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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[राम]] और [[हनुमान]] का मिलन किस [[पर्वत]] के पास हुआ था?
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| +[[ऋष्यमूक पर्वत|ऋष्यमूक]]
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| -[[गंधमादन पर्वत|गंधमादन]]
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| -[[कैलास पर्वत|कैलास]]
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| -[[पारसनाथ शिखर|पारसनाथ]]
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| ||[[चित्र:Ram-Hanuman.jpg|right|100px|राम-हनुमान मिलन]][[वाल्मीकि रामायण]] में वर्णित वानरों की राजधानी [[किष्किंधा]] के निकट 'ऋष्यमूक पर्वत' स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत [[रामायण]] की घटनाओं से सम्बद्ध [[दक्षिण भारत]] का एक पवित्र पर्वत है। यहाँ [[विरूपाक्ष मन्दिर]] के पास से ऋष्यमूक पर्वत के लिए मार्ग जाता है। यहीं पर [[हनुमान]] की भेंट श्री राम से हुई, जिनके द्वारा [[सुग्रीव]] और [[राम]] की मित्रता हुई। यहाँ [[तुंगभद्रा नदी]] [[धनुष अस्त्र|धनुष]] के आकार में बहती है। [[सुग्रीव]] किष्किंधा से निष्कासित होने पर अपने भाई [[बालि]] के डर से इसी [[पर्वत]] पर छिप कर रहता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋष्यमूक पर्वत|ऋष्यमूक]]
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| {[[हनुमान]] के [[पिता]] का नाम क्या था?
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| -[[सुग्रीव]]
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| -[[जामवन्त]]
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| +[[केसरी वानर राज|केसरी]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| || '''हनुमान''' केसरी और [[अंजना]] (अंजनी) देवी के पुत्र थे। अंजना वास्तव में पुन्जिकस्थला नाम की एक स्वर्ग अप्सरा थी, जो एक शाप के कारण नारी वानर के रूप में धरती पर जन्मी। उस शाप का प्रभाव भगवान [[शिव]] के अंश को जन्म देने के बाद ही समाप्त होने का योग था। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केसरी वानर राज|केसरी]]
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| {निम्न में से किसने [[हनुमान]] की ठोड़ी पर [[वज्र अस्त्र|वज्र]] से प्रहार किया था?
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| +[[इन्द्र]]
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| -[[परशुराम]]
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| -[[रावण]]
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| -[[मेघनाद]]
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| ||[[चित्र:Hanuman.jpg|right|100px|हनुमान]]जब [[राहु]] ने देखा कि [[हनुमान]] [[सूर्य]] को निगलने जा रहा है, तब वह [[इन्द्र]] के पास गया और बोला- 'मैं सूर्य को ग्रसने गया था, किंतु वहाँ तो कोई और ही जा रहा है।' इन्द्र क्रुद्ध होकर [[ऐरावत]] पर बैठकर चल पड़े। राहु उनसे भी पहले घटनास्थल पर आ पहुँचा। हनुमान ने उसे भी [[फल]] समझा तथा उसकी ओर झपटे। उसने इन्द्र को आवाज़ दी। हनुमान ने ऐरावत को देखा और उसे भी बड़ा फल जानकर वे पकड़ने के लिए बढ़े। इन्द्र ने क्रुद्ध होकर अपने [[वज्र अस्त्र|वज्र]] से प्रहार किया, जिससे हनुमान की बायीं ठोड़ी टूट गयी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हनुमान]]
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| {निम्नलिखित में से [[शत्रुघ्न]] के पुत्र कौन थे?
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| -[[अंगद |अंगद]]
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| +[[सुबाहु (शत्रुघ्न पुत्र)|सुबाहु]]
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| -[[अंशुमान]]
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| -[[कुश]]
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| ||'सुबाहु' [[राम]] के भाई [[शत्रुघ्न]] के पुत्र थे। [[विदिशा]] नगरी के विषय में [[रामायण]] में एक परंपरा का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार रामचन्द्र ने इस नगरी को शत्रुघ्न को सौंप दिया था। शत्रुघ्न के दो पुत्र उत्पन्न हुये थे, जिनमें [[सुबाहु (शत्रुघ्न पुत्र)|सुबाहु]] छोटा पुत्र था। उन्होंने इसे विदिशा नगरी का शासक नियुक्त कर दिया था। थोड़े ही समय में यह नगर अपनी अनुकूल परिस्थितियों के कारण पनप उठा और समस्त [[भारत]] में प्रसिद्ध हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुबाहु (शत्रुघ्न पुत्र)|सुबाहु]]
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| {किस [[ऋषि]] ने श्री [[राम]] के सामने ही योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर लिया?
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| -[[जैमिनि]]
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| -[[त्रिजट मुनि|त्रिजट]]
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| -[[गौतम ऋषि|गौतम]]
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| +[[शरभंग ऋषि|शरभंग]]
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| {[[श्रीराम]] की सेना के दो अभियंता वानरों के नाम क्या थे? | | {[[श्रीराम]] की सेना के दो अभियंता वानरों के नाम क्या थे? |
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| -शतध्वज | | -शतध्वज |
| -कपिध्वज | | -कपिध्वज |
| -मकरध्वज | | -[[मकरध्वज]] |
| ||'जनक' [[मिथिला|मिथिला महाजनपद]] के राजा और [[श्रीराम]] के श्वसुर थे। इनका वास्तविक नाम 'सिरध्वज' और इनके भाई का नाम 'कुशध्वज' था। [[सीता]] महाराज [[जनक]] की ही पुत्री थीं, जिनका विवाह [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के ज्येष्ठ पुत्र [[राम]] से सम्पन्न हुआ था। जनक अपने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध थे। उनके पूर्वजों में [[निमि]] के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। भगवान [[शिव]] का [[धनुष अस्त्र|धनुष]] उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। जब राजा जनक ने एक [[यज्ञ]] किया, तब [[विश्वामित्र]] तथा मुनियों ने [[राम]] और [[लक्ष्मण]] को भी उस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि उन दोनों को शिव-धनुष के दर्शन करने का अवसर भी प्राप्त होगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनक]] | | ||'जनक' [[मिथिला|मिथिला महाजनपद]] के राजा और [[श्रीराम]] के श्वसुर थे। इनका वास्तविक नाम 'सिरध्वज' और इनके भाई का नाम 'कुशध्वज' था। [[सीता]] महाराज [[जनक]] की ही पुत्री थीं, जिनका विवाह [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के ज्येष्ठ पुत्र [[राम]] से सम्पन्न हुआ था। जनक अपने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध थे। उनके पूर्वजों में [[निमि]] के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। भगवान [[शिव]] का [[धनुष अस्त्र|धनुष]] उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। जब राजा जनक ने एक [[यज्ञ]] किया, तब [[विश्वामित्र]] तथा मुनियों ने [[राम]] और [[लक्ष्मण]] को भी उस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि उन दोनों को शिव-धनुष के दर्शन करने का अवसर भी प्राप्त होगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनक]] |
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