"बरषा बिगत सरद रितु आई": अवतरणों में अंतर
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बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई॥ | बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई॥ | ||
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥1॥ | फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥1॥ | ||
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09:32, 22 मई 2016 के समय का अवतरण
बरषा बिगत सरद रितु आई
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई॥ |
- भावार्थ
हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है॥1॥
बरषा बिगत सरद रितु आई |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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