"रामकथा साहित्य (जैन)": अवतरणों में अंतर
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*मर्यादा पुरुषोत्तम [[राम|रामचन्द्र]] इतने अधिक लोकप्रिय हुए हैं कि उनका वर्णन न केवल भारतीय साहित्य में हुआ है अपितु भारतेतर देशों के साहित्य में भी सम्मान के साथ हुआ है। *भारतीय साहित्य में [[जैन]], [[वैदिक]] और [[बौद्ध]] साहित्य में भी वह समान रूप से उपलब्ध है। | *मर्यादा पुरुषोत्तम [[राम|रामचन्द्र]] इतने अधिक लोकप्रिय हुए हैं कि उनका वर्णन न केवल भारतीय साहित्य में हुआ है अपितु भारतेतर देशों के साहित्य में भी सम्मान के साथ हुआ है। *भारतीय साहित्य में [[जैन]], [[वैदिक]] और [[बौद्ध]] साहित्य में भी वह समान रूप से उपलब्ध है। | ||
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07:12, 20 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र इतने अधिक लोकप्रिय हुए हैं कि उनका वर्णन न केवल भारतीय साहित्य में हुआ है अपितु भारतेतर देशों के साहित्य में भी सम्मान के साथ हुआ है। *भारतीय साहित्य में जैन, वैदिक और बौद्ध साहित्य में भी वह समान रूप से उपलब्ध है।
- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओं एवं प्रान्तीय विविध भाषाओं में इसके ऊपर उच्च कोटि के ग्रन्थ विद्यमान हैं। इस पर पुराण, काव्य-महाकाव्य, नाटक-उपनाटक आदि भी अच्छी संख्या में उपलब्ध हैं।
- जिस किसी लेखक ने रामकथा का आश्रय लिखा उसके नीरस वचनों में भी रामकथा ने जान डाल दी।
जैन रामकथा के दो रूप
जैन साहित्य में रामकथा की दो धाराएँ उपलब्ध हैं-
- एक विमलसूरि के प्राकृत पउमचरिय वर रविषेण के संस्कृत पद्मचरित की तथा
- दूसरी गुणभद्र के उत्तरपुराण की।
- यहाँ हम वीर निर्वाण संवत् 1204 अथवा विक्रम संवत् 734 में रविषेणाचार्य के द्वारा विरचित पद्मपुराण (पद्मचरित) की चर्चा कर रहे हैं। ध्यातव्य है कि जैन परम्परा में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मान्यता त्रेसठ शलाकापुरुषों में है। उनका एक नाम पद्म भी था। जैनपुराणों एवं चरित काव्यों में यही नाम अधिक प्रचलित रहा हे। जैन काव्यकारों ने राम का चरित्र पउमचरिउ,
पउमचरिउं, पद्मपुराण, पद्मचरित आदि अनेक नामों से अपभ्रंश, प्राकृत, संस्कृत आदि भाषाओं में प्रस्तुत किया है।
- आचार्य रविषेण का प्रस्तुत पद्मपुराण संस्कृत के सर्वोत्कृष्ट चरित प्रधान महाकाव्यों में परिगणित है। पुरा होकर भी काव्यकला, मनोविश्लेषण, चरित्रचित्रण आदि में यह इतना अद्भुत है कि इसकी तुलना अन्य किसी पुराण से नहीं की जा सकती। काव्य लालित्य इसमें इतना है कि कवि भी अन्तर्वाणी के रूप में मानस-हिम-कन्दरा से विस्तृत यह काव्यधारा मानो साक्षात मन्दाकिनी ही है।
- विषयवस्तु की दृष्टि से कवि ने मुख्य कथानक के साथ-साथ विद्याधर लोक, अंजनापवनंजय, सुकुमाल, सुकौशल आदि राम समकालीन महापुरुषों का भी चित्रण किया है। उससे इसकी रोचकता इतनी बढ़ गई है कि एक बार पढ़ना प्रारम्भ कर छोड़ने की इच्छा नहीं होगी। पद्मचरित में वर्णित कथा निम्नांकित छह विभागों में विभाजित की गई है-
- विद्याधर काण्ड,
- राक्षस तथा वानर वंश का वर्णन,
- राम और सीता का जन्म तथा विवाह,
- वनभ्रमण,
- सीता हरण और खोज,
- युद्ध और
- उत्तरचरित।
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