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'''कालूजी महाराज का मेला''' [[मध्य प्रदेश]] में [[खरगौन ज़िला|खरगौन ज़िले]] के पिपल्याखुर्द गाँव में एक [[महीने]] तक लगता है। यह एक विशाल मेला है, जिसमें पशुओं को ख़रीदा और बेचा जाता है। कहा जाता है कि लगभग 200 [[वर्ष]] पहले संत कालूजी महाराज यहाँ अपनी शक्ति से इन्सानों और जानवरों की बीमारी ठीक किया करते थे।


*खरगौन ज़िले के ग्राम पिपल्याखुर्द में संत श्री कालूजी महाराज के नाम पर यह पशु मेला लगता है।
*खरगौन ज़िले के ग्राम पिपल्याखुर्द में संत श्री कालूजी महाराज के नाम पर यह पशु मेला लगता है।
*जागीरदारी समय से लगने वाला निमाड़ का यह मेला [[मध्य प्रदेश]] के अलावा [[महाराष्ट्र]] में भी ख्याति प्राप्त है।
*जागीरदारी समय से लगने वाला निमाड़ का यह मेला [[मध्य प्रदेश]] के अलावा [[महाराष्ट्र]] में भी ख्याति प्राप्त है।
*मेले के प्रति किसानों में इतना आकर्षण है कि मेला शुरू होने के पाँच-छः दिन पहले से ही पशुओं की आवक शुरू हो जाती है।
*मेले के प्रति किसानों में इतना आकर्षण है कि मेला शुरू होने के पाँच-छह दिन पहले से ही पशुओं की आवक शुरू हो जाती है।
*बड़वाह-धामनोद राजमार्ग पर पिपल्याखुर्द से एक कि.मी. की दूरी पर सिंगाजी के पुत्र कालूजी महाराज ने समाधि ली थी। संतश्री की लोकप्रियता का बखान आज भी बुजुर्ग लोग करते हैं।
*बड़वाह-धामनोद राजमार्ग पर पिपल्याखुर्द से एक कि.मी. की दूरी पर सिंगाजी के पुत्र कालूजी महाराज ने समाधि ली थी। संतश्री की लोकप्रियता का बखान आज भी बुजुर्ग लोग करते हैं।
*निमाड़ी भजनों में भी संतश्री का विशेष उल्लेख आता है। समाधि को लेकर निमाड़ में किंवदंती भी प्रचलित हैं। समाधि स्थल पर अखंड ज्योत भी जलती रहती है।
*निमाड़ी भजनों में भी संतश्री का विशेष उल्लेख आता है। समाधि को लेकर निमाड़ में किंवदंती भी प्रचलित हैं। समाधि स्थल पर अखंड ज्योत भी जलती रहती है।

11:05, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

कालूजी महाराज का मेला मध्य प्रदेश में खरगौन ज़िले के पिपल्याखुर्द गाँव में एक महीने तक लगता है। यह एक विशाल मेला है, जिसमें पशुओं को ख़रीदा और बेचा जाता है। कहा जाता है कि लगभग 200 वर्ष पहले संत कालूजी महाराज यहाँ अपनी शक्ति से इन्सानों और जानवरों की बीमारी ठीक किया करते थे।

  • खरगौन ज़िले के ग्राम पिपल्याखुर्द में संत श्री कालूजी महाराज के नाम पर यह पशु मेला लगता है।
  • जागीरदारी समय से लगने वाला निमाड़ का यह मेला मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र में भी ख्याति प्राप्त है।
  • मेले के प्रति किसानों में इतना आकर्षण है कि मेला शुरू होने के पाँच-छह दिन पहले से ही पशुओं की आवक शुरू हो जाती है।
  • बड़वाह-धामनोद राजमार्ग पर पिपल्याखुर्द से एक कि.मी. की दूरी पर सिंगाजी के पुत्र कालूजी महाराज ने समाधि ली थी। संतश्री की लोकप्रियता का बखान आज भी बुजुर्ग लोग करते हैं।
  • निमाड़ी भजनों में भी संतश्री का विशेष उल्लेख आता है। समाधि को लेकर निमाड़ में किंवदंती भी प्रचलित हैं। समाधि स्थल पर अखंड ज्योत भी जलती रहती है।
  • मेला अवधि के दौरान कालूजी महाराज के वंशज खजूरी से यहाँ आकर मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं।
  • इस मेले में निमाड़ी नस्ल के बैलों के साथ राजस्थानी नस्ल के बैल बिकने आते हैं। निमाड़ी नस्ल की 'केड़ा' जोड़ी महाराष्ट्र के किसानों की पहली पसंद होते हैं।
  • किसानों के अनुसार कपास की खेती के लिए निमाड़ी नस्ल के बैल मजबूती में बेजोड़ माने जाते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कालूजी महाराज की समाधि पर मेला (दिसम्बर)। । अभिगमन तिथि: 01 दिसम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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