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'''बृहदेश्वर''' अथवा '''बृहदीश्वर मन्दिर''' ([[अंग्रेज़ी]]:Brihadeeswarar Temple) विश्व के प्रमुख ग्रेनाइट मंदिरों मे से एक है। यह मंदिर [[तमिलनाडु]] के [[तंजौर ज़िला|तंजौर ज़िले]] में स्थित प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। [[तमिल भाषा]] में इसे बृहदीश्वर के नाम से संबोधीत किया जाता है। ग्यारहवीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। यह मंदिर [[चोल]] शासकों की महान् कला केन्द्र रहा है। यह भव्य मंदिर विश्व धरोहर के रूप में जाना जाता है। भगवान [[शिव]] को समर्पित बृहदीश्वर मंदिर [[शैव धर्म]] के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल रहा है। | |||
==इतिहास== | |||
बृहदेश्वर मंदिर चोल वास्तुकला का शानदार उदाहरण है, जिनका निर्माण चोल शासक महाराजा [[राजराज प्रथम]] के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ई. और 1009 ई. के दौरान) निर्मित किया गया था। उनके नाम पर ही इसे राजराजेश्वर मन्दिर नाम भी दिया गया है। राजाराजा प्रथम भगवान शिव के परम भक्त थे जिस कारण उन्होंने अनेक शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था जिनमें से एक बृहदेश्वर मंदिर भी है। यह विशाल मंदिर अपने समय की विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। | |||
==स्थापत्य कला== | |||
[[चित्र:Thanjavur-Brihadeeshwar-Temple.jpg|thumb|250px|बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर]] | |||
बृहदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक भवन है और यहां इन्होंने भगवान का नाम अपने बाद राज राजेश्वरम उडयार रखा है। यह मंदिर ग्रेनाइट से निर्मित है और अधिकांशत: पत्थर के बड़े खण्ड इसमें इस्तेमाल किए गए हैं, ये शिलाखण्ड आस पास उपलब्ध नहीं है इसलिए इन्हें किसी दूर के स्थान से लाया गया था। यह मंदिर एक फैले हुए अंदरुनी प्रकार में बनाया गया है जो 240.90 मीटर लम्बा (पूर्व - पश्चिम) और 122 मीटर चौड़ा (उत्तर - दक्षिण) है और इसमें पूर्व दिशा में गोपुरम के साथ अन्य तीन साधारण तोरण प्रवेश द्वार प्रत्येक पार्श्व पर और तीसरा पिछले सिरे पर है। प्रकार के चारों ओर परिवारालय के साथ दो मंजिला मालिका है।<ref name="bharat">{{cite web |url=http://bharat.gov.in/knowindia/culture_heritage.php?id=24 |title=बृहदेश्वर मंदिर - तंजौर |accessmonthday=28 अगस्त |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=bharat.gov.in |language=हिंदी}}</ref> | |||
==विशेषताएँ== | |||
एक विशाल गुम्बद के आकार का शिखर अष्टभुजा वाला है और यह ग्रेनाइट के एक शिला खण्ड पर रखा हुआ है तथा इसका घेरा 7.8 मीटर और वज़न 80 टन है। उप पित और अदिष्ठानम अक्षीय रूप से रखी गई सभी इकाइयों के लिए सामान्य है जैसे कि अर्धमाह और मुख मंडपम तथा ये मुख्य गर्भ गृह से जुड़े हैं किन्तु यहां पहुंचने के रास्ता उत्तर - दक्षिण दिशा से अर्ध मंडपम से होकर निकलता है, जिसमें विशाल सोपान हैं। ढलाई वाला प्लिंथ विस्तृत रूप से निर्माता शासक के [[शिलालेख|शिलालेखों]] से भरपूर है जो उनकी अनेक उपलब्धियों का वर्णन करता है, पवित्र कार्यों और मंदिर से जुड़ी संगठनात्मक घटनों का वर्णन करता है। गर्भ गृह के अंदर बृहत लिंग 8.7 मीटर ऊंचा है। दीवारों पर विशाल आकार में इनका चित्रात्मक प्रस्तुतिकरण है और अंदर के मार्ग में [[दुर्गा]], लक्ष्मी, सरस्वती और भिक्षाटन, वीरभद्र कालांतक, नटेश, अर्धनारीश्वर और अलिंगाना रूप में [[शिव]] को दर्शाया गया है। अंदर की ओर दीवार के निचले हिस्से में भित्ति चित्र चोल तथा उनके बाद की अवधि के उत्कृष्ट उदाहरण है। | |||
* उत्कृष्ट कलाओं को मंदिरों की सेवा में प्रोत्साहन दिया जाता था, शिल्पकला और [[चित्रकला]] को गर्भ गृह के आस पास के रास्ते में और यहां तक की महान् चोल ग्रंथ और तमिल पत्र में दिए गए शिला लेख इस बात को दर्शाते हैं कि राजाराज के शासनकाल में इन महान् कलाओं ने कैसे प्रगति की। | |||
* सरफौजी, स्थानीय मराठा शासक ने गणपति मठ का दोबारा निर्माण कराया। तंजौर चित्रकला के जाने माने समूह नायकन को चोल भित्ति चित्रों में प्रदर्शित किया गया है।<ref name="bharat"/> | |||
==मंदिर की महत्त्वता== | |||
बृहदीश्वर मंदिर तंजौर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है। इसका विशाल परिसर मुख्य केन्द्र है। मंदिर के तेरह मंज़िले भवन सभी को अचंभित करते हैं क्योंकि हिंदू अधि-स्थापनाओं में मंज़िलों की संख्या सम होती है परंतु यहां ऐसा नहीं है। भगवान शिव की आराधना को समर्पित इस मंदिर में भगवान के गण सवारी [[नंदी]] की एक बहुत बड़ी मूर्ति भी स्थापित है। [[राजराज प्रथम]] ने [[शैव मत]] के अनुयायी थे उन्हें शिवपादशेखर की उपाधि भी प्राप्त थी। अपनी धार्मिक सहिष्णुता के अनुरूप उन्होंने तंजौर के राजराजेश्वर मंदिर या बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया व उन पर अनेक बौद्ध प्रतिमाओं का निर्माण भी कराया था। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था परंतु तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर को बृहदीश्वर नाम दे दिया था। | |||
==विश्व धरोहर सूची में शामिल== | |||
बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है। इसके शिलालेखों में अंकित [[संस्कृत]] व [[तमिल भाषा|तमिल]] लेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्काशी द्वारा लिखे गए शिला लेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्यक्तित्व की अपार महानता को दर्शाते हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की प्रमुख विशेषता यह पाई गई है कि इसके गुंबद की परछाई [[पृथ्वी]] पर नहीं पड़ती। जो सभी को चकित करती है इसके शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। मंदिर में स्थापित भव्य शिवलिंग देखने पर वृहदेश्वर नाम को सार्थक करती प्रतीत होती है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम यानी द्वार के भीतर एक चौकोर मंडप है तथा चबूतरे पर नंदी जी की विशाल मूर्ति स्थापित है। नंदी की यह प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। इस मंदिर की उत्कृष्टता के कारण ही इसे [[यूनेस्को]] द्वारा विश्व धरोहर का स्थान मिला है। | |||
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बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर (अंग्रेज़ी:Brihadeeswarar Temple) विश्व के प्रमुख ग्रेनाइट मंदिरों मे से एक है। यह मंदिर तमिलनाडु के तंजौर ज़िले में स्थित प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। तमिल भाषा में इसे बृहदीश्वर के नाम से संबोधीत किया जाता है। ग्यारहवीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। यह मंदिर चोल शासकों की महान् कला केन्द्र रहा है। यह भव्य मंदिर विश्व धरोहर के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित बृहदीश्वर मंदिर शैव धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल रहा है।
इतिहास
बृहदेश्वर मंदिर चोल वास्तुकला का शानदार उदाहरण है, जिनका निर्माण चोल शासक महाराजा राजराज प्रथम के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ई. और 1009 ई. के दौरान) निर्मित किया गया था। उनके नाम पर ही इसे राजराजेश्वर मन्दिर नाम भी दिया गया है। राजाराजा प्रथम भगवान शिव के परम भक्त थे जिस कारण उन्होंने अनेक शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था जिनमें से एक बृहदेश्वर मंदिर भी है। यह विशाल मंदिर अपने समय की विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था।
स्थापत्य कला
बृहदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक भवन है और यहां इन्होंने भगवान का नाम अपने बाद राज राजेश्वरम उडयार रखा है। यह मंदिर ग्रेनाइट से निर्मित है और अधिकांशत: पत्थर के बड़े खण्ड इसमें इस्तेमाल किए गए हैं, ये शिलाखण्ड आस पास उपलब्ध नहीं है इसलिए इन्हें किसी दूर के स्थान से लाया गया था। यह मंदिर एक फैले हुए अंदरुनी प्रकार में बनाया गया है जो 240.90 मीटर लम्बा (पूर्व - पश्चिम) और 122 मीटर चौड़ा (उत्तर - दक्षिण) है और इसमें पूर्व दिशा में गोपुरम के साथ अन्य तीन साधारण तोरण प्रवेश द्वार प्रत्येक पार्श्व पर और तीसरा पिछले सिरे पर है। प्रकार के चारों ओर परिवारालय के साथ दो मंजिला मालिका है।[1]
विशेषताएँ
एक विशाल गुम्बद के आकार का शिखर अष्टभुजा वाला है और यह ग्रेनाइट के एक शिला खण्ड पर रखा हुआ है तथा इसका घेरा 7.8 मीटर और वज़न 80 टन है। उप पित और अदिष्ठानम अक्षीय रूप से रखी गई सभी इकाइयों के लिए सामान्य है जैसे कि अर्धमाह और मुख मंडपम तथा ये मुख्य गर्भ गृह से जुड़े हैं किन्तु यहां पहुंचने के रास्ता उत्तर - दक्षिण दिशा से अर्ध मंडपम से होकर निकलता है, जिसमें विशाल सोपान हैं। ढलाई वाला प्लिंथ विस्तृत रूप से निर्माता शासक के शिलालेखों से भरपूर है जो उनकी अनेक उपलब्धियों का वर्णन करता है, पवित्र कार्यों और मंदिर से जुड़ी संगठनात्मक घटनों का वर्णन करता है। गर्भ गृह के अंदर बृहत लिंग 8.7 मीटर ऊंचा है। दीवारों पर विशाल आकार में इनका चित्रात्मक प्रस्तुतिकरण है और अंदर के मार्ग में दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती और भिक्षाटन, वीरभद्र कालांतक, नटेश, अर्धनारीश्वर और अलिंगाना रूप में शिव को दर्शाया गया है। अंदर की ओर दीवार के निचले हिस्से में भित्ति चित्र चोल तथा उनके बाद की अवधि के उत्कृष्ट उदाहरण है।
- उत्कृष्ट कलाओं को मंदिरों की सेवा में प्रोत्साहन दिया जाता था, शिल्पकला और चित्रकला को गर्भ गृह के आस पास के रास्ते में और यहां तक की महान् चोल ग्रंथ और तमिल पत्र में दिए गए शिला लेख इस बात को दर्शाते हैं कि राजाराज के शासनकाल में इन महान् कलाओं ने कैसे प्रगति की।
- सरफौजी, स्थानीय मराठा शासक ने गणपति मठ का दोबारा निर्माण कराया। तंजौर चित्रकला के जाने माने समूह नायकन को चोल भित्ति चित्रों में प्रदर्शित किया गया है।[1]
मंदिर की महत्त्वता
बृहदीश्वर मंदिर तंजौर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है। इसका विशाल परिसर मुख्य केन्द्र है। मंदिर के तेरह मंज़िले भवन सभी को अचंभित करते हैं क्योंकि हिंदू अधि-स्थापनाओं में मंज़िलों की संख्या सम होती है परंतु यहां ऐसा नहीं है। भगवान शिव की आराधना को समर्पित इस मंदिर में भगवान के गण सवारी नंदी की एक बहुत बड़ी मूर्ति भी स्थापित है। राजराज प्रथम ने शैव मत के अनुयायी थे उन्हें शिवपादशेखर की उपाधि भी प्राप्त थी। अपनी धार्मिक सहिष्णुता के अनुरूप उन्होंने तंजौर के राजराजेश्वर मंदिर या बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया व उन पर अनेक बौद्ध प्रतिमाओं का निर्माण भी कराया था। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था परंतु तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर को बृहदीश्वर नाम दे दिया था।
विश्व धरोहर सूची में शामिल
बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है। इसके शिलालेखों में अंकित संस्कृत व तमिल लेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्काशी द्वारा लिखे गए शिला लेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्यक्तित्व की अपार महानता को दर्शाते हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की प्रमुख विशेषता यह पाई गई है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। जो सभी को चकित करती है इसके शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। मंदिर में स्थापित भव्य शिवलिंग देखने पर वृहदेश्वर नाम को सार्थक करती प्रतीत होती है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम यानी द्वार के भीतर एक चौकोर मंडप है तथा चबूतरे पर नंदी जी की विशाल मूर्ति स्थापित है। नंदी की यह प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। इस मंदिर की उत्कृष्टता के कारण ही इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का स्थान मिला है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 बृहदेश्वर मंदिर - तंजौर (हिंदी) (पी.एच.पी) bharat.gov.in। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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