"अनुराधा (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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अनुराधा एक बड़ी ख़ूबसूरत और मर्मस्पर्शी फ़िल्म है जो देखते हुए आपके मन में गहरे उतर जाती है। कहानी यों तो बहुत सहज सी है मगर उसका ट्रीटमेंट जिस गहराई से हुआ है, वह इसे एक सम्वेदनशील फ़िल्म के रूप में हमें हमेशा याद दिलाता है। नाम से ज़ाहिर है, अनुराधा नायिका है जिसका विवाह के पेशे के प्रति प्रतिबद्ध और अत्यन्त कर्मठ डॉक्टर से हो जाता है। विवाह के बाद वह एक छोटे से गाँव में पति के साथ आ जाती है। डॉक्टर तन्मयता से मरीजों की सेवा करता है। उनके प्रति मानवीय सम्वेदना रखता है। जिस तरह डॉक्टर को भगवान का रूप कहा जाता है, गाँव के लोग उसे इसी रूप में देखते हैं और उसके प्रति बड़ी श्रद्धा रखते हैं। यह डॉक्टर केवल दवा नहीं देता बल्कि लोगों को जीवन और निबाह की सीख भी देता है। | अनुराधा एक बड़ी ख़ूबसूरत और मर्मस्पर्शी फ़िल्म है जो देखते हुए आपके मन में गहरे उतर जाती है। कहानी यों तो बहुत सहज सी है मगर उसका ट्रीटमेंट जिस गहराई से हुआ है, वह इसे एक सम्वेदनशील फ़िल्म के रूप में हमें हमेशा याद दिलाता है। नाम से ज़ाहिर है, अनुराधा नायिका है जिसका विवाह के पेशे के प्रति प्रतिबद्ध और अत्यन्त कर्मठ डॉक्टर से हो जाता है। विवाह के बाद वह एक छोटे से गाँव में पति के साथ आ जाती है। डॉक्टर तन्मयता से मरीजों की सेवा करता है। उनके प्रति मानवीय सम्वेदना रखता है। जिस तरह डॉक्टर को भगवान का रूप कहा जाता है, गाँव के लोग उसे इसी रूप में देखते हैं और उसके प्रति बड़ी श्रद्धा रखते हैं। यह डॉक्टर केवल दवा नहीं देता बल्कि लोगों को जीवन और निबाह की सीख भी देता है। | ||
अपने प्रोफेशन के प्रति उसका इतना डूबा हुआ होना धीरे-धीरे किस तरह उसके घर में अनुराधा को उपेक्षित और नितान्त अकेला करता चला जा रहा है, इसका उसे ख्याल नहीं है। वह अपनी पत्नी को कोई | अपने प्रोफेशन के प्रति उसका इतना डूबा हुआ होना धीरे-धीरे किस तरह उसके घर में अनुराधा को उपेक्षित और नितान्त अकेला करता चला जा रहा है, इसका उसे ख्याल नहीं है। वह अपनी पत्नी को कोई दु:ख नहीं देता, प्रताडि़त नहीं करता मगर पूरे वक्त उसकी काम के प्रति एकाग्रता घर में उसकी जीवन्त उपस्थिति को प्रभावित करती है। डॉक्टर की एक प्यारी सी बेटी है जो अपने पिता और माँ के बीच स्वाभाविक और निश्छल सेतु की तरह है मगर किसी जमाने में अच्छी गायिका रही पत्नी को यह लगने लगता है कि उसे अपने घर चले जाना चाहिए। ऐसे में एक दिन एक दुर्घटना में घायल हो कर दीपक (अभि भट्टाचार्य) उनके घर आते हैं। दीपक अनुराधा को चाहते थे और अनुराधा के पिता दोनों का विवाह भी करना चाहते थे पर विवाह नहीं हो पाता। ऐसे में दीपक अनु को गीत गाने के लिये बाध्य करते है और अनुराधा गीत में ही अपने पति से शिकायत करती है कि कैसे दिन बीते कैसे बीती रतियाँ पिया जाने ना... लेकिन कितनी शालीनता से, शिकायत तो है पर इस शिकायत में कटाक्ष या नाराजगी का पुट पहीं है। शिकायत में भी प्रेम ही छलकता है। जिस दिन उसको जाना है उसी दिन गाँव में वरिष्ठ डॉक्टरों का एक ग्रुप आया है जो रात इस डॉक्टर के घर खाना खाने आना चाहता है। पति, पत्नी से अनुरोध करता है कि आज न जाये। डॉक्टरों के ग्रुप के एक वरिष्ठ डॉक्टर घर में खाना खाते हैं और वे उतनी ही देर में सारी बातों को समझ जाते हैं। वे नायक की पत्नी से पिता की तरह बात करते हैं फिर डॉक्टर को नसीहत देते हैं। हृदय को छू लेने वाला आत्मावलोकन है। अन्त यह है कि वह अपने पिता के यहाँ नहीं जा रही है। | ||
==संगीत== | ==संगीत== |
14:01, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
अनुराधा (फ़िल्म)
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निर्देशक | ऋषिकेश मुखर्जी |
निर्माता | एल.बी.फ़िल्मस |
कहानी | सचिन भौमिक |
पटकथा | सचिन भौमिक |
संवाद | राजेन्द्र सिंह बेदी |
कलाकार | बलराज साहनी, लीला नायडू, अभिभट्टाचार्य, असित सेन, नासिर हुसैन, हरि शिवदासानी और बालकलाकार रानू |
संगीत | पंडित रविशंकर |
गीतकार | शैलेन्द्र |
गायक | लता मंगेशकर, मन्ना डे और महेन्द्र कपूर |
प्रसिद्ध गीत | "कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया, "जाने कैसे सपनों में खो गयीं अखियाँ" |
प्रदर्शन तिथि | 1960 |
भाषा | हिन्दी |
पुरस्कार | गोल्डेन बियर बर्लिन,1961, राष्ट्रीय पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म)[1] |
देश | भारत |
अद्यतन | 14:37, 29 सितम्बर 2011 (IST)
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महान फ़िल्मकार बिमल राय की फ़िल्मों के संपासक रहे ऋषिकेश मुखर्जी जब आगे चलकर स्वयं निर्देशक बने तो उन्होंने अपनी फ़िल्मों के माध्यम से सामाजिक मूल्यों के साथ-साथ जीवन की बड़ी सहज और स्वाभाविक परिस्थितियों को अपनी रचनाशीलता का आधार बनाया। एक सम्पादक के रूप में उनकी दृष्टि की गहराई हम बिमल राय की अनेक फ़िल्मों में देख सकते हैं। 'अनुराधा' हृषिकेश मुखर्जी की तीसरी फ़िल्म थी। 'मुसाफिर' और 'अनाड़ी' के बाद ऋषिकेश मुखर्जी ने 'अनुराधा' बनायी थी जिसमें पण्डित रविशंकर का संगीत था।
कथानक
अनुराधा एक बड़ी ख़ूबसूरत और मर्मस्पर्शी फ़िल्म है जो देखते हुए आपके मन में गहरे उतर जाती है। कहानी यों तो बहुत सहज सी है मगर उसका ट्रीटमेंट जिस गहराई से हुआ है, वह इसे एक सम्वेदनशील फ़िल्म के रूप में हमें हमेशा याद दिलाता है। नाम से ज़ाहिर है, अनुराधा नायिका है जिसका विवाह के पेशे के प्रति प्रतिबद्ध और अत्यन्त कर्मठ डॉक्टर से हो जाता है। विवाह के बाद वह एक छोटे से गाँव में पति के साथ आ जाती है। डॉक्टर तन्मयता से मरीजों की सेवा करता है। उनके प्रति मानवीय सम्वेदना रखता है। जिस तरह डॉक्टर को भगवान का रूप कहा जाता है, गाँव के लोग उसे इसी रूप में देखते हैं और उसके प्रति बड़ी श्रद्धा रखते हैं। यह डॉक्टर केवल दवा नहीं देता बल्कि लोगों को जीवन और निबाह की सीख भी देता है।
अपने प्रोफेशन के प्रति उसका इतना डूबा हुआ होना धीरे-धीरे किस तरह उसके घर में अनुराधा को उपेक्षित और नितान्त अकेला करता चला जा रहा है, इसका उसे ख्याल नहीं है। वह अपनी पत्नी को कोई दु:ख नहीं देता, प्रताडि़त नहीं करता मगर पूरे वक्त उसकी काम के प्रति एकाग्रता घर में उसकी जीवन्त उपस्थिति को प्रभावित करती है। डॉक्टर की एक प्यारी सी बेटी है जो अपने पिता और माँ के बीच स्वाभाविक और निश्छल सेतु की तरह है मगर किसी जमाने में अच्छी गायिका रही पत्नी को यह लगने लगता है कि उसे अपने घर चले जाना चाहिए। ऐसे में एक दिन एक दुर्घटना में घायल हो कर दीपक (अभि भट्टाचार्य) उनके घर आते हैं। दीपक अनुराधा को चाहते थे और अनुराधा के पिता दोनों का विवाह भी करना चाहते थे पर विवाह नहीं हो पाता। ऐसे में दीपक अनु को गीत गाने के लिये बाध्य करते है और अनुराधा गीत में ही अपने पति से शिकायत करती है कि कैसे दिन बीते कैसे बीती रतियाँ पिया जाने ना... लेकिन कितनी शालीनता से, शिकायत तो है पर इस शिकायत में कटाक्ष या नाराजगी का पुट पहीं है। शिकायत में भी प्रेम ही छलकता है। जिस दिन उसको जाना है उसी दिन गाँव में वरिष्ठ डॉक्टरों का एक ग्रुप आया है जो रात इस डॉक्टर के घर खाना खाने आना चाहता है। पति, पत्नी से अनुरोध करता है कि आज न जाये। डॉक्टरों के ग्रुप के एक वरिष्ठ डॉक्टर घर में खाना खाते हैं और वे उतनी ही देर में सारी बातों को समझ जाते हैं। वे नायक की पत्नी से पिता की तरह बात करते हैं फिर डॉक्टर को नसीहत देते हैं। हृदय को छू लेने वाला आत्मावलोकन है। अन्त यह है कि वह अपने पिता के यहाँ नहीं जा रही है।
संगीत
अनुराधा फ़िल्म में भारत रत्न पडित रविशंकर ने संगीत दिया था।
कलाकार
फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे - बलराज साहनी, लीला नायडू, अभिभट्टाचार्य, असित सेन, नासिर हुसैन, हरि शिवदासानी और बालकलाकार रानू। कथा और पटकथा है सचिन भौमिक की। संवाद राजेन्द्र सिंह बेदी ने लिखे हैं और गीतकार है शैलेन्द्र। फ़िल्म में गीत गाये हैं लता मंगेशकर, मन्ना डे और महेन्द्र कपूर ने।
- योगदान
इस फ़िल्म में हरेक कलाकार ने अपना जबरदस्त योगदान दिया है, लीला नायडू- बलराज साहनी का अभिनय, पं रविशंकर का संगीत निर्देशन, ऋषिकेश मुखर्जी का निर्देशन.. और हाँ लीला नायडू का सादगी भरा सौंदर्य भी। लीला नायडू के बोलने का तरीका भी एक अलग तरह का है जो फ़िल्म में उनके पात्र को ज़्यादा प्रभावशाली बना रहा है। बच्ची रानू का हिन्दी बोलने का लहजा [[बांग्ला भाषा|बंगाली है वह अनुराधा के बजाय ओनुराधा रॉय बोलती है। छोटी बच्ची ने भी बहुत शानदार अभिनय किया है।
कलाकार परिचय
क्रमांक | कलाकार | पात्र का नाम |
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1. | बलराज साहनी | डॉ. निर्मल चौधरी |
2. | लीला नायडू | अनुराधा रॉय |
3. | अभिभट्टाचार्य | दीपक |
4. | नासिर हुसैन | |
5. | हरि शिवदसानी | ब्रजेश्वर प्रसाद रॉय |
6. | असित सेन | ज़मींदार |
7. | मुकरी | आत्माराम |
8. | राशिद ख़ान | रामभरोसे |
9. | बालकलाकार | रानू |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Awards for Anuradha (अंग्रेज़ी)। । अभिगमन तिथि: 29 सितम्बर, 2011।
- ↑ Anuradha (अंग्रेज़ी)। । अभिगमन तिथि: 29 सितम्बर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- फ़िल्म समीक्षा: अनुराधा 1960
- लता/80: स्वर उत्सव: कैसे दिन बीते कैसे बीती रतियाँ, पिया जाने ना- पण्डित रविशंकर