"सावित्रीबाई फुले": अवतरणों में अंतर
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सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में [[ज्योतिबा फुले]] से हुआ था। | सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का [[विवाह]] [[1840]] में [[ज्योतिबा फुले]] से हुआ था। | ||
==विद्यालय की स्थापना== | ==विद्यालय की स्थापना== | ||
1848 में [[पुणे]] में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में। | [[1848]] में [[पुणे]] में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में। | ||
==सामाजिक मुश्किलें== | ==सामाजिक मुश्किलें== | ||
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय। | वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय। | ||
==महानायिका== | ==महानायिका== | ||
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और [[धर्म]] के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं। | सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और [[धर्म]] के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं। | ||
सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा कर उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया। दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर उन्होंने उसे डॉक्टर बनाया।<ref>{{cite web |url=https://www.aajtak.in/education/story/teachers-day-first-lady-indian-teacher-savitri-bai-phule-who-changed-education-and-society-too-tedu-958463-2019-09-03 |title=भारत की पहली महिला शिक्षक, जिसने शिक्षा भी बदली और समाज भी|accessmonthday=03 जनवरी|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=aajtak.in |language=हिंदी}}</ref> | |||
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सावित्रीबाई फुले और [[ज्योतिबा फुले]] ने [[24 सितंबर]], [[1873]] को [[सत्यशोधक समाज]] की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह [[25 दिसम्बर]], [[1873]] को कराया गया। [[28 नवंबर]], [[1890]] को बीमारी के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई थी। ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई। उन्होंने जिम्मेदारी से इसका संचालन किया। | |||
==आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत== | |||
सावित्रीबाई एक निपुण कवियित्री भी थीं। उन्हें '''आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत''' भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं। सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी। | |||
==निधन== | ==निधन== | ||
10 मार्च 1897 को [[प्लेग]] के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गयी। | [[10 मार्च]], [[1897]] को [[प्लेग]] के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गयी। | ||
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05:46, 3 जनवरी 2021 के समय का अवतरण
सावित्रीबाई फुले
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पूरा नाम | सावित्रीबाई फुले |
जन्म | 3 जनवरी, 1831 |
मृत्यु | 10 मार्च, 1897 |
मृत्यु कारण | प्लेग |
अभिभावक | पिता- खन्दोजी नेवसे, माता- लक्ष्मी |
पति/पत्नी | ज्योतिबा फुले |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष योगदान | विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। |
अन्य जानकारी | सावित्रीबाई फुले एक कवयित्री भी थीं। उन्हें 'मराठी की आदिकवयित्री' के रूप में भी जाना जाता था। |
अद्यतन | 13:02, 24 दिसम्बर 2011 (IST)
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सावित्रीबाई फुले (अंग्रेज़ी: Savitribai Phule, जन्म- 3 जनवरी, 1831; मृत्यु- 10 मार्च, 1897) भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रधानाचार्या और पहले किसान स्कूल की संस्थापिका थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए, सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया। जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवयित्री भी थीं। उन्हें 'मराठी की आदिकवयित्री' के रूप में भी जाना जाता था।
जन्म और परिवार
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।
विद्यालय की स्थापना
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।
सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।
महानायिका
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा कर उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया। दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर उन्होंने उसे डॉक्टर बनाया।[1]
'सत्यशोधक समाज' की स्थापना
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसम्बर, 1873 को कराया गया। 28 नवंबर, 1890 को बीमारी के चलते ज्योतिबा की मृत्यु हो गई थी। ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई। उन्होंने जिम्मेदारी से इसका संचालन किया।
आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत
सावित्रीबाई एक निपुण कवियित्री भी थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं। सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी।
निधन
10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गयी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारत की पहली महिला शिक्षक, जिसने शिक्षा भी बदली और समाज भी (हिंदी) aajtak.in। अभिगमन तिथि: 03 जनवरी, 2020।
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