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*यह नगर मुख्यतः [[यहूदी धर्म|यहूदी समुदाय]] के प्राभावशाली परदेसी उपासना गृह और कोच्चि के राजाओं के महल के लिए विख्यात है।
*यह नगर मुख्यतः [[यहूदी धर्म|यहूदी समुदाय]] के प्राभावशाली परदेसी उपासना गृह और कोच्चि के राजाओं के महल के लिए विख्यात है।
==उल्लेखनीय इमारतें==
==उल्लेखनीय इमारतें==
यह उपासना गृह 1568 में बना था और 1664 में [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] द्वारा इसके कुछ हिस्सों को ध्वस्य किए जाने के बाद इसे फिर से बनाया गया। इसमें 1761 में डच शैली में बना घंटाघर, [[सोना|सोने]] व [[चाँदी]] से सुसज्जित तोरा पट्टिकाएँ और कर्मकांड से संबंधित कई बहुमुल्य वस्तुएँ हैं। ऐसी वस्तुएँ में राजा भास्कर [[राजा रवि वर्मा|रवि वर्मा]] द्वारा चौथी शताब्दी में [[यहूदी|यहूदियों]] को प्रदान किया गया कांस्य पत्र अभिलेख है, जिसे ये अपने समुदाय का अधिकार पत्र मानते हैं। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में डज़राइल प्रवास के कारण मत्तनचेरी के यहूदी समुदाय की संख्या में काफ़ी कमी आई है।
यह उपासना गृह 1568 में बना था और 1664 में [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] द्वारा इसके कुछ हिस्सों को ध्वस्य किए जाने के बाद इसे फिर से बनाया गया। इसमें 1761 में डच शैली में बना घंटाघर, [[सोना|सोने]] व [[चाँदी]] से सुसज्जित तोरा पट्टिकाएँ और कर्मकांड से संबंधित कई बहुमूल्य वस्तुएँ हैं। ऐसी वस्तुएँ में राजा भास्कर [[राजा रवि वर्मा|रवि वर्मा]] द्वारा चौथी शताब्दी में [[यहूदी|यहूदियों]] को प्रदान किया गया कांस्य पत्र अभिलेख है, जिसे ये अपने समुदाय का अधिकार पत्र मानते हैं। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में डज़राइल प्रवास के कारण मत्तनचेरी के यहूदी समुदाय की संख्या में काफ़ी कमी आई है।
1555 में निर्मित राजमहल कोच्चि के राजाओं का निवास-स्थान था। इसने अति सुंदर भित्ति चित्रों में [[रामायण]] की समूची कहानी प्रदर्शीत की गई है।
1555 में निर्मित राजमहल कोच्चि के राजाओं का निवास-स्थान था। इसने अति सुंदर भित्ति चित्रों में [[रामायण]] की समूची कहानी प्रदर्शीत की गई है।



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जैन मंदिर, मत्तनचेरी

मत्तनचेरी दक्षिण-पश्चिमी भारत के केरल का पूर्व नगरीय क्षेत्र है। यह अरब सागर के तट पर कोच्चि नगर के पास स्थित है।

  • मत्तनचेरी को 1970 में कोच्चि शहर के शहरी सकेंद्रण में शामिल कर लिया गया।
  • यह नगर मुख्यतः यहूदी समुदाय के प्राभावशाली परदेसी उपासना गृह और कोच्चि के राजाओं के महल के लिए विख्यात है।

उल्लेखनीय इमारतें

यह उपासना गृह 1568 में बना था और 1664 में पुर्तग़ालियों द्वारा इसके कुछ हिस्सों को ध्वस्य किए जाने के बाद इसे फिर से बनाया गया। इसमें 1761 में डच शैली में बना घंटाघर, सोनेचाँदी से सुसज्जित तोरा पट्टिकाएँ और कर्मकांड से संबंधित कई बहुमूल्य वस्तुएँ हैं। ऐसी वस्तुएँ में राजा भास्कर रवि वर्मा द्वारा चौथी शताब्दी में यहूदियों को प्रदान किया गया कांस्य पत्र अभिलेख है, जिसे ये अपने समुदाय का अधिकार पत्र मानते हैं। 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में डज़राइल प्रवास के कारण मत्तनचेरी के यहूदी समुदाय की संख्या में काफ़ी कमी आई है। 1555 में निर्मित राजमहल कोच्चि के राजाओं का निवास-स्थान था। इसने अति सुंदर भित्ति चित्रों में रामायण की समूची कहानी प्रदर्शीत की गई है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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