"होली की ठिठोली -दुष्यंत कुमार": अवतरणों में अंतर
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लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप, | लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप, | ||
शी! होंठ सिल के बैठ गए ,लीजिए हुजूर।<ref>ये ग़ज़ल 1975 में ’धर्मयुग’ के होली-अंक में प्रकाशित हुई थीं।</ref> | शी! होंठ सिल के बैठ गए, लीजिए हुजूर।<ref>ये ग़ज़ल 1975 में ’धर्मयुग’ के होली-अंक में प्रकाशित हुई थीं।</ref> | ||
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13:29, 29 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
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पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ये ग़ज़ल 1975 में ’धर्मयुग’ के होली-अंक में प्रकाशित हुई थीं।