"सिंहासन बत्तीसी उनतीस": अवतरणों में अंतर
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एक दिन राजा विक्रमादित्य ने सपना देखा कि एक सोने का महल है, जिसमें तरह-तरह के रत्न जड़े हैं, कई तरह के पकवान और सुगंधियां हैं, फुलवाड़ी खिली हुई है, दीवारों पर चित्र बने हैं, अंदर नाच और गाना हो रहा है और एक तपस्वी बैठा हुआ है। अगले दिन राजा ने अपने वीरों को बुलाया और अपना सपना बताकर कहा कि मुझे वहां ले चलो, जहां ये सब चीज़ें हों। वीरों ने राजा को वहीं पहुंचा दिया। | [[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं। | ||
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एक दिन राजा विक्रमादित्य ने सपना देखा कि एक [[सोना|सोने]] का महल है, जिसमें तरह-तरह के [[रत्न]] जड़े हैं, कई तरह के पकवान और सुगंधियां हैं, फुलवाड़ी खिली हुई है, दीवारों पर चित्र बने हैं, अंदर नाच और गाना हो रहा है और एक तपस्वी बैठा हुआ है। अगले दिन राजा ने अपने वीरों को बुलाया और अपना सपना बताकर कहा कि मुझे वहां ले चलो, जहां ये सब चीज़ें हों। वीरों ने राजा को वहीं पहुंचा दिया। | |||
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14:02, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
सिंहासन बत्तीसी उनतीस
एक दिन राजा विक्रमादित्य ने सपना देखा कि एक सोने का महल है, जिसमें तरह-तरह के रत्न जड़े हैं, कई तरह के पकवान और सुगंधियां हैं, फुलवाड़ी खिली हुई है, दीवारों पर चित्र बने हैं, अंदर नाच और गाना हो रहा है और एक तपस्वी बैठा हुआ है। अगले दिन राजा ने अपने वीरों को बुलाया और अपना सपना बताकर कहा कि मुझे वहां ले चलो, जहां ये सब चीज़ें हों। वीरों ने राजा को वहीं पहुंचा दिया।
राजा को देखकर नाच-गान बंद हो गया। तपस्वी बड़ा गुस्सा हुआ।
विक्रमादित्य ने कहा; महाराज! आपके क्रोध की आग की कौन सह सकता है? मुझे क्षमा करें।
तपस्वी प्रसन्न हो गया और बोला: जो जी में आये, सो मांगो।
राजा ने कहा: योगिराज! मेरे पास किसी चीज़ की कमी नहीं है। यह महल मुझे दे दीजिये। योगी वचन दे चुका था। उसने महल राजा को दे दिया।
महल दे तो दिया, पर वह स्वयं बड़ा दुखी होकर इधर-उधर भटकने लगा। अपना दु:ख उसने एक दूसरे योगी को बताया।
उसने कहा: राजा विक्रमादित्य बड़ा दानी है। तुम उसके पास जाओ और महल को मांग लो। वह दे देगा।
तपस्वी ने ऐसा ही किया। राजा विक्रमादित्य ने मांगते ही महल उसे दे दिया।
पुतली बोली: राजन्! हो तुम इतने दानी तो सिंहासन पर बैठो?
अगले दिन रुपवती नाम की तीसवीं पुतली की बारी थी। सो उसने राजा को रोककर यह कहानी सुनायी:
- आगे पढ़ने के लिए सिंहासन बत्तीसी तीस पर जाएँ
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