"जगबंधु बख्शी": अवतरणों में अंतर
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'''जगबंधु बख्शी''' का पूरा नाम 'जगबंधु विद्याशर महापात्र' था, जो एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। खुर्दा ([[उड़ीसा]]) के राजा की ओर से उनके पूर्वजों को बख्शी की उपाधि मिली थी। जगबंधु के जन्म का निश्चित समय ज्ञात नहीं है। | '''जगबंधु बख्शी''' का पूरा नाम 'जगबंधु विद्याशर महापात्र' था, जो एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। [[खुर्दा]] ([[उड़ीसा]]) के राजा की ओर से उनके पूर्वजों को बख्शी की उपाधि मिली थी। जगबंधु के जन्म का निश्चित समय ज्ञात नहीं है। | ||
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[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के उड़ीसा पर अधिकार के विरोध में 1817 में जो सशस्त्र आंदोलन हुआ उसके नेता के रूप में जगबंधु का नाम सामने आया। 1803 में [[मराठा|मराठों]] से कटक लेने के बाद अंग्रेज़ों ने खुर्दा के राजा को जेल में डाल दिया और उनके [[दीवान]] को फाँसी दे दी। जगबंधु की भी एक अपनी छोटी-सी रियासत थी। अंग्रेज़ों ने उसे भी छीन लिया। उन पर [[पिंडारी|पिंडारियों]] के साथ मिलकर विद्रोह करने का अभियोग लगाया था। इस पर जगबंधु ने बलपूर्वक अंग्रेज़ों को उड़ीसा से निकाल देने का निश्चय किया जिससे खुर्दा के राजा को फिर गद्दी पर बिठाया जा सके। [[मार्च]], 1817 में जब उन्होंने अपना संघर्ष आरंभ किया, उनके साथ लगभग 400 व्यक्ति थे। शीघ्र ही उनके समर्थकों की संख्या 5 हज़ार तक पहुँच गई। उन्होंने [[पुरी]] तथा कुछ अन्य स्थानों पर अधिकार करके वहाँ अंग्रेज़ों की सत्ता समाप्त कर दी। लेकिन विदेशियों की संगठित शक्ति के सामने वे अधिक दिन टिक नहीं सके और यह ‘पाइक विद्रोह’ दबा दिया गया। | [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के उड़ीसा पर अधिकार के विरोध में 1817 में जो सशस्त्र आंदोलन हुआ उसके नेता के रूप में जगबंधु का नाम सामने आया। 1803 में [[मराठा|मराठों]] से कटक लेने के बाद अंग्रेज़ों ने खुर्दा के राजा को जेल में डाल दिया और उनके [[दीवान]] को फाँसी दे दी। जगबंधु की भी एक अपनी छोटी-सी रियासत थी। अंग्रेज़ों ने उसे भी छीन लिया। उन पर [[पिंडारी|पिंडारियों]] के साथ मिलकर विद्रोह करने का अभियोग लगाया था। इस पर जगबंधु ने बलपूर्वक अंग्रेज़ों को उड़ीसा से निकाल देने का निश्चय किया जिससे खुर्दा के राजा को फिर गद्दी पर बिठाया जा सके। [[मार्च]], 1817 में जब उन्होंने अपना संघर्ष आरंभ किया, उनके साथ लगभग 400 व्यक्ति थे। शीघ्र ही उनके समर्थकों की संख्या 5 हज़ार तक पहुँच गई। उन्होंने [[पुरी]] तथा कुछ अन्य स्थानों पर अधिकार करके वहाँ अंग्रेज़ों की सत्ता समाप्त कर दी। लेकिन विदेशियों की संगठित शक्ति के सामने वे अधिक दिन टिक नहीं सके और यह ‘पाइक विद्रोह’ दबा दिया गया। |
08:23, 31 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
जगबंधु बख्शी का पूरा नाम 'जगबंधु विद्याशर महापात्र' था, जो एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। खुर्दा (उड़ीसा) के राजा की ओर से उनके पूर्वजों को बख्शी की उपाधि मिली थी। जगबंधु के जन्म का निश्चित समय ज्ञात नहीं है।
जीवन परिचय
अंग्रेज़ों के उड़ीसा पर अधिकार के विरोध में 1817 में जो सशस्त्र आंदोलन हुआ उसके नेता के रूप में जगबंधु का नाम सामने आया। 1803 में मराठों से कटक लेने के बाद अंग्रेज़ों ने खुर्दा के राजा को जेल में डाल दिया और उनके दीवान को फाँसी दे दी। जगबंधु की भी एक अपनी छोटी-सी रियासत थी। अंग्रेज़ों ने उसे भी छीन लिया। उन पर पिंडारियों के साथ मिलकर विद्रोह करने का अभियोग लगाया था। इस पर जगबंधु ने बलपूर्वक अंग्रेज़ों को उड़ीसा से निकाल देने का निश्चय किया जिससे खुर्दा के राजा को फिर गद्दी पर बिठाया जा सके। मार्च, 1817 में जब उन्होंने अपना संघर्ष आरंभ किया, उनके साथ लगभग 400 व्यक्ति थे। शीघ्र ही उनके समर्थकों की संख्या 5 हज़ार तक पहुँच गई। उन्होंने पुरी तथा कुछ अन्य स्थानों पर अधिकार करके वहाँ अंग्रेज़ों की सत्ता समाप्त कर दी। लेकिन विदेशियों की संगठित शक्ति के सामने वे अधिक दिन टिक नहीं सके और यह ‘पाइक विद्रोह’ दबा दिया गया।
जगबंधु अपने बचे सहयोगियों के साथ जंगलों में चले गए और वहाँ से समय-समय पर विदेशियों पर आक्रमण करते रहे। इससे तंग आकर अंग्रेज़ों ने उन्हें पेंशन देकर शांति के साथ कटक में रहने के लिए आमंत्रित किया। 3 वर्ष तक वे इस आमंत्रण की उपेक्षा करते रहे। अंत में अपने साथियों की परेशानियाँ देखकर जंगल से बाहर आ गए। यद्यपि उनका विद्रोह सफल नहीं हो सका किन्तु इससे सिद्ध हो गया कि जगबंधु में कितनी संगठन-क्षमता थी। उन्होंने निकटवर्ती रियासतों से ही नहीं, नागपुर के राजा तक से सहायता मांगी थी। कटक में पैर रखते ही इस विद्रोह ने अंग्रेज़ों को भी यह चेतावनी दे दी कि जनता की उचित मांगों की उपेक्षा करना उनके लिए खतरे से ख़ाली नहीं है।
निधन
24 जनवरी, 1829 ई. को जगबंधु का देहांत हो गया। भुवनेश्वर का ‘जगबंधु विद्याधर कॉलेज’ उनकी याद दिलाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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