"बैजनाथ शिव मंदिर, पालमपुर": अवतरणों में अंतर
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|विवरण='बैजनाथ शिव मंदिर' [[शिव|भगवान शिव]] को समर्पित है। यह मंदिर [[हिमाचल प्रदेश]] में [[पालमपुर]] का प्रसिद्ध धार्मिक और पर्यटन स्थल है। | |||
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'''बैजनाथ शिव मंदिर''' [[हिमाचल प्रदेश]] के [[काँगड़ा ज़िला|काँगड़ा ज़िले]] में शानदार पहाड़ी स्थल [[पालमपुर]] में स्थित है। 1204 ई. में दो क्षेत्रीय व्यापारियों 'अहुक' और 'मन्युक' द्वारा स्थापित बैजनाथ मंदिर पालमपुर का एक प्रमुख आकर्षण है और यह शहर से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। [[हिन्दू]] [[देवता]] [[शिव]] को समर्पित इस मंदिर की स्थापना के बाद से लगातार इसका निर्माण हो रहा है।<ref>{{cite web |url= http://hindi.nativeplanet.com/palampur/attractions/baijnath-shiva-temple/|title= बैजनाथ शिव मंदिर, पालमपुर|accessmonthday=28 सितम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= नेटिव प्लेनेट|language= हिन्दी}}</ref> यह प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के '[[चामुंडा देवी मंदिर, पालमपुर|चामुंडा देवी मंदिर]]' से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर [[वर्ष]] भर पूरे [[भारत]] से आने वाले [[भक्त|भक्तों]], विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है। | |||
==निर्माण काल== | ==निर्माण काल== | ||
तैरहवीं [[शताब्दी]] में बने शिव मंदिर बैजनाथ | तैरहवीं [[शताब्दी]] में बने शिव मंदिर बैजनाथ अर्थात् 'वैद्य+नाथ', जिसका अर्थ है- 'चिकित्सा अथवा ओषधियों का स्वामी', को 'वैद्य+नाथ' भी कहा जाता है। मंदिर [[पठानकोट]]-[[मंडी हिमाचल प्रदेश|मंडी]] [[राष्ट्रीय राजमार्ग]] के बिलकुल पास ही स्थित है। इसका पुराना नाम 'कीरग्राम' था, परन्तु समय के साथ यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और [[ग्राम]] का नाम 'बैजनाथ' पड़ गया। मंदिर के उत्तर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी बहती है, जो की आगे चल कर ब्यास नदी में मिलती है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://jogindernagar.com/kangra/baijnath-shiv-temple|title=बैजनाथ शिव मंदिर-मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण|accessmonthday=28 सितम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= जोगिन्दर नगर.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | ||
==पौराणिक कथा== | ==पौराणिक कथा== | ||
बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है- | बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है- | ||
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[[त्रेता युग]] में [[लंका]] के राजा [[रावण]] ने [[कैलाश पर्वत]] पर [[शिव]] के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके [[शिवलिंग]] स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। | [[त्रेता युग]] में [[लंका]] के राजा [[रावण]] ने [[कैलाश पर्वत]] पर [[शिव]] के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके [[शिवलिंग]] स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। | ||
रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में 'गौकर्ण' क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुँचने पर [[रावण]] को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने 'बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह 'चन्द्रभाल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह 'बैजनाथ' के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। [[नंदी]] के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है। | रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में 'गौकर्ण' क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुँचने पर [[रावण]] को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने 'बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह 'चन्द्रभाल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह 'बैजनाथ' के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। [[नंदी]] के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है।<ref>{{cite web |url= http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-8341.html|title= पांडवकालीन बैजनाथ मंदिर|accessmonthday= 28 सितम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= जागरण.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | ||
====पांडव नहीं बना पाए पूरा मंदिर==== | |||
[[द्वापर युग]] में [[पांडव|पांडवों]] के [[अज्ञातवास]] ने दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य 'आहुक' एवं 'मनुक' नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान 'शिवधाम' के नाम से [[उत्तरी भारत]] में प्रसिद्ध है। | |||
==स्थापत्य कला== | ==स्थापत्य कला== | ||
अत्यंत आकर्षक | अत्यंत आकर्षक संरचना और निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप के इस मंदिर के गर्भ-गृह में प्रवेश एक ड्योढ़ी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है, और उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं। मंडप के अग्र भाग में चार स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है, जिसके सामने ही पत्थर के छोटे मंदिर के नीचे खड़े हुए विशाल नंदी बैल की मूर्ति है। पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। बहुत सारे चित्र दीवारों में नक़्क़ाशी करके बनाये गये हैं। बरामदे का बाहरी द्वार और गर्भ-गृह को जाता अंदरूनी द्वार अंत्यंत सुंदरता और महत्व को दर्शाते अनगिनत चित्रों से भरा पड़ा है।<ref>{{cite web |url= http://audichyabandhu.blogspot.in/2013_06_01_archive.html|title= शक्ति पीठ चामुंडा, बेजनाथ, ओर ज्वाला मुखी की यात्रा|accessmonthday=28 सितम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= औदीच्य बंधु|language= हिन्दी}}</ref> | ||
==धार्मिक आस्था का केंद्र== | |||
बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर साल भर पूरे [[भारत]] से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है। प्रार्थना हर दिन सुबह और शाम में की जाती है। इसके अलावा विशेष अवसरों और उत्सवों में विशेष [[पूजा]]-अर्चना की जाती है। [[मकर संक्रांति]], [[महाशिवरात्रि]], वैशाख संक्रांति, [[सावन के सोमवार|श्रावण सोमवार]] आदि पर्व भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं। [[श्रावण मास]] में पड़ने वाले हर [[सोमवार]] को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है। श्रावण के सभी सोमवार को मेले के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर हर वर्ष पांच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाता है।<ref name="aa"/> | |||
====दशहरा उत्सव==== | |||
[[दशहरा]] का उत्सव, जो परंपरागत रूप से [[रावण]] का पुतला जलाने के लिए मनाया जाता है, लेकिन यहाँ बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई भगवान शिव की तपस्या ओर [[भक्ति]] करने के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है। बैजनाथ के शहर के बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि यहाँ सुनार की दुकान नहीं है। | |||
====स्नान का महत्त्व==== | |||
मंदिर के साथ बहने वाली विनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में [[स्नान]] का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत [[शिवलिंग]] को [[पंचामृत]] से स्नान करवा कर उस पर [[बिल्वपत्र|बिल्व पत्र]], [[फूल]], भांग, धतुरा इत्यादि अर्पित कर भोले नाथ को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुन्य कमाते हैं। | |||
==कैसे पहुँचें== | |||
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06:39, 6 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
बैजनाथ शिव मंदिर, पालमपुर
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विवरण | 'बैजनाथ शिव मंदिर' भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश में पालमपुर का प्रसिद्ध धार्मिक और पर्यटन स्थल है। | ||
राज्य | हिमाचल प्रदेश | ||
ज़िला | काँगड़ा ज़िला | ||
निर्माता | द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर का शेष निर्माण कार्य 'आहुक' एवं 'मनुक' नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण करवाया। | ||
भौगोलिक स्थिति | यह शिव मंदिर पालमपुर के 'चामुंडा देवी मंदिर' से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। | ||
प्रसिद्धि | शिव धार्मिक स्थल। | ||
कैसे पहुँचें | बैजनाथ तक पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चण्डीगढ़-ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस या निजी वाहन व टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। | ||
संबंधित लेख | शिव, रावण, द्वादश ज्योतिर्लिंग | धार्मिक महत्त्व | मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, वैशाख संक्रांति, श्रावण सोमवार आदि पर्व यहाँ भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं। श्रावण मास में पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है। |
अन्य जानकारी | दशहरा का उत्सव, जो परंपरागत रूप से रावण का पुतला जलाने के लिए मनाया जाता है, लेकिन यहाँ बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई शिव की तपस्या ओर भक्ति करने के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है। |
बैजनाथ शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में शानदार पहाड़ी स्थल पालमपुर में स्थित है। 1204 ई. में दो क्षेत्रीय व्यापारियों 'अहुक' और 'मन्युक' द्वारा स्थापित बैजनाथ मंदिर पालमपुर का एक प्रमुख आकर्षण है और यह शहर से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। हिन्दू देवता शिव को समर्पित इस मंदिर की स्थापना के बाद से लगातार इसका निर्माण हो रहा है।[1] यह प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के 'चामुंडा देवी मंदिर' से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर वर्ष भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।
निर्माण काल
तैरहवीं शताब्दी में बने शिव मंदिर बैजनाथ अर्थात् 'वैद्य+नाथ', जिसका अर्थ है- 'चिकित्सा अथवा ओषधियों का स्वामी', को 'वैद्य+नाथ' भी कहा जाता है। मंदिर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के बिलकुल पास ही स्थित है। इसका पुराना नाम 'कीरग्राम' था, परन्तु समय के साथ यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम 'बैजनाथ' पड़ गया। मंदिर के उत्तर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी बहती है, जो की आगे चल कर ब्यास नदी में मिलती है।[2]
पौराणिक कथा
बैजनाथ मंदिर की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है-
त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर शिव के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना।
रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में 'गौकर्ण' क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुँचने पर रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने 'बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह 'चन्द्रभाल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह 'बैजनाथ' के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है।[3]
पांडव नहीं बना पाए पूरा मंदिर
द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास ने दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य 'आहुक' एवं 'मनुक' नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान 'शिवधाम' के नाम से उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है।
स्थापत्य कला
अत्यंत आकर्षक संरचना और निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप के इस मंदिर के गर्भ-गृह में प्रवेश एक ड्योढ़ी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है, और उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं। मंडप के अग्र भाग में चार स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है, जिसके सामने ही पत्थर के छोटे मंदिर के नीचे खड़े हुए विशाल नंदी बैल की मूर्ति है। पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। बहुत सारे चित्र दीवारों में नक़्क़ाशी करके बनाये गये हैं। बरामदे का बाहरी द्वार और गर्भ-गृह को जाता अंदरूनी द्वार अंत्यंत सुंदरता और महत्व को दर्शाते अनगिनत चित्रों से भरा पड़ा है।[4]
धार्मिक आस्था का केंद्र
बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर साल भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है। प्रार्थना हर दिन सुबह और शाम में की जाती है। इसके अलावा विशेष अवसरों और उत्सवों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, वैशाख संक्रांति, श्रावण सोमवार आदि पर्व भारी उत्साह और भव्यता के साथ मनाऐ जाते हैं। श्रावण मास में पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है। श्रावण के सभी सोमवार को मेले के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर हर वर्ष पांच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाता है।[2]
दशहरा उत्सव
दशहरा का उत्सव, जो परंपरागत रूप से रावण का पुतला जलाने के लिए मनाया जाता है, लेकिन यहाँ बैजनाथ में इसे रावण द्वारा की गई भगवान शिव की तपस्या ओर भक्ति करने के लिए सम्मान के रूप में मनाया जाता है। बैजनाथ के शहर के बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि यहाँ सुनार की दुकान नहीं है।
स्नान का महत्त्व
मंदिर के साथ बहने वाली विनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बिल्व पत्र, फूल, भांग, धतुरा इत्यादि अर्पित कर भोले नाथ को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुन्य कमाते हैं।
कैसे पहुँचें
बैजनाथ तक पहुंचने के लिए दिल्ली से पठानकोट या चण्डीगढ़-ऊना होते हुए रेलमार्ग, बस या निजी वाहन व टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से पठानकोट और कांगड़ा ज़िले में गग्गल तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बैजनाथ शिव मंदिर, पालमपुर (हिन्दी) नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।
- ↑ 2.0 2.1 बैजनाथ शिव मंदिर-मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण (हिन्दी) जोगिन्दर नगर.कॉम। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।
- ↑ पांडवकालीन बैजनाथ मंदिर (हिन्दी) जागरण.कॉम। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।
- ↑ शक्ति पीठ चामुंडा, बेजनाथ, ओर ज्वाला मुखी की यात्रा (हिन्दी) औदीच्य बंधु। अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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