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इस्लामी अध्यात्मवाद व क़ानून के अलावा, अरबी व्याकरण व [[साहित्य]], गणित, तर्कशास्त्र और कभी-कभी प्राकृतिक [[विज्ञान]] भी मदरसों में पढाए जाते थे। अध्यापन निःशुल्क था व भोजन, आवास उपलब्ध कराने के अलावा चिकित्सकीय देखभाल भी की जाती थी। शिक्षण सामान्यतः आंगन में होता था व इसमें मुख्यतः पाठ्य-पुस्तकों व शिक्षक के उपदेशों को कंठस्थ करना होता था। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र जारी करता था, जिसमें उसके शब्दों को दोहराने की अनुमति होती थी। शहज़ादे व अमीर परिवार भवनों के निर्माण और विद्यार्थियों व शिक्षकों को वृत्ति  देने के लिए दान में धन देते थे। 12वीं शताब्दी के अंत तक दमिश्क, [[बग़दाद]], मोसल व अधिकांश अन्य [[मुस्लिम]] शहरों में मदरसे फलफूल रहे थे।
इस्लामी अध्यात्मवाद व क़ानून के अलावा, अरबी व्याकरण व [[साहित्य]], गणित, तर्कशास्त्र और कभी-कभी प्राकृतिक [[विज्ञान]] भी मदरसों में पढाए जाते थे। अध्यापन निःशुल्क था व भोजन, आवास उपलब्ध कराने के अलावा चिकित्सकीय देखभाल भी की जाती थी। शिक्षण सामान्यतः आंगन में होता था व इसमें मुख्यतः पाठ्य-पुस्तकों व शिक्षक के उपदेशों को कंठस्थ करना होता था। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र जारी करता था, जिसमें उसके शब्दों को दोहराने की अनुमति होती थी। शहज़ादे व अमीर परिवार भवनों के निर्माण और विद्यार्थियों व शिक्षकों को वृत्ति  देने के लिए दान में धन देते थे। 12वीं शताब्दी के अंत तक दमिश्क, [[बग़दाद]], मोसल व अधिकांश अन्य [[मुस्लिम]] शहरों में मदरसे फलफूल रहे थे।
==भारत में मदरसे==
==भारत में मदरसे==
[[भारत]] में मदरसे [[दिल्ली सल्तनत]] काल में 12वीं शताब्दी में शुरू हुए होंगे, लेकिन अधिक प्रसिद्ध मदरसे [[मुग़ल काल]] के अंत में उभरे। विद्वान शाह वली अल्लाह के पिता शाह अब्दुर्रहीम ने 17वीं शताब्दी के अंत के [[दिल्ली]] में सर्वप्रथम औपचारिक संस्थानों में से एक मदरसा-ए रहीमिया स्थापित किया। [[लखनऊ]] में मुल्ला निज़ामुद्दीन सिहलवी, जिन्होंने मदरसा-ए फ़िरंगी महल की स्थापना 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में की थी, ने उपमहाद्वीप के कई मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम दरस 4-निज़ामी का सूत्रपात किया। 1867 में देवबंद, [[उत्तर प्रदेश]] में मुहम्मद आबिद हुसैन व अन्य ने मदरसा-ए दारूल उलूम की स्थापना की। इसे इस्लामी अध्यात्मवाद के विश्व के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में से एक माना जाता है।
[[भारत]] में मदरसे [[दिल्ली सल्तनत]] काल में 12वीं शताब्दी में शुरू हुए होंगे, लेकिन अधिक प्रसिद्ध मदरसे [[मुग़ल काल]] के अंत में उभरे। विद्वान् शाह वली अल्लाह के पिता शाह अब्दुर्रहीम ने 17वीं शताब्दी के अंत के [[दिल्ली]] में सर्वप्रथम औपचारिक संस्थानों में से एक मदरसा-ए रहीमिया स्थापित किया। [[लखनऊ]] में मुल्ला निज़ामुद्दीन सिहलवी, जिन्होंने मदरसा-ए फ़िरंगी महल की स्थापना 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में की थी, ने उपमहाद्वीप के कई मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम दरस 4-निज़ामी का सूत्रपात किया। 1867 में देवबंद, [[उत्तर प्रदेश]] में मुहम्मद आबिद हुसैन व अन्य ने मदरसा-ए दारूल उलूम की स्थापना की। इसे इस्लामी अध्यात्मवाद के विश्व के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में से एक माना जाता है।
इन विद्यालयों के पूर्व छात्रों ने समूचे दक्षिण एशिया में कई छोटे मदरसों की स्थापना की है और उनके पाठ्यक्रमों का [[मिस्र]] तक के विद्यालयों पर प्रभाव रहा है।
इन विद्यालयों के पूर्व छात्रों ने समूचे दक्षिण एशिया में कई छोटे मदरसों की स्थापना की है और उनके पाठ्यक्रमों का [[मिस्र]] तक के विद्यालयों पर प्रभाव रहा है।



14:36, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

मदरसा

मदरसा एक अरबी शब्द है और जिसका अर्थ है 'विद्यालय'। तुर्की मेद्रेसे, इस्लाम में उच्च शिक्षा का एक संस्थान है। मदरसा 20वीं शताब्दी तक क़ुरान की शिक्षाओं पर केंद्रत पाठ्यक्रम के साथ एक अध्यात्मवादी गुरुकुल व क़ानून के विद्यालय के रूप में मौजूद रहा।

पाठ्यक्रम

इस्लामी अध्यात्मवाद व क़ानून के अलावा, अरबी व्याकरण व साहित्य, गणित, तर्कशास्त्र और कभी-कभी प्राकृतिक विज्ञान भी मदरसों में पढाए जाते थे। अध्यापन निःशुल्क था व भोजन, आवास उपलब्ध कराने के अलावा चिकित्सकीय देखभाल भी की जाती थी। शिक्षण सामान्यतः आंगन में होता था व इसमें मुख्यतः पाठ्य-पुस्तकों व शिक्षक के उपदेशों को कंठस्थ करना होता था। शिक्षक अपने विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र जारी करता था, जिसमें उसके शब्दों को दोहराने की अनुमति होती थी। शहज़ादे व अमीर परिवार भवनों के निर्माण और विद्यार्थियों व शिक्षकों को वृत्ति देने के लिए दान में धन देते थे। 12वीं शताब्दी के अंत तक दमिश्क, बग़दाद, मोसल व अधिकांश अन्य मुस्लिम शहरों में मदरसे फलफूल रहे थे।

भारत में मदरसे

भारत में मदरसे दिल्ली सल्तनत काल में 12वीं शताब्दी में शुरू हुए होंगे, लेकिन अधिक प्रसिद्ध मदरसे मुग़ल काल के अंत में उभरे। विद्वान् शाह वली अल्लाह के पिता शाह अब्दुर्रहीम ने 17वीं शताब्दी के अंत के दिल्ली में सर्वप्रथम औपचारिक संस्थानों में से एक मदरसा-ए रहीमिया स्थापित किया। लखनऊ में मुल्ला निज़ामुद्दीन सिहलवी, जिन्होंने मदरसा-ए फ़िरंगी महल की स्थापना 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में की थी, ने उपमहाद्वीप के कई मदरसों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम दरस 4-निज़ामी का सूत्रपात किया। 1867 में देवबंद, उत्तर प्रदेश में मुहम्मद आबिद हुसैन व अन्य ने मदरसा-ए दारूल उलूम की स्थापना की। इसे इस्लामी अध्यात्मवाद के विश्व के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में से एक माना जाता है। इन विद्यालयों के पूर्व छात्रों ने समूचे दक्षिण एशिया में कई छोटे मदरसों की स्थापना की है और उनके पाठ्यक्रमों का मिस्र तक के विद्यालयों पर प्रभाव रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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