"सुशील कुमार (अभिनेता)": अवतरणों में अंतर
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सिंधी होते हुई भी उनकी [[भाषा]], खान-पान और रीति-रिवाज पर [[कच्छ]], [[गुजरात की संस्कृति]] का गहरा असर था। जब सुशील कुमार महज ढाई [[वर्ष]] के थे, तब देश का बंटवारा हुआ और उनके परिवार को अपना सब कुछ कराची में छोड़कर भागना पड़ा। वे लोग पहले गुजरात के नवसारी शहर और फिर [[मुंबई]] में आकर बस गए। यह समय उनके परिवार के लिए बदहाली का दौर था। | सिंधी होते हुई भी उनकी [[भाषा]], खान-पान और रीति-रिवाज पर [[कच्छ]], [[गुजरात की संस्कृति]] का गहरा असर था। जब सुशील कुमार महज ढाई [[वर्ष]] के थे, तब देश का बंटवारा हुआ और उनके परिवार को अपना सब कुछ कराची में छोड़कर भागना पड़ा। वे लोग पहले गुजरात के नवसारी शहर और फिर [[मुंबई]] में आकर बस गए। यह समय उनके परिवार के लिए बदहाली का दौर था। | ||
==शिक्षा व विवाह== | ==शिक्षा व विवाह== | ||
सुशील कुमार ने 'जय हिन्द कॉलेज' से बी.ए. उत्तीर्ण किया और फिर कुछ ही समय बाद उन्हें | सुशील कुमार ने 'जय हिन्द कॉलेज' से बी.ए. उत्तीर्ण किया और फिर कुछ ही समय बाद उन्हें एयर इंडिया में नौकरी मिल गई। [[वर्ष]] [[1971]] से [[2003]] तक उन्होंने नौकरी की और फिर रिटायरमेंट ले लिया। नौकरी के दौरान उन्होंने पूरी दुनिया की सैर की। उनका [[विवाह संस्कार|विवाह]] [[1978]] में अपनी बचपन की दोस्त कोशी कोटवाणी से हुआ था। | ||
==फ़िल्मों में आगमन== | ==फ़िल्मों में आगमन== | ||
जब सुशील कुमार का परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा था, तब एक दिन [[कराची]] के वर्षों पुराने उनके एक पारिवारिक मित्र किशनलाल बजाज उनके घर आए। वह [[मुल्तान]] के रहने वाले थे और बंटवारे के बाद उनका पूरा [[परिवार]] [[दिल्ली]] आकर बस गया था। किशनलाल बजाज [[मुंबई]] में रहते थे और फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल करते थे। उन्होंने सुशील की माँ के सामने प्रस्ताव रखा कि 20 प्रतिशत कमीशन के बदले वे उन्हें फ़िल्मों में काम दिलाएंगे, जिसे माँ ने मान लिया। वर्ष [[1958]] में बनी सिंधी फ़िल्म 'अबाना' बतौर बाल कालकार सुशील की पहली फ़िल्म थी। | जब सुशील कुमार का परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा था, तब एक दिन [[कराची]] के वर्षों पुराने उनके एक पारिवारिक मित्र किशनलाल बजाज उनके घर आए। वह [[मुल्तान]] के रहने वाले थे और बंटवारे के बाद उनका पूरा [[परिवार]] [[दिल्ली]] आकर बस गया था। किशनलाल बजाज [[मुंबई]] में रहते थे और फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल करते थे। उन्होंने सुशील की माँ के सामने प्रस्ताव रखा कि 20 प्रतिशत कमीशन के बदले वे उन्हें फ़िल्मों में काम दिलाएंगे, जिसे माँ ने मान लिया। वर्ष [[1958]] में बनी सिंधी फ़िल्म 'अबाना' बतौर बाल कालकार सुशील की पहली फ़िल्म थी। | ||
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सुशील कुमार | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सुशील कुमार (बहुविकल्पी) |
सुशील कुमार (अभिनेता)
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पूरा नाम | सुशील कुमार |
जन्म | 4 जुलाई, 1945 |
जन्म भूमि | कराची |
अभिभावक | पिता- किशनचंद्र जमनादास सोमाया, माता- तुलसीबाई |
पति/पत्नी | कोशी कोटवाणी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | अभिनय |
मुख्य फ़िल्में | 'दोस्ती', 'काला बाज़ार', 'श्रीमान सत्यवादी', 'दिल भी तेरा हम भी तेरे', 'सम्पूर्ण रामायण', 'फूल बने अंगारे' आदि। |
शिक्षा | बी.ए. |
विद्यालय | जय हिन्द कॉलेज |
प्रसिद्धि | अभिनेता |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | दोस्ती, सुधीर कुमार सावंत |
अन्य जानकारी | सुशील कुमार ने 'जय हिन्द कॉलेज' से बी.ए. उत्तीर्ण किया था और फिर कुछ ही समय बाद उन्हें एयंर इंडिया में नौकरी मिल गई। वर्ष 1971 से 2003 तक उन्होंने नौकरी की और फिर रिटायरमेंट ले लिया। |
अद्यतन | 11:58, 4 जुलाई 2017 (IST)
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सुशील कुमार (जन्म- 4 जुलाई, 1945, कराची) हिन्दी फ़िल्मों के अभिनेता थे। वे साठ के दशक की हिट फ़िल्म 'दोस्ती' में बैसाखी का सहारा लिए अपंग रामनाथ के किरदार में पर्दे पर नज़र आए थे।
जन्म तथा परिवार
सुशील कुमार का जन्म 4 जुलाई, 1945 में कराची[1] के एक धनी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम किशनचंद्र जमनादास सोमाया और माता का नाम तुलसीबाई था।
कराची से पलायन
सिंधी होते हुई भी उनकी भाषा, खान-पान और रीति-रिवाज पर कच्छ, गुजरात की संस्कृति का गहरा असर था। जब सुशील कुमार महज ढाई वर्ष के थे, तब देश का बंटवारा हुआ और उनके परिवार को अपना सब कुछ कराची में छोड़कर भागना पड़ा। वे लोग पहले गुजरात के नवसारी शहर और फिर मुंबई में आकर बस गए। यह समय उनके परिवार के लिए बदहाली का दौर था।
शिक्षा व विवाह
सुशील कुमार ने 'जय हिन्द कॉलेज' से बी.ए. उत्तीर्ण किया और फिर कुछ ही समय बाद उन्हें एयर इंडिया में नौकरी मिल गई। वर्ष 1971 से 2003 तक उन्होंने नौकरी की और फिर रिटायरमेंट ले लिया। नौकरी के दौरान उन्होंने पूरी दुनिया की सैर की। उनका विवाह 1978 में अपनी बचपन की दोस्त कोशी कोटवाणी से हुआ था।
फ़िल्मों में आगमन
जब सुशील कुमार का परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा था, तब एक दिन कराची के वर्षों पुराने उनके एक पारिवारिक मित्र किशनलाल बजाज उनके घर आए। वह मुल्तान के रहने वाले थे और बंटवारे के बाद उनका पूरा परिवार दिल्ली आकर बस गया था। किशनलाल बजाज मुंबई में रहते थे और फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल करते थे। उन्होंने सुशील की माँ के सामने प्रस्ताव रखा कि 20 प्रतिशत कमीशन के बदले वे उन्हें फ़िल्मों में काम दिलाएंगे, जिसे माँ ने मान लिया। वर्ष 1958 में बनी सिंधी फ़िल्म 'अबाना' बतौर बाल कालकार सुशील की पहली फ़िल्म थी।
फ़िल्में
बाल कलाकार के रूप में सुशील कुमार ने निम्न फ़िल्मों में काम किया-
- 'फिर सुबह होगी' (1958)
- 'धूल का फूल' (1959)
- 'मैंने जीना सीख लिया' (1959)
- 'काला बाज़ार' (1960)
- 'श्रीमान सत्यवादी' (1960)
- 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' (1960)
- 'संजोग' (1961)
- 'सम्पूर्ण रामायण' (1961)
- 'एक लड़की सात लड़के' (1961)
- 'फूल बने अंगारे' (1963)
- 'सहेली' (1965)
'राजश्री प्रोडक्शंस' के मालिक ताराचन्द बड़जात्या 1959 में प्रदर्शित हुई बांग्ला फ़िल्म 'लालू-भुलू' का हिन्दी रीमेक बनाना चाहते थे, जिसकी केंद्रीय भूमिकाओं के लिए वे 17-18 वर्ष के दो नए लड़कों की तलाश में थे। उनकी तलाश सुशील कुमार पर जाकर समाप्त हुई। ये फ़िल्म फिट हुई। इसके बाद 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'तकदीर' में वे नज़र आए। लेकिन वे फ़िल्मों को छोड़ने का मन बना चुके थे। वर्ष 1973 में बनी देवानंद की फ़िल्म 'हीरा-पन्ना' में ज़रूर जहाज़ के भीतर के एक सीन में वह नज़र आए थे।
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