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[[विनोबा भावे|आचार्य विनोबा भावे]] अपने ज्ञान और सद्विचारों के कारण समाज के हर वर्ग में लोकप्रिय थे। लोग दूर-दूर से उनसे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते और संतुष्ट होकर जाते। हर विषय पर विनोबा भावे के विचार इतने सरल और स्पष्ट होते कि वे सुनने वाले के [[हृदय]] में सीधे उतर जाते थे। उनके शिष्यों में कई विदेशी भी शामिल थे। एक बार आचार्य विनोबा भावे पदयात्रा करते [[अजमेर]] पहुंचे। वहां उन्हें एक अमेरिकी पर्यटक मिला जो उनसे | [[विनोबा भावे|आचार्य विनोबा भावे]] अपने ज्ञान और सद्विचारों के कारण समाज के हर वर्ग में लोकप्रिय थे। लोग दूर-दूर से उनसे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते और संतुष्ट होकर जाते। हर विषय पर विनोबा भावे के विचार इतने सरल और स्पष्ट होते कि वे सुनने वाले के [[हृदय]] में सीधे उतर जाते थे। उनके शिष्यों में कई विदेशी भी शामिल थे। एक बार आचार्य विनोबा भावे पदयात्रा करते [[अजमेर]] पहुंचे। वहां उन्हें एक अमेरिकी पर्यटक मिला जो उनसे काफ़ी प्रभावित था। उस अमेरिकी ने विनोबा भावे के साथ कुछ दिन बिताए और उनसे कई विषयों पर चर्चा की। विदा लेते वक्त उसने कहा, 'मैंने आपसे और आपके देश से काफ़ी कुछ सीखा और अब मैं अपने मुल्क वापस जा रहा हूं। अपने देशवासियों को मैं आपकी ओर से क्या संदेश दूं, जिससे उन्हें लाभ पहुंचे?' विनोबा जी कुछ क्षण के लिए गंभीर हो गए फिर बोले, 'मैं क्या संदेश दे सकता हूं। मैं तो बहुत छोटा आदमी हूं और आपका देश तो बहुत ही बड़ा है। इतने बड़े देश को कोई कैसे उपदेश दे सकता है?' लेकिन अमेरिकी पर्यटक नहीं माना। जब उसने काफ़ी जिद की तो विनोबा बोले, 'अपने देशवासियों से कहना कि वे अपने कारखानों में साल में तीन सौ पैंसठ दिन काम करके खूब हथियार बनाएं, क्योंकि तुम्हारे आयुध कारखानों और नागरिकों को काम चाहिए। काम नहीं होगा, तो बेरोजगारी फैलेगी। किंतु जितने भी हथियार बनाए जाएं उन्हें तीन सौ पैंसठवें दिन समुद्र में फेंक दिया जाए।' विनोबा जी की बात का मर्म समझकर अमेरिकी पर्यटक का सिर शर्म से झुक गया। | ||
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10:54, 13 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
बेकार के हथियार -विनोबा भावे
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विवरण | विनोबा भावे |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | विनोबा भावे के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
आचार्य विनोबा भावे अपने ज्ञान और सद्विचारों के कारण समाज के हर वर्ग में लोकप्रिय थे। लोग दूर-दूर से उनसे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते और संतुष्ट होकर जाते। हर विषय पर विनोबा भावे के विचार इतने सरल और स्पष्ट होते कि वे सुनने वाले के हृदय में सीधे उतर जाते थे। उनके शिष्यों में कई विदेशी भी शामिल थे। एक बार आचार्य विनोबा भावे पदयात्रा करते अजमेर पहुंचे। वहां उन्हें एक अमेरिकी पर्यटक मिला जो उनसे काफ़ी प्रभावित था। उस अमेरिकी ने विनोबा भावे के साथ कुछ दिन बिताए और उनसे कई विषयों पर चर्चा की। विदा लेते वक्त उसने कहा, 'मैंने आपसे और आपके देश से काफ़ी कुछ सीखा और अब मैं अपने मुल्क वापस जा रहा हूं। अपने देशवासियों को मैं आपकी ओर से क्या संदेश दूं, जिससे उन्हें लाभ पहुंचे?' विनोबा जी कुछ क्षण के लिए गंभीर हो गए फिर बोले, 'मैं क्या संदेश दे सकता हूं। मैं तो बहुत छोटा आदमी हूं और आपका देश तो बहुत ही बड़ा है। इतने बड़े देश को कोई कैसे उपदेश दे सकता है?' लेकिन अमेरिकी पर्यटक नहीं माना। जब उसने काफ़ी जिद की तो विनोबा बोले, 'अपने देशवासियों से कहना कि वे अपने कारखानों में साल में तीन सौ पैंसठ दिन काम करके खूब हथियार बनाएं, क्योंकि तुम्हारे आयुध कारखानों और नागरिकों को काम चाहिए। काम नहीं होगा, तो बेरोजगारी फैलेगी। किंतु जितने भी हथियार बनाए जाएं उन्हें तीन सौ पैंसठवें दिन समुद्र में फेंक दिया जाए।' विनोबा जी की बात का मर्म समझकर अमेरिकी पर्यटक का सिर शर्म से झुक गया।
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