"पक्षी और बंदरों की कहानी": अवतरणों में अंतर

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'''पक्षी और बंदरों की कहानी''' [[हितोपदेश]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[नारायण पंडित]] हैं।
===1. पक्षी और बंदरों की कहानी===
==कहानी==
 
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नर्मदा के तीर पर एक बड़ा सेमर का वृक्ष है। उस पर पक्षी घोंसला बनाकर उसके भीतर, सुख से रहा करते थे। फिर एक दिन बरसात में नीले- नीले बादलों से आकाशमंडल के छा जाने पर बड़ी- बड़ी बूँदों से मूसलाधार बारिश बरसने लगा और फिर वृक्ष के नीचे बैठे हुए बंदरों को ठंडी के मारे थर थर काँपते हुए देख कर पक्षियों ने दया से विचार कहा -- अरे भाई बंदरों, सुनों :-
नर्मदा के तीर पर एक बड़ा सेमर का वृक्ष है। उस पर पक्षी घोंसला बनाकर उसके भीतर, सुख से रहा करते थे। फिर एक दिन बरसात में नीले- नीले बादलों से आकाशमंडल के छा जाने पर बड़ी- बड़ी बूँदों से मूसलाधार बारिश बरसने लगा और फिर वृक्ष के नीचे बैठे हुए बंदरों को ठंडी के मारे थर थर काँपते हुए देख कर पक्षियों ने दया से विचार कहा -- अरे भाई बंदरों, सुनों :-
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अस्माभिर्निमिता नीडाश्चंचुमात्राहृतैस्तृणै:।  
अस्माभिर्निमिता नीडाश्चंचुमात्राहृतैस्तृणै:।  
हस्तपादादिसंयुक्ता यूयं किमिति सीदथ ?
हस्तपादादिसंयुक्ता यूयं किमिति सीदथ ?
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हमने केवल अपनी चोंचों की मदद से इकट्ठा किये हुए तिनकों से घोंसले बनाये हैं और तुम तो हाथ, पाँव आदि से युक्त हो कर भी ऐसा दुख क्यों भोग रहे हो ?
हमने केवल अपनी चोंचों की मदद से इकट्ठा किये हुए तिनकों से घोंसले बनाये हैं और तुम तो हाथ, पाँव आदि से युक्त हो कर भी ऐसा दु:ख क्यों भोग रहे हो ?


यह सुन कर बंदरों ने झुँझला कर विचारा -- अरे, पवनरहित घोंसलों के भीतर बैठे हुए सुखी पक्षी हमारी निंदा करते हैं, करने दो। जब तक वर्षा बंद हो बाद जब पानी का बरसना बंद हो गया, तब उन बंदरों ने पेड़ पर चढ़ कर सब घोंसले तोड़ डाले और उनके अंडे नीचे गिरा दिया।
यह सुन कर बंदरों ने झुँझला कर विचारा -- अरे, पवनरहित घोंसलों के भीतर बैठे हुए सुखी पक्षी हमारी निंदा करते हैं, करने दो। जब तक वर्षा बंद हो बाद जब पानी का बरसना बंद हो गया, तब उन बंदरों ने पेड़ पर चढ़ कर सब घोंसले तोड़ डाले और उनके अंडे नीचे गिरा दिया।
   
   
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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14:00, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

पक्षी और बंदरों की कहानी हितोपदेश की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता नारायण पंडित हैं।

कहानी

नर्मदा के तीर पर एक बड़ा सेमर का वृक्ष है। उस पर पक्षी घोंसला बनाकर उसके भीतर, सुख से रहा करते थे। फिर एक दिन बरसात में नीले- नीले बादलों से आकाशमंडल के छा जाने पर बड़ी- बड़ी बूँदों से मूसलाधार बारिश बरसने लगा और फिर वृक्ष के नीचे बैठे हुए बंदरों को ठंडी के मारे थर थर काँपते हुए देख कर पक्षियों ने दया से विचार कहा -- अरे भाई बंदरों, सुनों :-

अस्माभिर्निमिता नीडाश्चंचुमात्राहृतैस्तृणै:।
हस्तपादादिसंयुक्ता यूयं किमिति सीदथ ?

हमने केवल अपनी चोंचों की मदद से इकट्ठा किये हुए तिनकों से घोंसले बनाये हैं और तुम तो हाथ, पाँव आदि से युक्त हो कर भी ऐसा दु:ख क्यों भोग रहे हो ?

यह सुन कर बंदरों ने झुँझला कर विचारा -- अरे, पवनरहित घोंसलों के भीतर बैठे हुए सुखी पक्षी हमारी निंदा करते हैं, करने दो। जब तक वर्षा बंद हो बाद जब पानी का बरसना बंद हो गया, तब उन बंदरों ने पेड़ पर चढ़ कर सब घोंसले तोड़ डाले और उनके अंडे नीचे गिरा दिया।
 

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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