सुमित्रा को देने से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म
समय-काल रामायण काल
परिजन कौशल्या, कैकेयी (विमाता) राम, भरत, शत्रुघ्न (भाई)
गुरु विश्वामित्र, वसिष्ठ
विवाह उर्मिला, जितपद्मा
संतान अंगद और चन्द्रकेतु
विद्या पारंगत धनुर्विद्या
महाजनपद कोशल
शासन-राज्य अयोध्या
संदर्भ ग्रंथ रामायण
प्रसिद्ध घटनाएँ वनवास, चौदह वर्ष तक ब्रह्मचर्य, वीरासन
यशकीर्ति भ्रातृभक्त
अपकीर्ति क्रोधी स्वभाव
  • लक्ष्मण दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र थे। वह राम के छोटे भाई थे। राम के वनगमन के विषय में सुनकर वह भी राम के साथ चौदह वर्षों के लिए वन गये थे।
  • लक्ष्मण जी शेषावतार थे। किसी भी अवस्था में भगवान श्री राम का वियोग इन्हें सह्य नहीं था। इसलिये ये सदैव छाया की भाँति श्री राम का ही अनुगमन करते थे।
  • श्री राम के चरणों की सेवा ही इनके जीवन का मुख्य व्रत था। श्री राम की तुलना में संसार के सभी सम्बन्ध इनके लिये गौण थे।
  • इनके लिये श्री राम ही माता-पिता, गुरु, भाई सब कुछ थे और उनकी आज्ञा का पालन ही इनका मुख्य धर्म था। इसलिये जब भगवान श्री राम विश्वामित्र की यज्ञ-रक्षा के लिये गये तो लक्ष्मण जी भी उनके साथ गये। भगवान श्री राम जब सोने जाते थे तो ये उनका पैर दबाते और भगवान के बार-बार आग्रह करने पर ही स्वयं सोते तथा भगवान के जागने के पूर्व ही जग जाते थे। अबोध शिशु की भाँति इन्होंने भगवान श्री राम के चरणों को ही दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया और भगवान ही इनकी अनन्य गति बन गये।
राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के वेश में रामलीला कलाकार, मथुरा
  • भगवान श्री राम के प्रति किसी के भी अपमान सूचक शब्द को ये कभी बरदाश्त नहीं करते थे। जब महाराज जनक ने धनुष के न टूटने के क्षोभ में धरती को वीर-विहीन कह दिया, तब भगवान के उपस्थित रहते हुए जनक जी का यह कथन श्री लक्ष्मण जी को बाण-जैसा लगा। ये तत्काल कठोर शब्दों में जनक जी का प्रतिकार करते हुए बोले- भगवान श्री राम के विद्यमान रहते हुए जनक ने जिस अनुचित वाणी का प्रयोग किया है, वह मेरे हृदय में शूल की भाँति चुभ रही है। जिस सभा में रघुवंश का कोई भी वीर मौजूद हो, वहाँ इस प्रकार की बातें सुनना और कहना उनकी वीरता का अपमान है। यदि श्री राम आदेश दें तो मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को गेंद की भाँति उठा सकता हूँ, फिर जनक के इस सड़े धनुष की गिनती ही क्या है।' इसी प्रकार जब श्री परशुरामजी ने धनुष तोड़ने वाले को ललकारा तो ये उनसे भी भिड़ गये।
  • भगवान श्री राम के प्रति श्री लक्ष्मण की अनन्य निष्ठा का उदाहरण भगवान के वनगमन के समय मिलता है। ये उस समय देह-गेह, सगे-सम्बन्धी, माता और नव-विवाहिता पत्नी सबसे सम्बन्ध तोड़कर भगवान के साथ वन जाने के लिये तैयार हो जाते हैं। वन में ये निद्रा और शरीर के समस्त सुखों का परित्याग करके श्री राम-जानकी की जी-जान से सेवा करते हैं। ये भगवान की सेवा में इतने मग्न हो जाते हैं कि माता-पिता, पत्नी, भाई तथा घर की तनिक भी सुधि नहीं करते।

लक्ष्मण मूर्च्छा

  • 'सीता-हरण' के संदर्भ में राम-रावण युद्ध हुआ। लंका में युद्ध प्रांरभ हुआ तो राक्षसों से वानर-सेना अधिक शक्तिशाली जान पड़ती थी। तभी अचानक मेघनाद ने अंतर्धान होकर माया के प्रभाव से अपने को छिपा लिया और राम तथा लक्ष्मण को बाणों से बेध डाला। वे बाण राम और लक्ष्मण को लगकर सर्प बन जाते थे। वे दोनों शर-शैया पर मूर्च्छित होकर पड़े हुए थे तभी राम और लक्ष्मण को मरा हुआ जानकर मेघनाद ने यह सूचना रावण को दी। रावण ने दासी त्रिजटा के साथ विमान में सीता को भेजा। वह मूर्च्छित राम तथा लक्ष्मण को देखकर विलाप करने लगी। त्रिजटा उसे अशोकवाटिका में ले गयी तथा समझाने लगी कि यदि राम न रहे होते तो पुष्पक विमान हमें लेकर न उड़ता, क्योंकि यह विधवा स्त्रियों का वहन नहीं करता है, अत: वे मात्र अचेत होंगे।
लक्ष्मण झूला, ऋषिकेश
Laxman Jhula, Rishikesh
  • उधर राम तो मूर्च्छा से जाग उठे, किन्तु लक्ष्मण की गहन मूर्च्छा को देखकर सब चिंतित एवं निराश होने लगे। विभीषण ने सबको सांत्वना दी। वे सब संजीवनी बूटी की खोज में हनुमान को भेज ही रहे थे कि विनतानंद पक्षिराज गरुड़ ने प्रकट होकर राम-लक्ष्मण का स्पर्श किया जिससे वे पूर्ण स्वस्थ हो गये। उन्होंने यह भी बताया कि मेघनाद के बाण वास्तव में कद्रु के पुत्र नाग हैं। उनको स्वस्थ देखकर आधी रात में ही वानरों ने बहुत शोर मचाया तथा गरुड़ ने विदा ली।[1]
  • पुन: युद्ध करते समय रावण ने लक्ष्मण पर शक्ति का प्रहार किया।[2]
  • लक्ष्मण मूर्च्छित हो गया। लक्ष्मण की ऐसी दशा देखकर राम विलाप करने लगे। सुषेण ने कहा-'लक्ष्मण के मुंह पर मृत्यु-चिह्न नहीं है।'[3]
  • सुषेण ने हनुमान से कहा कि वह औषधि पर्वत से विशल्यकरणी, सावर्ण्यकरणी, संजीवकरणी तथा संधानी औषधियों को ले आये। हनुमान तुरंत पवन वेग से उडकर गया और औषधियों को न पहचान पाने के कारण पर्वत-शिखर ही उठा लाया। सुषेण ने औषधि पीसकर लक्ष्मण की नाक में डाली और वह तुरंत ठीक हो गया।[4]

पउम चरित से

  • लक्ष्मण ने मध्यप्रदेश में क्षेत्रांजलिपुर के राजा के विषय में सुना कि जो उसकी शक्ति को सह लेगा, उसी से वह अपनी कन्या का विवाह कर देगा। लक्ष्मण ने भाई की अनुज्ञा मानकर राजा से प्रहार करने को कहा। शक्ति सहकर उसने शत्रुदमन राजा की कन्या जितपद्मा को प्राप्त किया। जितपद्मा को समझा-बुझाकर राम, सीता तथा लक्ष्मण नगर से चले गये।
हनुमान राम और लक्ष्मण को ले जाते हुए
  • राम-रावण युद्ध में विभीषण को रावण से बचाने के कारण लक्ष्मण रावण के मुख्य शत्रु रूप में सामने आया। रावण ने शक्ति के प्रहार से उसे युद्ध-क्षेत्र में गिरा दिया। राम रावण से विशेष रुष्ट हो गया, किंतु भाई के निर्जीव शरीर को देखकर रुष्ट हो गया, किंतु भाई के निर्जीव शरीर को देखकर विलाप करने लगा। जांबवान ने कहा -'लक्ष्मण मृत नहीं हैं, उनके लिए शीघ्र उपाय करना होगा।' लक्ष्मण नारायण का रूप था। रावण से युद्ध करते हुए उसे महाचक्र की प्राप्ति हुई थी। चक्र से ही उसने रावण को मारा था। तदुपरांत राम-लक्ष्मण सीता को प्राप्त करके लंका में छ: वर्ष तक रहें पूर्वसमर्पित तथा परिणीत समस्त कन्याओं को लक्ष्मण ने वहीं बुलवा लिया। लक्ष्मण का राज्याभिषेक हुआ। राम ने राज्याभिषेक करवाना स्वीकार नहीं किया।
  • एक बार रत्नचूल और मणिचूल नामक देवों ने राम-लक्ष्मण के पारस्परिक प्रेम की परीक्षा लेने के लिए राम के भवन में यह मायानिर्मित शब्द का प्रसार किया कि 'राम मर गये हैं।' इस शब्द को सुनकर शोकातुर लक्ष्मण ने प्राण त्याग दिये। दोनों देव अपने कृत्य में पापबोध करते हुए देवलोक चले गये।[5]

श्री लक्ष्मण जी ने अपने चौदह वर्ष के अखण्ड ब्रह्मचर्य और अद्भुत चरित्र-बल पर लंका में मेघनाद जैसे शक्तिशाली योद्धा पर विजय प्राप्त किया। ये भगवान की कठोर–से–कठोर आज्ञा का पालन करने में भी कभी नहीं हिचकते। भगवान की आज्ञा होने पर आँसुओं को भीतर-ही-भीतर पीकर इन्होंने श्री जानकी जी को वन में छोड़ने में भी संकोच नहीं किया। इनका आत्मत्याग भी अनुपम है। जिस समय तापस वेशधारी काल की श्री राम से वार्ता चल रही थी तो द्वारपाल के रूप में उस समय श्री लक्ष्मण ही उपस्थित थे। किसी को भीतर जाने की अनुमति नहीं थी। उसी समय दुर्वासा ऋषि का आगमन होता है और वे श्री राम का तत्काल दर्शन करने की इच्छा प्रकट करते हैं। दर्शन न होने पर वे शाप देकर सम्पूर्ण परिवार को भस्म करने की बात करते हैं। श्री लक्ष्मण जी ने अपने प्राणों की परवाह न करके उस समय दुर्वासा को श्री राम से मिलाया और बदलें में भगवान से परित्याग का दण्ड प्राप्त कर अद्भुत आत्मत्याग किया। श्री राम के अनन्य सेवक श्रीलक्ष्मण धन्य हैं।

जंगल में राम, सीता और लक्ष्मण

वनमाला

महीधर नामक राजा की कन्या का नाम वनमाला था। उसने बाल्यकाल से ही लक्ष्मण से विवाह करने का संकल्प कर रखा था। लक्ष्मण के राज्य से चले जाने के बाद महीधर ने उसका विवाह अन्यत्र करना चाहा, किन्तु वह तैयार नहीं हुई। वह सखियों के साथ वनदेवता की पूजा करने के लिए गई। बरगद के वृक्ष (जिसके नीचे पहले राम, सीता और लक्ष्मण रह चुके थे) के नीचे खड़े होकर उसने गले में फंदा डाल लिया। वह बोली की लक्ष्मण को न पाकर मेरा जीवन व्यर्थ है, अत: वह आत्महत्या करने के लिए तत्पर हो गई। संयोग से उसी समय लक्ष्मण ने वहाँ पर पहुँचकर उसे बचाया तथा उसे ग्रहण किया। उसने लक्ष्मण के साथ जाकर राम और सीता को प्रणाम किया। राजा महीधर ने उन सबका सत्कार किया।

वज्रकर्ण

दक्षिणापथ की ओर बढ़ते हुए राम, सीता और लक्ष्मण एक निर्जन तथा धनहीन प्रदेश में पहुँचे। वहाँ एक शीघ्रगामी व्यक्ति भी मिला, जिसने बताया, "उस नगरी के राजा का नाम वज्रकर्ण है। सुव्रत, मुनि का उपदेश ग्रहण करके उसने निश्चय किया था कि जिन मुनियों के अतिरिक्त किसी के सम्मुख नमन नहीं करेगा। उसने अपने दाहिने अँगूठे में सुव्रत की दृष्टि से अंकित मुद्रिका धारण कर ली है। इस बात से रुष्ट होकर राजा सिंहोदर ने उसे मार डालने का निश्चय किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 45 से 50 तक
  2. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 101, श्लोक 34-36
  3. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, सर्ग 102, श्लोक 15-39
  4. बाल्मीकि रामायण, युद्ध कांड, 101।34-36।,102।15-39।
  5. पउम चरित, 38।61।62।, 73।-77।,110।

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