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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {संविधान की [[आठवीं अनुसूची]] में शामिल की गई चार नई भाषाएँ हैं?
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| -[[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]] और [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]]
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| -[[सिन्धी भाषा|सिन्धी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
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| -[[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
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| +[[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]],[[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
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| ||'आठवीं अनुसूची' में [[संविधान]] द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरम्भ में 14 भाषाएँ ([[असमिया भाषा|असमिया]], [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[हिन्दी]], [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]], [[कश्मीरी भाषा|कश्मीरी]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[मलयालम भाषा|मलयालम]], [[उड़िया भाषा|उड़िया]], [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[तमिल भाषा|तमिल]], [[तेलुगु भाषा|तेलुगु]], [[उर्दू भाषा|उर्दू]]) थीं। बाद में [[सिंधी भाषा|सिंधी]] को तत्पश्चात् [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]], [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]], [[नेपाली भाषा|नेपाली]] को शामिल किया गया, जिससे इसकी संख्या 18 हो गई। तदुपरान्त [[बोडो भाषा|बोडो]], [[डोगरी भाषा|डोगरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]], [[संथाली भाषा|संथाली]] को शामिल किया गया और इस प्रकार इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गईं। अनुच्छेद 347 के अनुसार यदि किसी राज्य का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञात की जाय तो राष्ट्रपति उस भाषा को अभिज्ञा दे सकता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आठवीं अनुसूची]], [[संथाली भाषा|संथाली]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]],[[बोडो भाषा|बोडो]] और [[डोगरी भाषा|डोगरी]]
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| {भारतीय [[भाषा|भाषाओं]] को कितने प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है?
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| ||[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। यहाँ विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि [[संविधान]] द्वारा 22 भाषाओं को '[[राजभाषा]]' की मान्यता प्रदान की गयी है। भारत में चार '[[भाषा-परिवार|भाषा परिवार]]' माने गये हैं- [[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]], द्रविड़, ऑस्ट्रिक और चीनी-तिब्बती। देश में इन [[भाषा|भाषाओं]] को बोलने वालों का प्रतिशत क्रमश: 73, 25, 1.3 और 0.7 है। भारत में 22 भाषाओं के अतिरिक्त [[अंग्रेज़ी]] भी सहायक राजभाषा है और यह [[मिज़ोरम]], [[नागालैण्ड]] तथा [[मेघालय]] की राजभाषा है। कुल मिलाकर देश में 58 भाषाओं में स्कूली पढ़ायी की जाती है। [[संविधान]] की '[[आठवीं अनुसूची]]' में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें 'राजभाषा' की संज्ञा दी गई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारतीय भाषाएँ]], [[भाषा-परिवार]], [[आठवीं अनुसूची]]
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| {[[भारत]] में सबसे अधिक बोला जाने वाला भाषायी समूह है-
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| +इण्डो-आर्यन
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| -द्रविड़
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| -ऑस्ट्रिक
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| -चीनी-तिब्बती
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| {ऑस्ट्रिक भाषा समूह की [[भाषा|भाषाओं]] को बोलने वालों को कहा जाता है?
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| +[[किरात]]
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| -[[निषाद]]
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| -[[द्रविड़]]
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| -इनमें कोई नहीं
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| ||'किरात' [[भारत]] की एक प्राचीन [[अनार्य|अनार्य जाति]] (संभवत: '[[मंगोल]]') थी, जिसका निवास-स्थान मुख्यत: [[हिमालय|पूर्वी हिमालय]] के पर्वतीय प्रदेश में था। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] में [[किरात|किरातों]] का संबंध पहाड़ों और गुफ़ाओं से जोड़ा गया है और उनकी मुख्य जीविका आखेट बताई गई है। [[यजुर्वेद]] तथा [[अथर्ववेद]] में किरातों को [[पर्वत]] और कन्दराओं का निवासी बताया गया है। 'वाजसनेयीसंहिता' और '[[तैत्तिरीय ब्राह्मण]]' में किरातों का संबंध गुहा से बताया गया है। ऐसा जान पड़ता है कि कालांतर में किरात लोग अपने मूल निवास [[हिमालय]] से अतिरिक्त [[भारत]] के अन्य भागों में भी फैल गए थे। [[साँची]] ([[मध्य प्रदेश]]) के [[स्तूप]] पर किसी किरात भिक्षु के दान का उल्लेख है और [[दक्षिण भारत]] में [[नागार्जुनीकोंड]] के एक [[अभिलेख]] में भी किरातों का वर्णन हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[किरात]]
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| {'जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सारु। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥' इस [[दोहा|दोहे]] के रचनाकार का नाम है?
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| |type="()"}
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| -[[स्वयंभूदेव|स्वयंभू]]
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| +[[देवसेन]]
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| -[[पुष्पदंत]]
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| -कनकामर
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| ||'देवसेन' [[प्राकृत भाषा]] में '[[स्यादवाद]]' और 'नय' का प्ररूपण करने वाले दूसरे [[जैन]] आचार्य थे। इनका समय दसवीं शताब्दी माना जाता है। [[देवसेन]] नय मनीषी के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन्होंने नयचक्र' की रचना की थी। संभव है कि इसी का उल्लेख [[विद्यानन्द|आचार्य विद्यानन्द]] ने अपने 'तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक' में किया हो और इससे ही नयों को विशेष जानने की सूचना की हो। देवसेन की न्यायविषयक एक अन्य रचना 'आलाप-पद्धति' है। इसकी रचना [[संस्कृत]] के गद्य में हुई है। जैन न्याय में सरलता से प्रवेश पाने के लिये यह छोटा-सा [[ग्रन्थ]] बहुत सहायक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवसेन]]
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| {चीनी-तिब्बती भाषा समूह की [[भाषा|भाषाओं]] के बोलने वालों को कहा जाता है?
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| -[[किरात]]
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| +[[निषाद]]
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| -[[द्रविड़]]
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| -[[आर्य]]
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| ||'निषाद' एक अत्यन्त प्राचीन [[शूद्र|शूद्र जाति]] थी। इस जाति के लोग [[समुद्र]] के मध्य दूर सुदूर क्षेत्र में रहते थे। [[निषाद]] मत्स्य जीवी थे। यह प्राचीन जाति [[पर्वत]], घाटियों और वनांचलों तथा नदियों के तटों पर भी निवास करती थी। निषादों को [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की भार्याओं से उत्पन्न 'शूद्र' पुत्र माना गया। फिर वनवासी जातियों के मिश्रण से निषाद पैदा होते रहे। [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के पुत्र [[राम]] को वन जाते समय निषादों ने ही नदी पार कराई थी। [[महाभारत]] में भी निषादों का कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निषाद]]
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| {[[अपभ्रंश]] के योग से [[राजस्थानी भाषा]] का जो साहित्यिक रूप बना, उसे कहा जाता है-
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| -पिंगल भाषा
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| +[[डिंगल|डिंगल भाषा]]
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| -मेवाड़ी भाषा
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| -बाँगरु भाषा
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| ||'डिंगल' [[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]] की प्रमुख बोली '[[मारवाड़ी बोली|मारवाड़ी]]' का साहित्यिक रूप है। कुछ लोग [[डिंगल]] को मारवाड़ी से भिन्न चारणों की एक अलग [[भाषा]] बतलाते हैं, किंतु ऐसा मानना निराधार है। डिंगल को 'भाटभाषा' भी कहा गया है। मारवाड़ी के साहित्यिक रूप का नाम डिंगल क्यों पड़ा, इस प्रश्न पर बहुत मत-वैभिन्न्य है। [[डॉ. श्यामसुन्दर दास]] के अनुसार- "पिंगल के सादृश्य पर यह एक गढ़ा हुआ शब्द है।" [[चन्द्रधर शर्मा गुलेरी]] के अनुसार- "डिंगल यादृच्छात्मक अनुकरण शब्द है।" [[साहित्य]] में डिंगल का प्रयोग 13वीं सदी के मध्य से लेकर आज तक मिलता है। डॉ. तेस्सितोरी ने 'डिंगल' के प्राचीन और अर्वाचीन दो भेद किए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डिंगल]]
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| {'एक नार पिया को भानी। तन वाको सगरा ज्यों पानी।' यह पंक्ति किस भाषा की है?
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| |type="()"}
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| + [[ब्रजभाषा]]
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| - [[खड़ीबोली|खड़ीबोली भाषा]]
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| - [[अपभ्रंश भाषा]]
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| - कन्नौजी भाषा
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| ||[[ब्रजभाषा]] मूलत: [[ब्रज|ब्रजक्षेत्र]] की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक [[भाषा]] रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और ब्रजभाषा नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और [[अलीगढ़|अलीगढ़ ज़िलों]] में बोली जाती है। इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]]
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| {[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]], पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य भाषा है?
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| |type="()"}
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| - [[दक्खिनी हिन्दी|दक्खिनी]]
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| + [[खड़ीबोली]]
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| - [[बुन्देली बोली|बुन्देली]]
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| - [[बघेली बोली|बघेली]]
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| {[[देवनागरी लिपि]] को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था? | | {[[देवनागरी लिपि]] को राष्ट्रलिपि के रूप में कब स्वीकार किया गया था? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| + [[14 सितम्बर]], [[1949]] | | +[[14 सितम्बर]], [[1949]] |
| - [[21 सितम्बर]], 1949 | | -[[21 सितम्बर]], 1949 |
| - [[23 सितम्बर]], 1949 | | -[[23 सितम्बर]], 1949 |
| - [[25 सितम्बर]], 1949 | | -[[25 सितम्बर]], 1949 |
| | ||'देवनागरी' [[भारत]] में सर्वाधिक प्रचलित [[लिपि]] है, जिसमें [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]], [[हिन्दी]] और [[मराठी भाषा|मराठी]] भाषाएँ लिखी जाती हैं। इस शब्द का सबसे पहला उल्लेख 453 ई. में [[जैन]] ग्रंथों में मिलता है। 'नागरी' नाम के संबंध में मतैक्य नहीं है। यह अपने आरंभिक रूप में [[ब्राह्मी लिपि]] के नाम से जानी जाती थी। इसका वर्तमान रूप नवी-दसवीं शताब्दी से मिलने लगता है। [[8 अप्रैल]], [[1900]] ई. को तत्कालीन गवर्नर ने [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] के साथ नागरी को भी अदालतों और कचहरियों में समान अधिकार दे दिया गया। सरकार का यह प्रस्ताव हिन्दी के स्वाभिमान के लिए संतोषप्रद नहीं था। इससे हिन्दी को अधिकारपूर्ण सम्मान नहीं दिया गया था, बल्कि [[हिन्दी]] के प्रति दया दिखलाई गई थी। फिर भी इसे इतना श्रेय तो है ही कि कचहरियों में स्थान दिला सका और यह मज़बूत आधार प्रदान किया, जिसके बल पर देवनागरी 20वीं सदी में 'राष्ट्रलिपि' के रूप में उभरकर सामने आ सकी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवनागरी लिपि]] |
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| {'रानी केतकी की कहानी' की [[भाषा]] को कहा जाता है? | | {'रानी केतकी की कहानी' की [[भाषा]] को कहा जाता है- |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| - हिन्दुस्तानी | | -हिन्दुस्तानी |
| + [[खड़ीबोली]] | | +[[खड़ी बोली]] |
| - [[उर्दू भाषा|उर्दू]] | | -[[उर्दू भाषा|उर्दू]] |
| - [[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]] | | -[[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]] |
| | ||'खड़ी बोली' नाम को कुछ विद्वान [[ब्रजभाषा]] के सापेक्ष्य मानते हैं और यह प्रतिपादन करते हैं कि [[लल्लू लालजी]] (1803 ई.) से बहुत पूर्व यह नाम ब्रजभाषा की मधुर मिठास की तुलना में उस बोली को दिया गया था, जिससे कालांतर में मानक [[हिन्दी]] और [[उर्दू]] का विकास हुआ। ये विद्वान 'खड़ी' शब्द से 'कर्कशता', 'कटुता', 'खरापन', 'खड़ापन' आदि अर्थ लेते हैं। वास्तव में '[[खड़ी बोली]]' में प्रयुक्त 'खड़ी' शब्द गुणबोधक विशेषण है और किसी [[भाषा]] के नामकरण में गुण-अवगुण-प्रधान दृष्टिकोण अधिकांश: अन्य भाषा-सापेक्ष्य होती है। [[अपभ्रंश]] और उर्दू आदि इसी श्रेणी के नाम हैं, अत: 'खड़ी' शब्द अन्य भाषा सापेक्ष्य अवश्य है, किंतु इसका मूल खड़ी है अथवा खरी? और इसका प्रथम मूल अर्थ क्या है? इसके लिए शब्द के [[इतिहास]] की खोज आवश्यक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[खड़ी बोली]] |
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| {प्रादेशिक बोलियों के साथ [[ब्रज]] या मध्य देश की भाषा का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया? | | {प्रादेशिक बोलियों के साथ [[ब्रज]] या मध्य देश की [[भाषा]] का आश्रय लेकर एक सामान्य साहित्यिक भाषा स्वीकृत हुई, जिसे चारणों ने नाम दिया- |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| - [[डिंगल|डिंगल भाषा]] | | -[[डिंगल|डिंगल भाषा]] |
| - मेवाड़ी भाषा | | -[[मेवाड़ी बोली|मेवाड़ी भाषा]] |
| - [[मारवाड़ी भाषा]] | | -[[मारवाड़ी भाषा]] |
| + पिंगल भाषा | | +[[पिंगल|पिंगल भाषा]] |
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| {निम्नलिखित में से कौन [[प्रेमचंद]] की एक रचना है? | | {निम्नलिखित में से कौन-सी [[प्रेमचंद]] की एक रचना है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +पंच-परमेश्वर | | +[[पंच-परमेश्वर -प्रेमचंद|पंच-परमेश्वर]] |
| -उसने कहा था | | -उसने कहा था |
| -ताई | | -ताई |
| -खड़ी बोली | | -खड़ी बोली |
| | ||[[चित्र:Premchand.jpg|right|100px|प्रेमचंद]]'मुंशी प्रेमचंद' का वास्तविक नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''' था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में जब [[हिन्दी]] में काम करने की तकनीकी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं, फिर भी इतना काम करने वाला लेखक [[मुंशी प्रेमचन्द]] के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं हुआ था। उन्होंने हिन्दी में शेख़ सादी पर एक छोटी-सी पुस्तक लिखी थी, टॉल्सटॉय की कुछ कहानियों का हिन्दी में [[अनुवाद]] किया और ‘प्रेम-पचीसी’ की कुछ कहानियों का रूपान्तर भी हिन्दी में कर रहे थे। ये कहानियाँ ‘सप्त-सरोज’ शीर्षक से [[हिन्दी]] संसार के सामने सर्वप्रथम सन् [[1917]] में आयी थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]] |
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| {'बाँगरू' बोली का किस बोली से निकट सम्बन्ध है? | | {[[वीर रस]] का स्थायी भाव क्या होता है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| - [[कन्नौजी बोली|कन्नौजी]] | | -रति |
| - [[बुन्देली बोली|बुन्देली]] | | +उत्साह |
| - [[ब्रजभाषा]]
| | -[[हास्य रस|हास्य]] |
| +खड़ीबोली
| | -परिहास |
| | | ||[[श्रृंगार रस|श्रृंगार]] के साथ स्पर्धा करने वाला [[वीर रस]] है। [[श्रृंगार रस|श्रृंगार]], [[रौद्र रस|रौद्र]] तथा [[वीभत्स रस|वीभत्स]] के साथ वीर को भी [[भरत मुनि]] ने मूल रसों में परिगणित किया है। वीर रस से ही [[अदभुत रस]] की उत्पत्ति बतलाई गई है। वीर रस का 'वर्ण' 'स्वर्ण' अथवा 'गौर' तथा [[देवता]] [[इन्द्र]] कहे गये हैं। यह उत्तम प्रकृति वालों से सम्बद्ध है तथा इसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ है। [[अभिनवगुप्त]] ने तो उत्साह को [[शान्त रस]] का भी स्थायी माना है। कुछ लोग उत्साह को वीर रस का स्थायी भाव नहीं मानते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वीर रस]] |
| {[[भारत]] में सबसे कम बोला जाने वाला भाषायी समूह है?
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| |type="()"}
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| -इण्डो-आर्यन | |
| -द्रविड़
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| -ऑस्ट्रिक
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| +चीनी-तिब्बती
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| </quiz> | | </quiz> |
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पंक्ति 52: |
| {{हिन्दी सामान्य ज्ञान}} | | {{हिन्दी सामान्य ज्ञान}} |
| {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} |
| {{प्रचार}}
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| [[Category:सामान्य ज्ञान]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान]] |
| [[Category:हिन्दी सामान्य ज्ञान]] | | [[Category:हिन्दी सामान्य ज्ञान]] |
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| [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] | | [[Category:सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी]] |
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