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[[यूरोप]] के एक देश फ़्राँस मे रहने वाले लोगों को फ्राँसीसी कहते है।  
[[यूरोप]] के एक देश [[फ़्राँस]] में रहने वाले लोगों को '''फ्राँसीसी''' कहते हैं। फ़्राँसीसी भी [[भारत]] में व्यापार करने के उद्देश्य से ही आए थे, लेकिन भारत की सम्पन्नता ने उन्हें यहाँ पर बसने के लिये विवश कर दिया। [[डच]], [[पुर्तग़ाली]] और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से फ़्राँसीसियों ने काफ़ी लम्बे समय तक संघर्ष किया। [[जनरल डूमा]] फ़्राँसीसी उपनिवेश [[पाण्डिचेरी]] का गवर्नर था। जनरल डूमा के बाद [[डूप्ले]] अगला फ़्राँसीसी जनरल बनकर भारत आया, जिसकी राजनीतिक सफलताओं के आगे डूमा का योगदान दब गया।
==भारत आगमन==
फ़्राँसीसियों ने भारत में सबसे अन्त में प्रवेश किया। इनसे पहले यहाँ पर पुर्तग़ाली, डच ओर अंग्रेज़ लोग अपनी व्यापारिक कोठियाँ स्थापित कर चुके थे। 'डेन' (डेनमार्क के निवासी) 1616 ई. में भारत आये। फ़्राँस के सम्राट 'लुई' 14वें के मंत्री कोलबर्ट के सहयोग से 1664 ई. में भारत में 'फ़्राँसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी' की स्थापना हुई। यह कम्पनी सरकारी आर्थिक सहायता पर निर्भर थी, इसलिए इसे 'सरकारी व्यापारी कम्पनी' भी कहा जाता है।
====कोठियों की स्थापना====
भारत में फ़्राँसीसियों की पहली कोठी फ़्रैकों कैरो द्वारा [[सूरत]] में 1668 ई. में स्थापित हुई। [[गोलकुण्डा]] रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद फ़्राँसीसियों ने अपनी दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में [[मसुलीपट्टम]] में की। 1673 ई. में फ़्राँस्वां मार्टिन तथा बेलांगर द लेस्पिन ने वालिकोण्डपुरम के [[मुसलमान|मुस्लिम]] सूबेदार शेर ख़ाँ लोदी से एक छोटा गाँव पुर्दुचुरी प्राप्त किया। पुर्दुचुरी में ही फ़्राँसीसियों ने [[पांडिचेरी]] की नींव डाली। बंगाल के तत्कालीन नवाब [[शाइस्ता ख़ाँ]] ने 1674 ई. में फ़्राँसीसियों को एक जगह दी, जहाँ पर 1690-1692 ई. के मध्य चन्द्रनगर की सुप्रसिद्ध 'फ़्राँसीसी कोठी' की स्थापना की गई।
====डचों से संघर्ष एवं पतन====
1693 ई. में फ़्राँसीसियों के क़ब्ज़े से डचों ने पांडिचेरी को छीन लिया, जो 1697 ई. में सम्पन्न 'रिजविक समझौते' के बाद ही फ़्राँसीसी बस्तियों का मुख्यालय बनाया गया और मार्टिन को [[भारत]] में फ़्राँसीसी मामलों का महानिदेशक नियुक्त किया गया। पांडिचेरी के कारखाने में ही मार्टिन ने फ़ोर्ट लुई का निर्माण कराया। फ़्राँसीसियों ने 1721 ई. में [[मॉरीशस]], 1725 ई. में मालाबार तट पर स्थित माही एवं 1739 ई. में कारीकल पर अपना अधिकार जमा लिया 1742 ई. से पूर्व फ़्राँसीसियों का मूल उद्देश्य व्यापारिक लाभ कमाना था, परन्तु 1742 ई. के बाद [[डूप्ले]] के पांडिचेरी का गर्वनर नियुक्त होने पर राजनीतिक लाभ व्यापारिक लाभ से महत्त्वपूर्ण हो गया। डूप्ले की इस महत्वाकांक्षा ने ही भारत में फ़्राँसीसियों के पतन के मार्ग को प्रशस्त किया।


*[[पुर्तग़ाली]], [[डच]], [[अंग्रेज़]], डेन, फ़्राँसीसी के अतिरिक्त अन्य कम्पनियाँ भी थीं - ओस्टेंड कंपनी और स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी। ओस्टेंड कंपनी को 1772 ई. में विधिवत आज्ञा-पत्र मिला। इसका संगठन फ़्लैडर्स के सौदाग़रों ने किया था। भारत में इसका जीवन अल्पकाल का रहा। स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1731 ई. में हुई थी, किन्तु इसका व्यापारिक संबंध अधिकतर [[चीन]] के साथ रहा। समान महत्वाकांक्षा एवं राज्य विस्तार की आकांक्षा ने इन व्यापारिक कंपनियों में संघर्ष अवश्यंभावी कर दिया।


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10:38, 18 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

यूरोप के एक देश फ़्राँस में रहने वाले लोगों को फ्राँसीसी कहते हैं। फ़्राँसीसी भी भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से ही आए थे, लेकिन भारत की सम्पन्नता ने उन्हें यहाँ पर बसने के लिये विवश कर दिया। डच, पुर्तग़ाली और अंग्रेज़ों से फ़्राँसीसियों ने काफ़ी लम्बे समय तक संघर्ष किया। जनरल डूमा फ़्राँसीसी उपनिवेश पाण्डिचेरी का गवर्नर था। जनरल डूमा के बाद डूप्ले अगला फ़्राँसीसी जनरल बनकर भारत आया, जिसकी राजनीतिक सफलताओं के आगे डूमा का योगदान दब गया।

भारत आगमन

फ़्राँसीसियों ने भारत में सबसे अन्त में प्रवेश किया। इनसे पहले यहाँ पर पुर्तग़ाली, डच ओर अंग्रेज़ लोग अपनी व्यापारिक कोठियाँ स्थापित कर चुके थे। 'डेन' (डेनमार्क के निवासी) 1616 ई. में भारत आये। फ़्राँस के सम्राट 'लुई' 14वें के मंत्री कोलबर्ट के सहयोग से 1664 ई. में भारत में 'फ़्राँसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी' की स्थापना हुई। यह कम्पनी सरकारी आर्थिक सहायता पर निर्भर थी, इसलिए इसे 'सरकारी व्यापारी कम्पनी' भी कहा जाता है।

कोठियों की स्थापना

भारत में फ़्राँसीसियों की पहली कोठी फ़्रैकों कैरो द्वारा सूरत में 1668 ई. में स्थापित हुई। गोलकुण्डा रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद फ़्राँसीसियों ने अपनी दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में मसुलीपट्टम में की। 1673 ई. में फ़्राँस्वां मार्टिन तथा बेलांगर द लेस्पिन ने वालिकोण्डपुरम के मुस्लिम सूबेदार शेर ख़ाँ लोदी से एक छोटा गाँव पुर्दुचुरी प्राप्त किया। पुर्दुचुरी में ही फ़्राँसीसियों ने पांडिचेरी की नींव डाली। बंगाल के तत्कालीन नवाब शाइस्ता ख़ाँ ने 1674 ई. में फ़्राँसीसियों को एक जगह दी, जहाँ पर 1690-1692 ई. के मध्य चन्द्रनगर की सुप्रसिद्ध 'फ़्राँसीसी कोठी' की स्थापना की गई।

डचों से संघर्ष एवं पतन

1693 ई. में फ़्राँसीसियों के क़ब्ज़े से डचों ने पांडिचेरी को छीन लिया, जो 1697 ई. में सम्पन्न 'रिजविक समझौते' के बाद ही फ़्राँसीसी बस्तियों का मुख्यालय बनाया गया और मार्टिन को भारत में फ़्राँसीसी मामलों का महानिदेशक नियुक्त किया गया। पांडिचेरी के कारखाने में ही मार्टिन ने फ़ोर्ट लुई का निर्माण कराया। फ़्राँसीसियों ने 1721 ई. में मॉरीशस, 1725 ई. में मालाबार तट पर स्थित माही एवं 1739 ई. में कारीकल पर अपना अधिकार जमा लिया 1742 ई. से पूर्व फ़्राँसीसियों का मूल उद्देश्य व्यापारिक लाभ कमाना था, परन्तु 1742 ई. के बाद डूप्ले के पांडिचेरी का गर्वनर नियुक्त होने पर राजनीतिक लाभ व्यापारिक लाभ से महत्त्वपूर्ण हो गया। डूप्ले की इस महत्वाकांक्षा ने ही भारत में फ़्राँसीसियों के पतन के मार्ग को प्रशस्त किया।

  • पुर्तग़ाली, डच, अंग्रेज़, डेन, फ़्राँसीसी के अतिरिक्त अन्य कम्पनियाँ भी थीं - ओस्टेंड कंपनी और स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी। ओस्टेंड कंपनी को 1772 ई. में विधिवत आज्ञा-पत्र मिला। इसका संगठन फ़्लैडर्स के सौदाग़रों ने किया था। भारत में इसका जीवन अल्पकाल का रहा। स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1731 ई. में हुई थी, किन्तु इसका व्यापारिक संबंध अधिकतर चीन के साथ रहा। समान महत्वाकांक्षा एवं राज्य विस्तार की आकांक्षा ने इन व्यापारिक कंपनियों में संघर्ष अवश्यंभावी कर दिया।


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