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'''हितोपदेश''' भारतीय जन-मानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं। इसकी रचना का श्रेय [[नारायण पंडित]] जी को जाता है, जिन्होंने [[पंचतंत्र]] तथा अन्य नीति के ग्रंथों की मदद से हितोपदेश नामक इस ग्रंथ का सृजन किया। नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान है। विभिन्न उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस- पास निर्धारित की जाती है। हितोपदेश की रचना का आधार पंचतंत्र ही है। स्वयं पं. नारायण जी ने स्वीकार किया है -- | |||
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हितोपदेश भारतीय जन- मानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं। इसकी रचना का श्रेय पंडित | |||
नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान है। विभिन्न उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस- पास निर्धारित की जाती है। हितोपदेश की रचना का आधार पंचतंत्र ही है। स्वयं पं. नारायण जी ने स्वीकार किया है -- | |||
पंचतंत्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते। | पंचतंत्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते। | ||
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हितोपदेश की कथाएँ अत्यंत सरल व सुग्राह्य हैं। विभिन्न पशु- पक्षियों पर आधारित कहानियाँ इसकी | हितोपदेश की कथाएँ अत्यंत सरल व सुग्राह्य हैं। विभिन्न पशु- पक्षियों पर आधारित कहानियाँ इसकी ख़ास- विशेषता हैं। रचयिता ने इन पशु- पक्षियों के माध्यम से कथाशिल्प की रचना की है। जिसकी समाप्ति किसी शिक्षाप्रद बात से ही हुई है। पशुओं को नीति की बातें करते हुए दिखाया गया है। सभी कथाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्रतीत होती है। | ||
==रचनाकार== | |||
==रचनाकार | हितोपदेश के रचयिता नारायण पंडित को नारायण के नाम से भी जाना जाता है। पुस्तक के अंतिम पद्यों के आधार पर इसके रचयिता का नाम 'नारायण' ज्ञात होता है। | ||
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हितोपदेश के रचयिता नारायण पंडित | नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं कथानाम्। | ||
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नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं | |||
इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी है। धवलचंद्रजी बंगाल के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पंडित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे। मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है। | इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी है। धवलचंद्रजी बंगाल के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पंडित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे। मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है। | ||
==रचना काल== | ==रचना काल== | ||
कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डॉ. फ्लीट का मानना है कि इसकी रचना 11वीं शताब्दी के आस- पास होनी चाहिये। हितोपदेश का नेपाली हस्तलेख 1373 ई. का प्राप्त है। वाचस्पति गैरोलाजी ने इसका रचनाकाल 14 वीं शती के आसपास माना है। हितोपदेश की कथाओं में अर्बुदाचल (आबू) पाटलिपुत्र, [[उज्जयिनी]], [[मालवा]], [[हस्तिनापुर]], [[कान्यकुब्ज]] (कन्नौज), [[वाराणसी]], [[मगध|मगधदेश]], [[कलिंग|कलिंगदेश]] आदि स्थानों का उल्लेख है, जिसमें रचयिता तथा रचना की उद्गमभूमि इन्हीं स्थानों से प्रभावित है। | |||
कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर | |||
हितोपदेश की कथाओं में अर्बुदाचल (आबू) पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, मालवा, हस्तिनापुर, कान्यकुब्ज (कन्नौज), वाराणसी, मगधदेश, कलिंगदेश आदि स्थानों का उल्लेख है, जिसमें रचयिता तथा रचना की उद्गमभूमि इन्हीं स्थानों से प्रभावित है। | |||
हितोपदेश की कथाओं को इन चार भागों में विभक्त किया जाता है -- | हितोपदेश की कथाओं को इन चार भागों में विभक्त किया जाता है -- | ||
# मित्रलाभ | |||
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इनसे जुड़ी हुई कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ दी जा रही हैं। | इनसे जुड़ी हुई कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ दी जा रही हैं। | ||
===मित्रलाभ=== | ===मित्रलाभ=== | ||
# [[सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी]] | # [[सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी]] | ||
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# [[भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी]] | # [[भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी]] | ||
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# [[बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी]] | # [[बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी]] | ||
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# [[राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी]] | # [[राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी]] | ||
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==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
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11:44, 3 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
हितोपदेश भारतीय जन-मानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं। इसकी रचना का श्रेय नारायण पंडित जी को जाता है, जिन्होंने पंचतंत्र तथा अन्य नीति के ग्रंथों की मदद से हितोपदेश नामक इस ग्रंथ का सृजन किया। नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान है। विभिन्न उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस- पास निर्धारित की जाती है। हितोपदेश की रचना का आधार पंचतंत्र ही है। स्वयं पं. नारायण जी ने स्वीकार किया है --
पंचतंत्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते।
हितोपदेश की कथाएँ अत्यंत सरल व सुग्राह्य हैं। विभिन्न पशु- पक्षियों पर आधारित कहानियाँ इसकी ख़ास- विशेषता हैं। रचयिता ने इन पशु- पक्षियों के माध्यम से कथाशिल्प की रचना की है। जिसकी समाप्ति किसी शिक्षाप्रद बात से ही हुई है। पशुओं को नीति की बातें करते हुए दिखाया गया है। सभी कथाएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।
रचनाकार
हितोपदेश के रचयिता नारायण पंडित को नारायण के नाम से भी जाना जाता है। पुस्तक के अंतिम पद्यों के आधार पर इसके रचयिता का नाम 'नारायण' ज्ञात होता है।
नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं कथानाम्।
इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी है। धवलचंद्रजी बंगाल के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पंडित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे। मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है।
रचना काल
कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डॉ. फ्लीट का मानना है कि इसकी रचना 11वीं शताब्दी के आस- पास होनी चाहिये। हितोपदेश का नेपाली हस्तलेख 1373 ई. का प्राप्त है। वाचस्पति गैरोलाजी ने इसका रचनाकाल 14 वीं शती के आसपास माना है। हितोपदेश की कथाओं में अर्बुदाचल (आबू) पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, मालवा, हस्तिनापुर, कान्यकुब्ज (कन्नौज), वाराणसी, मगधदेश, कलिंगदेश आदि स्थानों का उल्लेख है, जिसमें रचयिता तथा रचना की उद्गमभूमि इन्हीं स्थानों से प्रभावित है। हितोपदेश की कथाओं को इन चार भागों में विभक्त किया जाता है --
- मित्रलाभ
- सुहृद्भेद
- विग्रह
- संधि
इनसे जुड़ी हुई कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ दी जा रही हैं।
मित्रलाभ
- सुवर्णकंकणधारी बूढ़ा बाघ और मुसाफिर की कहानी
- कबुतर, काक, कछुआ, मृग और चूहे की कहानी
- मृग, काक और गीदड़ की कहानी
- भैरव नामक शिकारी, मृग, शूकर, साँप और गीदड़ की कहानी
- धूर्त गीदड़ और हाथी की कहानी
सुहृद्भेद
- एक बनिया, बैल, सिंह और गीदड़ों की कहानी
- धोबी, धोबन, गधा और कुत्ते की कहानी
- सिंह, चूहा और बिलाव की कहानी
- बंदर, घंटा और कराला नामक कुटनी की कहानी
- सिंह और बूढ़ शशक की कहानी
- कौए का जोड़ा और काले साँप की कहानी
विग्रह
- पक्षी और बंदरों की कहानी
- बाघंबर ओढ़ा हुआ धोबी का गधा और खेतवाले की कहानी
- हाथियों का झुंड और बूढ़े शशक की कहानी
- हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी
- नील से रंगे हुए एक गीदड़ की कहानी
- राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानी
- एक क्षत्रिय, नाई और भिखारी की कहानी
संधि
- संन्यासी और एक चूहे की कहानी
- बूढ़े बगुले, केंकड़े और मछलियों की कहानी
- सुन्द, उपसुन्द नामक दो दैत्यों की कहानी
- एक ब्राह्मण, बकरा और तीन धुता की कहानी
- माधव ब्राह्मण, उसका बालक, नेवला और साँप की कहानी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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