"बैजनाथ": अवतरणों में अंतर

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'''बैजनाथ''' भगवान [[शिव]] के एक [[शिवलिंग]] का नाम है। शिवभक्त [[लंका]] का राजा [[रावण]] इस शिवलिंग को उठाकर नहीं ले जा पाया था। तब यह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया, जहाँ पर उसे रखा गया था। 'बैजू' नामक एक चरवाहे की नित्य पूजा-पाठ से ही इस शिवलिंग का नाम 'बैजनाथ' पड़ गया।
'''बैजनाथ''' [[अल्मोड़ा ज़िला]], [[उत्तराखंड]] में स्थित है। यह स्थान [[गोमती नदी]] के तट पर है। यहाँ नन्दा देवी का मन्दिर और रणचूला के क़िले में [[काली देवी|काली]] का मन्दिर स्थित है।
==कथा==
[[ब्रह्मा]] के पुत्र [[पुलस्त्य]] (सप्त ऋषियों में से एक) की तीन पत्नियाँ थी। पहली से [[कुबेर]], दूसरी से [[रावण]] और [[कुंभकर्ण]], तीसरी से [[विभीषण]] का जन्म हुआ। रावण ने बल प्राप्ति के निमित्त घोर तपस्या की। शिव ने प्रकट होकर रावण को शिवलिंग अपने नगर तक ले जाने की अनुमति दी। साथ ही कहा कि मार्ग में पृथ्वी पर रख देने पर लिंग वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण शिव के दिये दो लिंग 'कांवरी' में लेकर चला। मार्ग मे लघुशंका के कारण, उसने कांवरी किसी 'बैजू' नामक चरवाहे को पकड़ा दी। शिवलिंग इतने भारी हो गए कि उन्हें वहीं पृथ्वी पर रख देना पड़ा। वे वहीं पर स्थापित हो गए। रावण उन्हें अपनी नगरी तक नहीं ले जाया पाया।जो लिंग कांवरी के अगले भाग में था, चन्द्रभाल नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा जो पिछले भाग में था, वैद्यनाथ कहलाया।
==नामकरण==
चरवाहा बैजू प्रतिदिन वैद्यनाथ की [[पूजा]] करने लगा। एक दिन उसके घर में उत्सव था। वह भोजन करने के लिए बैठा, तभी स्मरण आया कि [[शिवलिंग]] [[पूजा]] नहीं की है। सो वह वैद्यनाथ की पूजा के लिए गया। सब लोग उससे रुष्ट हो गए। [[शिव]] और [[पार्वती]] ने प्रसन्न होकर उसकी इच्छानुसार वर दिया कि वह नित्य पूजा में लगा रहे तथा उसके नाम के आधार पर वह शिवलिंग भी 'बैजनाथ' कहलाए।<ref>शिवपुराण, 8|43-47</ref>


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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13:36, 7 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

बैजनाथ अल्मोड़ा ज़िला, उत्तराखंड में स्थित है। यह स्थान गोमती नदी के तट पर है। यहाँ नन्दा देवी का मन्दिर और रणचूला के क़िले में काली का मन्दिर स्थित है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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