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'''सुहरावर्दिया''' रहस्यवादियों (सूफ़ियों) का एक मुस्लिम 'सिलसिला' | '''सुहरावर्दिया''' रहस्यवादियों (सूफ़ियों) का एक [[मुस्लिम]] 'सिलसिला'<ref>किसी बड़े महात्मा के शिष्यों का अनुक्रम</ref> है, जो अपने आध्यात्मिक अनुशासन की कठोरता के लिए जाना जाता है। इस सम्प्रदाय की स्थापना शेख़ शिहाबुद्दीन उमर सुहरावर्दी ने की थी, किन्तु 1262 ई. में इसके सुदृढ़ संचालन का श्रेय शेख़ बदरुद्दीन जकारिया को है, जिन्होंने [[मुल्तान]] में एक शानदार मठ की स्थापना की तथा [[सिंध]] एवं मुल्तान को मुख्य केन्द्र बनाया। शेख़ बहाउद्दीन जकारिया के [[फ़रीदुद्दीन गंजशकर|बाबा फ़रीद गंज-ए-शकर]] से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। | ||
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==संरक्षण तथा अनुदान== | |||
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14:07, 4 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण
सुहरावर्दिया रहस्यवादियों (सूफ़ियों) का एक मुस्लिम 'सिलसिला'[1] है, जो अपने आध्यात्मिक अनुशासन की कठोरता के लिए जाना जाता है। इस सम्प्रदाय की स्थापना शेख़ शिहाबुद्दीन उमर सुहरावर्दी ने की थी, किन्तु 1262 ई. में इसके सुदृढ़ संचालन का श्रेय शेख़ बदरुद्दीन जकारिया को है, जिन्होंने मुल्तान में एक शानदार मठ की स्थापना की तथा सिंध एवं मुल्तान को मुख्य केन्द्र बनाया। शेख़ बहाउद्दीन जकारिया के बाबा फ़रीद गंज-ए-शकर से घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
प्रसार
इस सिलसिले की रस्मी प्रार्थनाओं (ज़िक्र) से जुड़े ख़ुदा के सात नाम हज़ारों जपों पर आधारित हैं। ये सात सूक्ष्म आत्माओं (लताइफ़ सबा) और सात रोशनियों से संबद्ध है। मुख्य सिलसिला अफ़ग़ानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप में केन्द्रित हो गया था। इस सिलसिले की अन्य शाखाएँ बाद में पश्चिम की ओर बढ़ीं। ईरान में ‘उमर उल खल्वती’ द्वारा स्थापित परम्परावादी ख़ल्वतिया भी कठोरतापूर्वक अनुशासित था। यह बाद में तुर्की और मिस्र से भी कई शाखाओं में बँट गया और फैला। अरदाबिल, ईरान में सफ़उद्दीन द्वारा संगठित सफ़विया ने ईरानी सफ़वी वंश (1502-1736 ई.) और कई तुर्की शाखाओं को जन्म दिया, जो 16वीं सदी की शुरुआत में ऑटोमन शासकों के विरुद्ध सक्रिय थे। अल्जीरियाई रहमानिया 18वीं सदी के दूसरे भाग में ख़ल्वतिया से विकसित हुआ, जब इसके संस्थापक ‘अब्द अर-रहमान अल-गुश्तुली’ खल्वती श्रद्धा का केन्द्र बन गए।
संत परम्परा
सुहरावर्दी सम्प्रदाय के अन्य प्रमुख संत थे- जलालुद्दीन तबरीजी, सैय्यद सुर्ख जोश, बुरहान आदि। सिंध, गुजरात, बंगाल, हैदराबाद एवं बीजापुर के क्षेत्रों में इस सिलसिले का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ।
संरक्षण तथा अनुदान
इस सम्प्रदाय ने चिश्ती सम्प्रदाय के विपरीत राज्य संरक्षण को स्वीकार किया, भौतिक जीवन का पूर्ण परित्याग नहीं किया तथा जागीर एवं नक़द धनराशि के रूप में राज्य से अनुदान प्राप्त किया। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य सिलसिलों जैसे- शत्तारी सम्प्रदाय एवं कादिरी सम्प्रदाय की भी स्थापना हुई। अयूबजीद-अल-विस्तामी ने शत्तारी सिलसिले की स्थापना की थी। शेख़ अब्दुल्ला इस सिलसिले के प्रमुख सन्त थे। इनका मुख्य केन्द्र बिहार था। सुहरावर्दिया शाखा में शेख़ मूसा एक महत्त्वपूर्ण सूफ़ी संत हुए, जो सदैव स्त्री के वेश में रहते थे तथा नृत्य और संगीत में अपना समय व्यतीत करते थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ किसी बड़े महात्मा के शिष्यों का अनुक्रम