"मुझे माफ़ कर दो -राजेंद्र प्रसाद": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (Adding category Category:राजेन्द्र प्रसाद (को हटा दिया गया हैं।)) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "रूचि" to "रुचि") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
}} | }} | ||
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | <poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | ||
[[राष्ट्रपति भवन]] बारह वर्षों के लिए राजेन्द्र प्रसाद का घर था। उसकी राजसी भव्यता और शान | [[राष्ट्रपति भवन]] बारह वर्षों के लिए राजेन्द्र प्रसाद का घर था। उसकी राजसी भव्यता और शान सुरुचिपूर्ण सादगी में बदल गई थी। राष्ट्रपति का एक पुराना नौकर था, तुलसी। एक दिन सुबह कमरे की झाड़पोंछ करते हुए उससे राजेन्द्र प्रसाद जी के डेस्क से एक हाथी दांत का पेन नीचे ज़मीन पर गिर गया। पेन टूट गया और स्याही कालीन पर फैल गई। राजेन्द्र प्रसाद बहुत गुस्सा हुए। यह पेन किसी की भेंट थी और उन्हें बहुत ही पसन्द थी। तुलसी आगे भी कई बार लापरवाही कर चुका था। उन्होंने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुरन्त तुलसी को अपनी निजी सेवा से हटा दिया। | ||
उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे। कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और विदेशी पदाधिकारी उनसे मिलने आये। मगर सारा दिन काम करते हुए उनके दिल में एक कांटा सा चुभता रहा था। उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है। जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया। पुराना सेवक अपनी ग़लती पर डरता हुआ कमरे के भीतर आया। उसने देखा कि राष्ट्रपति सिर झुकाये और हाथ जोड़े उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, | उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे। कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और विदेशी पदाधिकारी उनसे मिलने आये। मगर सारा दिन काम करते हुए उनके दिल में एक कांटा सा चुभता रहा था। उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है। जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया। पुराना सेवक अपनी ग़लती पर डरता हुआ कमरे के भीतर आया। उसने देखा कि राष्ट्रपति सिर झुकाये और हाथ जोड़े उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, | ||
पंक्ति 51: | पंक्ति 51: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{प्रेरक प्रसंग}} | |||
[[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:प्रेरक प्रसंग]] | [[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:प्रेरक प्रसंग]] | ||
[[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:साहित्य कोश]] | ||
[[Category:राजेन्द्र प्रसाद]] | [[Category:राजेन्द्र प्रसाद]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
07:50, 3 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
मुझे माफ़ कर दो -राजेंद्र प्रसाद
| |
विवरण | राजेंद्र प्रसाद |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | राजेंद्र प्रसाद के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
राष्ट्रपति भवन बारह वर्षों के लिए राजेन्द्र प्रसाद का घर था। उसकी राजसी भव्यता और शान सुरुचिपूर्ण सादगी में बदल गई थी। राष्ट्रपति का एक पुराना नौकर था, तुलसी। एक दिन सुबह कमरे की झाड़पोंछ करते हुए उससे राजेन्द्र प्रसाद जी के डेस्क से एक हाथी दांत का पेन नीचे ज़मीन पर गिर गया। पेन टूट गया और स्याही कालीन पर फैल गई। राजेन्द्र प्रसाद बहुत गुस्सा हुए। यह पेन किसी की भेंट थी और उन्हें बहुत ही पसन्द थी। तुलसी आगे भी कई बार लापरवाही कर चुका था। उन्होंने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुरन्त तुलसी को अपनी निजी सेवा से हटा दिया।
उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे। कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और विदेशी पदाधिकारी उनसे मिलने आये। मगर सारा दिन काम करते हुए उनके दिल में एक कांटा सा चुभता रहा था। उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है। जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया। पुराना सेवक अपनी ग़लती पर डरता हुआ कमरे के भीतर आया। उसने देखा कि राष्ट्रपति सिर झुकाये और हाथ जोड़े उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने धीमे स्वर में कहा,
"तुलसी मुझे माफ़ कर दो।"
तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया। राष्ट्रपति ने फिर नम्र स्वर में दोहराया,
"तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?"
इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आंखों में आंसू आ गये।
- राजेंद्र प्रसाद से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए राजेंद्र प्रसाद के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ
|
|
|
|
|