अध्यात्मरामायण वेदांत दर्शन पर आधारित भगवान श्रीराम की भक्ति का प्रतिपादन करने वाला रामचरितविषयक संस्कृत भाषा का ग्रंथ है। इसे 'अध्यात्म-रामचरित'[1] तथा 'आध्यात्मिक रामसंहिता'[2] भी कहा गया है।
- यह ग्रंथ उमा-महेश्वर-संवाद के रूप में है और इसमें सात कांड एवं 65 अध्याय हैं, जिन्हें प्राय: महर्षि व्यास द्वारा रचित और 'ब्रह्मांडपुराण' के 'उत्तरखंड' का एक अंश भी बतलाया जाता है, किंतु यह उसके किसी भी उपलब्ध संस्करण में नहीं पाया जाता।
- 'भविष्यपुराण' (प्रतिसर्ग पर्व) के अनुसार इसे भगवान शिव के किसी उपासक 'राम शर्मन' ने रचा, जिसे कुछ लोग स्वामी रामानंद भी समझते हैं, कितु यह मत सर्वसम्मत नहीं है।
- अध्यात्मरामायण का रचना काल ईस्वी 14वीं सदी के पहले नहीं माना जाता और साधारणत: यह 15वीं सदी ठहराया जाता है।
- इस ग्रंथ पर 'अद्वैतमत' के अतिरिक्त योगसाधना एवं तंत्रों का भी प्रभाव लक्षित होता है।
- श्रीराम के भक्तों के लिए अध्यात्मरामायण को अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है। इसमें राम, विष्णु के अवतार होने के साथ ही, 'परब्रह्म' या 'निर्गुण ब्रह्मा' भी माने गए और सीता की 'योगमाया' कहा गया है।
- गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस' अध्यात्मरामायण से बहुत प्रभावित है।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1-2-4
- ↑ 6-16-33
- ↑ अध्यात्मरामायण (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 23 जून, 2014।