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13:41, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

पद्मनंदि द्वितीय संस्कृत ग्रन्थकार के रूप में विशिष्ट रूप से उल्लेखनीय हैं। जैन सम्प्रदाय में पद्मनंदि नाम से अनेक सत्पुरुष हुए हैं, और वे सभी सम्मानित हैं। लेकिन पद्मनंदि द्वितीय ने इनमें अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की है। इनका कार्यक्षेत्र कोल्हापुर तथा मिरज रहा है।

  • पद्मनंदि के गुरु का नाम 'वीरनंदि' था।
  • ग्रन्थकार पद्मनंदि का समय ई. 11वीं शती माना जाता है।
  • इनकी प्रमुख रचनाओं में 'पद्मनंदि पंचविंशतिका' महत्त्वपूर्ण है।
  • इस रचना में धर्मोपदेशामृत (198 पद्म), दानोपदेशन (54 पद्म), उपासक संस्कार (12 पद्म), देशव्रतोद्योतन (27 पद्म), सद्बोधचन्द्रोदय (50 पद्म), आदि 26 विषयों का सुन्दर वर्णन मिलता है।
  • इस ग्रन्थ के कन्नड़ टीकाकार भी पद्मनंदि हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 468 |


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