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प्राचीन काल में [[अफ़्रीका]] के 'बार्बरी' प्रदेश के रहने वाले 'बारबेरियन' कहलाते थे तथा इनकी आदिम रहन-सहन की अवस्था के कारण इन्हें यूरोपीय (ग्रीक) असभ्य समझते थे, जिससे 'बाबेरियन' शब्द ही 'असभ्य' का पर्याय हो गया।
प्राचीन काल में [[अफ़्रीका]] के 'बार्बरी' प्रदेश के रहने वाले 'बारबेरियन' कहलाते थे तथा इनकी आदिम रहन-सहन की अवस्था के कारण इन्हें यूरोपीय (ग्रीक) असभ्य समझते थे, जिससे 'बाबेरियन' शब्द ही 'असभ्य' का पर्याय हो गया।
*[[महाभारत]] के उपर्युक्त उद्धरण में 'बार्बरी' या वहाँ के निवासियों का निर्देश है अथवा [[भारत]] के पश्चिमोत्तर भू-भाग या वहाँ बसे हुए सिथियन अथवा [[अनार्य]] जातीय लोगों का।
*[[महाभारत]] के उपर्युक्त उद्धरण में 'बार्बरी' या वहाँ के निवासियों का निर्देश है अथवा [[भारत]] के पश्चिमोत्तर भू-भाग या वहाँ बसे हुए सिथियन अथवा [[अनार्य]] जातीय लोगों का।

07:54, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

बर्बर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- बर्बर (बहुविकल्पी)

बर्बर का उल्लेख महाभारत, वनपर्व में हुआ है-

‘वारुणीं दिशामागम्य यवनान् बर्बरांस्तवा, नृपान् पश्चिमभूमिस्थान् दापयामास वै करान्’[1]

अर्थात् कर्ण ने तब पश्चिम दिशा में जाकर यवन तथा बर्बर राजाओं को, जो पश्चिम देश के निवासी थे, परास्त करके उनसे कर ग्रहण किया।[2] प्राचीन काल में अफ़्रीका के 'बार्बरी' प्रदेश के रहने वाले 'बारबेरियन' कहलाते थे तथा इनकी आदिम रहन-सहन की अवस्था के कारण इन्हें यूरोपीय (ग्रीक) असभ्य समझते थे, जिससे 'बाबेरियन' शब्द ही 'असभ्य' का पर्याय हो गया।

  • महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में 'बार्बरी' या वहाँ के निवासियों का निर्देश है अथवा भारत के पश्चिमोत्तर भू-भाग या वहाँ बसे हुए सिथियन अथवा अनार्य जातीय लोगों का।
  • महाभारत के युद्ध की कथा में जिस धनुर्विद बर्बरीक का वृत्तांत है, वह संभवत: बर्बरदेशीय ही था।
अन्य प्रसंग
  • एक अन्य प्रसंग के अनुसार बर्बर, काठियावाड़ या सौराष्ट्र (गुजरात) में सोरठ और गुहिलवाड़ के मध्य में स्थित प्रदेश था, जिसे अब 'बाबरियाबाड़' कहते हैं। संभवत: विदेशी अनार्य जातीय बर्बरों के इस प्रदेश में बस जाने से ही इसे बर्बर कहा जाने लगा था। इसी इलाके में 'बर्बर शेर' या 'केसरी सिंह' पाया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, वनपर्व 254, 18
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 611 |

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