"अमिताभ बच्चन की यादगार फ़िल्में": अवतरणों में अंतर
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[[अमिताभ बच्चन]] ने अनेक यादगार फ़िल्मों में काम किया है। उनकी श्रेष्ठ फ़िल्में हैं- [[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]], [[ज़ंजीर (फ़िल्म)|ज़ंजीर]], [[अभिमान (फ़िल्म)|अभिमान]], [[दीवार (फ़िल्म)|दीवार]], [[शोले (फ़िल्म)|शोले]], [[त्रिशूल (फ़िल्म)|त्रिशूल]], मुकद्दर का सिकंदर, सत्ते पे सत्ता, सिलसिला, अमर अक़बर एंथनी, डॉन, [[शक्ति (1982 फ़िल्म)|शक्ति]], काला पत्थर, हम, अग्निपथ, बाग़बान, चीनी कम, ब्लैक, [[पा (फ़िल्म)|पा]] आदि। | |||
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|आनंद | |[[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]] | ||
|| 1971 || डॉ. भास्कर के. बैनर्जी || | || 1971 || डॉ. भास्कर के. बैनर्जी || [[ऋषिकेश मुखर्जी]] || इस फ़िल्म के नायक सत्तर के दशक के सुपर सितारे [[राजेश खन्ना]] थे। 'बाबू मोशाय' के रूप में अमिताभ सहायक अभिनेता थे। अपने सशक्त अभिनय से अमिताभ ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। ‘आनंद’ राजेश खन्ना की श्रेष्ठ फ़िल्म मानी जा सकती हैं, लेकिन फ़िल्म देखने के बाद अमिताभ याद रह जाते हैं। सहनायक की भूमिका होने पर भी अमिताभ अपने अभिनय के बल पर इस फ़िल्म को यादगार बना दिया। | ||
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| | |[[ज़ंजीर (फ़िल्म)|ज़ंजीर]] || 1973 || विजय खन्ना || प्रकाश मेहरा || प्रकाश मेहरा को जब दिग्गज नायकों ने यह फ़िल्म करने से मना कर दिया तो हारकर उन्होंने अमिताभ को चुना। [[प्राण (अभिनेता)|प्राण]] के कहने पर ही प्रकाश मेहरा ने यह रोल अमिताभ को दिया था। अमिताभ इस समय तक एक सफल फ़िल्म पाने को प्रयासरत थे। प्राण के साथ जब अमिताभ ने पहला शॉट दिया तो प्राण ने मेहरा को कोने में ले जाकर कहा कि यह लड़का एक दिन सुपरस्टार बनेगा। अमिताभ की 'एंग्री यंग मैन' की छवि 'जंजीर' से ही बनी। अमिताभ की इस छवि को निर्माता-निर्देशकों ने लंबे समय तक प्रयोग किया। | ||
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|अभिमान ||1975 || सुबीर कुमार || | |[[अभिमान (फ़िल्म)|अभिमान]] ||1975 || सुबीर कुमार || ऋषिकेश मुखर्जी || एक अभिनेता के रूप में अमिताभ को इस फ़िल्म में कई शेड्स दिखाने का अवसर मिला। रोमांस, संगीत और ईर्ष्या जैसी भावनाओं को मिलाकर उनका चरित्र गढ़ा गया था। अमिताभ ने अपने दमदार अभिनय से भूमिका को यादगार बना दिया। अमिताभ और जया द्वारा साथ की गई श्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक फ़िल्म है। | ||
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|दीवार ||1975|| विजय खन्ना || यश चोपड़ा || इस समय हीरो नकारात्मक भूमिका करना पसंद नहीं करते थे। 'दीवार' में अमिताभ का चरित्र ग्रे-शेड लिए हुए था। अपने ईमानदार और आदर्श भाई के मुकाबले वह अपराध की दुनिया चुनता है। उसके इस | |[[दीवार (फ़िल्म)|दीवार]] ||1975|| विजय खन्ना || [[यश चोपड़ा]] || इस समय हीरो नकारात्मक भूमिका करना पसंद नहीं करते थे। 'दीवार' में अमिताभ का चरित्र ग्रे-शेड लिए हुए था। अपने ईमानदार और आदर्श भाई के मुकाबले वह अपराध की दुनिया चुनता है। उसके इस क़दम से नाखुश उसकी माँ भी उसका साथ छोड़ देती है। नकारात्मक भूमिका होने के बावजूद दर्शकों की सहानुभूति अमिताभ बटोर लेते हैं। भगवान पर गुस्सा होने और मंदिर की सीढि़यों पर माँ की गोद में दम तोड़ते हुए अमिताभ के दृश्य, हिंदी फ़िल्मों के उम्दा दृश्यों में से एक हैं। | ||
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|शोले ||1975 || जय (जयदेव) || रमेश सिप्पी || हिंदी फ़िल्मों की सफलतम फ़िल्मों में से एक ‘शोले’ में जय और वीरू की जोड़ी ने गजब कर दिया था। वीरू के मुकाबले में जय कम बोलता था। अमिताभ बच्चन ने बिना संवाद बोले अपनी आँखों और चेहरे के भावों के जरिए कई दृश्यों को यादगार बना दिया। फ़िल्म में जया बच्चन के साथ उनका रोमांस सिर्फ खामोशी के जरिए बयां हुआ। गब्बर को पकड़ने के लिए जय ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी तो सिनेमाघर में लोगों की आँखों से आँसू निकल आए। जय को क्यों मार दिया? यह सवाल अभी भी लोग के दिलों को कचोटता है। | |[[शोले (फ़िल्म)|शोले]] ||1975 || जय (जयदेव) || रमेश सिप्पी || हिंदी फ़िल्मों की सफलतम फ़िल्मों में से एक ‘शोले’ में जय और वीरू की जोड़ी ने गजब कर दिया था। वीरू के मुकाबले में जय कम बोलता था। अमिताभ बच्चन ने बिना संवाद बोले अपनी आँखों और चेहरे के भावों के जरिए कई दृश्यों को यादगार बना दिया। फ़िल्म में [[जया बच्चन]] के साथ उनका रोमांस सिर्फ खामोशी के जरिए बयां हुआ। गब्बर को पकड़ने के लिए जय ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी तो सिनेमाघर में लोगों की आँखों से आँसू निकल आए। जय को क्यों मार दिया? यह सवाल अभी भी लोग के दिलों को कचोटता है। | ||
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|अमर अकबर एंथनी ||1977 || एंथनी गोंजाल्विस || मनमोहन देसाई || मनमोहन देसाई की मसाला फ़िल्मों में से एक ‘अमर अकबर एंथोनी’ में अमिताभ एंथनी बने थे। इस फ़िल्म में उन्होंने लात-घूँसे भी चलाए और वे सारी हरकतें कीं, जो देसाई की फ़िल्मों में होती थी। फ़िल्म के एक दृश्य में घायल अमिताभ आइने के सामने खड़े होकर आइने में मौजूद अपने अक्स की मरहम-पट्टी करते हैं। अकेले अमिताभ ने फिजूल की बातें करते हुए दर्शकों को खूब हँसाया था। यह ऐसा दौर था, जब अमिताभ परदे पर कुछ भी कर सकते थे और दर्शक कोई तर्क-वितर्क नहीं करते थे। | |अमर अकबर एंथनी ||1977 || एंथनी गोंजाल्विस || मनमोहन देसाई || मनमोहन देसाई की मसाला फ़िल्मों में से एक ‘अमर अकबर एंथोनी’ में अमिताभ एंथनी बने थे। इस फ़िल्म में उन्होंने लात-घूँसे भी चलाए और वे सारी हरकतें कीं, जो देसाई की फ़िल्मों में होती थी। फ़िल्म के एक दृश्य में घायल अमिताभ आइने के सामने खड़े होकर आइने में मौजूद अपने अक्स की मरहम-पट्टी करते हैं। अकेले अमिताभ ने फिजूल की बातें करते हुए दर्शकों को खूब हँसाया था। यह ऐसा दौर था, जब अमिताभ परदे पर कुछ भी कर सकते थे और दर्शक कोई तर्क-वितर्क नहीं करते थे। | ||
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|मुकद्दर का सिकंदर || 1978 || सिकंदर || प्रकाश मेहरा || प्रकाश मेहरा की फ़िल्मों में अमिताभ के अभिनीत पात्र वक्त के मारे रहते थे। किस्मत कभी उनका साथ नहीं देती थी। 'मुकद्दर का सिकंदर' की कहानी 'देवदास' से मिलती-जुलती थी। सिकंदर के रूप में अमिताभ त्याग और बलिदान करते रहते हैं। अपने दोस्त की खुशी के लिए उसके हिस्से का | |मुकद्दर का सिकंदर || 1978 || सिकंदर || प्रकाश मेहरा || प्रकाश मेहरा की फ़िल्मों में अमिताभ के अभिनीत पात्र वक्त के मारे रहते थे। किस्मत कभी उनका साथ नहीं देती थी। 'मुकद्दर का सिकंदर' की कहानी 'देवदास' से मिलती-जुलती थी। सिकंदर के रूप में अमिताभ त्याग और बलिदान करते रहते हैं। अपने दोस्त की खुशी के लिए उसके हिस्से का ज़हर भी खुद पी लेते हैं। फ़िल्म में कई लंबे-लंबे दृश्य हैं, जिनमें अमिताभ का अभिनय देखने लायक़ है। | ||
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|शक्ति ||1982 || विजय कुमार || रमेश सिप्पी || इस फ़िल्म में दर्शकों को दो | |[[शक्ति (1982 फ़िल्म)|शक्ति]] ||1982 || विजय कुमार || रमेश सिप्पी || इस फ़िल्म में दर्शकों को दो महान् अभिनेताओं को साथ देखने का अवसर मिला था। अमिताभ के सामने खुद उनके आदर्श महानायक [[दिलीप कुमार]] थे। उनका चरित्र अपने पिता से नाराज़ रहता है। अमिताभ ने खुद स्वीकारा था कि दिलीप साहब के सामने खड़े होकर अभिनय करना आसान नहीं था। उन्हें कई बार रीटेक देने पड़ते थे। | ||
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|सरकार ||2005 || सुभाष नागरे || रामगोपाल वर्मा || अमिताभ का पात्र बाल ठाकरे से प्रेरित है। एक ऐसा व्यक्ति जो समानांतर सरकार चलाता है। जिसके इशारे पर सारे लोग नाचते हैं, वह अपने घर वालों को नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाता। बड़े बेटे से उसके संबंध ठीक नहीं है। अमिताभ ने अपनी भूमिका इतनी विश्वसनीयता के साथ निभाई कि दर्शकों ने इस फ़िल्म को सफल बना दिया। इस फ़िल्म का सीक्वल 'सरकार राज' (2008) भी प्रदर्शित हुआ, जिसमें अमिताभ अपने बेटे की मौत का बदला लेते हैं। | |सरकार ||2005 || सुभाष नागरे || रामगोपाल वर्मा || अमिताभ का पात्र [[बाल ठाकरे]] से प्रेरित है। एक ऐसा व्यक्ति जो समानांतर सरकार चलाता है। जिसके इशारे पर सारे लोग नाचते हैं, वह अपने घर वालों को नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाता। बड़े बेटे से उसके संबंध ठीक नहीं है। अमिताभ ने अपनी भूमिका इतनी विश्वसनीयता के साथ निभाई कि दर्शकों ने इस फ़िल्म को सफल बना दिया। इस फ़िल्म का सीक्वल 'सरकार राज' (2008) भी प्रदर्शित हुआ, जिसमें अमिताभ अपने बेटे की मौत का बदला लेते हैं। | ||
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|ब्लैक ||2005|| देबराज सहाय || संजय लीला भंसाली || अमिताभ को लगता है कि देबराज सहाय की भूमिका निभाकर अपने अभिनय के शिखर को उन्होंने छुआ है। इस फ़िल्म पर उन्हें गर्व है। एक सख्त अध्यापक अपने विद्यार्थी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। इस फ़िल्म को देखने के बाद लगता है कि उनके अभिनय की कोई सीमाएँ नहीं हैं। एक अभिनेता के रूप में उनमें अनंत संभावनाएँ हैं। देबराज सहाय को केवल वे ही पर्दे पर उतार सकते थे। | |ब्लैक ||2005|| देबराज सहाय || संजय लीला भंसाली || अमिताभ को लगता है कि देबराज सहाय की भूमिका निभाकर अपने अभिनय के शिखर को उन्होंने छुआ है। इस फ़िल्म पर उन्हें गर्व है। एक सख्त अध्यापक अपने विद्यार्थी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। इस फ़िल्म को देखने के बाद लगता है कि उनके अभिनय की कोई सीमाएँ नहीं हैं। एक अभिनेता के रूप में उनमें अनंत संभावनाएँ हैं। देबराज सहाय को केवल वे ही पर्दे पर उतार सकते थे। | ||
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14:00, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
अमिताभ बच्चन विषय सूची
अमिताभ बच्चन ने अनेक यादगार फ़िल्मों में काम किया है। उनकी श्रेष्ठ फ़िल्में हैं- आनंद, ज़ंजीर, अभिमान, दीवार, शोले, त्रिशूल, मुकद्दर का सिकंदर, सत्ते पे सत्ता, सिलसिला, अमर अक़बर एंथनी, डॉन, शक्ति, काला पत्थर, हम, अग्निपथ, बाग़बान, चीनी कम, ब्लैक, पा आदि।
फ़िल्म | वर्ष | किरदार | निर्देशक | विवरण |
---|---|---|---|---|
आनंद | 1971 | डॉ. भास्कर के. बैनर्जी | ऋषिकेश मुखर्जी | इस फ़िल्म के नायक सत्तर के दशक के सुपर सितारे राजेश खन्ना थे। 'बाबू मोशाय' के रूप में अमिताभ सहायक अभिनेता थे। अपने सशक्त अभिनय से अमिताभ ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। ‘आनंद’ राजेश खन्ना की श्रेष्ठ फ़िल्म मानी जा सकती हैं, लेकिन फ़िल्म देखने के बाद अमिताभ याद रह जाते हैं। सहनायक की भूमिका होने पर भी अमिताभ अपने अभिनय के बल पर इस फ़िल्म को यादगार बना दिया। |
ज़ंजीर | 1973 | विजय खन्ना | प्रकाश मेहरा | प्रकाश मेहरा को जब दिग्गज नायकों ने यह फ़िल्म करने से मना कर दिया तो हारकर उन्होंने अमिताभ को चुना। प्राण के कहने पर ही प्रकाश मेहरा ने यह रोल अमिताभ को दिया था। अमिताभ इस समय तक एक सफल फ़िल्म पाने को प्रयासरत थे। प्राण के साथ जब अमिताभ ने पहला शॉट दिया तो प्राण ने मेहरा को कोने में ले जाकर कहा कि यह लड़का एक दिन सुपरस्टार बनेगा। अमिताभ की 'एंग्री यंग मैन' की छवि 'जंजीर' से ही बनी। अमिताभ की इस छवि को निर्माता-निर्देशकों ने लंबे समय तक प्रयोग किया। |
अभिमान | 1975 | सुबीर कुमार | ऋषिकेश मुखर्जी | एक अभिनेता के रूप में अमिताभ को इस फ़िल्म में कई शेड्स दिखाने का अवसर मिला। रोमांस, संगीत और ईर्ष्या जैसी भावनाओं को मिलाकर उनका चरित्र गढ़ा गया था। अमिताभ ने अपने दमदार अभिनय से भूमिका को यादगार बना दिया। अमिताभ और जया द्वारा साथ की गई श्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक फ़िल्म है। |
दीवार | 1975 | विजय खन्ना | यश चोपड़ा | इस समय हीरो नकारात्मक भूमिका करना पसंद नहीं करते थे। 'दीवार' में अमिताभ का चरित्र ग्रे-शेड लिए हुए था। अपने ईमानदार और आदर्श भाई के मुकाबले वह अपराध की दुनिया चुनता है। उसके इस क़दम से नाखुश उसकी माँ भी उसका साथ छोड़ देती है। नकारात्मक भूमिका होने के बावजूद दर्शकों की सहानुभूति अमिताभ बटोर लेते हैं। भगवान पर गुस्सा होने और मंदिर की सीढि़यों पर माँ की गोद में दम तोड़ते हुए अमिताभ के दृश्य, हिंदी फ़िल्मों के उम्दा दृश्यों में से एक हैं। |
शोले | 1975 | जय (जयदेव) | रमेश सिप्पी | हिंदी फ़िल्मों की सफलतम फ़िल्मों में से एक ‘शोले’ में जय और वीरू की जोड़ी ने गजब कर दिया था। वीरू के मुकाबले में जय कम बोलता था। अमिताभ बच्चन ने बिना संवाद बोले अपनी आँखों और चेहरे के भावों के जरिए कई दृश्यों को यादगार बना दिया। फ़िल्म में जया बच्चन के साथ उनका रोमांस सिर्फ खामोशी के जरिए बयां हुआ। गब्बर को पकड़ने के लिए जय ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी तो सिनेमाघर में लोगों की आँखों से आँसू निकल आए। जय को क्यों मार दिया? यह सवाल अभी भी लोग के दिलों को कचोटता है। |
अमर अकबर एंथनी | 1977 | एंथनी गोंजाल्विस | मनमोहन देसाई | मनमोहन देसाई की मसाला फ़िल्मों में से एक ‘अमर अकबर एंथोनी’ में अमिताभ एंथनी बने थे। इस फ़िल्म में उन्होंने लात-घूँसे भी चलाए और वे सारी हरकतें कीं, जो देसाई की फ़िल्मों में होती थी। फ़िल्म के एक दृश्य में घायल अमिताभ आइने के सामने खड़े होकर आइने में मौजूद अपने अक्स की मरहम-पट्टी करते हैं। अकेले अमिताभ ने फिजूल की बातें करते हुए दर्शकों को खूब हँसाया था। यह ऐसा दौर था, जब अमिताभ परदे पर कुछ भी कर सकते थे और दर्शक कोई तर्क-वितर्क नहीं करते थे। |
मुकद्दर का सिकंदर | 1978 | सिकंदर | प्रकाश मेहरा | प्रकाश मेहरा की फ़िल्मों में अमिताभ के अभिनीत पात्र वक्त के मारे रहते थे। किस्मत कभी उनका साथ नहीं देती थी। 'मुकद्दर का सिकंदर' की कहानी 'देवदास' से मिलती-जुलती थी। सिकंदर के रूप में अमिताभ त्याग और बलिदान करते रहते हैं। अपने दोस्त की खुशी के लिए उसके हिस्से का ज़हर भी खुद पी लेते हैं। फ़िल्म में कई लंबे-लंबे दृश्य हैं, जिनमें अमिताभ का अभिनय देखने लायक़ है। |
शक्ति | 1982 | विजय कुमार | रमेश सिप्पी | इस फ़िल्म में दर्शकों को दो महान् अभिनेताओं को साथ देखने का अवसर मिला था। अमिताभ के सामने खुद उनके आदर्श महानायक दिलीप कुमार थे। उनका चरित्र अपने पिता से नाराज़ रहता है। अमिताभ ने खुद स्वीकारा था कि दिलीप साहब के सामने खड़े होकर अभिनय करना आसान नहीं था। उन्हें कई बार रीटेक देने पड़ते थे। |
सरकार | 2005 | सुभाष नागरे | रामगोपाल वर्मा | अमिताभ का पात्र बाल ठाकरे से प्रेरित है। एक ऐसा व्यक्ति जो समानांतर सरकार चलाता है। जिसके इशारे पर सारे लोग नाचते हैं, वह अपने घर वालों को नियंत्रण स्थापित नहीं कर पाता। बड़े बेटे से उसके संबंध ठीक नहीं है। अमिताभ ने अपनी भूमिका इतनी विश्वसनीयता के साथ निभाई कि दर्शकों ने इस फ़िल्म को सफल बना दिया। इस फ़िल्म का सीक्वल 'सरकार राज' (2008) भी प्रदर्शित हुआ, जिसमें अमिताभ अपने बेटे की मौत का बदला लेते हैं। |
ब्लैक | 2005 | देबराज सहाय | संजय लीला भंसाली | अमिताभ को लगता है कि देबराज सहाय की भूमिका निभाकर अपने अभिनय के शिखर को उन्होंने छुआ है। इस फ़िल्म पर उन्हें गर्व है। एक सख्त अध्यापक अपने विद्यार्थी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। इस फ़िल्म को देखने के बाद लगता है कि उनके अभिनय की कोई सीमाएँ नहीं हैं। एक अभिनेता के रूप में उनमें अनंत संभावनाएँ हैं। देबराज सहाय को केवल वे ही पर्दे पर उतार सकते थे। |
इन्हें भी देखें: अमिताभ बच्चन, अमिताभ बच्चन का फ़िल्मी सफ़र एवं अमिताभ बच्चन को मिले सम्मान और पुरस्कार
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टीका टिप्पणी और संदर्भ